Class 12 Physics Chapter 9 Notes in Hindi
प्रकाश का परावर्तन
प्रकाश की किरणों का किसी चिकने तल पर टकराती है तो वह वापस उसी माध्यम लौट आता है यह घटना को प्रकाश का परावर्तन कहलाता हैं।

परावर्तित किरणें :– किसी वस्तु से टकराकर लौटने वाली किरणें परावर्तित किरणें कहलाती हैं।
अभिलम्ब :- गोलीय दर्पण के किसी बिंदु को वक्रता केंद्र से मिलाने वाली रेखा गोलीय दर्पण के उस बिंदू पर अभिलंब होता है।
आपतन कोण :- आपतन बिन्दु तथा उस बिन्दु पर अभिलम्ब के साथ बनने वाले कोण को आपतन कोण कहते हैं।
परावर्तन कोण :- प्रकाश की किरणों के द्वारा परावर्तन बिन्दु तथा अभिलम्ब के साथ बनाये जाने वाले कोण को परावर्तन कोण कहते हैं।
चिह्न परिपाटी
दर्पण से वस्तु की दूरी(u), प्रतिबिंब की दूरी (v), फोकस दूरी (f) ,वक्रता त्रिज्या (R), वस्तु की ऊंचाई (o) ,तथा प्रतिबिंब की ऊंचाई (i) आदि का मापन कर उन्हे धनात्मक अथवा ऋणात्मक चिह्न के साथ रखते हैं। इसके लिए निदेशक ज्यामिति का चिह्न परिपाटी अपनाई जाती है।

गोलीय दर्पणों द्वारा प्रकाश का परावर्तन
वैसा दर्पण जिसका परावर्तक तल काँच के खोखले गोले का हिस्सा होती है, गोलीय दर्पण कहलाता है। गोलीय दर्पण दो प्रकार के होते हैः अवतल दर्पण और उत्तल दर्पण।
अवतल दर्पण में प्रकाश की परावर्तक सतह अंदर की तरफ अवतल सतह वाली होती है। उत्तल दर्पण में प्रकाश की परावर्तक सतह बाहर की ओर उत्तल सतह वाली होती है।
गोलीय दर्पण की फोकस दूरी
दर्पण के फ़ोकस F और ध्रुव P के बीच की दूरी फ़ोकस दूरी कहलाती है , इसे f के द्वारा सूचित किया जाता है। f= R/2,
R = दर्पण की वक्रता त्रिज्या
अवतल दर्पण का फोकसः- अक्ष का वह बिन्दु, जहां पर अवतल दर्पण से परावर्तित होने के बाद प्रकाश की सभी किरणें ,जो अक्ष के समानांतर होती हैं, संकेंद्रित हो जाती हैं।

उत्तल दर्पण का फोकसः– उत्तल दर्पण की परावर्तक सतह पर प्रधान अक्ष के समांतर आपतित किरणे परावर्तन के बाद प्रधान अक्ष के जिस बिंदु से बिखरी होती हुई प्रतीत है, उस बिंदु को उत्तल दर्पण का फोकस कहा जाता है।

दर्पण समीकरण
प्रतिबिंब की दूरी (v), वस्तु की दूरी (u) और गोलीय दर्पण की फोकल दूरी (f) के बीच संबंध बताने वाला समीकरण

V= दर्पण से प्रतिबिंब की दूरी
U= दर्पण से वस्तु की दूरी
F= दर्पण की फोकल दूरी
रेखीय आवर्धन
प्रतिबिंब की उंचाई एवं वस्तु की ऊंचाई के अनुपात को रेखीय आवर्धन कहते हैं।
M = h 2 / h 1
वस्तु की उंचाई (h1) हमेशा सकारात्मक होगी। आभासी प्रतिबिंब की उंचाई (h2) सकारात्मक होगी और वास्तविक प्रतिबिंब की उंचाई नकारात्मक होगी।

