Guptotar Kal (Purv Madhyakal) in Hindi । गुप्तोत्तर काल (पूर्व मध्य काल) नोट्स

यहाँ हमने गुप्तोत्तर काल (पूर्व मध्य काल) नोट्स हिन्दी मे दिये है। गुप्तोत्तर काल (पूर्व मध्य काल) नोट्स Guptotar Kal (Purv Madhyakal) in Hindi आपको अध्याय को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेंगे और आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे।

Guptotar Kaal (Purv Madhyakal) in Hindi । गुप्तोत्तर काल (पूर्व मध्य काल) नोट्स

हर्षवर्धन

  • इसे प्राचीन भारतीय इतिहास का अंतिम हिन्दू सम्राट कहा जाता है, इसने पिता का नाम भारवर्धन था।
  • यह “पुष्यभूमि” वंश का था।
  • हर्षवर्धन के पूर्व वर्धन वंश की राजधानी थानेश्वर” (हरियाणा) थी परन्तु हर्षवर्धन ने अपनी राजधानी “कन्नौज (उत्तरप्रदेश) को बनाई।
  • हर्षवर्धन ने 614ई. में अपने एक दूत को चीन भेजा था।
  • हर्षवर्धन “महायान बौद्ध धर्म” का संरक्षक था। इसने कश्मीर के शासक से बुद्ध के “दंत-अवशेष बलपूर्वक वापस ले लिया था।
  • इसके शासनकाल में उच्च अधिकारियों को वेतन के रूप में भूमि दी जाती थी। इस प्रथा की शुरुआत हर्ष ने ही की थी।
  • हर्ष के शासनकाल में ही चीनी यात्री ह्वेनसांग” भारत आया था ये 629 से 645 ई. तक भारत में रहा था।
  • “हवेनसांग” नालन्दा विश्वविद्यालय मके अध्ययन किया और पानी यात्रा विवरण “सी-यू-की” के नाम से लिखा
  • “हवेनसांग” के प्रभाव में आकर ही हर्षवर्धन ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया था।
  • वाणभट्ट न हर्षचरित” एवं “कादम्बरी की रचना की थी।
  • हर्षवर्धन इतिहास में एक “साहित्यकार सम्राट” के रूप में भी जाना जाता है। इसने प्रियदर्शिका, नागानंद, एवं रत्नावली जैसे प्रसिद्ध ग्रंथों की रचना की थी।
  • हर्षवर्द्धन दक्षिण भारत में अपने साम्राज्य का विस्तार नहीं कर पाया। दक्षिण भारत में चालुक्य वंश का था जिसके नरेश “पुलकेशौन-11” ने नर्मदा नदी के तट पर हर्षवर्धन को हराया था।
  • हर्षवर्धन के शासनकाल के अधिकारी:-
    • अवन्ति – युद्ध और शांति का अधिकारी
    • सिंघनाद:- सेनापति
    • कुतल- अश्व सेना का प्रधान
    • स्कन्दगुप्त – हस्त सेना का प्रधान
    • सामन्त, महाराज – नागरिक प्रशासन का प्रमुख
  • हर्षवर्धन सूर्य, शिव एवं बुध्द का उपासक था।
  • हर्षवर्धन का दूसरा नाम “शिलादित्य” था।
  • ये प्रत्येक पांच वर्षों में प्रयाग/ इलाहाबाद के संगम पर एक समारोह आयोजित कर अपनी सम्पति दान में देता था।
  • हर्षवर्द्धन ने कन्नौज मै बौद्ध धर्म की एक विशाल बैठक बुलाई थी जिसे “महामोक्ष” परिषद कहते हैं।

कन्नौज के लिये त्रिकोणात्मक या विपक्षीय संघर्ष

  • हर्षवर्धन के पश्चात कन्नौज” विभिन्न शक्तियों के आकर्षण का केंद्र बन गया। ऊत्तरी भारत का चक्रवर्ती शासक बनने के लिए कन्नौज पर अधिकार करना आवश्यक समझा जाने लगा।
  • 8वीं शताब्दी में कन्नौज पर अधिकार करने के लिए तीन बड़ी  शक्तियों पाल वंश ,प्रतिहार वंश, राष्ट्रकूट वंश के बीच संघर्ष शुरू हुआ।
  • उस समय कन्नौज पर शक्तिहीन “आयुध” शासको का शासन था। इस समय कन्नौज एवं इसके आस-पास के क्षेत्र को “मध्यप्रदेश” कहा जाता था।
  • 8वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में शुरू होने वाला यह युद्ध लगभग 200 वर्षों तक चला।
  • इस विपक्षीय संघर्ष का प्रारम्भ प्रतिहार नरेश “वत्सराज” न किया।
  • कन्नौज को ही संघर्ष के लिए चुना गया इसके निम्न कारण थे-
    • कन्नौज गंगा-यमुना दोआब क्षेत्र में स्थित था जिसके कारण इसकी मिट्टी अत्यंत उपजाऊ थी।
    • कन्नौज की गिनती भारत के समृद्धशाली शहरों में होती थी।यह उत्तर भारत और दक्षिण भारत के बीच सेतु का कार्य करता था।
    • कन्नौज एक व्यापारिक शहर था।

