Class 10 Science Chapter 5 Notes in Hindi तत्वों का आवर्त वर्गीकरण

यहाँ हमने Class 10 Science Chapter 5 Notes in Hindi दिये है। Class 10 Science Chapter 5 Notes in Hindi आपको अध्याय को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेंगे और आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे।

Class 10 Science Chapter 5 Notes in Hindi

अव्यवस्थित को व्यवस्थित करना:- हमारे आस-पास पदार्थ तत्व, मिश्रण एंव यौगिक के रूप में उपस्थित होते है। आज तक 114 तत्वों का पता चल पाया है। तत्वों के गुणधर्मो के आधार पर उन्हें व्यवस्थित करना बड़ा ही कठिन कार्य रहा है। सर्वप्रथम लेवोसिये ने तत्वों को धातु व अधातुओं में वगीकृत किया |

डॉबेराइन का त्रिक नियम:- सन् 1817 में जर्मन रसायनज्ञ, वुल्फगांग डॉबेराइन ने समान गुणधर्मों वाले तत्वों को समूहों में व्यवस्थित करने का प्रयास किया। उन्होंने कुछ समूहों को तीन-तीन तत्वों के रूप में चुना तथा उन्हें त्रिक कहा।

इस नियम के अनुसार:- मध्य तत्व का परमाणु द्रव्यमान शेष दो तत्वों के द्रव्यमान के औसत मान के बराबर होता है।

डॉबेराइन उस समय तक ज्ञात तत्वों में केवल तीन त्रिक ही ज्ञात कर सके। इस कारण उनकी त्रिक पद्धति असफल रही।

LiCaCl
NaSrBr
KBaI

महत्वपूर्ण तथ्य :- ‘जोहान्न वुल्फगांग डॉबेराइन’ ने ही सबसे पहले प्लेटिनम को उत्प्रेरक के रूप में पहचाना।

न्यूलैंड्स का आस्टक सिद्धान्त:- जॉन एलेक्जेंडर न्यूलैंड ने सन् 1865 में अष्टक नियम दिया। उन्होंने तत्वों को उनके बढ़ते हुए परमाणु भार के क्रम में व्यवस्थित किया तथा पाया कि आठवें तत्व के गुण पहले तत्व के समान थे। जैसे कि संगीत में- सा, रे, गा, मा, प, ध, नि, सा सात स्वरों बाद आँठवा स्वर पहले स्वर जैसा ही आता है ।

न्यूलैंड्स के अष्टक नियम के दोष :

  • इसमें यह पाया गया कि यह सिद्धान्त केवल कैल्सियम तक ही लागू होता था क्योकीं इसके पश्चात् प्रत्येक आठवें तत्व का गुणधर्म पहले तत्व से नहीं मिलता था ।
  • यह सिद्धान्त केवल हल्के तत्वों पर ही ठीक तरह से लागू हो सका था।
  • इस सिद्धान्त के अनुसार प्रकृति में कुल 56 तत्व होते है एवं भविष्य में कोई भी नया तत्व नहीं मिलेगा परन्तु जब नये तत्वों की खोज हुई तो उनके गुण अष्टक नियमानुसार नहीं थे।

मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी:- तत्वों के वर्गीकरण का मुख्य श्रेय “डमित्री इवानोविच मेन्डेलीफ” को जाता है। उन्होनें अपनी सारणी में तत्वों को उनके मूल गुणधर्म, परमाणु द्रव्यमान तथा रासायनिक गुणधर्मो में समानता के आधार पर व्यवस्थित किया।

“तत्वों के गुणधर्म उनके परमाणु द्रव्यमान के आवर्तीफलन होते है। “

मेन्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी:- इस सारणी के दो मुख्य भाग है।

  • आवर्त (क्षैतिज पंक्तियाँ)
  • वर्ग (उर्ध्वाधर स्तम्भ )

(i) आवर्त:- मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी में सात क्षैतिज पंक्तियाँ उपस्थित है। इन्हें आवर्त कहते है।