M= -v/u
M= आवर्धन, v= प्रतिबिंब दूरी, u= वस्तु दूरी
अपवर्तण
एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाने पर तरंग की गति की दिशा में परिवर्तन हो जाता है, अपवर्तन कहलाता हैं। प्रकाश एक माध्यम से दूसरे माध्यम में तिरछा होकर जाता है और दूसरे माध्यम से इसके संचरण की दिशा में परिवर्तित हो जाती है, यह अपवर्तन कहलाता है।


i= आपतन कोण, r= प्रवर्तन कोण, N 21= स्थिरांक
पूर्ण आंतरिक परावर्तन
सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती हुई प्रकाश की किरण के आपतन कोण का मान क्रांतिक कोण के मान से अधिक हो जाता है, वह किरणों वापस उसी माध्यम में लौट जाती है इसी प्रकाश का पूर्ण आंतरिक परावर्तन कहते हैं।

प्रकृति में पूर्ण आंतरिक परावर्तन तथा इसके प्रोद्योगिकी अनुप्रयोग
मरीचिका:– यह वायुमंडलीय दृष्टिभ्रम है, जिसमें अस्तित्वहीन जलाशय एवं दूरस्थ वस्तु के उल्टे या बड़े आकार के प्रतिबिंब दिखता है। वस्तु और प्रेक्षक के बीच की दूरी कम होने पर प्रेक्षक का भ्रम दूर होता है।
हीरा:- हीरे में चमक पूर्ण आंतरिक परावर्तन के कारण होती है। हीरे वायु अंतरापृष्ठ का क्रांतिक कोण बहुत छोटा होता है, एक बार प्रकाश हीरे में प्रवेश करता है। इसके अंदर पूर्ण आंतरिक प्रतिबिंब से गुजरने की संभावना अधिक है।
प्रिज्म:- प्रिज्म को 90⁰अथवा 180⁰ तक प्रकाश को मोड़ने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो कुल आंतरिक प्रतिबिंब का उपयोग करता है, इस तरह के प्रिज्म का उपयोग छवियों को उनके आकार में बदलाव के बिना उल्टा करने के लिए किया जाता है।
प्राकाशिक तंतु:-
ये उच्च गुणवत्ता वाले समग्र ग्लास फाइबर से बने होते हैं, एक कोर और क्लैडिंग होती है।
प्राकाशिक तंतु प्रकाश के पूर्ण आंतरिक परावर्तन के घटना पर आधारित ऐसी युक्ति है जिसमें किसी प्रकाश सिग्नल को प्रकाश के रूप में एक स्थान से दूसरे स्थान तक तीव्र गति से बिना ऊर्जा ह्रास के प्रेक्षित किया जा सकता है। प्राकाशिक तंतु का केन्द्रीय भाग उच्च गुणवत्ता वाले कांच का बना लंबा पाइप होता है जिसे क्रोड़ कहते हैं । इसके चारो ओर अपेक्षाकृत कम अपवर्तनांक वाले ये पदार्थ की पतली परत होती है जिसे क्लैडिंग कहते है।
गोलिय पृष्ठों तथा लेंसो द्वारा अपवर्तन
गोलिय पृष्ठ पर अपवर्तन
जब दो माध्यमों के बीच कोई गोलीय पृष्ठ को रख दिया जाता हैं एवं इस गोलीय पृष्ठ पर अपवर्तन की घटना घटित होती हो, तब इस प्रकार के पृष्ठ को गोलीय पृष्ठ पर अपवर्तन कहते हैं।
यदि SPS’ एक उत्तल गोलीय पृष्ठ है। यह गोलीय पृष्ठ निर्पेक्ष अपवर्तनांक n1 के विरल माध्यम को निर्पेक्ष अपवर्तनांक n1 के सघन माध्यम से अलग करता है। गोलीय पृष्ठ SS’ का ध्रुव P है। तथा मुख्य अक्ष O पर वस्तु रखी है। एवं पृष्ठ का वक्रता केंद्र C है। वस्तु का प्रतिबिंब बिंदु I पर बनता है। आपतन कोण i तथा अपवर्तन कोण r है।
∠AOM = α
∠AIM = β
∠ACM = γ


