Class 12 Physics Chapter 6 Notes in Hindi वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण

यहाँ हमने Class 12 Physics Chapter 6 Notes in Hindi दिये है। Class 12 Physics Chapter 6 Notes in Hindi आपको अध्याय को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेंगे और आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे।

Class 12 Physics Chapter 6 Notes in Hindi

चुम्बकीय फ्लक्स (Magnetic Flux)

किसी चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित किसी पृष्ठ के प्रति एकांक क्षेत्रफल से अभिलम्बवत् गुजरने वाली चुम्बकीय बल रेखाओं क़ी संख्या को चुम्बकीय फ्लक्स कहते हैं। इसे ØB से प्रदर्शित करते है।

चुम्बकीय फ्लक्स

यदि तल का क्षेत्रफल A चुम्बकीय क्षेत्र B के लम्बवत् है तो चुम्बकीय फ्लक्स = ØB= B.A

यदि तल का क्षेत्रफल A चुम्बकीय क्षेत्र B से θ कोण पर है तो चुम्बकीय फ्लक्स= ØB= (B.Cosθ).A

ØB = B.A cosθ

राशि- चुम्बकीय फ्लक्स एक अदिश राशि है।

मात्रक- चुम्बकीय क्लक्स का एक स्वैच्छ मात्रक वेबर होता है अथवा kg.m².s‐² A‐¹

ØB का विमीय सूत्र – [ML²T ‐² A‐¹]

फैराडे का विद्युत चुम्बकीय प्रेरण का प्रयोग

फैराडे ने एक कुण्डली, गल्वेनोमीटर और एक दण्ड चुम्बक की सहायता से कई प्रेक्षण प्राप्त किए, जो निम्नलिखित है –

  1. जब तक कुण्डली एवं चुम्बक स्थिर रहते हैं, तब तक गैल्वेनोमीटर मे कोई विक्षेप नहीं आता।
  2. जैसे ही दण्ड चुम्बक के किसी एक ध्रुव को स्थिर कुण्डली की ओर चलाया जाता है तो गैल्लेनोमीटर में एक निश्चित दिशा मे विक्षेप आ जाता है।
  3. जब दण्ड चुम्बक के उसी ध्रुव को स्थिर कुण्डली से दूर ले जाते है तो प्राप्त विक्षेप की दिशा विपरीत हो जाती है।
  4. कुण्डली मे फेरो की संख्या बढ़ाने अथवा शक्तिशाली चुम्बक प्रयोग करने पर विक्षेप में वृद्धि हो जाती है।
  5. यदि चुम्बक को तीव्र वेग से कुण्डली की ओर अथवा कुण्डली से दूर गतिशील कराया जाये तो विक्षेप बढ़ जाता है।
  6. यदि चुम्बक को स्थिर रखकर कुण्डली को गतिशील कराया जाये तो भी इसी प्रकार के निष्कर्ष प्राप्त होते हैं।
  7. यदि दण्ड चुम्बक तथा कुण्डली को एक समान चाल से एक ही दिशा मे गतिशील कराया जाये तो गैल्वेनोमीटर में कोई विक्षेप नहीं आता।

निष्कर्ष- जब चुम्बक और कुण्डली के मध्य आपेक्षिक गति होती है, तो कुण्डली में एक विद्युत वाहक बल (emf) उत्पन्न हो जाता है, जिसे प्रेरित विद्युत वाहक बल कहते हैं। यदि कुण्डली एक बन्द परिपथ है तो उसमें एक धारा प्रवाहित होने लगती है, जिसे प्रेरित धारा कहते है। यही घटना विद्युत चुम्बकीय प्रेरण कहलाती है।

फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के नियम

फैराडे ने विद्युत चुम्बकीय प्रेरण सम्बन्धी दो नियम दिये –

प्रथम नियम-  जब किसी वैधुत परिपथ से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स के मान में परिवर्तन होता है तो परिपथ में एक प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है जिसका परिमाण चुम्बकीय फ्लक्स मे परिवर्तन की ऋणात्मक दर के बराबर होता है। इसे न्यूमैन का नियम भी कहते है।

