Physics Class 12 Chapter 4 Notes in Hindi
किसी एक चुम्बक के द्वारा अन्य दुसरे चुम्बक पर लगाया जाने वाला आकर्षण या प्रतिकर्षण बल चुम्बकीय बल कहलाता है।
चुंबकीय बल स्रोत और क्षेत्र
चुंबकीय क्षेत्र एक चुंबक या करंट ले जाने वाले कंडक्टर के आसपास का क्षेत्र है जिसके चारों ओर चुंबकीय प्रभाव का अनुभव किया जा सकता है। यह एक वेक्टर मात्रा है और इसकी SI unit टेस्ला है।
चुम्बकीय क्षेत्र प्रयोग दो क्षेत्रों के लिये किया जाता है जिनका आपस में नजदीक का सम्बन्ध है, लेकिन दोनों क्षेत्र अलग-अलग हैं। इन दो क्षेत्रों को B तथा H, से निरूपित किया जाता है। H की ईकाई अम्पीयर प्रति मीटर (A·m−1 or A/m) है और B की ईकाई टेस्ला (T) है। चुम्बकीय क्षेत्र दो प्रकार से उत्पन्न किया जा सकता है:-
- गतिमान आवेशों के द्वारा
- मूलभूत कणों में निहित चुम्बकीय आघूर्ण के द्वारा
चुंबकीय क्षेत्र ,लॉरेंज बल
आवेशित कण किसी ऐसे क्षेत्र में है जहां पर विद्युत चुंबकीय क्षेत्र दोनों उपस्थित हैं। तब कण पर आरोपित परिणामी बल को लॉरेंज बल कहते हैं।
यदि विद्युत क्षेत्र E तथा चुंबकीय क्षेत्र B दोनों की उपस्थिति में +q आवेश, V वेग से गतिमान है तो आवेश पर इन दोनों क्षेत्रों द्वारा आरोपित बल F हो तो,


लॉरेंज बल के कारक
- जब चुंबकीय क्षेत्र तथा वेग की दिशा एक दूसरे के समांतर होती है। तब लॉरेंज बल की दिशा फ्लेमिंग के बाएं हाथ के नियम द्वारा ज्ञात की जा सकती है।
- यदि आवेश गतिमान नहीं है तो चुंबकीय बल शून्य होगा। और यदि चुंबकीय क्षेत्र केवल गतिमान आवेश पर ही उत्पन्न होता है।
- लॉरेंज बल का मान कण के आवेश q, वेग V तथा चुंबकीय क्षेत्र B पर निर्भर करता है। ऋण आवेश पर लगने वाला बल, धन आवेश पर लगने वाले बल के विपरीत होता है।
विधुत धारावाही चालक पर चुम्बकीय बल
किसी चालक तारो के सिरों को बैटरी के धुर्वो से जोड़ा जाता है , तो तार में मुक्त इलेक्ट्रॉन एक निश्चित वेग से गति करने लगते हैं। जब कोई धारावाही चालक एकसामन चुम्बकीय क्षेत्र B में क्षेत्र के लंबवत रखा जाता है तो लगने वाला बल लोरेंज बल होता है।

चुम्बकीय क्षेत्र में आवेश की गति
जब कोई गतिशील आवेश q, किसी चुम्बकीय क्षेत्र B तथा विद्युत क्षेत्र E में v वेग से गति करता है तो आवेश q पर दो प्रकार के बल कार्य करते है।
- 1.चुम्बकीय बल = qvB
- विद्युत बल = qE
आवेश q पर कुल बल का मान दोनों बलों के योग के बराबर होता है।
कुल बल = चुम्बकीय बल + विद्युत बल
F = qvB + qE
इसके बारे में सबसे पहले एच.ए.लोरेन्ज ने बताया था इसलिए इसे लॉरेंज बल भी कहते है।
F = qvB sinθ यदि आवेश विराम अवस्था में अर्थात v = 0 होने से बल F = 0 अतः कह सकते है की केवल गतिशील आवेश ही चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है।

