Class 12 Physics Chapter 13 Notes in Hindi नाभिक

यहाँ हमने Class 12 Physics Chapter 12 Notes in Hindi दिये है। Class 12 Physics Chapter 12 Notes in Hindi आपको अध्याय को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेंगे और आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे।

Class 12 Physics Chapter 13 Notes in Hindi

नाभिक की संरचना – नाभिक का कुल आवेश उसमें उपस्थित समस्त प्रोटानों के आवेश के बराबर तथा नाभिक का कुल द्रव्यमान नाभिक में उपस्थित न्युक्लियानों के द्रव्यमान के बराबर होता है। यदि किसी तत्व का संकेत X, परमाणु क्रमांक Z तथा द्रव्यमान संख्या A हो तो उस तत्व को ZXA से दर्शाया जाता है।

परमाणु क्रमांक z तथा परमाणु द्रव्यमान A के आधार पर नाभिको को मुख्यता : तीन प्रकार से वर्गीकृत किया गया है –

1. समस्थानिक :- एक तत्व के वे परमाणु द्रव्यमान जिनके परमाणु क्रमांक अथवा प्रोटॉनो की संख्या एकसमान हो लेकिन द्रव्यमान संख्या अलग- अलग हो, समस्थानिक कहलाते है।

isotop

2. समभारिक :- ऐसे नाभिक जिनमे द्रव्यमान संख्या तथा न्युक्लियानो की संख्या एकसमान होती है, लेकिन परमाणु क्रमांक अलग- अलग होते हैं, समभारिक कहलाते है।

z= असमान A = समान

isobar

3. समन्यूट्रानिक:- ऐसे नाभिक जिनमे केवल न्यूट्रॉनों की संख्या एकसमान होती है, समन्यूट्रानिक कहलाते है।

1H³, 2He⁴ [n = 2]
3Li⁷,4 Be⁸ [n= 4]

Note- ऐसे नाभिक जिनकी द्रव्यमान संख्या एकसमान लेकिन पहले के प्रोटॉन संख्या दूसरे की न्यूट्रॉन संख्या के बराबर हो अथवा इसका विलोम हो तो ऐसे नाभिक प्रतीप कहलाते हैं।
उदाहरण:- 1H³ 2H³
[n=2 p=1] [p=2 n=1

नाभिक का आकार

अधिकांश नाभिकों के लिए नाभिक की त्रिज्या उस नाभिक की द्रव्यमान संख्या की घात 1/3 के समानुपाती होती है। अर्थात्

nucleus size

जहाँ Ro नियतांक है।

नाभिक का आयतन

माना एक नाभिक जिसकी त्रिज्या R तथा आयतन v है | तो नाभिक का आयतन-

volume

नाभिक का घनत्व (p) = द्रव्यमान / आयतन

p= 2.29×1017 Kg/m3

परमाणु द्रव्यमान मात्रक:- किसी परमाणु अथवा नाभिक द्रव्यमान को मापने के लिए एक छोटे से मात्रक का उपयोग किया गया जिसे amu के रूप में परिभाषित किया गया । अन्तर्राष्ट्रीय पद्धति के अनुसार 1 amu, 6C¹² के एक परमाणु द्रव्यमान के 12 वें भाग को परमाणु के द्रव्यमान कें 12 वे भाग को परमाणु द्रव्यमान मात्रक कहते है।

WhatsApp Image 2023 02 25 at 20.13.39

युग्म उत्पादन:- जब कोई x – फोटॉन किसी उच्च परमाणु भार वाले भारी पदार्थ पर गिरता है तो वह पदार्थ के किसी नाभिक द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है और परिणाम स्वरूप एक इलेक्ट्रॉन व पाजी ट्रॉन उत्पन्न होते है। यह प्रक्रिया युग्म उत्पादन कहलाती है।

WhatsApp Image 2023 02 25 at 20.15.48 1

युग्म विनाश :- जब एक पाजीट्रॉन तथा एक इलेक्ट्रॉन समीप आते है तो वह एक दूसरे का विनाश कर देते हैं। तथा ऊर्जा के रूप में दो गामा फोटान की उत्पत्ति होती है।

WhatsApp Image 2023 02 25 at 20.17.39

द्रव्यमान क्षति:- विभिन्न प्रयोगों द्वारा यह पाया गया कि नाभिक का द्रव्यमान उसमे उपस्थित न्यूक्लिआनो के द्रव्यमान से कुछ कम प्राप्त होता है। इस प्रकार नाभिक के द्रव्यमान तथा इसके घटको (न्यूक्लिऑन) द्रव्यमान के अन्तर को द्रव्यमान क्षति कहते हैं।