यदि समयान्तराल △t मे चु० फ्लक्स परिवर्तन △ØB है तो विद्युत वाहक बल –

e = – △ØB /△t

यदि कुण्डली मे फेरो की संख्या N है तो-

विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के नियम

जहां △ØB= ø2– ø1

Note:-

  • यदि ø12 तो △ØB= ऋणात्मक तो e – धनात्मक.      
  • यदि ø21 तो △ØB = धनात्मक तो e – ऋणात्मक

द्वितीय नियम- किसी वैद्युत परिपथ मे प्रेरित विद्युत वाहक बल अथवा प्रेरित धारा की दिशा सदैव ऐसी होती है जो उस कारण का विरोध करती है जिसके कारण वह स्वयं उत्पन्न होती है। इसे लेन्ज का नियम भी कहते है।

एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र मे गतिमान चालक में उत्पन्न प्रेरित

विद्युत वाहक बल:- e=Blv

अन्योन्य प्रेरण (Mutual Induction)

जब एक दूसरे के निकट रखी दो कुण्डलियो मे से किसी एक कुण्डली में प्रवाहित धारा प्राथमिक के मान को परिवर्तित करते है तो दूसरी कुण्डली में फ्लक्स परिवर्तन के कारण विद्युत वाहक बल प्रेरित हो जाता है और धारा प्रवाहित होने लगती है। इस घटना को अन्योन्य प्रेरण कहते हैं।

अन्योन्य प्रेरण

यदि किसी कुण्डली में धारा परिवर्तन की दर एकांक हो तो उसमें उत्पन्न प्रेरित विद्युत वाहक बल उसके अन्योन्य प्रेरण गुणांक के समान होता है।

दो समाक्ष समतल कुण्डलियो का अन्योन्य प्रेरकत्व :

दो समाक्ष समतल कुण्डलियो का अन्योन्य प्रेरकत्व :

स्व प्रेरण (Self Induction)

जब किसी कुण्डली में प्रवाहित धारा के मान को परिवर्तित करते है तो उसमें फ्लक्स परिवर्तन होता है जिसके कारण एक प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है, इस घटना को स्व-प्रेरण कहते है। यह विद्युत वाहक बल धारा के बढ़ने एवं घटने दोनो का विरोध करता है।

कुण्डली में उत्पन्न फ्लक्स ग्रंथियों की संख्या उसमे प्रवाहित धारा के अनुक्रमानुपाती होती है।

स्व प्रेरण

यदि किसी कुण्डली में धारा परिवर्तन की दर एकांक हो तो कुण्डली में उत्पन्न विद्युत वाहक बल स्व- प्रेरकत्व गुणांक कहलाता है।

समतल कुण्डली का स्वप्रेरकत्व :-

समतल कुण्डली का स्वप्रेरकत्व :-

धारावाही परिनालिका का स्वप्रेरकत्व :-

धारावाही परिनालिका का स्वप्रेरकत्व

कुण्डली में संचित चुम्बकीय स्थितिज ऊर्जा

जब कुण्डली में धारा के मान को बढ़ाते है तो उत्पन्न प्रेरित विद्युत वाहक बल धारा में परिवर्तन का विरोध करता है जिसके कारण कुण्डली मे चुम्बकीय स्थितिज ऊर्जा संचित हो जाती है| यह ऊर्जा प्रेरित विद्युत वाहक बल के विरुद्ध किये गये कार्य के बराबर होती है।

कुण्डली में संचित चुम्बकीय स्थितिज ऊर्जा

स्वप्रेरित धारा के उदाहरण :-

प्रतिरोध बाक्स मे लगी कुण्डली में प्रतिरोध तार को दोहरा कर लपेटा जाता है जिससे कि दोनो कुण्डलियो में धारा की दिशा परस्पर विपरीत होती है। अत: दोनो कुण्डलियो मे उत्पन्न स्वप्रेरित विद्युत वाहक बल एक-दूसरे को निरस्त कर देते हैं। अत: प्रतिरोध बाक्स को किसी परिषय में जोड़कर उसमे धारा के मानु को घटाते अथवा बढाते है तो इससे स्वप्रेरण का प्रभाव समाप्त हो जाता है।

