यहाँ हमने Class 12 Physics Chapter 14 Notes in Hindi दिये है। Class 12 Physics Chapter 14 Notes in Hindi आपको अध्याय को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेंगे और आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे।
Class 12 Physics Chapter 14 Notes in Hindi
चालक- वे पदार्थ जिनमें विद्युत धारा प्रवाहित होती है, चालक कहलाता है। इनमें मुक्त इलेक्ट्रॉन पाये जाते है। उदाहरण- सभी धातुएँ ।
अचालक- वे पदार्थ जिनमें विद्युत धारा प्रवाहित नहीं होती है,अचालक कहलाता है। इनमें मुक्त इलेक्ट्रान उपस्थित नही होते हैं। उदा० – लकडी, कागज, प्लास्टिक आदि।
अर्धचालक- वे पदार्थ जिनका विद्युतीय गुण सुचालको तथा कुचालको के बीच होता है, उन्हें अर्धचालक कहते हैं। उदा०- Ge, si
ऊर्जा बैण्ड सिद्धान्त के आधार पर अर्द्धचालको का वर्गीकरण
ऊर्जा बैण्ड के सिद्धान्त के आधार पर, अर्द्धचालक के पदार्थों को तीन क्षेत्रों में विभक्त किया है, जिसमे संयोजकता बैण्ड पूर्णतः भरा तथा चालन बैण्ड पूर्णतः खाली रहता है।
वर्जित बैण्ड की चौडाई उस ऊष्मीय ऊर्जा के बराबर होती है जिसे ग्रहण करके संयोजक बैण्ड का इलेक्ट्रान चालन बैण्ड मे पहुँच जाता है। इस प्रकार अर्धचालक को सुगमता से चालक बनाया जा सकता है।
Note:-
- समस्त अर्धचालक की संयोजकता 4 होती है।
- परमशून्य ताप पर अर्धचालक आदर्श कुचालक के भाँति व्यवहार करते हैं।
अर्धचालको के प्रकार
अर्धचालक दो प्रकार के होते हैं-
- शुद्ध या आन्तरिक या निज अर्धचालक- निज अर्धचालक वे पदार्थ होते हैं जो प्रकृति में शुद्ध रूप से विद्यमान होते हैं, जिनमें कोई अपद्रव्य न मिला हो । इस प्रकार इन पदार्थों को शुद्ध या प्राकृतिक अर्धचालक कहते हैं। जैसे- Ge तथा Si
- अशुद्ध या बाहय अर्धचालक– जब किसी शुद्ध अर्धचालक में कोई त्रिसंयोजी अशुद्धि अथवा पंचसंयोजी अशुद्धि (बोरान अथवा आर्सेनिक) मिलायी जाती है तो पदार्थ की चालकता बहुत बढ़ जाती है। इस क्रिया को अपमिश्रण कहते हैं। इस प्रकार प्राप्त अशुद्ध अर्धचालक को बाह्य अर्धचालक कहते हैं।
बाह्य अर्धचालक दो प्रकार के होते हैं-
(i) P- टाइप अर्धचालक– जब किसी शुद्ध अर्धचालक मे त्रिसंयोजी अशुद्धि (जैसे – बोरान, एल्युमिनियम) मिलाई जाती है तो इसे P-टाइप अर्धचालक कहते हैं। इसमे एक स्थान जो शेष बच जाता है, उसे कोटर या होल बोलते हैं। यही बहुसंख्यक आवेश वाहक का कार्य करता है।
(ii) n – टाइप अर्धचालक – जब किसी शुद्ध अर्धचालक (जैसे Ge, Si) मे पंचसंयोजी अशुद्धि (जैसे- आर्सेनिक) मिलाई जाती है तो इसे n-टाइप अर्धचालक कहते हैं। इसमें बहुसंख्यक आवेश वाहक का कार्य e- करता है।
अर्द्धचालक डायोड अथवा P-n संधि डायोड
जब एक P- प्रकार के अर्धचालक क्रिस्टल को किसी विशेष संधि द्वारा n-प्रकार के अर्धचालक क्रिस्टल के साथ जोड़ दिया जाता है, तो जिस स्थान पर क्रिस्टल एक दूसरे से जुड़ते हैं, वहा P-n संधि कहलाती है।” इस संयोजन के वैधुत लक्षण डायोड वाल्व की भाँति होते है, अत: इस संयोजन को P-n संधि डायोड भी कहते हैं। डायोड अथवा P-n संधि डायोड
संधि के दोनों ओर से कोटर तथा चालक इलेक्ट्रॉन परस्पर ऊष्मीय विशोष के कारण संधि को पार करते है जिससे अधिकांश आवेश वाहक परस्पर संयोग करके नष्ट हो जाते है जिससे संधि के पास एक परत बन जाती है जिसे अवक्षय परत कहते है।
अवक्षय परत की मोटाई लगभग 10-6 मी० होती है। आन्तरिक वैद्युत क्षेत्र के कारण आवेश वाहको का स्थानांतरण बन्द हो जाता है इस प्रकार संधि के सिरो के बीच एक विभवान्तर उत्पन्न हो जाता है जिसे संपर्क विभव या विभव प्राचीर कहते हैं।