कला एवं संस्कृति :-

  • धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से गुप्तोत्तर काल में क्षेत्रीय सांस्कृतिक इकाइयों का उदय मुख्य घटना मानी जाती है।
  • प्रत्तिहार नरेश मिहिर भोज” ने “आदि वराह” की उपाधि धारण की थी।
  • गुप्तोत्तर काल में वैष्णव धर्म भारत में प्रसिद्ध था। किन्तु इसका गढ़ दक्षिण भारत में तमिल प्रदेश था। जहां वैष्णव धर्म के प्रवर्तक “अलवार संत थे जिनकी संख्या 12 थी।
  • हिंदू धर्म में जितने भी धर्म थे उनमें सबसे अधिक प्रबल शैव धर्म था।“
  • पाल, सैन, और चंदेल राजाओं के अभिलेख “ॐ नमः शिवाय” की प्रार्थना से शुरू होते थे।
  • दक्षिण में शैव धर्म के अनुयायियों को “नयनार” कहा जाता था इनकी संख्या 63 थी।
  • इस युग के अंतिम चरण में लगभग (12वीं शताब्दी) में दक्षिण में “वीर शैव मत” आविर्भाव हुआ जिसके प्रवर्तक “वसवराज” थे।
  • इस मत के अनुयायी “लिंगायत” कहलाते थे।
  • शैव मत से सम्बन्धित ‘नाम्बी-आदार-नाम्बी को अपने विशाल संग्रह के कारण “तमिल का व्यास” कहा जाता है।
  • मन्दिरों के कर्मचारियों एवं देव-दासियों को जो भूमि वेतन के रूप में लेते थे उसे “वेली भूमि” कहा जाता था।
  • इस काल के वास्तुकला के रूप में मुख्य कृतियाँ “मंदिर” थी। ये तीन शैली में बनती थी :- 1. नागर शैली 2. द्रविड़ शैली 3.बेसर शैली
  • वैसे ब्राह्मण जो अपने मूल कर्म एवं जाति को छोड़कर क्षत्रियों के कार्यों को अपना लिया उसे “ब्राह्मण क्षत्रिय” कहा गया। वैसे ब्राहमण जो कृषि, पशुपालन तथा व्यापार करके जीविका चलाता था उसे “वैश्य ब्राह्मण” कहा गया।

गुप्तोत्तर काल में बनी मंन्दिरों के स्थापत्य शैली एवं निर्माणकर्ता:

मंदिरस्थापत्य शैलीनिर्माणकर्ता
लिंगराज मन्दिरनागर/ओडिसी शैलीजजती केशरी
जगन्नाथपुरी मंदिरनागर शैलीअनंतवर्मा
सूर्य मंदिर (कोणार्क)   नागर शैलीनरसिंह देव (गंगवंश)
खजुराहो का मंन्दिरनागर शैलीचन्देल शासक
जैन मंदिर (दिलवाड़ा)नागर शैलीराष्ट्रकूट वंश
कैलाश मंदिर (ऐलारा)बेसर शैलीराष्ट्रकूट वंश
दशावतार मंदिर (झांसी)बेसर शैलीगुप्तकाल

संगम युग नोट्स
विदेशी आक्रमण नोट्स
वैदिक काल नोट्स
मौर्य साम्राज्य नोट्स
गुप्त वंश नोट्स

Tagged with: Guptotar Kal in Hindi | Purv Madhyakal in Hindi | purv madhyakal ka samay | purv madhyakal ki visheshtaen | purv madhyakalin | purv madhyakalin bharat | गुप्तोत्तर काल नोट्स | पूर्व मध्य काल नोट्स

1 thought on “Guptotar Kal (Purv Madhyakal) in Hindi । गुप्तोत्तर काल (पूर्व मध्य काल) नोट्स”

Have any doubt

Your email address will not be published. Required fields are marked *