द्रव्यमान क्षति = न्यूक्लिआनो का द्रव्यमान – नाभिक का द्रव्यमान

यदि किसी परमाणु का परमाणु क्रमांक z तथा द्रव्यमान संख्या की हो तो द्रव्यमान क्षति-

WhatsApp Image 2023 02 25 at 20.20.38

नाभिकीय बन्धन ऊर्जा: जब किसी नाभिक का निर्माण होता है तो इस प्रक्रिया में द्रव्यमान क्षति के तुल्य जो ऊर्जा मुक्त होती है उसे नाभिकीय बन्धन ऊर्जा कहते है। जिसका मान आइन्सटीन के द्रव्यमान – ऊर्जा सम्बंध से ज्ञात किया जाता है।

WhatsApp Image 2023 02 25 at 20.24.26

प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा:– नाभिकीय बन्धन ऊर्जा तथा द्रव्यमान संख्या अर्थात न्यूक्लिआनों की संख्या का अनुपात प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा कहलाती है।

WhatsApp Image 2023 02 25 at 20.25.29

बन्धन ऊर्जा α नाभिक का स्थायित्व

  • जिस नाभिक के लिए प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा का मान अधिक होता है, वह नाभिक उतना ही अधिक स्थायी होता है।
  • ²⁶Fe⁵⁶ की प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा = 8.79 Mev(सर्वाधिक)

विभिन्न नाभिकों की प्रतिन्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा (BE) तथा उन नाभिको की द्रव्यमान संख्या में आरेख :

प्रत्येक नाभिक की बंधन ऊर्जा घनात्मक होती है अत: नाभिक को विखण्डित करने 10 के लिए ऊर्जा देनी पड़ती है। यह नाभिकीय बल की आकर्षी प्रकृति को दर्शाता है।

WhatsApp Image 2023 02 25 at 20.33.18

द्रव्यमान संख्या बढ़ाने पर प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा बढ़ती है और द्रव्यमान संख्या पर 56 के लिए अधिकतम (8.75 MeV प्रति न्यूक्लिआन) होकर धीरे धीरे घटने लगती है। इससे यह स्पष्ट होता है की द्रव्यमान संख्या 56 व उसके पड़ोसी तत्वों के नाभिक अधिक स्थाई होते हैं।

56 से कम द्रव्यमान संख्या वाले नाभिक के लिए भी ये बंधन ऊर्जा प्रति न्यूक्लिआन धीरे-धीरे घटती है तथा द्रव्यमान संख्या 20 से कम वाले नाभिको के लिए बहुत तेजी से घटती है।

द्रव्यमान संख्या 56 से अधिक द्रवामान संख्या वाले तत्वों की बंधन ऊर्जा प्रति न्यूक्लिऑन कम होती है। अत: नाथिको का स्थायित्व कम होता जाता है।

द्रव्यमान संख्या 4,12,16 वाले तत्वों के संगत ग्राफ में उच्चतम मान प्राप्त होते हैं, अत: इनके पास वाले नाभिक अधिक स्थाई होते है।

मध्यवर्ती द्रव्यमान संख्या 30<A<170 के लिए बंधन ऊर्जा का मान लगभग नियत रहता है अर्थात् परमाणु क्रमांक के साथ परिवर्तित नहीं होता है।

बहुत भारी तथा हल्के नाभिको (A> 170 व A < 30) की बंधन ‘प्रति न्यूक्लिआन का मान मध्यवर्ती नाभिको की तुलना में कम होता है जिससे बहुत भारी नाभिक को यदि हल्के नाभिक में विभक्त किया जाये तो प्रति न्यूक्लिऑन वंधन ऊर्जा बढ़ जायेगी जिससे नाभिकों का स्थायित्व बढ़ जायेगा ।

नाभिकीय बल

नाभिक में उपस्थित न्यूक्लिऑनों के मध्य लगने वाला आकर्षण बल नाभिकीय बल कहलाता है। नाभिकीय बल एक सीमित दूरी तक ही आकर्षण प्रकृति का होता है उसके पश्चात् इस बल की प्रकृति प्रतिकर्षण की हो जाती है।

