Manushyata Class 10 Solutions Hindi – [NCERT + PYQ]

Here we have provided Manushyata Class 10 Solutions Hindi – [NCERT + PYQ]. These solutions will help you in understanding the chapter better & will make you with the types of questions that can be framed for your exam.

Manushyata Class 10 Solutions
Source: school.edugrown.in

NCERT Manushyata Class 10 Solutions Hindi:

कवि ने कैसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है ?

उत्तर: कवि ने ऐसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है जिसमे व्यक्ति की मृत्यु परोपकार के कार्य करने पर आती है। जो व्यक्ति दुसरो के लिए जीता और उनकी सहायता करता है। ऐसा व्यक्ति जो सिर्फ खुद के हित में नहीं सोचता बल्कि औरों का भी भला करना चाहता है ऐसे व्यक्ति की मृत्यु सुमृत्यु होती है।

उदार व्यक्ति की पहचान कैसे हो सकती है?

उत्तर: उदार व्यक्ति की पहचान उसके द्वारा किये गए परोपकारी कार्य से होती  है। उदार व्यक्ति दुसरो की मदद के लिए तत्पर रहता है।  अपना जीवन वो दुसरो की भलाई के लिए व्यतीत करता है। उसके इन्ही कर्मो के कारण उसका उल्लेख किताबों में मिलता है। यह धरती भी उसे धन्यवाद करती है।  उदार व्यक्ति मरने के बाद भी लोगो की बातों में जीवित रहता है। उदार व्यक्ति इस बात को अच्छी तरह जानता है कि यदि वह समाज का भला करेगा तो उसका भी भला ही होगा।

कवि ने दधीचि कर्ण, आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर मनुष्यता के लिए क्या संदेश दिया है ?

उत्तर: कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देते हुए मनुष्यता के लिए यह बताने कि कोशिश की है कि परोपकार के लिए हमें अपना सर्वस्व तथा अपने प्राण तक न्यौछावर करने को तैयार रहना चाहिए। यहाँ तक की दूसरों के लिए, अपना शरीर तक दान करने को तैयार रहना चाहिए। दधीचि ने मानवता की रक्षा करने के लिए अपनी अस्थियाँ तथा दानवीर कर्ण ने अपने कवच एवं कुंडल तक दान कर दिये थे। हमारा शरीर तो नश्वर हैं,उससे किसी भी  तरह का मोह रखना व्यर्थ है। परोपकार करना ही असल मनुष्यता है और हमें वही करना चाहिए।

कवि ने किन पंक्तियों में यह व्यक्त है कि हमें अहंकार रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए?

उत्तर: नीचे लिखी गयी पंक्तियों में अहंकार रहित जीवन बिताने की बात कही गई है-

रहो न भूल के कभी, मदांध तुच्छ वित्त में।
सनाथ जान आपको, करो न गर्व चित्त में ॥

दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।अथार्त हमारे पास जो धन है , वैभव है उस पर हमे गर्व नहीं करना चाहिए और किसी भी मनुष्य को अकेला नहीं समझना चाहिए।  क्योकि प्रभु सबके साथ है और वह हमेशा हमारी रक्षा के लिए सदैव तैयार रहते है।

मनुष्य मात्र बंधु हैसे आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: मनुष्य मात्र बंधु है! इस बात का यह अर्थ है कि सभी मनुष्य (लोग)आपस में भाई बंधु होते हैं, क्योंकि इस धरती पर सभी ईश्वर के बच्चे हैं। इसलिए सभी लोगों को आपस में प्रेम भाव से रहना चाहिए तथा एक दूसरे की मुश्किल समय पर स्वार्थ रहित होकर मदद करनी चाहिए। इस धरती पर कोई पराया नहीं है,सभी के पिता एक हैं, और सभी एक दूजे के काम आते हैं।

कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा क्यों दी है?

