Delhi Sultanate in Hindi । दिल्ली सल्तनत नोट्स

 यहाँ हमने दिल्ली सल्तनत नोट्स (Delhi Sultanate in Hindi) हिन्दी मे दिये है। दिल्ली सल्तनत नोट्स (Delhi Sultanate in Hindi) आपको अध्याय को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेंगे और आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे।

Delhi Sultanate in Hindi । दिल्ली सल्तनत नोट्स

  • उत्तरी भारत के अंतिम तर्क विजेता मुहम्मद गोरी का कोई संतान नहीं थी परंतु एक शासक होने के नाते वह अपने साथ बहुत सारे दास लेकर आया था जिन्हें ही अपने अधिकारी के रूप में नियुक्त करता था।
  • 1206 ई. में अपने वतन लौटने के क्रम में मोहम्मद गोरी पंजाब के निकट खोखर जनजाति और लोगो द्वारा मारा गया।
  • मोहम्मद गोरी की मृत्यु के बाद भारत में उसके दो प्रतिनिधि मौजूद थे कुतुबुद्दीन ऐबक और बख्तियार खिलजी।
  • बख्तियार खिलजी को पूर्वी भारत का हिस्सा सौपा गया था और लोहौर सहित अन्य क्षेत्र को कुतुबुद्दीन ऐबक को सौपा गया।
  • लाहौर के स्थानीय जनता के अनुरोध पर कुतुबुद्दीन ऐबक ने लाहौर का सत्ता ग्रहण किया।
  • 1206 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली सल्तनत की स्थापना की जिसका कार्यकाल लगभग 320 वर्षो का रहा।
  • दिल्ली सल्तनत के पांच राजवंश निम्न थे –
    • गुलाम वंश (1206- 1290)
    • खिलजी वंश (1290-1320)
    • तुगलक वंश (1320- 1414)
    • सैय्यद वंश ( 1414-1451)
    • लोदी वंश  (1452-1526)
  •  1206  ई. से 1290 ई तक का काल गुलाम वंश के शासकों के  नाम रहा ।
  • कुतुबुद्दीन ऐबक कुतूबी राजवंश, इल्तुतमिश ने शम्भी राजवंश तथा बलबन ने बलबनी राजवंश की । इन्हें दिल्ली के आरंभिक तर्क शासक भी कहा जाता है।
  • इनमे से प्रत्येक स्वतंत्र माता पिता के संतान थे इसलिए इन सुलतानों को गुलाम वंश के सुल्तान/ आदि सुल्तान/ मामलुक  सुल्तान भी कहा जाता है।

गुलाम वंश

कुतुबुद्दीन ऐबक (1206– 1210)

  • 1206 ई में गुलाम वंश की स्थापना मो. गोरी के गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ने की थी। इसे भारत में तुर्क राज्य का संस्थापक माना जाता है, इसे दिल्ली का प्रथम तुर्क शासक भी कहा जाता है।
  • मो गोरी ने कुतुबुद्दीन ऐबक को मध्य एशिया के बाजार से खरीदा था।
  • कुतुबुद्दीन ऐबक को बचपन से ही कुरान के सारी आयते याद थी जिसके कारण मो. गोरी ने कुरान खान की उपाधि दी थी।
  • उसे दासता से मुक्ति 1208 ई. में मिली जब गोरी के उत्तराधिकारी गियासुद्दीन ने उसे सुल्तान स्वीकार किया।
  • कुतुबुद्दीन ऐबक को लाख बक्स की उपाधि मिली थी। जिसका अर्थ होता है लाखों का दान देने वाला इसे हातिम द्वितीय की भी उपाधि मिली थी।
  • ऐबक 1206 से 1210 तक लाहौर में ही शासन संचालन करता रहा। लाहौर ही इसकी राजधानी थी।
  • हसन निजामी और फक्र-ए-मुदब्दिर को ऐबक का संरक्षण प्राप्त था।
  • उसने प्रसिद्ध सूफी सन्त “ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी” ने नाम पर दिल्ली में कुतुबमीनार की नीव रखी जिसे इल्तुतमिश ने पूरा किया।
  • 1210 ई. में चौगान खेलते समय घोड़े से अचानक गिर जाने के कारण उसकी मृत्यु हो गयी।
  • कुतुबुद्दीन का उत्तराधिकारी उसका अनुभवहीन पुत्र आरामशाह था। ये बहुत अधिक अय्यास था। जिसके कारण इस्लतुत्मिश ने इसे अपदस्थ कर के सिंहासन पर अधिकार कर लिया।
  • ऐबक ने साम्राज्य विस्तार से अधिक ध्यान राज्य के सुदृढ़ीकरण पर दिया था।

इल्तुतमिश (1210-1236 ई.)