नाभिकीय बलों के गुण :-

  • नाभिकीय बल प्रकृति में पाया जाने वाला सबसे प्रवल बल होता है।
  • इन त्वलो की प्रकृति आकर्षण की होती है।
  • नाभिकीय बलों का परास बहुत कम होता है इसलिए इन्हें लघु परास बल भी कहते है|
  • नाभिकीय बल न्यूक्लिभानों के चक्रण पर भी निर्भर करता है।

नाभिकीय विखण्डन

नाभिकीय विखण्डन वह प्रक्रिया है जिसमें भारी नाभिक दो या दो से अधिक हल्के द्रव्यमान वाले नाभिको मे टूटता है तथा अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा निर्मुक्त होती है।

जब यूरेनियम 235 पर न्यूट्रानों की बौछार करायी जाती है तो यूरेनियम दो नाभिक बेरियम तथा क्रिप्टन में विभक्त हो जाता है।

92 U²³⁵+ On¹→92U²³⁶→56Ba¹⁴¹+36K⁹²+30n¹ + ऊर्जा

उपरोक्त उदाहरण से स्पष्ट है कि नाभिकीय विखण्डन में अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा निर्मुक्त होती है। इसका कारण यह है कि इस प्रक्रिया में प्राप्त नाभिको का द्रव्यमान विखण्डन से प्राप्त नाभिक के द्रव्यमानों से कुछ कम होता है। अर्थात् इस प्रक्रिया में कुछ द्रव्यमान नष्ट हो जाता है। जो E = भटर के अनुसार ऊर्जा में रूपान्तरित हो जाता है।

श्रृंखला अभिक्रिया

नाभिकीय विखण्डन से प्राप्त अभिक्रियाओं में न्यूट्रॉन उत्पन्न होते हैं। ये न्यूट्रॉन पुनः अपने समीप स्थित यूरेनियम के नाभिक से क्रिया कर पुन: न्यूट्रॉन उत्पन्न करते हैं। इन न्यूट्रानों की संख्या में लगातार वृद्धि होती रहती है। तथा यह प्रक्रिया एक बार प्रारम्भ होने के पश्चात् स्वतः ही चलती रहती है जब तक यूरेनियम पदार्थ समाप्त नहीं हो जाता है। इस अभिक्रिया को श्रृंखला अभिक्रिया कहते हैं। न्यूक्लियर रिएक्टर इसी अभिक्रिया का उदा० है।

नाभिकिय रिएक्टर

यह नाभिकीय विखंडन के सिद्धान्त पर कार्य करता है।

nucleus reactor

रचना : नाभिकीय रिएक्टर में निम्नलिखित प्रमुख अवयव होते है।

  • ईंधन या विखण्डनीय पदार्थ:- ईंधन के रूप में भट्टी में U²³⁴ अथवा Pu²³⁴ लिया जाता है तथा इन छडो के मध्य कुछ दूरी रखी जाती है ताकि विखण्डन से प्राप्त न्यूट्रॉन दूसरी छड़ तक पहुँच सके।
  • मंदक:- मंदक की सहायता से अभिक्रिया में तीव्रगामी न्यूट्रॉनों की गति अथवा वेग को धीमा किया जाता है। मंदक के रूप में साधारण भारी जल, ग्रेफाइट, द्रन हीलियम, बेरेलियम इत्यादि उपयोग मे लिये जाते हैं। लेकिन भारी जल ग्रेफाइट सर्वोत्तम है।
  • नियंत्रक छड़े:- परमाणु भट्टी में विखण्डन की क्रिया को नियंत्रित करने के लिए जिन छडो का उपयोग किया जाता है। उन्हें नियंत्रक छडे कहते हैं। इन छडो के रूप मे कैडमियम प्रयुक्त की जाती है क्योकि कैडमियम न्यूट्रॉनो का अच्छा अवशोषक है।
  • शीतलक द्रव:- परमाणु भट्‌ट्टी में अभिक्रिया के दौरान अत्यधिक मात्रा में ऊष्मा उत्पन्न होती है जिसके कारण भट्‌ट्टी का ताप बहुत अधिक हो जाता है। इस ताप को नियंत्रित करने के लिए शीतलक द्रव का उपयोग करते है।

शीतलक पदार्थ द्रव अथवा गैस ही हो सकता है जिसमे निम्नलिखित गुण होने चाहिए-

  • पदार्थ की विशिष्ट ऊष्मा अधिक होनी चाहिए ।
  • शीतलक पदार्थ न्यूट्रॉनो का अवशोषण ना करे ।
  • शीतलक पदार्थ के रूप मे जल, वायु Co2, N2 इत्यादि का प्रयोग कर सकते है।