दिष्टकरण
प्रत्यावर्ती धारा की दिष्ट धारा में बदलने की प्रक्रिया को दिष्टकरण कहते हैं
ट्रांजिस्टर (Transistor)
वह युक्ति जिसके द्वारा वोल्टेज, शक्ति तथा धारा का प्रवर्धन किया जा सकता है उसे ट्रॉजिस्टर कहते हैं।
ट्राजिस्टर का अविष्कार अमेरिकन वैज्ञानिको शोकले, वार्डीन तथा बेरिन द्वारा सन् 1948 ई० में किया गया था। इस अविष्कार के लिए इन वैज्ञानिकों को सन् 1956 ई. मे नोबेल पुरस्कार भी दिया गया था।
ट्रॉजिस्टर के प्रकार:
ट्रांजिस्टर दो प्रकार के होते हैं-
- p-n-p ट्रांजिस्टर
- n-p-n ट्रांजिस्टर
(i) p-n-p ट्रांजिस्टर:- यह ट्रांजिस्टर n टाइप अर्धचालक की पतली पर्त को p-टाइप अर्धचालक की दो मोटी पर्तो के बीच दबाकर बनाया जाता है। इस प्रकार इसमें बीच का n क्षेत्र आधार और बायी ओर का P क्षेत्र उत्सर्जक तथा दायी ओर का P क्षेत्र संग्राहक कहलाता है।
(ii) n- p – n ट्रांजिस्टर- यह ट्रांजिस्टर P- टाइप अर्धचालक की एक पतली पर्त को n – टाइप अर्धचालक की दी मोटी पर्तों के बीच दबाकर बनाया जाता है। इस प्रकार इसमे बीच का P-क्षेत्र आधार, बायी और n – क्षेत्र उत्सर्जक और दायी ओर का n क्षेत्र संग्राहक होता है।
फोटो डायोड
यह साधारण p-n संधि डायोड के समान होता है। इसमे p-n जंक्शन के पास एक पारदर्शी प्लेट लगी हुई होती है जिससे की संधि पर प्रकाश आपतित हो सके।
उपयोग –
- प्रकाश के संसूचन गे |
- स्वचलित दरवाजे, लिफ्ट आदि मे |
- प्रकाश सिंग्नल का संसूचन मे ।
- कम्प्यूटर पंच कार्डो मे।
- प्रकाश संचालित कुजियो मे ।
प्रकाश उत्सर्जक डायोड (L.E.D):-
- यह एक युक्ति है जो विद्युत ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा में परिवर्तित करती है।
- इसका प्रयोग प्रकाश स्रोत के रूप में अथवा प्रकाश सिग्नलो की उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।
- इसकी संरचना P-n संधि डायोड की भाति होती है। परन्तु इनको बनाने के लिए ऐसे अर्धचालको का प्रयोग किया जाता है जिसका निपिड ऊर्जा अन्तराल दृश्य प्रकाश के ऊर्जा अन्तराल के समान होता है।
- अतः दृश्य प्रकाश उत्सर्जित करने के लिए यौगिक अर्धचालक जैसे- गैलियम आर्सेनाइड-फॉस्फाइड का उपयोग विभिन्न वर्गों के LED के निर्माण में होता है।
उपयोग:-
- प्रकाश स्त्रीत के रूप में।
- अलार्म आदि में इंडीकेटर के रूप में।
- LED डिस्प्ले में
- अवरक्त विकिरण उत्सर्जित करने वाली LED का प्रयोग रिमोट आदि मे प्रकाश सिग्नल उत्सर्जित करने के लिए किया जाता है।
- अवरक्त प्रकाश उत्सर्जित करने वाली LED का प्रयोग धुंध आदि मे फोटो ग्राफी के लिए किया जाता है।
सौर सेल या सोलर सेल
- यह एक युक्ति है जो प्रकाश ऊर्जा को वैद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करती है। इसीलिए इसे प्रकाश वोल्टीय सेल तथा इसकी इस क्रिया को फोटो वोल्टीय क्रिया कहते हैं।
- यदि कई सारी फोटो वोल्टीय सेलो को श्रेणी क्रम में जोड़कर इस प्रकार बनी पंक्तियों को परस्पर समान्तर क्रम में जोड़ दिया जाये तो यह संयोजन सोलर पैनल कहलाता है।
- यह अवअभिनति p-n संधि होती है, जिसे प्राय: सिलिकन का प्रयोग करके बनाया जाता है। क्योंकि सिलिकन का निषिद्ध ऊर्जा अन्तराल लगभग दृश्य प्रकाश की ऊर्जा के बराबर होता है।
- अधिक दक्षता वाली सोलर सेल बनाने के लिए गैलियम आर्सेनाइट (Eg= I.SeV) का प्रयोग किया जाता है।
सोलर सेल के लाभ-
- यह पूर्णतयः प्रदूषण मुक्त ऊर्जा का स्त्रोत है।