उत्तर: कवि ने सबको एक साथ जुट होकर चलने की प्रेरणा इसलिए दी है क्योंकि सभी मनुष्य (लोग) उस एक ही परमपिता परमेश्वर की संतान हैं, इसलिए भाईचारे के नाते हमें सभी लोगों को साथ लेकर चलना चाहिए क्योंकि समर्थ भाव भी यही कहता है कि सभी का कल्याण करने से ही अपना कल्याण होगा । जब सब मिलकर किसी कठिनाई का सामना करते है तब हम उस पर अवश्य ही विजय प्राप्त करलेते है। परन्तु अगर मनुष्य स्वयं का स्वार्थ देख कर दुसरो को नुकसान पहुंचाता है तो वह अपने लिए ही मुश्किल खड़ी करता है। इसलिए कवि ने सबको एकता बनाये रखने की सिख दी है।

व्यक्ति को किस प्रकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए? इस कविता के आधार पर लिखिए।

उत्तर: व्यक्ति को एक ऐसा जीवन व्यतीत करना चाहिए जिसमे वह दुसरो के लिए जिए,  दुसरो की सहायता के लिए सदैव आगे रहे।  जरुरत पड़ने पर वह दुसरो की मदद करने से पीछे ना हटे। अथार्त परोपकार की राह में आगे बढ़ते रहे। 

मनुष्यता कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है ?

उत्तर: ‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि यह संदेश देना चाह रहे है मनुष्य का शरीर नश्वर है अथार्त वह एक ना एक दिन नष्ट हो जाएगा। उसके मोह में आकर हमे किसी का नुकसान नहीं करना चाहिए। सभी व्यक्ति हमारे ही बंधू है क्योकि हम सबके पिता ईश्वर है। जो जरुरत पड़ने पर सदा हमारे साथ है इसी लिए हमे कभी किसी को अनाथ नहीं समझना चाहिए। परोपकार के मार्ग पर हमे चलना चाहिए क्योकि दुसरो के हित के लिए कार्य करने पर ही हमारा जीवन जीने का अर्थ पूरा होगा एवं जो व्यक्ति खुद के लिए जीता है वो जीते हुए भी मरा हुआ है। 

Also read – The Necklace Class 10 Summary – ReadAxis

निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए-

सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही;
वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।
विरुद्धवाद बुद्ध का दया-प्रवाह में बहा,
विनीत लोकवर्ग क्या न सामने झुका रहा?

उत्तर-

प्रस्तुत पंक्तियों का भाव है की विश्व में जितने भी लोग है उनके प्रति सहानुभूति रखना चाहिए। सभी मनुष्य हमारे ही है, हमारे बंधू है उन्हें अपना माने। उदार, कृपा, सहानुभूति जो भी हम उन्हें दे पाए हमे उन्हें देना चाहिए।  वही हमारा सबसे बड़ा दान है। जब हम ऐसे उदार कार्य करते है तो यह धरती भी हमारे वश में हो जाती है। भगवन बुद्धा ने भी संसार की कल्याण के लिए अपना घर, परिवार और सुख सुविधाओं को त्याग कर दिया था। आज भी लोग उनकी उदारता को याद करते हुए उनके आगे अपना शीष झुकाते है।

रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,
सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।
अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,
दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।

उत्तर-

कवी इन पंक्तियोंके माध्यम से कह रहे है की जब हमारे पास धन और वैभव आजाये तब भी हमे हमारे भीतर अहंकार को स्थान नहीं देना चाहिए। अगर अहंकार मनुष्य के मन में आजाये तो वह उसे और उसके आस पास वाले व्यक्ति को नुकसान पंहुचा सकता है। धन दौलत को प्राप्त करके स्वयं को सबसे ऊपर सबसे श्रेष्ठ नहीं मानना चाहिए। कभी किसी व्यक्ति को अनाथ या अकेला समझने की भूल नहीं करने चाहिए क्योकि त्रिलोकनाथ उनकी रक्षा के लिए हमेशा तत्पर है। वह सदैव उनके साथ ही है।

चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,
विपत्ति, विघ्न जो पड़े उन्हें ढकेलते हुए।
घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी,
अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।

उत्तर-

प्रस्तुत पंक्तियों में कवी कह रहे है की कितना भी कठिन मार्ग क्यों ना हो तुम उस पर मुस्कुरा के चलते रहो। और जो भी विपरीत परिस्थिति तुम्हारे सामने आये उसको धकेल के आगे बढ़ते चलो। दुखी होकर या चिंता करके वही रुकना नहीं है। आगे बढ़ते हुए हमे ध्यान रखना है की हम किसी को नुकसान न पहुचाये। हम हमरे कार्य से अपने बंधू से अलग न हो जाये। हम सभी की मार्ग अलग है परन्तु अंत में मंजिल एक ही है जो ईश्वर का घर है।

