Class 10 Hindi Chapter 1 Sparsh Solution- साखी

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 1

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1. मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?

उत्तर- मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता प्राप्त होती है वह ऐसे जब हमारे मन में अहंकार होता है और हम दुसरो से ठीक तरीके से बात नहीं करते है तो हम उन्हें कष्ट पहुंचाते है। इससे केवल उनका ही नहीं बल्कि हमारा भी मन दुखी हो जाता है। परन्तु जब हम अहंकार को हटा कर मीठी वाणी का प्रयोग करते है तब हम सुनने वाले के साथ-साथ हमारा भी मन प्रसन्न करते है। ऐसा करने से हमे शांति का अनुभव होता है।

प्रश्न 2. दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- साखी के अनुसार अज्ञान अँधेरे के सामान है और इस अज्ञान को समाप्त करने हेतु हमे ज्ञान रूपी दीपक को जलना चाहिए।  यह ज्ञान रूपी दीपक की ज्योति से जो प्रकाश हमारे मन में पड़ेगा उससे सारा अन्धकार अथार्त अज्ञान मिट जाएगा।

प्रश्न 3. ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते ?

उत्तर – जिस प्रकार हिरन अपनी नाभि की कस्तूरी की खुशबु को जंगल में खोजता है ठीक उसी प्रकार मनुष्य ईश्वर को प्राप्त करने के लिए उन्हें मंदिर-मस्जिद, पूजा-पाठ , और तीर्थस्थानों में ढूंढ़ते हैं। जबकि ईश्वर तो स्वयं कण-कण में बसे हुए हैं, उन्हें कहीं ढूंढ़ने की आवश्यकता नहीं है और इसी कारणवश हम उन्हें देख नहीं पाते।

प्रश्न 4. संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- साखी के अनुसार संसार में वो व्यक्ति सुखी जो सांसारिक सुखो का लाभ लेते है और वो लोग दुखी है जो ईश्वर की प्राप्ति के लिए कार्य कर रहे है। कवी यहाँ स्वयं को भी दुखी बता रहे है क्योकि वे भी ईश्वर की भक्ति करना चाह रहे है। कवी के अनुसार जिस व्यक्ति ने स्वयं को संसार की सुख सुविधाओं में खो दिया है वह असल में सोये हुए है। और जो व्यक्ति ईश्वर की प्राप्ति के लिए कठिन मार्ग पर चल रहा है वह जगा हुआ है।

प्रश्न 5. अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?

उत्तर- अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने उपाय सुझाया है की निंदक को हमे हमारा हितेश समझकर अपने पास रखना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योकि निंदक हमे हमारी खामियों और गलतयों से सच्चा परिचय करवाते है।  उनके इस स्वाभाव से हम खुद की गलतियां सुधरने का प्रयास करने लगते है और अपना स्वाभाव निर्मल बना लेते है।

प्रश्न 6. ‘ऐकै अषिर पीव का, पढ़े सु पंडित होइ’–इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?

उत्तर- ‘ऐकै अषिर पीव का, पढ़े सु पंडित होइ’ पंक्ति के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है की बड़े-बड़े ग्रन्थ पड़ना तो एक ढोंग है , ईश्वर की प्राप्ति के लिए तो प्रेम से उनका स्मरण करना ही पर्याप्त है। उनके दर्शन के लिए केवल सांफ मन से उनकी आरधना करनी होगी और उसी से पंडित बना जा सकता है।

प्रश्न 7. कबीर की उद्धृत साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- कबीर की उद्धृत साखियों की भाषा की विशेषता निम्नलिखित है –

  • कबीर ने ब्रज, फ़ारसी, पंजाबी , अवधि , अरबी , राजस्थानी आदि भाषाओं के शब्दों का प्रयोग अपनी सांखियों में किया है।
  • कबीर अपनी साखियों को हर व्यक्ति तक पोहचना चाहते थे इसलिए उनकी भाषा जनसामन्य में बोले जाने वाली भाषा से मेल कहती है।
  • कबीर की भाषा में मुक्तक शैली का उपयोग मिलता है।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए

प्रश्न 1. बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ।

उत्तर- इस पंक्ति का भाव है की जिस व्यक्ति को ईश्वर से अत्यधिक प्रेम होता है अथार्त जो उनके वियोग में दुखी हो जाता है। ऐसा व्यक्ति ईश्वर के प्रेम के आभाव से ना टफ जीवित महसूस होता है और नहीं वह मर सकता है। उस पर मंत्र का प्रयोग करने पर भी कोई असर नहीं होता। वह पागल की भांति दिखाई पड़ता है।

प्रश्न 2. कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढे बन माँहि।

उत्तर- ‘कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढे बन माँहि’ पंक्ति में कहा गया है की हिरन अपनी खुशबु जो उसकी कस्तूरी में होती है उससे वो अनजान है।  उसे ऐसा लगता है की यह खुशबू जंगल से आ रही है और इससे ढूंढ़ने के लिए वो पुरे जंगल में घूमती रहती है। परन्तु खुशबू का जंगल में मिलना असंभव है। अथार्त ईश्वर भी हमारे भीतर समाये है परन्तु हम भी उन्हें संसार रूपी जंगल में ढूढ़ते रहते है।।

प्रश्न 3. जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।

उत्तर– इस पंक्ति का भाव है बोहोत ही सरल है। इसका का कहना है की अहंकार और ईश्वर कभी एक साथ नहीं रह सकते। जिस व्यक्ति को ईश्वर की प्राप्ति करनी है उसे अहंकार को त्यागना होगा और जिस व्यक्ति के मन में ईश्वर का वास है उसमे अहंकार आ ही नहीं सकता।

प्रश्न 4. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोई।

उत्तर- इस पंक्ति का भाव है की वह व्यक्ति कभी पंडित नहीं बन सकता जो ईश्वर को बड़े-बड़े ग्रन्थ पढ़कर प्राप्त करना चाह रहा है। उसका पूरा जीवन व्यतीत हो जाएगा परन्तु वह ईश्वर की प्राप्ति नहीं कर पाएगा।

भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप उदाहरण के अनुसार लिखिए-
उदाहरण- जिवै – जीना
औरन, माँहि, देख्या, भुवंगम, नेड़ा, आँगणि, साबण, मुवा, पीव, जालौं, तास।

उत्तर-

शब्दप्रचलित रूप
औरनऔरों को
साबणसाबुन
माँहि मेंके अंदर
मुवामर गया , मरा
देख्यादेखा
पीवप्रेम
भुवंगमसांप
जालौंजलना
नेड़ानिकट
आँगणिआँगन में
तासउस, उसका

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1. ‘साधु में निंदा सहन करने से विनयशीलता आती है तथा व्यक्ति को मीठी व कल्याणकारी वाणी बोलनी चाहिए’-इन विषयों पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।

उत्तर- कवी के दोहे के अनुसार साधू में निंदा सहन करने से विनयशीलता आती हैं। वास्तव में जब कोई व्यक्ति हमारी निंदा करता है , हमे हमारे दुर्गुणों का पता करवाता है तब वह हम में उससे ठीक करने का जोश भी भरता है। निंदा को हमे हमेशा नकारात्म रूप से नहीं सोचना चाहिए। क्योकि जो व्यक्ति हमे हमरी गलतिया बताते है वही हमे उसे सुधरने की प्रेरणा भी देते है।

प्रश्न 2. कस्तूरी के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।

उत्तर- कस्तूरी एक बोहोत ही सुगन्धित पधारत है।  इसके गुणों का वर्णन आयुर्वेद में भी है क्योकि इससे मनुष्य के शरीर की परेशानियों का हल निकला जा सकता है। यह हिमालय में रहने वाले हिरणो में पाई जाती है। नर हिरन की नाभि से कस्तूरी को निकला जा सकता है।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1. मीठी वाणी/बोली संबंधी व ईश्वर प्रेम संबंधी दोहों का संकलन कर चार्ट पर लिखकर भित्ति पत्रिका पर लगाइए।