- सोलर पैनलों के रख- रखाव की अत्यधिक गावश्यकता नहीं होती है।
- यह लम्बे समय तक चलते है।
सोलर सेलो का उपयोग-
- इसका उपयोग ऊर्जा स्त्रोत के रूप में किया जाता है।
- कृत्रिम उपग्रहो में इसका प्रयोग वैद्युत ऊर्जा के स्त्रोत के रूप में किया जाता है।
- इसका प्रयोग इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसे कैलकुलेटर, अलार्म आदि में ऊर्जा स्रोत के रूप में किया जाता है।
अंकीय इलेक्ट्रॉनिकी
सिग्नल:- वह माध्यम जिसके द्वारा सूचनाओ का आदान प्रदान किया जाता है, सिग्नल कहलाता है। सिग्नल दो प्रकार का होता है-
- एनालॉग सिग्नल
- डिजिटल सिग्नल
(i) एनालॉग परिपथ- वे परिपथ जो किन्ही दो निश्चित मानो के बीच वोल्टेज अथवा धारा के समस्त मानो को ग्रहण अथवा निर्गत करते हैं ऐसे परिपथो को एनालॉग कहते है।
(ii) डिजिटल परिपथ- वे परिपथ जी वोल्टेज अथवा धारा के केवल दो ही मानो को ग्रहण या निर्गत करते हैं, ऐसे परिपथो को डिजिटल परिषथ कहते हैं।
लॉजिक गेट-
वह डिजिटल परिपथ जो निवेश (Input) तथा निर्गत (Output) सिग्नलो के बीच तर्क पूर्ण सम्बन्धो के अनुसार कार्य करता है, लाजिक गेट कहलाता है।
लॉजिक गेट तीन प्रकार के होते है।
(i) OR गेट – इसमे दो या दो से अधिक निवेश तथा उसके तर्क संगत केवल एक निर्गत होता है।
यदि A और B इनपुट तथा Y आउटपुट है तो बूलियन व्यजक → A+ B = Y
A OR B equals Y
सत्यतता सारणी
Input(A) | Input(B) | Output(Y) |
---|---|---|
0 | 0 | 0 |
0 | 1 | 1 |
1 | 0 | 1 |
1 | 1 | 1 |
(ii) AND गेट – में यह भी एक दिनिवेशी तथा एकल निर्गत लाजिक गेट है।
यदि A&B inputs तथा Y output है तो बूलियन व्यजक A.B = Y
सत्यतता सारणी
Input(A) | Input(B) | Output(Y) |
---|---|---|
0 | 0 | 0 |
0 | 1 | 0 |
1 | 0 | 0 |
1 | 1 | 1 |
(iii) NOT गेट – इसमे केवल एक Input तथा उसके तर्कसंगत केवल एक output होता है।
यदि A Input तथा Output है तो बूलियन व्यंजक Ā = Y
NOT A equals Y
सत्यतता सारणी
Input A | Output |
---|---|
0 | \(\bar{0}=1\) |
1 | \(\bar{1}=0\) |
गेटो का संयोजन
(i) NAND गेट – जब AND गेट के output को NOT गेट का input बनाते है तो इस प्रकार के संयोजन को NAND गेट कहते है।
यदि A& B AND गेट के input तथा y’ output हो तो y’ = A. B
यदि y’ NOT गेट का input तथा y output हो तो \( \bar{Y} = \bar{Y’}\)
\(Y=\bar{A.B}\) ये NAND गेट का बूलियन व्यंजक है।
सत्यता सारणी
Input A | Input B | Output Y’ | Output Y |
---|---|---|---|
0 | 0 | 0 | \(\bar{0}=1\) |
0 | 1 | 0 | \(\bar{0}=1\) |
1 | 0 | 0 | \(\bar{0}=1\) |
1 | 1 | 1 | \(\bar{1}=0\) |
(ii) NOR गेट– जब OR गेट के output को NOT गेट का Input बनाते है, तो इस प्रकार के संयोजन को NOR गेट कहते है।
यदि A& B OR गेट के input तथा y output Y’= A+B
यदि Y’ NOT गेट का input तथा output Y हो तो \(Y=\bar{Y’}\)
\(y=\bar{A+B}\) जो NOR गेट का बूलियन व्यंजक है।
सत्यता सारणी
Input(A) | Input(B) | Output(Y’) | Output(Y) |
---|---|---|---|
0 | 0 | 0 | \(\bar{0}=1\) |
0 | 1 | 1 | \(\bar{1}=0\) |
1 | 0 | 1 | \(\bar{1}=0\) |
1 | 1 | 1 | \(\bar{1}=0\) |
Chapter 1 – वैद्धुत आवेश तथा क्षेत्र
Chapter 2 – स्थिर विद्युतविभव एवं धारिता
Chapter 3 – विद्युत धारा
Chapter 4 – गतिमान आवेश और चुंबकत्व
Chapter 5 – चुंबकत्व एवं द्रव्य
Chapter 6 – वैधुतचुम्बकीय प्रेरण
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