(V) परिरक्षक:– परमाणु भट्‌ट्टी में हानिकारक विकिरणे उत्पन्न होती है, जो जीवधारियों के लिए घातक होती है। इसलिए इन हानिकारक विकिरणों से बचने के लिए भट्टी के चारों ओर कंक्रीट तथा सीमेन्ट की मोटी दीवार बना दी जाती है जिसे परिरक्षक कहते है।

कार्यविधि:- परमाणु भट्टी में श्रृंखला अभिक्रिया शुरू करने के लिए नियंत्रक छडो को बाहर की ओर खींच लिया जाता है। जिसके पश्चात् न्यूट्रॉन, विखण्डनीय पदार्थ का विखण्डन प्रारम्भ कर देते हैं। इस विखंडन मे तीव्रगामी न्यूट्रॉन उत्पन्न होते हैं। जिनकी गति मंदन के पश्चात धीमी हो जाती है तथा ये मंद न्यूट्रॉन पुन: विखण्डनीय पदार्थ का विखण्डन प्रारंभ कर देते हैं। इस प्रकार यह अभिक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक विखण्डनीय पदार्थ समाप्त नही होता है। विखण्डन की क्रिया से प्राप्त ऊष्मा से उच्च दाब पर भाप उत्पन्न की जाती है जिससे टरबाइन चलाकर विद्युत ऊर्जा प्राप्त की जाती है|

उपयोग:- परमाणु भट्‌ट्टी का उपयोग शोध कार्यों में न्यूट्रॉन पूँज प्राप्त करने में तथा रेडियो समस्थानिको को उत्पन्न करने में किया जाता है।

नाभिकीय संलयन

जब दो या दो से अधिक हल्के नाभिक मिलकर एक अपेक्षाकृत बड़े नाभिक का निर्माण करते हैं तो इस प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते है। नाभिकीय संलयन के लिए अति उच्च ताप तथा अति उच्च दाब की आवश्यकता होती है। ऐसी नाभिकीय अभिक्रियाओं को उत्पन्न करने के लिए पृथ्वी पर उपलब्ध ताप पर्याप्त नहीं है।लेकिन सूर्य का भीतरी ताप तथा कुछ तारों में यह ताप नाभिकीय संलयन के लिए पर्याप्त होते हैं।

नाभिकीय संलयन में कुछ उदाहरण निम्न प्रकार से है-
1H² + 1H² → 1H³ + 1H¹ ऊर्जा (लगभग 4 Mev)
H³+1H²→ 2He⁴+On¹+ ऊर्जा (लगभग 17.6 Mev)

रेडियोएक्टिवता

रेडियोएक्टिवता की खोज हेनरी बैकुलर ने की। इन्होंने यूरेनियम पोटैशियम सल्फेट के कुछ टुकड़ो पर दृश्य प्रकाश डालकर उसे काले कागज मे लपेटकर एक फोटोग्राफिक प्लेट के सामने रख दिया तथा फोटोग्राफिक प्लेट एवं इस पैकेट के बीच एक चाँदी की एक प्लेट रख दी और कुछ बाद यह पाया कि फोटोग्राफिक प्लेट काली पड़ गई है। इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि इन पदार्थों से कुछ अदृश्य विकिरण उत्सर्जित हो रहे हैं। इन पदार्थों को रेडियोएक्टिव पदार्थ तथा इस गुण को रेडियोएक्टिवता कहते है। यह दो प्रकार की होती हैं –

  1. प्राकृतिक रेडियोएक्टिवता :-
WhatsApp Image 2023 02 25 at 21.07.24

इस प्रकार की रेडियोऐक्टिवता में ४, B, X. कण स्वतः उत्सर्जित होते हैं और अन्य में स्थायी नाभिक प्राप्त होता है।

  1. कृत्रिम रेडियोएक्टिवता :
WhatsApp Image 2023 02 25 at 21.08.36

रेडियोएक्टिव क्षय

प्रयोगों द्वारा यह दर्शाया गया कि रेडियोएक्टिवता एक नाभिकीय परिघटना है, जिसमे अस्थायी नाभिक क्षयित होता है, जिसे रेडियोएक्टिव क्षय कहते हैं। यह तीन प्रकार का होता है।