उत्तर- मीठी वाणी/बोली संबंधी दोहे-

(क) बोली एक अमोल है जो कोई बोले जानि ।
हिए तराजू तौलि के तब मुँह बाहर आनि ।।

(ख) कागा काको सुख हरै, कोयल काको देय।
मीठे वचन सुनाय के, जग अपनो करि लेय ।।

(ग) मधुर वचन है औषधी कटुक वचन है तीर ।
स्रवण द्वार हवै संचरै सालै सकल शरीर ।।

ईश्वर प्रेम संबंधी दोहा-

(घ) रहिमन बहु भेषज करत, व्याधि न छाँड़त साथ । खग मृग बसत अरोग बन हरि अनाथ के नाथ ।।

अन्य दोहों का संकलन छात्र स्वयं करें।

अन्य पाठेतर हल प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. ऐसी बाँणी बोलिये’ के माध्यम से कबीर कैसी वाणी बोलने की सीख दे रहे हैं और क्यों?

उत्तर- “ऐसी बाँणी बोलिये” के माध्यम से कवी मीठी वाणी बोलने का सन्देश देना चाह रहे है। उनका मानना है की मीठी वाणी बोलने से सामने वाले को अच्छा महसूस होता है। वह हमारे मीठे वचन सुनकर प्रफुलित हो जाता है। साथ ही उसे खुश देख कर हम स्वयं भी सुख का अनुभव करते है। कवी यह सन्देश इसलिए देना चाह रहे है क्योकि वह हमारी वाणी में विनम्रता लाना चाहते है ताकि एक शान्ति और सुख का वातावरण बना रहे।

प्रश्न 2. मन में आपा कैसे उत्पन्न होता है? आपा खोने के लिए कबीर क्यों कह रहे हैं?

उत्तर- मनुष्य सांसारिक सुखो में उलझा हुआ है।  उसे संसार की सुख सुविधाओं में अपनी ख़ुशी मिलती है।  धन और बल रूपी सुख उनकी आँखों पर अभिमान की पट्टी लगा देती है। वे स्वयं को ही श्रेष्ठ मानाने लगते है। कबीर के अनुसार ऐसा होने पर मन में आपा उत्पन्न होता है।

प्रश्न 3. ‘ऐसैं घटि घटि राँम है’ के माध्यम से कबीर ने मनुष्य को किस सत्यता से परिचित किया है?

उत्तर- ‘ऐसैं घटि घटि राँम है’ के द्वारा कवी कबीर मनुष्य को  जिस अज्ञानता को दूर कर सत्य से परिचित करवा रहे है वह अज्ञानता ये है की मनुष्य ईश्वर को पाने के लिए उन्हें इधर-उधर खोज रहा है। वह इस बात से अनजान है की ईश्वर तो स्वयं उसमे ही समाये है। ईश्वर का अस्तित्व केवल मंदिर-मजीद  या तीर्थस्थल पर ही नहीं है उनका अस्तित्व हर कण में है जो धरती पर है।

प्रश्न 4. हर प्राणी में राम के बसने की तुलना किससे की गई है?

उत्तर- कवी कबीरदास जी ने हर प्राणी में राम के बसने की तुलना हिरन की कस्तूरी से करते से करते हुए कहा है की जिस प्रखर एक हिरण अपनी ही खुशबू से अनजान होता है वैसे ही इंसान भी प्रभु की उपस्थिति से अज्ञात है। हिरण कस्तूरी की महक को जंगल में ढूढ़ने का प्यास करता है तो मनुष्य ईश्वर को संसार में जबकि वे भी उनके भीतर ही है। इसलिए कवी हर प्राणी में राम के बसने की तुलना कस्तूरी से करते है।

प्रश्न 5. सब अँधियारा मिटि गया’ यहाँ किस अँधियारे की ओर संकेत किया गया है? यह अँधियारा कैसे दूर हुआ?

उत्तर- ‘सब अँधियारा मिटि गया’ पंक्ति में अज्ञान रूपी अंधियारे की ओर संकेत किया गया है। यहाँ मनुष्य अहंकार का शिकार हो जाता है और उसे अंधकार की भांति ही मन में फैलने देता है। इस अँधियारा को दूर करने के लिए मनुष्य को ईश्वर रूपी दीपक की ज्योति का अनुभव करना होगा क्योकि उसके प्रकाश से ही यह अंधकार दूर हो सकता है। कवी के अनुसार जिस प्रकार अंधकार और प्रकाश साथ नहीं रह सकते उसी प्रकार अहंकार और ईश्वर भी साथ नहीं रह सकते।

प्रश्न 6. कबीर की दृष्टि में संसार सुखी और वह स्वयं दुखी हैं, ऐसा क्यों?