योग्यता विस्तार

अपने अध्यापक की सहायता से रंतिदेव, दधीचि, कर्ण आदि पौराणिक पात्रों के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।

उत्तर-

रंतिदेवराजा सकृति के दो पुत्र थे। उनमे से एक थे रंतिदेव। रंतिदेव एक न्यायशील और दयालु व्यक्ति थे। दुसरो की गरीबी देख कर वह दुखी थे इसलिए उन्होंने अपनी साडी संपत्ति गरीबो की भलाई के लिए उनमे बाँट दी थी। स्वयं के लिए उन्होंने कुछ नहीं रखा और कठिनाई से अपना जीवन निर्वाह किया। देश में भीषण अकाल पड़ने से उन्हें पानी तक नहीं मिला। ४८ दिनों तक उनका परिवार और वे स्याम भूके प्यासे रहे। शरीर में चलने तक की शक्ति नहीं थी। ऐसे में जब उन्हें भोजन मिला तब एक भ्रामण अतिथि उनके पास आया तो उन्होंने उन्हें भोजन करवाया।  बाद में जो भोजन उनके पास था उसे अपने परिवार को दिया। कुछ समय बाद एक दरिद्र उनके पास आया तो उन्होंने उसे भी भोजन देने में कोई संकोच नहीं किया। इन्ही कार्यो से आज भी उनका गुणगान कहानियों के द्वारा किया जाता है।

दधीचि महर्षि दधीचि का नाम बड़े ही आदर से लिया जाता है।वह एक परोपकारी ऋषि थे। जिस वन में उनकी कुटी थी उस तपोवन में पशु पक्षी भी उनकी कुटिया में जाते थे। एक बार उनकी तपस्या से इंद्रा के के लोक का तेज काम हो गया।  इंद्रा इस पर क्रोधित होकर उनकी तपस्या भांग करना चाहते थे। क्योकि उन्हें लगा की दधीचि उनका सिंहासन छीनना चाहते है। वह स्व्यं दधीचि की हत्या करने पोहचे अपरंतू उनकी तपस्या इतनी कठोर थी की इंद्र कुछ नहीं कर पाए। इसके कुछ समय बाद इंद्र लोक पर राक्षस ने हमला कर दिया। जब इंद्र मदद के लिए गए तो उन्हें ज्ञात हुआ की महर्षि दधीचि की अस्थियों से ही राक्षस का वद्ध किया जा सकता है। जब वह दधीचि के पास उनसे उनकी अस्थिया मांगने गए तब असुरो के वद्ध लिए दधीचि ने अपनी हड्डिया दान कर दी।

कर्ण  कर्ण एक दानवीर राजा थे। महाभारत में भी इनके दान का वर्णन है। महाभारत के अनुसार उनके साथ कई छल हुए थे। युद्ध में कर्ण ने दुर्योधन का साथ दिया था। कर्ण  के पास एक कवच था जिससे उन्हें कोई हरा नहीं सकता था। उस कवच को जब इंद्र ब्राह्मण के रूप में लेने आये तो अपने वचन को निभाने के लिए उन्होंने अपना कच दान कर दिया। उस वजह से इनकी मृत्यु तक हो गयी थी।

‘परोपकार’ विषय पर आधारित दो कविताओं और दो दोहों का संकलन कीजिए। उन्हें कक्षा में सुनाइए।

उत्तर: छात्र स्वयं करे

परियोजना कार्य

अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध’ की कविता ‘कर्मवीर’ तथा अन्य कविताओं को पढ़िए तथा कक्षा में सुनाइए।

उत्तर: छात्र स्वयं करे

भवानी प्रसाद मिश्र की ‘प्राणी वही प्राणी है’ कविता पढ़िए तथा दोनों कविताओं के भावों में व्यक्त हुई समानता को लिखिए।

उत्तर: छात्र स्वयं करे

Some Important Manushyata Class 10 Solutions Hindi:

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

‘विचार लो कि मर्त्य हो’ से कवी का क्या तात्पर्य है ? इसे सुमृत्यु  बनाने के लिए क्या करना होगा ?

उत्तर:  ‘विचार लो कि मर्त्य हो’ से कवी का तात्पर्य  है कि मनुष्य का शरीर नश्वर है अथार्त इसे एक दिन मरना ही होगा। तो तुम अपने विचार में यह बात मान लो और अपने मृत्यु से डरो नहीं। इसे सुमृत्यु  बनाने के लिए जीवन को दुरो के हित के लिए समर्पित करना होगा।

कवी के अनुसार किसका जीवन और मरण सामान है ?

