Class 10 Science Chapter 13 Notes in Hindi विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव

यहाँ हमने Class 10 Science Chapter 13 Notes in Hindi दिये है। Class 10 Science Chapter 13 Notes in Hindi आपको अध्याय को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेंगे और आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे।

Class 10 Science Chapter 13 Notes in Hindi विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव

चुम्बक

  1. वह पदार्थ जो लोहे की वस्तुओं को आकर्षित करता है उसे चुम्बक कहते है।
  2. चुम्बक से आकर्षण या प्रतिकर्षण के आधार पर पदार्थ को दो भागों में बाँटा जाता है।
  1. चुम्बकीय पदार्थ (चुम्बक से आकर्षित) जैसे- लोहा, निकल।
  2. अचुम्बकीय पदार्थ (चुम्बक से अप्रभावित) जैसे – तांबा ,लकड़ी, चॉक।
  • स्वतंत्रता पुर्वक लटकाई गई चुम्बक विराम अवस्था में आने के पश्चात उत्तर-दक्षिण दिशा में रुकती है। जो शिरा उत्तर दिशा में रुकता है उसे उत्तरी ध्रुव कहते है तथा जो शिरा दक्षिण दिशा में रुकता है। उसे दक्षिणी ध्रुव कहते है।
  • चुम्बक से समान ध्रुव को मध्य प्रतिकर्षण तथा असमान ध्रुवों के मध्य आकर्षण होता है।

चुम्बक दो प्रकार की होती है:-

  1. प्राकृतिक चुम्बक
  2. कृत्रिम चुम्बक
  1. प्राकृतिक चुम्बक:- यह प्रकृति से प्राप्त होता है। मैग्नेटाइट पत्थर प्राकृतिक चुम्बक की तरह व्यवहार करता है।
  2. कृत्रिम चुम्बक:- प्रयोगशाला या फैक्ट्रीओं में बनाई जाने वाली चुम्बक को कृत्रिम चुम्बक कहते हैं। जैसे लोहे व निकल से बनी चुम्बक

विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

  • जब किसी विद्युत परिपथ में धारा प्रभावित की जाती है तो चालक तार के चारो ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। जिस कारण चालक तार एक चुम्बक की तरह व्यवहार करने लगता है इसे विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव कहते है।
  • इस प्रभाव की खोज क्रिश्चियन ऑस्ट्रेड ने की थी।

चुम्बकीय क्षेत्र

चुम्बक के चारो ओर का वह क्षेत्र जिसमें चुम्बक के द्वारा चुम्बकीय पदार्थ को अपनी तरफ आकर्षित किया जाता है उसे चुम्बकीय क्षेत्र कहते है।

चुम्बकीय बल रेखाएँ

चुम्बक के चुम्बकिय क्षेत्र में स्थित वे काल्पनिक वक्रय रेखाएँ जो उस स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को प्रदर्शित करती है चुम्बकीय बल रेखाएँ कहलाती हैं।

चुम्बकीय बल रेखाएँ

चुम्बकिय बल रेखाओं के गुण

  1. चुम्बकिय बल रेखाएँ बन्द वक्र होती है जो की चुम्बक के उत्तरी ध्रुव से निकलकर दक्षिणी ध्रुव में प्रवेश करती है और चुम्बक के अन्दर से होती हुई वापस उत्तरी ध्रुव में पहुँच जाती है।
  2. चुम्बकीय बल रेखाएँ एक-दुसरे को कभी नहीं काटती है। यदि दो बल रेखाएँ एक-दुसरे को काँटती है तो कटान बिंदु पर दो स्पर्श रेखाएँ खिची जा सकती है। जो दो चुम्बकीय क्षेत्र प्रदर्शित करते हैं और उनकी दिशा भी अलग – अलग होती है अत: ऐसा सम्भव नहीं होता है।
  3. चुम्बकीय बल रेखाएं ध्रुवों पर संघन तथा बीच में विरल होती है, अर्थात ध्रुवों पर इनके मध्य दुरी कम तथा मध्य में दुरी ज्यादा होती है अर्थात ध्रुवो पर बना चुम्बकीय क्षेत्र प्रबल या मजबूत होता है तथा चुम्बक के मध्य में चुम्बकीय क्षेत्र कमजोर होता है।

धारावाही चालक के चारो ओर चुम्बकीय क्षेत्र

विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव के अनुसार जब किसी तार में धारा प्रवाहित की जाती है तो चालक तार के चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र बनता है। हम जानते है की विद्युत धारा में आवेश प्रवाह के कारण चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है।