1. α-क्षय – इसमें He नाभिक (2He4) उत्सर्जित होता है। जब किसी तत्व का α- कणों के उत्सर्जन से विघटन होता है तो इसे α-क्षय कहते है | α- क्षय से तत्व का परमाणु क्रमांक मूल तत्व के परमाणु क्रमांक से 2 कम हो जाता है, जबकि परमाणु भार मूल तत्व के परमाणु भार से 4 कम हो जाता है।

dcay

दिए गए समीकरणों मे विघटन ऊर्जा Q को आइन्स्टीन के द्रव्यमान ऊर्जा सम्बन्ध से परिभाषित किया गया।

विघटन ऊर्जा:- प्रारम्भिक द्रव्यमान ऊर्जा तथा क्षय उत्पाद के कुल द्रव्यमान ऊर्जा का अन्तर विघटन ऊर्जा कहलाती है।

energy

यदि अभिक्रिया ऊष्माक्षेपी हो तो α- कण के लिए Q विघटन ऊर्जा ऋणात्मक होती है। यदि अभिक्रिया ऊष्माशोषी हो तो α कण के लिए Q विघटन ऊर्जा धनात्मक होती है। a- क्षय ऊर्जा स्पेक्ट्रम विविक्त (खण्डित) होता है।

Note – α- क्षय मे α- कण की गतिज ऊर्जा निम्न सूत्र द्वारा निकाली जाती है।

α- क्षय

2. β-क्षय:- किसी तत्व का β-क्षय या β-उत्सर्जन होता है तो बनने वाले तत्व के परमाणु भार में कोई अन्तर नहीं आता है, जबकि परमाणु क्रमांक में एक बढ़ (B) या (B+) एक घट जाता है।

Note-β – क्षय में इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन के साथ-साथ एक कण एन्टीन्यूट्रिनों जबकि पॉजीट्रॉन के साथ-साथ न्यूट्रिनो की उत्पत्ति होती है। न्यूट्रिनो का संसूचन अत्यन्त कठिन होता है क्योंकि यह कण अन्य कणों के साथ बहुत ही दुर्बल अन्योन्य क्रिया करता है। अर्थात क्रिया किये बिना पृथ्वी की या पदार्थ की बहुत बड़ी मात्रा को पार कर जाता है, क्योंकि इनका वेग अधिक होता है।

β – क्षय मे मूल नाभिकीय अभिक्रिया निम्नलिखित होती है :-

β – क्षय नाभिकीय अभिक्रिया न्यूट्रॉन का प्रोटान में रूपान्तरण-

β - क्षय

β+ – क्षय की मूल अभिक्रिया प्रोटान का न्यूट्रान में रूपान्तरण-

Screenshot 2023 02 26 204524

उपरोक्त समीकरणों से स्पष्ट है कि प्रोटॉन का द्रव्यमान(1.00727 amu) न्यूट्रॉन के द्रव्यमान (1-00566 amml) से कम होता है। अत: प्रोटॉन का न्यूट्रॉन में रूपान्तरण केवल नामिक के भीतर ही सम्भव होता है जबकि न्यूट्रॉन का प्रोट्रॉन मे रुपान्तरण मुक्त अवस्था में भी सम्भव है।

न्यूट्रिनों की परिकल्पना– β-क्षय प्रक्रिया में β कणों के अतिरिक्त में अन्य कण जैसे न्यूट्रिनों तथा एन्टीन्यूट्रिनो भी उत्सर्जित होते हैं। ऐसा पाउली नामक वैज्ञानिक ने बताया । पाउली के अनुसार न्यूट्रिनो आवेश व द्रव्यमान लगभग शून्य जबकि कोणीय संवेग +-h/2π होता है। अत: पाउली के अनुसार β-क्षय प्रक्रिया में ऊर्जा संरक्षण तथा कोणीय संवेग संरक्षण सिद्धान्ती की यथार्थता बनी रहती है|

3. Y-क्षय – जब भी कोई नाभिक α-कणो तथा β कणो उत्सर्जन द्वारा विघटित होता है। तो यह नाभिक उत्तेजित अवस्था में आ जाता है। उत्तेजित अवस्था से मूल अवस्था में आने के लिए नाभिक दोनो ऊर्जा स्तरों के अंतर के समान ऊर्जा का फोटॉन (hv) उत्सर्जित करता है, जिसे γ-क्षय कहते है।

रेडियोएक्टिव क्षयता का नियम / रदरफोर्ड के रेडियोएक्टिव विघटन का नियम :