किसी लेंस द्वारा अपवर्तन
जब अपवर्तन एक माध्यम से दूसरे तक जाता है तो प्रकाश की दिशा में परिवर्तन होता है। लेंस का काम प्रकाश के अपवर्तन पर आधारित होता है। लेंस एक पारदर्शी ग्लास है जो दो गोलाकार सतहों से घिरा है। लेंस से गुजरने के बाद प्रकाश की किरणें विभाजित हो जाती है। यह दो प्रकार की है, उत्तल लेंस और अवतल लेंस।


लेंस की क्षमता
लेंस की फोकस दूरी के व्युत्क्रम को लेंस की क्षमता कहते हैं। इसे P द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
उत्तल लेंस अपने से होकर जाने वाली प्रकाश किरणों को मुख्य अक्ष की ओर तथा अवतल लेंस अपने से होकर जाने वाली प्रकाश किरणों को मुख्य अक्ष से बाहर की ओर मुड़ता है। उत्तल लेंस में अपवर्तित किरण अभिसरित होती है तथा अवतल लेंस में अपवर्तित किरण अपसरित होती है।
जो लेंस प्रकाश किरणों को जितना अधिक मोड़ता है उसकी क्षमता उतनी ही अधिक होती है।
P = 1 / F

लेंस की क्षमता का मात्रक डायोप्टर होता है। जिसका D से सूचित किया जाता है। 1 मीटर फोकस दूरी के लेंस की क्षमता 1 डायोप्टर होती है।
संपर्क में रखे पतले लेंसों का संयोजन
जब दो पतले लेंसों का आपस में संयोजन किया जाता है। तथा इस प्रकार प्राप्त संयोजन को एक लेंस के जैसा प्रयोग किया जाता है। तब इसे पतले लेंसों का संयोजन कहते हैं
L1 व L2 दो उत्तल लेंस हैं, ये वायु माध्यम में एक दूसरे के संपर्क में रखे हैं। इन दोनों लेंसों की फोकस दूरियां f1 व f2 हैं।
लेंस L1 से बायीं ओर u दूरी पर एक बिंदु वस्तु रखी गई है। जिसे O से प्रदर्शित किया गया है। यदि दूसरा लेंस L2 न हो तो L1 बिंदु-वस्तु O का प्रतिबिंब I’ पर बनाएगा। यदि प्रतिबिंब I’ की लेंस L1 से दूरी v’ है।


प्रिज्म में अपवर्तन
जब प्रकाश की किरण हवा से काँच के प्रिज्म में प्रवेश करता है, तो अभिलम्ब की तरफ झुक जाता है। जब ये प्रकाश की किरण प्रिज्म से बाहर हवा में निकलता है तो अभिलम्ब से दूर झुक जाते हैं