चुम्बकीय क्षेत्र दो तथ्यों पर निर्भर होता है:-

  1. चुम्बकीय क्षेत्र प्रवाहित धारा के समानुपाती होता है अर्थात जैसे-जैसे धारा का मान बढ़ाया जाता हैं चुम्बकीय क्षेत्र भी उतना ही प्रबल बनता है।
    • चुम्बकीय क्षेत्र ∝ विद्युत धारा
    • B ∝ I
  2. चालक तार से दूरी बढ़ाने पर चुम्बकीय क्षेत्र का मान कम होता है अर्थात जैसे-जैसे तार से दुरी बढ़ती जाती है चुम्बकीय क्षेत्र कमजोर होता है।
    • चुम्बकीय क्षेत्र ∝ दुरी (R)
    • B = I/R

धारावाही चालक में उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा:- किसी सीधे धारावाही चालक तार के चारो ओर बना चुम्बकीय क्षेत्र दक्षिण हस्त अंगुस्ट नियम द्वारा ज्ञात किया जाता है।

इस नियम के अनुसार धारावाही चालक को दाएँ हाथ से इस प्रकार पकड़े की अंगुठा धारा की दिशा में होता है तो अगुंलियो के मुडने की दिशा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को दर्शाती है।

चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा

वर्ताकार पास के चारो ओर चुम्बकीय क्षेत्र:

वर्ताकार पास के चारो ओर चुम्बकीय क्षेत्र:

परिनलिका

पास-पास लिपटे विद्युत रोधी ताँबे के तार की बेल की आकृति की अनेक फेरो वाली कुडली को परिनलिका कहते है।

किसी विद्युत धारावाही परिनलिका के चारो और चुम्बकीय क्षेत्र बनता है।

परिनलिका में बना चुम्बकीय क्षेत्र प्रवाहित विद्युत धारा तथा फेरो की संख्या पर निर्भर करता है। फेरों की संख्या जितनी ज्यादा होती है चुम्बकीय क्षेत्र भी उतना ही ज्यादा होता है। और विद्युत धारा जितनी ज्यादा प्रवाहित होगी चुम्बकीय क्षेत्र भी उतना ही ज्यादा होगा।

परिनलिका

विद्युत चुम्बक

परिनलिका के अन्दर जब कच्चे लोहे की रोड़ को रखकर धारा प्रवाहित की जाती है तो परिनलिका के चारों ओर बनने वाला चुम्बकीय क्षेत्र कच्चे लोहे की रोड़ को चुम्बक में बदल देता है। इस प्रकार विद्युत द्वारा बनी इस चुम्बक को विद्युत चुम्बक कहते है।

चुम्बकिय बल

चुम्बक के द्वारा लगा वह बल जो विभिन्न चुम्बकीय पदार्थो को आकर्षित व प्रतिकर्षित करता हैं उसे चुम्बकीय बल कहते है।

धारावाही चालक तार में चुम्बकीय बल

  1. धारावाही चालक पर लगने वाली चुम्बकीय बल धारा के समानुपाती होती है। F ∝ I
  2. धारावाही चालक तार पर लगने वाला चुम्बकीय बल चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता के समानुपाती होता है। F ∝ B
  3. धारावाही चालक तार पर लगने वाला चुम्बकीय बल तार की लम्बाई के समानुपाती होता है। F ∝ L
  4. धारावाही चालक तार पर लगने वाला चुम्बकीय बल लम्बाई व क्षेत्र के बिच के कोण की ज्या के समानुपाती होता है।
    F ∝ Sin θ
    चुम्बकिय बल (F) = IBL Sin θ
    I = विद्युत धारा
    B = चुम्बकीय क्षेत्र
    L = तार की लम्बाई
    θ = चुम्बकीय क्षेत्र व तार की लम्बाई के बिच कोण

चुम्बकीय बल की दिशा:- चुम्बकीय बल की दिशा प्लेमिंग के बाएँ हाथ के नियम द्वारा ज्ञात की जाती हैं । इस नियम के अनुसार बाए हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अगुंठे को इस प्रकार फैलाया जाऐ ताकि तीनों एक दुसरे के लम्बवत हो तो तर्जनी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा, मध्यमा विद्युत धारा की दिशा तथा अंगूठा आरोपित चुम्बकिय बल की दिशा को बताता है। इसे वाम हस्त नियम भी कहते है। 

चुम्बकीय बल की दिशा

मोटर

विद्युत मोटर एक ऐसे युक्ति है जो विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदल देती है जैसे- पंखा, कुलर, कम्प्युटर, वासिंग मशीन आदि।