  • मो. गोरी ने 1206 को में खोखरों के विद्रोह के समय इल्तुतमिश को असाधारण योग्यता के कारण उसे दासता से मुक्त कर दिया था।
  • इल्तुतमिश के शासन का मुख्य आधार विदेशी मुसलमान थे।
  • इल्तुतमिश ने सुल्तान के पद को वंशानुगत बना दिया था।
  • 1229 ई. में उसे बगदाद के अब्बासि खलीफा से मान्यता का अधिकार पत्र प्राप्त हुआ, जिससे सुल्तान के रूप में उसकी स्वतंत्र स्थिति एवं दिल्ली सल्तनत को औपचारिक मान्यता प्राप्त हुई।
  • इल्तुतमिश में समय में ही अवध में पीर्थु का विद्रोह हुआ था। इस विद्रोही सरदारों को परास्त कर इल्तुतमिश ने अपने वफादार गुलामों की एक टुकड़ रखी इसे “तुर्कान-ए-चाहलगनी” या चालीसा कहा जाता है।
  • 1221ई. में दिल्ली सल्तनत पर चंगेज खान ने भारत पर आक्रमण किया था चंगेज खान “जलालुद्दीन मंगबर्नी का पीछा करता हुआ सिंध तक पहुंच गया था। जलालुद्दीन ने इल्तुतमिश से शरण मांगी पर इल्तुतमिश ने इसे शरण नहीं दी जिसके कारण दिल्ली सल्तनत चंगेज खान के आक्रमण से बच गया।
  • 1230-31 ई. में इल्तुतमिश ने बंगाल पर पूर्ण रूप से अधिकार कर लिया।
  • सिक्कों पर इल्तुतमिश  ने अपना उल्लेख खलीफा के प्रतिनिधि के रूप में कराया। इसने सिक्कों पर टकसाल का नाम लिखवाने की परम्परा शुरू की।
  • ग्वालियर पर विजय के बाद इल्तुतमिश ने सिक्कों पर अपनी पुत्री रजिया का नाम छपवाया था।
  • इल्तुतमिश ने इक्ता प्रणाली की शुरुआत की थी जिसके तहत कर्मचारियों को वेतन के बदले भूमि देने का प्रावधान किया गया था। इकता प्राप्त करने वाले कर्मचारियों को इक्तादार कहा जाता था।
  • ये पहला तुर्क शासक था जिसने शुद्ध अरबी सिक्के चलवाये थे इसने दो प्रकार के सिक्के चलवाये 1.चांदी का टंका 2. ताँबे का जीतल
  • डॉ के.ए. निजामी के अनुसार कुतुबुद्दीन ने दिल्ली सल्तनत की रूपरेखा के बारे में सिर्फ दिमागी खाका बनाया था. इल्तुतमिश ने उसे एक व्यक्तित्व, एक पद, एक प्रेरणा शक्ति, एक दिशा, एक शासन व्यवस्था और एक शासक वर्ग प्रदान किया।
  • इल्तुतमिश ने उत्तराधिकारी के रूप में ज्येष्ठ पुत्र का चयन करने की प्रथा को तोड़ दिया और अपनी

पुत्री रजिया को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।

  • इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद तुर्की अमीरों ने उसके पुत्र स्कुनुद्दीन को गद्दी पर बैठाया था।
  • स्कुनुद्दीन के समय सत्ता का वास्तविक बागडोर उसकी माता “शाहतुकोन” के हाथों में थी जो अत्यंत ही महत्वाकांक्षी और निर्दयी महिला थी जिसके कारण ही रजिया लाल वस्त्र धारण कर जुम्मे के नमाज के बाद दिल्ली की जनता के समक्ष उपस्थित होकर कहा कि आप मुझे एक मौका दे यदि मैं आपके उम्मीदों पर खरा नहीं उतरूंगी तो आप मुझे स्वयं सता से हटा देना रजिया के इस अपील पर ही जनता द्वारा राजिया को सत्ता पर बैठाया गया |