रदरफोर्ड के अनुसार –

  • (i) रेडियोएक्टिव पदार्थ स्वतः विघटित होता है।
  • (ii) रेडियोएक्टिवता भौतिक अवस्था जैसे ताप, दाब, क्षेत्रफल इत्यादि पर निर्भर नहीं करती है।

उपरोक्त विशेषताओं के आधार पर रदरफोर्ड तथा सोडी ने अपना नियम प्रस्तुत किया जिसे रेडियोएक्टिव क्षयता का नियम कहते है। इस नियमानुसार किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ के विघटन की दर – (dN/dt) उस समय उपस्थित सक्रिय परमाणुओं की संख्या के समानुपाती होती है।

WhatsApp Image 2023 02 25 at 21.35.24

जहाँ ऋणात्मक चिन्ह यह दर्शाता है कि समय में वृद्धि के साथ- साथ सक्रिय परमाणुओं की संख्या में कमी होती है।

dN/dt = -λN
λ = विघटन स्थिरांक या रेडियोएक्टिव क्षय नियतांक
समाकलन करने पर –

रेडियोएक्टिव क्षयता का नियम

अतः स्पष्ट है कि सक्रिय परमाणुओं की संख्या समय के साथ चरघातांकी रूप में घटती है।

विघटन स्थिरांक (λ):-

विघटन स्थिरांक (λ):-

” समय का वह व्युत्क्र्म मान जिस पर सक्रिय परमाणुओं की संख्या अपने प्रारम्भिक मान का 1/e रह जाये विघटन स्थिरांक कहलाता है”

अतः विघटित परमाणुओं की संख्या = (1-N/No)
= (1- 1/e) =63 या 63%

सक्रियता (R):– किसी रेडियोएक्टिव तत्व मे एकांक समय मे क्षयित होने वाले नामिकों की संख्या उस पदार्थ की सक्रियता कहलाती है।
R= – dN/dt…………….(i)

सक्रियता

सक्रियता का मात्रक :- बेकुरेल (Bq) = 1 क्षय प्रति sec तथा क्यूरी
1ci = 3.7X10¹⁰ विघटन | sec या Bq
1mci = 3.7×10⁷ विघटन | sec या Bq
1 क्यूरी – 1gm रेडियम की सक्रियता 3.7X1010 विघटन / sec होती है, इसी मान को क्यूरी कहते हैं।

सक्रियता का एक अन्य मातक रदरफोर्ड होता है।
। रदरफोर्ड = 10⁶ Bq या विघटन / Sec
1 mci =37 रदरफोर्ड

अर्द्धआयु काल (T1/2):- समय का वह मान जिसमें सक्रिय परमाणुओं की संख्या प्रारम्भिक सक्रिय आधी रह जाती है, अर्द्ध आयु काल परमाणुओं की संख्या की कहलाता है।

अर्द्धआयु काल (T1/2):

औसत आयु या माध्य आय:- किसी तत्व की औसत आयु ज्ञात करने के लिए उसके सभी परमाणुओं की आयु की योग के परमाणुओं की कुल संख्या से भाग देने पर प्राप्त होती है।

Ta= सभी परमाणुओं की आयु का योग/कुल परमाणुओं की संख्या

माध्य आयु –

माध्य आयु

अतः स्पष्ट है कि औसत आयु विघटन स्थिरांक के व्युत्क्रमानुपाती होती है।

औसत आयु व अर्द्धआयु मे सम्बन्ध :-

औसत आयु व अर्द्धआयु मे सम्बन्ध :-

समी० (i) व (ii) से –

औसत आयु व अर्द्धआयु मे सम्बन्ध :-

Chapter 1 – वैद्धुत आवेश तथा क्षेत्र
Chapter 2 – स्थिर विद्युतविभव एवं धारिता
Chapter 3 – विद्युत धारा
Chapter 4 – गतिमान आवेश और चुंबकत्व
Chapter 5 – चुंबकत्व एवं द्रव्य
Chapter 6 – वैधुतचुम्बकीय प्रेरण

Tagged with: class 12 physics chapter 13 ncert notes in hindi | Class 12 Physics Chapter 13 Notes in Hindi | class 12 physics part 2 chapter 13 notes in hindi | Nuclei Notes in Hindi | physics chapter 12 class 13 notes in hindi | physics class 12 chapter 13 in hindi notes | physics class 12 chapter 13 notes in hindi

Class: Subject: ,

Have any doubt

Your email address will not be published. Required fields are marked *