मोटर का सिद्धांत

विद्युत मोटर विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव के नियम पर आधारित होती है अर्थात जब धारावाही चालक तार में धारा प्रवाहित की जाती है तो चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता हैं। चुम्बकीय क्षेत्र में चुम्बकीय बल कार्य करता है, इसी बल के कारण मोटर घुमने लगती है।

मोटर का सिद्धांत

मोटर की संरचना

मोटर की सरंचना में चुम्बकीय क्षेत्र बनाने के लिए दो प्रबल चुम्बक ली जाती है। इन चुम्बकों के मध्य विद्युतरोधी तारों की बनी आयताकार कुंडली या आर्मेचर लगा हुआ होता है। आर्मेचर के दोनो सिरे सर्फी वलय या विभक्त वलय (P,Q ) से आकर जुड़ते है। P,Q के बाहरी चालक सिरे दो ब्रुश x व y से जोड़े हुए होते हैं। ब्रुश के दोनों सिरो को बैटरी के धन व ऋण सिरों से जोड़ दिया जाता है।

मोटर की क्रियाविधि :-

जब मोटर में किसी विद्युत स्त्रोत द्वारा धारा प्रवाहित की जाती है तो ब्रुश व विभक्त वलय से होती हुई विद्युत धारा आर्मेचर या कुंडली में पहुँचती है तो आर्मेचर के भाग में धारा की दिशा अन्दर की तरफ तथा मोटर के चुम्बकों के बीच चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की तरह होती है तब फ्लेमिंग के वाम हस्त नियम के द्वारा चुम्बकीय बल की दिशा ऊपर की तरफ होती है। अत: C, D भाग पर ऊपर की तरफ बल लगता है।

जब विद्युत धारा A, B भाग में प्रवेश करती हैं तो विद्युत धारा की दिशा बाहर की तरफ होती है। अत: फ्लेमिंग के वाम हस्त नियम से हम कह सकते है की आर्मेचर के A, B भाग में चुम्बकीय बल की दिशा नीचे की तरफ होती है। अत: आर्मेचर के C , D भाग में नीचे की तरफ काम करता है। अत: आर्मेचर अपनी ध्रूरी के सहारे घुमने लगता है। प्रत्येक आधे घूर्णन के पश्चात विद्युत धारा के उलटने का क्रम दोहराया जाता है जिसके कारण कुंडली तथा दुरी का निरंतर घूर्णन होता रहता है।

विद्युत चुम्बकीय प्रेरण

माइकल फेराडे ने 1831 में विद्युत चुम्बकीय प्रेरण की खोज की। उन्होने बताया कि किसी गतिशील चुम्बक का उपयोग करके विद्युत धारा उत्पन्न की जा सकती है। इसे विद्युत चुम्बकीय प्रेरण कहते है।

जब किसी कुंडली व चुम्बक के बीच सापेक्षित गति करवाई जाती है तो कुंडली में एक विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है जिसे प्रेरित विद्युत वाहक बल कहते है। इसी बल के कारण कुंडली में धारा प्रवाहित होने लगती है जिसे प्रेरित धारा कहते है। इस घटना को विद्युत चुम्बकीय प्रेरण कहते है। 

विद्युत चुम्बकीय प्रेरण

विद्युत जनित्र

  • विद्युत जनित्र, एक ऐसी युक्ति है जो यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदल देती हैं।
  • इसका उपयोग अनेक स्थानों पर विद्युत उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।

विद्युत जनित्र का सिद्धांत

विद्युत जनित्र विद्युत चुम्बकीय प्रेरण सिद्धांत पर कार्य करता है। इसके अनुसार यांत्रिक ऊर्जा का उपयोग करके किसी कुंडली में घूर्णन करवाकर विद्युत उत्पन्न की जा सकती है।

विद्युत जनित्र की सरंचना

विद्युत जनित्र संरचना में एक आयताकार कुंडली A, B, C, D को दो प्रबल चुम्बको के बीच रखा जाता है। कुंडली के दो सिरे दो वलय R1 व R2 से जुड़े हुए होते हैं। ब्रुश B1 व B2 को अलग-अलग वलय R1 व R2 से जोड़ा जाता है। दोनों ब्रुशो के बाहरी सिरों को बाहरी परिपथ मे गैल्वेनोमीटर से जोड़ देगें।

