physics class 12 chapter 3 notes in Hindi
विद्युत धारा
किसी चालक में आवेश के प्रवाह की दर को विद्युत धारा कहते हैं। इसे i के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। यह एक आदिश राशि है। इसका s.i. मात्रक एम्पीयर या कुलाम/ सेकंड होता है।
चालक में q आवेश t समय के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है तब विद्युत धारा
i=q/t
धातु में विद्युत धारा का प्रवाह – ठोस पदार्थों में, सभी धातुएँ विद्युत की सुचालक होती हैं। चालन का कारण इलेक्ट्रॉन प्रदान करती हैं।
विद्युत धारा की दिशा
- ऋणात्मक आवेश के प्रवाह की विपरीत दिशा में।
- धनात्मक आवेश के प्रवाह की दिशा में।
ओम का नियम
यदि किसी चालक की भौतिक अवस्थाएं ( जैसे – ताप, दाब, लंबाई) समान रहे तो उस चालक के सिरा पर विभ्वंतर (v) उसमे बहने वाली धारा (I) के समानुपति होता है।

V= IR
R=v/I= स्थिरांक
ओम का नियम की सीमाएं –
1. यदि किसी चालक (conductor) का तापमान (temperature) बढ़ता है तो उसके प्रतिरोध (resistance) में परिवर्तन होने लगता है। जिसके फलस्वरूप वे ओम के नियम का पालन करना बंद कर देते हैं।

2. Non-Linear device (जैसे- thyristor, Chopper आदि) और Unilateral-Device (जैसे- Diode, Transistor, Amplifier आदि) ओम के नियम का पालन नहीं करते हैं।

3. कुछ अर्द्ध-चालक (semi-conductor) जैसे- GaAs (Gallium Arsenide) आदि भी Ohm’s law follow नहीं करता है।

पदार्थ की वैधुत प्रतिरोधकता
किसी पदार्थ की वैद्युत प्रतिरोधकता (Electrical resistivity; या resistivity, specific electrical resistance, या volume resistivity) से उस पदार्थ द्वारा विद्युत धारा के प्रवाह का विरोध करने की क्षमता का पता चलता है। कम प्रतिरोधकता वाले पदार्थ आसानी से विद्युत आवेश को चलने देते हैं। इसकी SI ईकाई ओम मीटर [Ω m] है।
प्रतिरोधकता की ताप पर निर्भरता – चालक का प्रतिरोध ताप पर निर्भर करता है। और इस निर्भरता को प्रायोगिक व्यंजन द्वारा व्यक्त किया जाता है।
चालक का ताप में वृद्धि= तापीय वेग में वृद्धि= आयाम वृद्धि= आवृति वृद्धि
विधुत ऊर्जा तथा शक्ति –
विधुत ऊर्जा – किसी चालक में विधुत आवेश के प्रवाहित होने पर ऊर्जा के क्षय में होने की दर को उस चालक की विधुत ऊर्जा कहते है। इस प्रकार ऊर्जा का क्षय होता रहता है। इससे तार का ताप बढ़ता जाता है। और ऊर्जा का ऊष्मा में रूपांतरण होने लगता है।
विधुत ऊर्जा का उदाहरण – बिजली का बल्ब, हीटर, प्रेस।
तार में i एम्पीयर की धारा प्रवाहित होती है तार में जाने वाला आवेश
Q=it
विधुत शक्ति – किसी विधुत परिपथ में क्षय होने की दर को विधुत शक्ति कहते हैं। इसे p से दर्शाया जाता है।
यदि परिपथ में t सेकंड में w ऊर्जा का क्षय होता है तब
P= w/t
प्रतिरोध का संयोजन
दो या दो से अधिक प्रतिरोधों को आपस में जोड़ने को ही प्रतिरोध का संयोजन (combination of resistances in Hindi) कहते हैं।
प्रतिरोधों का संयोजन दो प्रकार का होता है।
1. श्रेणी क्रम संयोजन
2. समांतर क्रम संयोजन
Note- समांतर क्रम संयोजन को ही पार्श्व क्रम संयोजन भी कहते हैं।
1. प्रतिरोध का श्रेणी क्रम संयोजन-
वह संयोजन जिसमें पहले प्रतिरोध का दूसरा सिरा, दूसरे प्रतिरोध के पहले सिरे से जोड़ देते हैं तथा दूसरे प्रतिरोध का दूसरा सिरा तीसरे प्रतिरोध के पहले सिरे से जोड़ देते हैं। और यदि तीन से अधिक प्रतिरोध हैं तो आगे भी इसी क्रम में जोड़ देते हैं। प्रतिरोध के इस संयोजन को श्रेणी क्रम संयोजन कहते हैं।

माना तीन प्रतिरोध R1, R2 तथा R3 श्रेणी क्रम में जुड़े हैं। तब इन प्रतिरोधों में समान विद्युत धारा i प्रवाहित होगी। जबकि इन प्रतिरोध के सिरों पर विभवांतर V1, V2 व V3 है। तो
V1 = iR1
V2 = iR2
V3 = iR3
X और Y बिंदुओं के बीच कुल विभवांतर V है तो
V = V1 + V2 + V3
V = iR1 + iR2 + iR3
X और Y बिंदुओं के बीच तुल्य प्रतिरोध R है। तो
V = iR