संयुक्त विद्युत और चुंबकीय क्षेत्र में गति
एक विद्युत क्षेत्र विद्युत आवेश के कण के द्वारा निर्मित होता है और चुंबकीय क्षेत्र के लंबवत होता है। विद्युत क्षेत्र की इकाई वोल्ट/मीटर है तथा यह एक सदिश राशि है।
वेग वरणकर्ता :- वेग वरणकर्ता, जिसे वीन फिल्टर के रूप में भी जाना जाता है, यह एक विद्युत और चुंबकीय क्षेत्र का विन्यास है। विद्युत और चुंबकीय क्षेत्रों की व्यवस्था का उपयोग उनके आवेश की परवाह किए बिना विभिन्न गति से गतिमान आवेशों के एक पुंज से एक विशेष वेग वाले आवेशित कण का चयन करने के लिए किया जाता है।
चुंबकीय क्षेत्र द्वारा लगाया गया बल इस प्रकार कार्य करता है
F = q (E + v×B) = FE + F
साइक्लोट्रॉन:- साइक्लोट्रॉन एक ऐसी मशीन है जिसका प्रयोग आवेशित कणों या आयनों को उच्च ऊर्जा में त्वरित करने के लिए किया जाता है।
आवेशित कणों की ऊर्जा को बढ़ाने के लिए, साइक्लोट्रॉन चुंबकीय के साथ-साथ विद्युत क्षेत्रों का भी उपयोग करता है। इसे क्रॉस फील्ड कहा जाता है इसमें चुंबकीय और विद्युत क्षेत्र एक दूसरे के लंबवत होते हैं।

जब एक आवेशित कण एक खोखले अर्धवृत्ताकार धातु डिस्क जैसे कंटेनर में जाता है, तो यह वृत्ताकार पथ में और स्थिर गति से गति करता है। परिरक्षण प्रभाव के कारण पात्र के भीतर विद्युत क्षेत्र शून्य होता है। साइक्लोट्रॉन की आवृत्ति आवेशित कण की गति और वृत्ताकार पथ की त्रिज्या से स्वतंत्र होती है। इन मशीनों का उपयोग नाभिक में बमबारी करने के लिए किया जाता है और परमाणु प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करने के लिए किया जाता है।
विधुतधारा अवयव के कारण चुम्बकीय क्षेत्र , बायो-सवार्ट नियम
जब किसी धारावाही चालक तार में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है। तब तार के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। वैज्ञानिक बायो तथा सेवर्ट बताया, कि किसी धारावाही चालक XY के अतिअल्प अवयव ∆ℓ के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र ∆B का मान निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है-

- चालक में प्रवाहित विद्युत धारा i के अनुक्रमानुपाती होता है।
∆B ∝ i
- अतिअल्प अवयव ∆ℓ की लंबाई के अनुक्रमानुपाती होता है।
∆B ∝ ∆ℓ
- अतिअल्प अवयव से बिंदु P तक की रेखा तथा अतिअल्प अवयव की लंबाई के बीच बने कोण की sin के अनुक्रमानुपाती होता है।
∆B ∝ sinθ
अतिअल्प अवयव से बिंदु P तक की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।

बायो-सवार्ट नियम –

विधुत धारावाही वृत्ताकार पाश के अक्ष पर चुंबकीय क्षेत्र
एक वृत्ताकार धारावाही पाश, जिसकी त्रिज्या r है। तथा कुंडली की अक्ष पर इसके केंद्र से x दूरी पर एक बिंदु P है। इस बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करनी है। जबकि वृत्ताकार कुंडली में i एंपियर की विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है।

धारावाही कुंडली अनेक अल्प अवयवों से बनी है। इसमें एक अल्प अवयव है जिसकी लंबाई dℓ है। इस अल्प अवयव की बिंदु P से दूरी a है। तो बिंदु P पर बायो सेवर्ट के नियम से चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता
जहां θ लंबाई dℓ तथा त्रिज्या r के बीच कोण है। जो कागज के तल के लंबवत् है
Θ = 90° तब sin90° = 1
एम्पीयर के परिपथीय नियम
यह एक काल्पनिक बंद पथ के साथ चुंबकीय क्षेत्र घनत्व का अभिन्न अंग पथ और माध्यम की पारगम्यता से घिरे वर्तमान के उत्पाद के बराबर है। कुंडली के चुंबकीय क्षेत्र का रेखा समाकलन = μ o इससे होकर गुजरने वाली धारा का गुणन है, इसे गणितीय रूप में व्यक्त किया जाता है।


यह समीकरण एम्पियर के परिपथिय नियम समीकरण कहलाता है। u0 को निर्वात की चुम्बकीयशीलता कहते हैं।
परिनालिका तथा टोरॉइड
परिनालिका :- कागज की बेलनाकार नली लेकर उसके ऊपर तांबे के विद्युतरोधी तार को लपेटकर लंबी कुंडलीनुमा को परिनालिका कहते हैं।
यह एक शक्तिशाली छड़ चुंबक की तरह कार्य करता है। परिनालिका पर चालक तारों के फेरों की संख्या जितनी अधिक होगी परिनालिका की शक्ति उतनी अधिक होगी। इसमें धारा के दिशा के अनुसार परिनालिका के दोनों छोरों परउत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव का निर्माण होता है।