नोट:- गेल्वेनोमीटर परिपथ में विद्युत धारा की उपस्थिति को प्रदर्शित करता है।

Chapter 1: रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण
Chapter 2: अम्ल, क्षारक एवं लवण
Chapter 3: धातु एवं अधातु
Chapter 4: कार्बन एवं उसके यौगिक
Chapter 5: तत्वों का आवर्त वर्गीकरण
Chapter 6: जैव प्रक्रम
Chapter 8: जीव में जनन कैसे होता है
Chapter 11: मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार
Chapter 12: विद्युत

विद्युत जनित्र की क्रियाविधि

जब जनित्र की धुरी को किसी यंत्र द्वारा घूमाया जाता है तो कुंडली दोनो चुम्बकीय ध्रुवों के बीच घूर्णन  करने लगती है।

जिस कारण विद्युत चुम्बकीय प्रेरण की घटना होती है जिस कारण वाम हस्त नियम से कुंडली के AB भाग में धारा की दिशा अन्दर की तरफ तथा कुंडली के CD भाग में धारा की दिशा बाहर की तरफ होती है। अत: कुंडली के घूर्णन से बनी विद्युत धारा C, D भाग की दिशा से बाहर की ओर प्रवाहित होने लगती है। यह धारा वलय R1 व R2 व ब्रुश B1 व B2 से होती हुई बाहर प्रवाहित होने लगती है।

विद्युत धारा दो प्रकार की होती है

  • दिष्ट धारा
  • प्रत्यावर्ती धारा

दिष्ट धारा

  • दिष्ट धारा हमेशा एक ही दिशा में प्रवाहित होती है।
  • दिष्ट धारा निम्न दूरी तक प्रवाहित होती है।
  • दिष्ट धारा के स्त्रोत – फोन की बैटरी, दिष्ट धारा जनित्र, शैल

प्रत्यावर्ती धारा

  • यह धारा समय के साथ अपनी दिशा बदलती रहती है।
  • प्रत्यावर्ती धारा अत्यधिक दुरी तक प्रवाहित की जा सकती है।
  • प्रत्यावर्ती धारा के स्त्रोत- हमारे घरों में आने वाली बिजली , प्रत्यावर्ती धारा जनित्र

घरेलू विद्युत परिपथ

विद्युत शक्ति को विद्युत खम्भों के द्वारा या भुमिगत केवल के द्वारा हमारे घरों तक पहुंचाई जाती है। यह तीन प्रकार के तार के द्वारा हमारे घरों तक पहुंचाई जाती है।

  1. विद्युन्मय तार
  2. उदासीन तार
  3. भुमिगत तार

1. विद्युन्मय तार:- विद्युन्मय तार लाल विद्युत रोधी आवरण से ढका रहता है।

2. उदासीन तार (ऋणात्मक तार):- उदासीन तार काले विद्युत रोधी आवरण से ढका रहता है।

3. भुमिगत तार:- भुमिगत तार घरेलू उपकरणो के विद्युत शोक से बचाने के लिए लगाया जाता हैं। इस तार को परिपथ में जोड़कर धरती के साथ जोड़ दिया जाता हैं। जिसका भुमिगत सिरा एक तांबे के प्लेट द्वारा जमीन में गड़ा होता है। इस तार को बड़े उपकरणों जैसे- रेफ्रिजरेटर, विद्युत इस्तरी, टोस्टर आदि उपकरणों में काम लिया जाता है।

  • नोट:- भारत के घरों में 220volt की विभवान्तर वाली विद्युत धारा आती है।
  • नोट:- हमारे घरों में 50Hz आवृति वाली विद्युत धारा आती है।
घरेलू विद्युत परिपथ

अतिभारण

हमारे घरों में अनेक उपकरण जैसे रेफ्रिजरेटर, मोटर, विद्युत प्रेस, आदि उपकरणों को एक साथ काम में लिया जाता है तो तार गर्म होकर नगन अवस्था में आ जाता है तथा विद्युन्मय तार उदासीन तार आपस में सम्पर्क में आ जाते है जिससे धारा एकदम अधिक मात्रा में प्रवाहित होने लगती हैं इसे लघु पथन या शार्ट स्क्रीट कहते है।

नोट:- सामन्य घरेलू परिपथ समान्तर क्रम में जोड़ा जाता है। 

विद्युत फ्युज

घरो में अतिभारण के समय परिपथों में अत्यधिक विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती हैं जिससे उपकरणों के खराब होने का डर होता है। इसी से बचने के लिए फ्यूज तार लगाया जाता है जो अतिभारण के समय पिघलकर टूट जाता है जिससे परिपथ टुट जाता है और उपकरणों को किसी प्रकार की हानि या नुकसान नहीं होता है।

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