व्हीटस्टोन आदि के प्रयोग में पहले सेल कुंजी को देखते है उसके पश्चात् धारामापी की कुंजी को दबाते है। ऐसा इसलिए करते हैं, क्योंकि सेल कुंजी को दबाने के प्रतिरोध जब परिवथ मे धारा परिवर्तित होती है तो विभिन्न कुण्डलियो में खप्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है जिससे कि परिपथ में धारा को स्थायी मान तक पहुँचने में कुछ समय लगता है। अत: हमें यह भ्रम हो सकता है कि परिपथ संतुलित नहीं है परन्तु पहले सेल कुंजी को दबा देंगे तो धारा अपने स्थायी मान तक पहुँच जायेगी और स्वप्रेरित धारा का प्रभाव समाप्त हो जायेगा।

प्रेरकों का संयोजन:-

  • श्रेणी क्रम संयोजन:- L=L1 +L2 +L3+…..
  • समान्तर क्रम संयोजन:- \(\frac{1}{L}= \frac{1}{L_1}- \frac{1}{L_2}- \frac{1}{L_3}\)

भँवर धारा

जब हम धातु के किसी टुकडे को परिवर्ती चुम्बकीय क्षेत्र मे रखते है तो उससे बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स मे परिवर्तन होता है, जिसके कारण इसके सम्पूर्ण आयतन में प्रेरित धाराएँ उत्पन्न हो जाती है। चूंकि यह जल मे उत्पन्न भँवर धारा के समान चमकदार होती है। अत: इन्हें भँवर धारा कहा जाता है।

ये धाराएँ इतनी प्रबल हो सकती है कि धातु का टुकड़ा रक्त तप्त भी हो सकता है। धातु का प्रतिरोध जितना अधिक होगा भँवर धाराएँ उतनी ही क्षीण होगी ।

भँवर धाराओं से हानि तथा बचने के उपाय:-

परिवर्ती चुम्बकीय क्षेत्र मे धातु की किसी क्रोड को प्रयोग करने पर इनमे उत्पन्न भँवर धाराओं के कारण ऊर्जा का एक बड़ा भाग ऊष्मा के रूप मे व्यय होता है। इसके प्रभाव को कम करने के लिए हम धातु के टुकड़े का प्रयोग न करके इसकी पतली- पतली पत्तियों को वॉर्निश से चिपकाकर क्रोड बनाते है, जिससे कि भँवर धाराओ का पथ बहुत लम्बा हो जाता है और भवर धाराएँ क्षीण हो जाती है।

भँवर धारा के उपयोग :-

  • प्रेरण मीटर में
  • प्रेरण भट्टी में
  • दोलन रुड धारामापी में
  • इलेक्ट्रिक ब्रेक मे

प्रत्यावर्ती धारा जनित्र

यह एक युक्ति है जो यान्त्रिक ऊर्जा को वैद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करती है।

प्रत्यावर्ती धारा जनित्र

सिद्धान्त:- यह विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर आधारित है।

रचना एवं कार्य विधि :

इसमें दो चुम्बकीय ध्रुवो (N तथा S) के बीच में एक ताँबे के पृथ्वकृत तारों से बनी कुण्डली होती है जो अपनी है अक्ष के परितः घूमने के लिए स्वतंत्र होती है। कुण्डली के दोनों सिरे सर्पी वलयो (S1 तथा S2) से जुड़े रहते है। इसमें दो कार्बन ब्रुश (B1 तथा B2) लगे होते हैं जो सर्पी वलयों को स्पर्श करते रहते हैं। इनकी सहायता से कुण्डली में उत्पन्न वैद्युत ऊर्जा को बाह्य परिषय में भेजा जाता है।

इसे भी पढे –
Class 12 Physics Chapter 1 Notes in Hindi (वैद्धुत आवेश तथा क्षेत्र)
Physics Class 12 Chapter 2 Notes in Hindi (स्थिर विद्युतविभव एवं धारिता)
Physics Class 12 Chapter 3 Notes in Hindi (विद्युत धारा)
Physics Class 12 Chapter 4 Notes in Hindi गतिमान आवेश और चुंबकत्व
Physics Class 12 Chapter 5 Notes in Hindi चुंबकत्व एवं द्रव्य

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