उत्तर: कवी के अनुसार उनका जीवन और मरण समान है जो अपने लिए ही जीता है। जिसे दुसरो के दुःख दर्द से कोई फरक नहीं पड़ता। यह संसार में हम सब एक दूसरे के भाई-बंधू है। हमारा कर्तव्य है की हम एक दूसरे के काम आये। परन्तु जो व्यक्ति केवल खुद का स्वार्थ पूरा करने में लगे रहते है उनका जीवन और मरण समान ही होता है।

“अखंड आत्मभाव भरने ” पंक्ति के द्वारा कवी क्या सन्देश देना चाह रहे है ?

उत्तर: “अखंड आत्मभाव भरने ” पंक्ति के द्वारा कवी यह सन्देश देना चाह रहे है की उदार की भावना अगर विश्व में सम्पूर्ण व्यक्तियों में पैदा कर दी जाये तो मनुष्य वही है जो मनुष्यता के लिए जिए।

मनुष्य किसी अन्य को अनाथ समझने की भूल कब कर बैठता है?

उत्तर:  मनुष्य किसी को अनाथ समझने की भूल तब कर बैठता है जब उसे वैभब और धन की प्राप्ति हो जाती है। अधिक धन होने से उसमे अहंकार आ जाता है और स्वयं को सबसे श्रेष्ठ मानने लग जाता है। उसे लगता है की वही सब कुछ है वही विधमान है।

कवी के अनुसार कोई भी अनाथ क्यों नहीं है ?

उत्तर: कवी के अनुसार कोई भी अनाथ नहीं है। हम सभी मनुष्य एक दूसरे के भाई है। हम सभी के एक ही पिता है जिनका वर्णन पुराणों में भी है और वे है ईश्वर। ईश्वर प्रतिपल हमारे साथ है। उनके हाथ हमारी सहायता के लिए सदैव आगे रहते है।

उशीनर के परोपकार  का वर्णन अपने शब्दों में कीजिये

उत्तर: उशीनर एक परोपकारी एवं दयालु राजा थे। एक बार एक घायल कबूतर उनकी गोद में आ पड़ा। बाज ने कबूतर को घायल किया था और वह राजा से कबूतर को मांगता है।  परन्तु राजा मना कर देते है। कबूतर की रक्षा के लिए वह कबूतर के वजन के समान ही अपने शरीर से मांस निकल कर बाज वो दे देते है।

कवि ने महाविभूति किसे कहा है और क्यों?

उत्तर- कवि ने दुसरो के प्रति सहानुभूति दिखने को महाविभूति कहा है। कवि का मानना है की हमारे भीतर उदारता और दया की भावना होना ही सच्चे मांयने में पूंजी है। यही हमारे सबसे श्रेष्ठ गुण है।

औरो के हित के लिए जीने वाले सदैव अमर क्यों रहते है ?

उत्तर: औरो के हित के लिए जीने वाले सदैव अमर रहते है क्योकि उनके परोपकारी कार्य का वर्णन कहानियो में किया जाता है। दुसरो के लिए कए गए उपकारों की चर्चा से वे सदैव जीवित ही रहते है। दीधीच , कर्ण आदि के दया भाव का उदाहरण आज तक हमे देखने और सुनने को मिलता है। जिस प्रकार यह परोपकारी अमर है उसी प्रकार औरो के हित के लिए जीने वाले भी सदैव अमर रहगे।

कवि ने सफलता पाने के लिए मनुष्य को किस तरह प्रयास करने के लिए कहा है?

उत्तर: कवी सफलता को पाने के लिए मनुष्य को कहा है की तुम कठिन से कठिन मार्ग को भी हस्ते हुए पार करो। जब विपरीत परिस्थिति तुम्हारे सामने आये तो तुम उसे धकेलते हुए आगे बड़ो। परन्तु ऐसा करते वक़्त यह ध्यान रखना की तुम किसी ओर को बुरा नहीं कर रहे हो।

‘रहो न यों कि एक से न काम और का सरे’ के माध्यम से कवि क्या सीख देना चाहता है?