रजिया (1236-1340)

  • इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद तीस वर्षों का इतिहास सुल्तानों और अमीरों के बीच सत्ता के लिए संघर्ष चलता रहा।
  • रजिया के मामले में पहली बार दिल्ली की जनता ने उत्तराधिकार के प्रश्न पर स्वयं निर्णय लिया।
  • रजिया के राज्यारोहण में दिल्ली की सेना, जनता और अधिकारियों का सहयोग था।
  • रजिया ने पर्दा प्रथा त्याग दिया और पुरुषों के समान कुबा(कोट) और कुलह (टोपी) पहनकर दरबार में बैठती थी तथा शासन का कार्य वह स्वयं सम्भालती थी।
  • इसने दरबारी गुट चालीसा गुट, अमीर एवं उलेमा वर्ग, दरबार के मंत्री, पर नियंत्रण स्थापित की।

●एक अबिसिनियायी हब्सी “जलालुद्दीन याकूच” को अमीर आखुर (अश्वशाला) का प्रमुख बनाया। जिससे वह प्रेम करती थी।

  • 1240 में भटिंडा के सरदार अल्तुनिया ने रजिया के विरुद्ध विद्रोह कर दिया और रजिया के भाई “बहरामशाह” को दिल्ली की गद्दी पर बैठाया चुकी रजिया एक कुशल कूटनीतिज्ञ थी इसलिए उसने अल्तुनिया के विद्रोह को शांत करने के लिए उससे विवाह कर लिया और दिल्ली की और बढ़े परंतु रजिया अपने भाई बहरामशाह से पराजित हुई और 13 अक्टूबर 1240 को उसकी हत्या कर दी गयी।
  • रजिया के असफलता का मुख्य कारण तुर्की गुलाम सरदारों की महत्वाकांक्षा थी और उसका खुद होना था।

इतिहासकार एल्फिस्टन के अनुसार “यदि रजिया स्त्री न होती तो उसका नाम भी भारत के महान मुस्लिम शासकों में लिखा जाता”

मुईजुद्दीन बहराम शाह (1240—1242)—

  • इसके शासन काल में अपनी सत्ता को सुरक्षित करने के लिए तुर्क अधिकारियों ने एक नये पद का सृजन किया जिसका नाम “नायब-ए-मुमलकत” था। यह संपूर्ण अधिकारियों का स्वामी होता था।
  • सर्वप्रथम यह पद रजिया के विरुद्ध षड्यंत्र करने वाले एक नेता “एतगिन” को मिला था।
  • इसके शासन काल में ही 1241 में भारत पर मंगोलों का आक्रमण हुआ था।

अलाउद्दीन मसुदशाह (1242-1246)—

  • इसके शासन काल में समस्त शक्ति चालीसा सदस्यों के पास चली गयी थी। सुलतान नाम मात्र का हो चुका था।
  • बलबन इसके शासन काल में ही आमीर-ए-हाजिब” के पद पर नियुक्त हुआ और धीरे धीरे अपनी शक्ति बढ़ाने लगा।

नासिरुद्दीन महमूद (1246-1265)

  • यह बलबन का दामाद था और मधुर एवं धार्मिक स्वभाव का व्यक्ति था तथा खाली समय में कुरान की नकल करना उसकी आदत थी।
  •  ये सिर्फ नाम का शासक था और संपूर्ण शक्ति बलवन के हाथों में थी।
  • 1249 में नासिरुद्दीन ने बलबन को “उगल खाँ” की उपाधि दी तथा सेना का पूर्ण नियंत्रण के साथ “नायब-ए-ममूलकत”का पद दिया।
  • इसके शासन काल में मुस्लिमों का एक अलग गुट बन गया था जो बलबन का विरोधी था। जिसका नेता “इमादुद्दीन रिहान” था।
  • यह दिल्ली सल्तनत का एक मात्र शासक था जो टोपी सिलकर अपना गुजारा करता था।
  • 1265 इसकी मृत्यु के बाद बलबन ने खुद को सुलतान घोषित कर दिया और उसका उत्तराधिकारी बना।