श्रेणी क्रम में जुड़े सभी प्रतिरोध पर विद्युत धारा का मान समान होता है।
2. प्रतिरोध का समांतर क्रम संयोजन
वह संयोजन जिसमें सभी प्रतिरोधों के पहले सिरे को बिंदु X से जोड़ देते हैं। तथा सभी प्रतिरोधों के दूसरे सिरे को बिंदु Y से जोड़ देते हैं। और यदि तीन से अधिक प्रतिरोध हैं तो आगे भी इसी क्रम में जोड़ देते हैं। तब प्रतिरोध के इस संयोजन को समांतर क्रम संयोजन कहते हैं।

यदि तीन प्रतिरोध R1, R2 व R3 समांतर क्रम में जुड़े हैं। तब इन प्रतिरोधों पर विभवांतर समान मात्रा में होगा। जबकि इन पर विद्युत धाराएं क्रमशः i1, i2 व i3 होंगी। तो

X और Y बिंदुओं के बीच कुल धारा i है तो
i = i1 + i2 + i3
समांतर क्रम संयोजन में जुड़े प्रतिरोधों पर विभव की मात्रा समान होती है। इसमें तीन या अधिक प्रतिरोध समांतर क्रम में जुड़े हैं। तो उनका तुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम, तीनों प्रतिरोधों के अलग-अलग व्युत्क्रम के योग के बराबर होता है।


सेल , विद्युत वाहक बल (emf), आंतरिक प्रतिरोध
सेल – विद्युत सेल वह युक्ति है जो किसी विद्युत प्रतिरोध के किन्ही दो बिंदुओं के बीच विभ्वांतर को स्थिर बनाए रख कर प्रतिपथ में आवेश के प्रवाह को निरंतर बनाए रखती है। वैधुत सेल रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करती है।
विद्युत वाहक बल– एकांक आवेश को पूरे विद्युत परिपथ में चलाने के लिए जितना कार्य करना पड़ता है उसे उस सेल का विद्युत वाहक बल कहते हैं|
यदि Q आवेश को किसी विद्युत परिपथ में चलाने के लिए W कार्य करना पड़े तो उस सेल का विद्युत वाहक बल(e.m.f)
E = W/ Q
अंतरिक प्रतिरोध – विद्युत धारा को सेल अंदर प्रवाहित होती है, तो विधुत अपघट्य के कारण सेल भी धारा के मार्ग में अवरोध उत्पन्न करता है | सेल द्वारा विधुत धारा के मार्ग में आरोपित बल को सेल का आन्तरिक प्रतिरोध कहते है |
श्रेणीक्रम तथा पार्श्वक्रम में सेल
- सेल का श्रेणी क्रम संयोजन- जब सेलों को इस प्रकार जोड़ा जाए की एक सेल का टर्मिनल दूसरे सेल के विपरीत ध्रुवता वाले टर्मिनल से जुड़ा हो तो इस प्रकार के संयोजन को श्रेणीक्रम संयोजन कहते है।
- सेल का पार्श्व क्रम संयोजन – जब एक सेल को दूसरे सेल से इस प्रकार जोड़ा जाये की उनके समान ध्रुवता वाले सिरे आपस में जुड़े हो तो इस प्रकार के संयोजन को समांतर क्रम संयोजन कहते है।
किरखोफ का नियम
किरखोफ के दो नियम है जो निम्नलिखित है-
1. किरचॉफ का पहला नियम – विद्युत परिपथ या इलेक्ट्रिक सर्किट में संधि बिंदु node पर मिलने वाली सभी विद्युत धाराओं का बीज गणितीय योग शून्य होता है |

इस किरचॉफ के current के नियम के अनुसार कोई विद्युत धारा संधि बिंदु की तरफ आती है तो उसका मान धनात्मक मानते है और संधि से दूसरी तरफ जाने वाली धारा का मान ऋणात्मक लेते है यह नियम संधि पर लागू होता है| इसलिए किरचॉफ के पहले नियम को संधि का नियम भी कहते है
किरखोफ का दूसरा नियम – परिपथ में विद्युत वाहक बल(EMF) का बीजगणितीय योग, उस परिपथ के प्रतिरोधकों के सिरों पर उत्पन्न विभवान्तरों(voltage) के बीजगणितीय योग के बराबर होता हैं।

व्हीटस्टोन सेतु– व्हीटस्टोन ने प्रतिरोधों को विभिन्न क्रमों में व्यवस्थित करके एक विशेष व्यवस्था का आविष्कार किया। प्रतिरोधों की इस व्यवस्था को व्हीटस्टोन सेतु (Wheatstone bridge in Hindi) कहते हैं। व्हीटस्टोन सेतु द्वारा किसी चालक का प्रतिरोध आसानी से ज्ञात किया जा सकता है।
मीटर सेतु – मीटर सेतु व्हीटस्टोन के सिद्धांत पर आधारित एक उपकरण है। जिसकी सहायता से किसी चालक तार का प्रतिरोध ज्ञात कर सकते हैं।

मीटर सेतु का उपयोग भी व्हीटस्टोन के तरह ही अज्ञात प्रतिरोधों का मान ज्ञात करने के लिए करते है।
पोटेंशियोमीटर (विभवमापी)- पोटेंसियोमीटर(विभवमापी) एक ऐसा उपकरण (instruments) है जिसकी सहायता से हम किसी परिपथ का विभवान्तर या विद्युत वाहक बल को शुद्धता से माप कर सकते है। पोटैन्शियोमीटर (potentiometer) तीन सिरे वाला एक प्रतिरोध होता है जिसमें दो सिरे नियत (fixed) होते हैं और इन सिरों के बीच का तीसरा सिरा परिवर्ती (sliding contact) होता है।
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