  • पहली पंक्ति या आवर्त में केवल दो तत्त्व हाइड्रोजन और हीलियम है। इसे लघुत्तम आवर्त कहते है ।
  • दूसरे व तीसरे आवर्त में आठ-आठ तत्त्व होते है और प्रत्येक को “लघु आवर्त” कहते है।
  • चौथे व पांचवे आवर्त में 18-18 तत्व होते हैं और प्रत्येक को “दीर्घ आवर्त” कहते है।
  • छठें आवर्त में 32 तत्व होते है। इसे “दीर्घतम आवर्त” कहते है।
  • सातवा आवर्त अपूर्ण है। इसमें कुल “19 तत्त्व ” आते है।

नोट:- दूसरे आवर्त के तत्व “लीथियम से फ्लुओरिन” तक तीसरे आवर्त के तत्त्व “सोडियम से क्लोरिन ” तक के तत्व “प्रतिनिधि ” अथवा “प्रारूपी तत्व ” कहलाते है ।

(ii) वर्ग:- मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी में नौ वर्ग है। इन्हें क्रमश: रोमन संख्या I, II, II, IV,V, VI, VII, VIII एंव शून्य द्वारा दर्शाते है। I से VII तक के प्रत्येक वर्ग को दो उपवर्गो A व B में विभाजित किया गया है। वर्ग VIII में कुल नौ तत्व तीन-तीन के समूह में है। शून्य वर्ग में “अक्रिय गैसो” को रखा गया था।

मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी की उपयोगिता :

(i) तत्वों का व्यवस्थित अध्ययन:- मेन्डेलीफ ने प्रथम बार तत्वों को आवर्तो एवं वर्गो में व्यवस्थित किया। इन्होंने तत्वों को इस प्रकार व्यवस्थित किया कि किसी विशेष वर्ग में एक समान गुणधर्म वाले तत्व ही व्यवस्थित हुए।

(ii)तत्त्वों के गुणों का अध्ययन:- मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी में किसी तत्त्व विशेष का अध्ययन करने से ही उस समूह के अन्य सभी तत्वों का अध्ययन हो जाता है।

(iii) नये तत्वों की खोज:- मेन्डेलीफ ने अपनी आवर्त सारणी में अज्ञात तत्त्वों के लिए रिक्त स्थान छोड़ दिए तथा उनके गुणों की भी भविष्यवाणी की जो कि बाद में सत्य सिद्ध हुई।

(iv) सन्देहपूर्ण परमाणु द्रव्यमानों का सुधार:- आवर्त सारणी में किसी भी तत्व कि स्थिति से उसकी संयोजकता ज्ञात कि जा सकती है और उसका तुल्यांकी भार ज्ञात होने से परमाणु भार भी ज्ञात किया जा सकता है।

मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी की सीमायें:- मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी बहुत से तत्वों को वर्गो व आवर्तो में वर्गीकृत करने में सहायक है लेकिन फिर भी इसमें कई कमियाँ है।

(i) हाइड्रोजन का स्थान:- आवर्त सारणी में हाइड्रोजन का स्थान निश्चिन नहीं है। इसे वर्ग I-A में क्षार धातुओं के साथ रखा गया है । जबकि यह वर्ग VIIA में उपस्थित हैलोजनों के साथ भी समानता दर्शाता है।

(ii) दुर्लभ मृदा तथा ट्रान्स- यूरेनिक तत्वों का स्थान:- दुर्लभ मृदा तत्वों के रासायनिक गुणों में समानताएँ है परन्तु इनके परमाणु भार भिन्न है फिर भी इन 14-14 तत्त्वों को तीसरे उपसमूह B ( छठे आवर्त) में एक साथ रखा गया है जो उचित नहीं है।

(iii) अक्रिय गैसों का स्थान:- अक्रिय गैसों का उचित स्थान मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी में नहीं था।

(iv) समस्थानिकों का स्थान:- समस्थानिकों तथा समभारिकों की खोज से यह स्पष्ट हो गया कि तत्वों का मूल लक्षण उनका परमाणु भार नहीं होता है। समस्थानिकों के परमाणु भार भिन्न होते है और समभारिकों के परमाणु भार समान होते है। अतः मेण्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी में समस्थानिकों का स्थान निश्चित नहीं है।