बलवन (1265—1287)

  • मिन्हाजुद्दीन सिराज उसके शासनकाल में मुख्य काजी था जिसने “तबकात-ए-नासिरी” नामक पुस्तक लिखी थी जो नासिरुद्दीन को ही समर्पित था।
  • बलबन ने 20 वर्षों तक वजीर की हैसियत से तथा 20 वर्षों तक सुल्तान के रूप में शासन किया।
  • बलबन ने सुल्तान की प्रतिष्ठा को स्थापित करने के लिए “रक्त एवं लौह” की नीति अपनाई थी।
  • इसके शासन सिद्धान्त में दो बातें मुख्य थी।
  • .सुल्तान का पद ईश्वर के द्वारा प्रदान किया हुआ होता है।
  • . सुल्तान का निरंकुश होना आवश्यक है।
  • उसके अनुसार “सुल्तान पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि है और उसका स्थान केवल पैगम्बर के पश्चात यह स्वयं को “नियाबते खुदाई (ईश्वर का प्रतिनिधि) “ एवं “जिल्लेलाही  (ईश्वर की छाया)” कहता था।
  • बलबन खुद को गुलाम वंश का नहीं बल्कि “अफरासियाब वंश” का मानता था और इसने बल्बनी राजवंश की स्थापना की थी।
  • इसने अपने शासन व्यवस्था को ईरानी परम्परा के मुताबिक सुसज्जित किया था।
  • बलबन ने उस सभी जागीरों की जांच कराई जो विभिन्न व्यक्तियों को सैनिक सेवा के बदले शासको द्वारा दी गयी थी।
  •  जागीरों से आय एकत्र करने का अधिकार सरकारी अधिकारियों को दिया गया और जागीरदारों से आय धन के रूप में लेने की व्यवस्था की गयी थी परंतु सैनिकों को वेतन के जगह जमीन देने की प्रथा चालु ही रही।
  •  इसने “नायब” के पद को समाप्त कर दिया।
  • बलबन ने वैसे सैनिकों को पेंशन देकर सेवा मुक्त कर दिया जो अब कार्य नहीं कर पा रहे थे।
  • बलबन ने “चालीसा दल का भी दमन कर दिया।
  • बलबन के शासन का मुख्य आधार उसका गुप्तचर विभाग था। इसने सैन्य विभाग “दीवाने- अर्ज” की स्थापना की जिसका प्रमुख आरिज-ए-मामलिक” होता था।
  • बलबन ने “सिजदा (घुटनों के बल झुकना) और पाबोसा (सुल्तान के पैरों को चूमना) की प्रथा फिर से शुरू करवाई जो मुख्यतः ईरानी प्रथा थी जो गैर-मुस्लिम प्रथा थी। इसने ईरानी या पारसी पर्व नौरोज प्रथा की शुरुआत की थी।
  • बलबन अपनी उत्तर-पश्चिम सीमाओं पर मंगोलों के आक्रमण से बचने के लिए एक दुर्ग श्रृंखला का निर्माण करवाया था जिसका अधिकारी अपने पुत्र शहजादा मुह्हमद को बनाया था परन्तु मंगोलों के आक्रमण का सामना करते हुए वह मारा गया।
  • विख्यात कवि अमीर खुसरो तथा अमीर हसन इसी के काल में हुए थे।
  • बलबन की मृत्यु के बाद उसका पोता कैकुबाद उसका उत्तराधिकारी बना जो अत्यंत ही विलासी था। जिसके कारण सम्पूर्ण प्रशासन अराजकता से ग्रस्त हो गया और राजदरबार अमीरों की उच्च आकांक्षाओं एवं संघर्षो का केंद्र बन गया।
  • अमीरों के एक नेता “मलिक फिरोज जलालुद्दीन” ने कैकुबाद की हत्या करके राजगद्दी पर स्वयं अधिकार कर लिया और एक नए वंश “खिलजी वंश की रखी। इस प्रकार दिल्ली सल्तनत में गुलाम वंश का अंत हो गया।
  • बलबन ने एक प्रशिद्ध कथन कहा था- “जब मैं निम्न कुल के व्यक्ति को देखता हूँ तो मुझे अत्यधिक क्रोध आता है और मेरी भुजाएं तलवार लिए विवश हो जाती है।“

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