उत्तर- कबीर की दृष्टि में संसार सुखी और वह स्वयं दुखी हैं। संसार सुखी इसलिए है क्योकि वह संसार की सुविधओं का लाभ लेते है और अपना जीवन सरल बना लेते है। वही दूसरी और कवी ईश्वर की भक्ति के मार्ग पर चलते है जो की कठिन है। जिसमे पीड़ा भी सहन करनी होती इसलिए वह दुखी है।

प्रश्न 7. राम वियोगी की दशा कैसी हो जाती है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- राम वियोगी की दशा पागल के सामान हो जाती है।  ईश्वर के प्रेम के आभाव से वह खुद को जीवित नहीं रख पता ना ही वह खुद मर सकता है। उस व्यक्ति की दशा ऐसी हो जाती है की उस पर किसी मंत्र का कोई असर नहीं होता।

प्रश्न 8. निंदक के बारे में कबीर की राय समाज से पूरी तरह भिन्न थी। स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- कवि कबीर निंदक को अपने निकट रखने की सलाह देते है। निंदक को हमे हमारा मित्र बनाकर सदैव अपने पास रखना चाहिए क्योकि वह हमारे सामने हमारे दुर्गुणों का गान करते रहते है। उनकी आलोचना का हम पर यह असर होता है की हम उन दुर्गुणों को दूर करने का प्रयास करते है। अगर हम निंदक को अपने करीब रखते है तो हम धीरे-धीरे विनम्र बनते जाते है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. कबीर की साखियाँ जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। इनमें जिन जीवन-मूल्यों की झलक मिलती है, उनका उल्लेख कीजिए।

उत्तर:- कबीर की साखियाँ से निम्नलिखित सिख मिलती है –

  • हमेशा मीठी वाणी का प्रयोग करना चाहिए।
  • अहंकार को मन में घर नहीं करने देना चाहिए और उससे जल्द ही छुटकारा पा लेना चाहिए।
  • निंदक को दोस्त के समान हमेशा साथ रखना चाहिए।
  • ईश्वर को संसार में नहीं बल्कि स्वयं में ढूंढ़ना चाहिए।
  • अहंकार और ईश्वर कभी साथ नहीं रहते।
प्रश्न 2. ईश्वर के संबंध में कबीर के अनुभवों और मान्यताओं का वर्णन साखियों के आधार पर कीजिए।

उत्तर- कबीर अपनी सखियों में ईश्वर का वर्णन निम्लिखित से प्रकार करते है –

  • ईश्वर कण-कण में विद्यमान है।
  • ईश्वर और अहंकार एक साथ नहीं रह सकते।
  • ईश्वर की प्राप्ति के लिए अहंकार का त्याग करना होता है।
  • ईश्वर के वियाग में व्यक्ति की दशा पागल के समान हो जाती है।
  • ईश्वर की प्राप्ति प्रेम से होती हैं ना की बड़े- बड़े ग्रन्थ पड़ने से ।
प्रश्न 3. निंदक किसे कहा गया है? वह व्यक्ति के स्वभाव का परिष्करण किस तरह करता है?

उत्तर- निंदक उसे कहा गया है जो व्यक्ति को उसकी दुर्बलता का अनुभव करवाता है। जो बिना किसी नकाशी के उसे उसकी गलतियों को बताता है। निंदक को एक हितेषी के रूप में देखने के लिए कहा गया है। वह व्यक्ति के स्वभाव का परिष्करण करने में सहायता करता है। अगर व्यक्ति को पता ही नहीं होगा की उसमे क्या खामियां है तो वह उसे कैसे सुधार सकता है। इसलिए निंदक की भूमिका यहाँ उभर कर आती है। क्योकि वही सच्चे मायने में हमे सुधारता है।

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