यदि एक प्रकाश की किरण PQ काँच के एक प्रिज्म ABC में बिन्दु E से प्रवेश करती है। हवा से प्रिज्म में प्रवेश करने पर प्रकाश की किरण अभिलम्ब NN’ की तरफ मुड़ जाती है और प्रिजम में EF पथ पर आगे बढ़ती है। जब प्रकाश की किरण EF प्रिज्म से बाहर आती है और हवा में प्रवेश करती है तो अभिलम्ब MM’ से दूड़ मुड़ जाती है तथा RS पथ पर हवा में आगे की ओर जाती है।
∠A प्रिज्म कोण, ∠ i आपतन कोण, EF अपवर्तित किरण, PS निर्गत किरण, ∠ e निर्गत कोण,
∠D विचलन कोण।
सूर्य के प्रकाश के कारण कुछ प्राकृतिक परिघटनाएं
प्रकाश कई प्राकृतिक घटनाओं के लिए ऊर्जा के मौलिक रूपों में से एक है। प्रकाश में परावर्तन, अपवर्तन , फैलाव और विवर्तन जैसी प्रक्रियाओं से गुजरने की क्षमता होती है । प्रकाश विद्युत चुम्बकीय विकिरण है, जो जब पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है, तो इंद्रधनुष के गठन, आकाश के नीले रंग, लाल सूर्यास्त, और सफेद बादलों के गठन घटनाओं का परिणाम होता है।
इंद्रधनुष
पड़नेवाली सूर्य किरणों के विक्षेपण इंद्रधनुष के सुंदर रंगों का कारण होता है। सूर्य की किरणें वर्षा की बूँदों से अपवर्तित तथा परावर्तित होने के कारण इन्द्रधनुष बनाती हैं। इंद्रधनुष पीठ के पीछे सूर्य होने पर ही दिखाई पड़ता है। पानी के फुहारे के पीछे से सूर्य किरणों के पड़ने पर भी इंद्रधनुष देखा जा सकता है।
प्रकाश का प्रकीर्णन
जब प्रकाश किसी ऐसे माध्यम से गुजरता है, जिसमें धूल तथा अन्य पदार्थों के अत्यन्त सूक्ष्म कण होते हैं, तो इनके द्वारा प्रकाश की सभी दिशाओं में प्रसारित हो जाता है, जिसे प्रकाश का प्रकीर्णन कहते हैं।


प्रकाशिक यंत्र
प्रकाशीय उपकरण ऐसे उपकरण हैं जो फोटोन को उनकी विशेषताओं को विश्लेषण करने के लिए चीजों को बड़ा या छोटा करते हैं। आंखें एक प्राकृतिक ऑप्टिकल उपकरण है।
दूर या छोटी छवियों को बड़ा करने के अलावा, इन उपकरणों का उपयोग प्रकाशीय सामग्री और प्रकाश के गुणों का विश्लेषण करने के लिए किया जाता है।
सूक्ष्मदर्शी
वह प्रकाशिक उपकरण जो सूक्ष्म आकार की वस्तु के प्रतिबिंब को बड़ा बना देता है। सूक्ष्मदर्शी कहलाता है।
किसी सूक्ष्म वस्तु द्वारा आंख पर बना दर्शन कोण छोटा होता है। जिससे वस्तु स्पष्ट दिखाई नहीं देती है।
सूक्ष्मदर्शी से इस वस्तु के प्रतिबिंब को बड़ा बना दिया जाता है। जिससे दर्शन कोण का मान बढ़ जाता है। वस्तु बड़ी और स्पष्ट दिखाई देने लगती है।


m = आवर्धन
f= Focus
D= डियोप्टर
दूरदर्शक
वह प्रकाशीय उपकरण है जिसका उपयोग दूर स्थित वस्तुओं को देखने के लिये किया जाता है। दूरदर्शी से लोग प्रकाशीय दूरदर्शी का अर्थ ग्रहण करते हैं। जैसे X-रे दूरदर्शी जो कि X-रे के प्रति संवेदनशील होता है, रेडियो दूरदर्शी जो अधिक तरंगदैर्घ्य की विद्युत चुंबकीय तरंगे ग्रहण करता है।

More Resources:-
Chapter 1 – वैद्धुत आवेश तथा क्षेत्र
Chapter 2 – स्थिर विद्युतविभव एवं धारिता
Chapter 3 – विद्युत धारा
Chapter 4 – गतिमान आवेश और चुंबकत्व
Chapter 5 – चुंबकत्व एवं द्रव्य
Chapter 6 – वैधुतचुम्बकीय प्रेरण
Chapter 7- प्रत्यवर्ती धारा
Chapter 8- वैधुतचुम्बकीय तरंगे
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