टोरॉइड :- यह एक ऐसा वृत्ताकार खोखला छल्ला होता है जिस पर किसी तार के अत्यधिक फेरे सटाकर लपेटे जाते हैं। इस प्रकार के धारावाही वृत्ताकार खोखले छल्ले को टोराइड कहते हैं। यह बिना सिर वाली एक परिनालिका होती है।
दो समांतर विधुत धाराओं के बीच बल एम्पियर

जब किसी चालक तार में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है,तो चालक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र स्थापित हो जाता है तथा जब इस चालक के पास कोई दूसरा चालक रख देते हैं। तब पहले चालक तार पर स्थापित चुंबकीय क्षेत्र के कारण, दूसरा चालक तार एक बल का अनुभव करता है।
दो लंबे समांतर धारावाही चालक तार a तथा b हैं जिनके बीच की दूरी r है। इन दोनों धारावाही चालक तारों में i1 व i2 विद्युत धाराएं प्रवाहित हो रही हैं। चालक a, चालक b के अनुदिश प्रत्येक बिंदु पर B1 समान चुंबकीय क्षेत्र आरोपित करता है, तो i1 धारा के कारण तार a के किसी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र है।
विधुत धारा पाश पर बल अघूर्ण , चुंबकीय द्विध्रुव
1.एकसमान चुंबकीय क्षेत्र में आयताकार विधुत धारा पाश पर बल अघूर्ण
एकसमान चुंबकीय क्षेत्र B में एक धारावाही आयताकार लूप ABCD को लटकाया गया है।
आयताकार वस्तु की आमने-सामने की भुजाएं बराबर होती है। इसलिए इस पाश की भी आमने-सामने की भुजाएं बराबर होंगे ।
AB = ℓ है तो CD की लंबाई भी ℓ होगी। ठीक इसी प्रकार BC = b है तब AD की लंबाई भी b होगी।
इस प्रकार पाश की भुजा AB पर लगने वाला बल F1, भुजा CD पर लगने वाले बल F2 के बराबर होता है। अतः
F1 = F2 = iBℓ

2. वृताकार विधुत धारा पाश चुंबकीय द्विध्रुव
किसी विद्युत धारावाही पाश के प्रत्येक बिंदु पर उसके चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र को प्रकट करने वाले संकेंद्री वृत्तों का आकार तार से दूर जाने पर लगातार बड़ा होता जाता है। जब वृत्ताकार पाश के केंद्र पर पहुँचते हैं, इन बड़े वृत्तों के चाप सरल रेखाओं जैसे लगने लगते हैं। विद्युत धारावाही तार के प्रत्येक बिंदु से उत्पन्न चुकीय क्षेत्र रेखाएँ पाश के केंद्र पर सरल रेखा जैसी लगने लगती हैं। तार का प्रत्येक हिस्सा चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं में योगदान देता है और पाश के भीतर सभी चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक ही दिशा में होती है।
3. परिक्रमी इलेक्ट्रॉन का चुम्बकीय द्विध्रुव अघूर्ण
एक चुंबकीय द्विध्रुवीय दो चुंबकीय उत्तरी ध्रुवों से बना होता है जो कम दूरी से अलग होते हैं। प्राथमिक कण स्वभाव से चुंबकीय द्विध्रुव होते हैं, इलेक्ट्रॉन में स्पिन चुंबकीय द्विध्रुव आघूर्ण होता है और यह चुंबकीय द्विध्रुव के रूप में कार्य करता है।
नील बोह्र के परमाणु मॉडल के अनुसार, नकारात्मक आवेशित इलेक्ट्रॉन त्रिज्या r की एक गोलाकार कक्षा में धनात्मक आवेशित नाभिक के चारों ओर घूमता रहता है। एक विद्युत प्रवाह एक सीमित चैनल में एक घूर्णन इलेक्ट्रॉन से बना होता है। इलेक्ट्रॉन की वामावर्त यात्रा दक्षिणावर्त दिशा में एक पारंपरिक धारा उत्पन्न करती है।
चल कुण्डली गैलवानोमीटर

वह उपकरण जिससे किसी भी परिपथ में विद्युत धारा का संचलन किया जाता है,इस प्रकार के उपकरण को चल कुंडली गैलवानोमीटर कहते हैं।
- चल कुंडली गैलवानोमीटर के क्रिया चुंबकीय क्षेत्र में धारावाही कुंडली पर आरोपित बल आघूर्ण पर आधारित होती है।
- चल कुंडली गैलवानोमीटर में दो शक्तिशाली चुंबकों N व S के ध्रुव के बीच में एल्यूमीनियम के फ्रेम के ऊपर तांबे के पतले तारों से लिपटी एक कुंडली रखी होती है। इस कुंडली में एक संकेतक लगा होता है।
- कुंडली के दोनों सिरों पर दो स्प्रिंग लगे होते हैं। जो कुंडली के घूमने पर ऐंठन बल उत्पन्न करते हैं।
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