उत्तर: ‘रहो न यों कि एक से न काम और का सरे’ के माध्यम से कवि मनुष्य को यह सीख देना चाहता है कि तुम ऐसे कभी मत बनो की सिर्फ अपना ही स्वार्थ सिद्ध करो। तुम्हे सबको साथ लेकर चलना चाहिए।  आगे बढ़ने के लिए तुम्हे दुसरो की सहायता लेनी भी होगी ओर उनकी सहायता करनी भी होगी।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने मनुष्य के किस कृत्य को अनर्थ कहा है और क्यों ?

उत्तर: ‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने मनुष्य को अपने भाई की व्यथा न दूर करने को अनर्थ कहा है।  उनका कहना है की जब भाई ही भाई की सहायता नहीं करेगा तो कौन करेगा। हम सभी एक ही ईश्वर की संतान है। जो भी भेद हम भाई-बंधू में है वो हमारे ही कर्मो का नतीजा है। मनुष्य जीवन अगर हमे प्राप्त हुआ है तो हमे इसे सही मायने में जीना चाहिए और वह सिर्फ दुसरो का उपकार करने से होगा। अगर तुम दुसरो के प्रति दया भाव रखकर उनकी सहायता करते हो तो तुम्हारा मनुष्य जीवन सफल है अन्यथा अगर तुम इसे अपने स्वार्थ के लिए बिता दो तो यह व्यर्थ है और यही ही सबसे बड़ा अनर्थ भी है।

‘मनुष्यता’ कविता की वर्तमान में क्या भूमिका है  स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: मनुष्यता कविता की वर्तमान में बहुत ही महान भूमिका है । आज भी कई लोग इंसानियत यानि मनुष्यता का अर्थ नहीं समझते। उनका जीवन केवल खुद तक ही सिमित होता है।  वह अपने ही धन, दौलत, महल इत्यादि में खुश रहते है।  उन्हें औरों के दुःख से कोई पीड़ा नहीं होती और नहीं वो उनकी सहायता करना चाहते है।  ‘मनुष्यता’ कविता में मनुष्य का महत्वपूर्ण  किरदार बताया है।  उसमे बताया है की एक व्यक्ति को अपना जीवन सार्थक कैसे बनाना चाहिए। कविता हमे बताती है की हम सबके पिता एक ही है और वे है परमेश्वर। हम एक दूसरे के भाई है और हमे इस दूसरे की सहायता करनी चाहिए। मुसीबतों का हसकर सामना करना चाहिए और विपरीत स्थिति को दूर क्र आगे बढ़ना चाहिए। दुसरो को कभी कष्ट देने का सोचना भी नहीं चाहिए क्योकि ईश्वर सबकी सहायता के लिए हमेशा तत्पर है अथार्त इस धरती पर कोई अकेला नहीं है।

 मनुष्यता’ कविता में उशीनर, दधीचि और कर्ण के किन परोपकारी कार्य का वर्णन किया गया है , अपने शब्दों में लिखिए ।

उत्तर: ‘मनुष्यता’ कविता में उशीनर, दधीचि और कर्ण के किन परोपकारी कार्य का वर्णन किया गया है , वह कार्य निम्नलिखित है –

उशीनर – उशीनर की गणना परोपकारी राजा में की जाती है। वह इतने दयालु थे की एक कबूतर अथार्त एक पक्षी के प्राणो की रक्षा के लिए उन्होंने अपने शरीर से मांस निकल कर बाज को दिया। ऐसा उपकार तो केवल उशीनर ही कर सकते है।

दधीचि – महर्षि दधीचि को जब इस बात का पता चला की असुरो का वृद्ध सिर्फ उनकी अस्थियों से किया जा सकता है तब उनसे उनकी अस्थियां मांगने पर उन्होंने तुरंत अपनी हड्डिया दान कर दी।  उन हड्डियों से बाद में अस्त्र बनाये गए और असुरो को मारा गया। इससे सांफ पता चलता है की महर्षि दधीचि मानवता के रखवाले थे।

कर्ण – कर्ण का वर्णन महाभारत में भी मिलता है। वे एक दानवीर राजा थे। जब उनके पास कृष और इंद्र ब्राह्मण का रूप लेकर उनके उनका कवच मांगने आये तो कर्ण ने उसे दान कर दिया। युद्ध उस कवच के ना होने पर उनकी मृत्यु हो गई।

Tagged with: cbse hindi question paper | CLASS 10TH | Manushyata Class 10 Solutions Hindi

Class: Subject:

Have any doubt

Your email address will not be published. Required fields are marked *