आधुनिक आवर्त सारणी:- सन् 1913 में हेनरी मोजले ने बताया कि के परमाणु द्रव्यमान की अपेक्षा उसकी परमाणु संख्या ज्यादा महत्वपूर्ण है।

” तत्वों के भौतिक और रासायनिक गुणधर्म उनकी परमाणु संख्या के आवर्तीफलन होते है। “

आधुनिक आवर्त सारणी में 18 वर्ग और 7 आवर्त होते है।

आधुनिक आवर्त सारणी के लाभ :

  • प्रत्येक वर्ग में केवल एक वर्ग ही होता है। वहाँ उपवर्गों को कोई स्थान नहीं दिया।
  • तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास को आसानी से समझा जा सकता है।
  • S,P,d और f- ब्लॉक में तत्त्वों का विभाजन उनके गुणों को समझने में सहायक होता है।
  • किसी भी तत्व के सभी समस्थानिकों के लिए एक स्थान निश्चित किया गया क्योंकी समस्थानिकों का परमाणु क्रमांक समान होता है ।

आधुनिक आवर्त सारणी की कमियाँ:

  • हाइड्रोजन की स्थिति मेन्डेलीफ की सारणी के समान ही है। इसे क्षार धातुओं के साथ रखा गया है। परन्तु इसके कुछ गुण हैलोजन के समान भी है।
  • लैन्थेनॉइड व एक्टिनॉइड को आवर्त सारणी के मुख्य दांचे में रखा जाना चाहिए था। लेकिन इन्हें आवर्त सारणी के तल में पृथक रूप से रखा गया है।

आधुनिक आवर्त सारणी की प्रवृत्ति :

(i) संयोजकत्ता:– किसी तत्त्व की संयोजन की क्षमता उसके परमाणु के बाह्यतम ऊर्जा कोश में उपस्थित इलेक्ट्रोन की संख्या से सम्बन्धित होती है। इसे संयोजकता कहते है । आवर्त सारणी में बाएँ से दाएँ जाने पर संयोजकता 1 से 4 तक बढ़ती है। फिर 1 तक घटकर उत्कृष्ट गैस की स्थिति में शून्य हो जाती है।

(ii) परमाणु आकार:- परमाणु के आकार से परमाणु की त्रिज्या का पता चलता है। नाभिक के केन्द्र से इलेक्ट्रॉन युक्त बाह्यतम कोश की दूरी “परमाणु त्रिज्या ” कहलाती है।

  • आवर्त में परिवर्तन:- आवर्त में बाएं से दाँए जाने पर परमाण्विक त्रिज्या के मान में कमी आती है।
  • वर्ग में परिवर्तन:- आवर्त सारणी में वर्ग में नीचे जाने पर तत्वों की परमाण्विक त्रिज्या का मान बढ़ता जाता है।

(iii). धात्विक एंव अधात्विक गुण:- किसी समूह में ऊपर से नीचे आने पर धात्विक गुण बढ़ता है क्योंकी ऊपर से नीचे आने पर परमाण्विक आकार बढ़ता जाता है।

आवर्त में बाएँ से दाँए जाने पर जैसे-जैसे संयोजकता कोश के इलेक्ट्रोनों पर क्रिया करने वाला प्रभावी नाभिकीय आवेश बढ़ता है। इलेक्ट्रोन त्यागने की प्रवृत्ति घट जाती है |

नोट: आधुनिक आवर्त सारणी में एक टेडी- मेडी रेखा धातुओं को अधातुओं से अलग करती है। इस रेखा पर आने वाले तत्त्व बोरॉन, सिलिकॉन, जर्मेनियम, आर्सेनिक, टेलुरियम, पोलोनियम धातुओं एंव अधातुओं दोनों के गुणधर्मो को प्रदर्शीत करते हैं। इस कारण इन्हें ” अर्धधातु ” या “उपधातु” कहते है।

Chapter 1: रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण
Chapter 2: अम्ल, क्षारक एवं लवण
Chapter 3: धातु एवं अधातु
Chapter 4: कार्बन एवं उसके यौगिक

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