Class 11 Physics Chapter 6 Notes in Hindi कार्य, शक्ति एवं ऊर्जा

यहाँ हमने Class 11 Physics Chapter 6 Notes in Hindi दिये है। Class 11 Physics Chapter 6 Notes in Hindi आपको अध्याय को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेंगे और आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे।

Class 11 Physics Chapter 6 Notes in Hindi कार्य, शक्ति एवं ऊर्जा

कार्य (Work)

जब किसी वस्तु पर बल लगाया जावे तथा उसमें विस्थापन प्रेक्षित हो, तो हम कहते है कार्य सम्पन्न हुआ।

कार्य की गणना:- कार्य की गणना करने के लिए यह आवश्यक है कि लगाया गया बल व विस्थापन दोनों एक ही दिशा में हो।

कार्य (Work)
  • W = Fscosθ
  • कार्य एक अदिश राशि होती हैं। कार्य की विमा :- [M1L2T-2] होती है।
  • इसकी इकाई N ∝M या Joule (J) होती है।

धनात्मक कार्य:-

  • 0°≤θ<90°
  • θ  का मान शून्य या शून्य से 90° के बीच हो तो इस स्थिति में किया गया कार्य सदैव धनात्मक होगा । अर्थात्  θ न्यून कोण होने पर।
धनात्मक कार्य:-

ऋणात्मक कार्य:-

  • θ>90°
  • यदि θ  का मान 90°  से अधिक हो तो इस स्थिति में किया गया कार्य सदैव ऋणात्मक होगा। अर्थात् θ  अधिक कोण होने पर ।
ऋणात्मक कार्य:-

बाह्य कार्य (External work)

  • जैसे:- हाथ ठेले को धक्का देना, साइकिल चलाना आदि।
  • यदि किसी वस्तु में बल लगाया जावे तथा उसमें विस्थापन भी उत्पन्न हो तो ऐसा कार्य, बाह्य कार्य कहलाता है।

आन्तरिक कार्य (Internal work)

i) जब किसी वस्तु पर बल लगाया जावे तथा उसमें विस्थापन शून्य हो तो ऐसे कार्य को आन्तरिक कार्य कहते है।

परिवर्ती बल द्वारा किया गया कार्य

परिवर्ती बल का सामान्यत: अर्थ यह है कि किसी वस्तु पर लगने वाला बल एक समान न लगकर समय के साथ बदलता रहता है। इस परिवर्ती बल के कारण किसी वस्तु पर कार्य की गणना निम्न प्रकार से की जाती है।

जैसे:- साइकिल चलाते समय साइकिल के पेण्डल पर मांसपेशियों द्वारा लगाया गया बल, परिवर्ती बल कहलाता है।

W = W1 + W2 + W3 + ——– + Wn
W = ΣFS

स्प्रिंग को संकुचित करने में किया गया कार्य

W = \(\frac{1}{2}ux^2\)

जबकि प्रत्यान्न बल द्वारा किया गया कार्य W = \(\frac{1}{2}ux^2\) होता है। क्योंकि θ = 180°

1 जूल

  • किसी वस्तु पर एक N का बल लगाने पर उसमें बल की दिशा में 1m का विस्थापन हो तो किया गया कार्य 1 जूल होगा।
  • 1 जूल = 107 अर्ग

कार्य की अन्य इकाईयाँ

1. इलेक्ट्रॉन वॉल्ट

  • किसी एक e को एक वॉल्ट से त्वरित  करने के लिए जितना उस पर कार्य किया जाता है उसे 1 e वॉल्ट कहते है।
  • 1ev = 1.6 × 10-19J

2. 1 किलो वॉट घण्टा

  • जब कोई विद्युत उपकरण एक घंटे में जितना कार्य करता है या जितनी शक्ति व्यय करता है, उसे एक किलो वॉट घण्टा (1 Kwh) कहते है।
  • 1 kwh सामान्यत: भाषा में एक युनिट कहलाता है।
  • 1 Unit = 1 kWh = 3.6 x 106 J

शक्ति (Power)

कार्य करने की क्षमता, शक्ति कहलाती है।

\(p=\frac{w}{t}\)

  • यदि कोई वस्तु कम समय में अधिक कार्य करती है तो उसकी शक्ति अधिक होगी।
  • यह एक अदिश राशि होती है।

इकाई

1. F.P.S. में:-

इकाई

2. C.G.S. में:-

C.G.S

3. M.K.S. में:- 

M.K.S

Note:-

  • शक्ति की एक F.P.S. पद्धति में बहुत ज्यादा प्रचलित इकाई जो आज भी काम में ली जाती है, अश्व शक्ति कहलाती है।
  • 1 HP = 746 watt
  • 1 HP:- किसी 550 वजनी (पौंड) पिंड को क्षैतिज से एक फुट की ऊँचाई तक व एक सेकण्ड तक उठाती है, 1 HP कहलाती है।
  • P = FV

Chapter 2: मात्रक और मापन
Chapter 3: सरल रेखा मे गति
Chapter 4: गति के नियम

ऊर्जा (Energy)

कार्य करने की क्षमता, ऊर्जा कहलाती है। ऊर्जा के बहुत प्रकार होते है जैसे :-

  • i) विद्युत से प्राप्त होने वाली ऊर्जा – विद्युत ऊर्जा
  • ii) चुम्बक से प्राप्त होने वाली ऊर्जा – चुम्बकीय ऊर्जा
  • iii) सूर्य के प्रकाश से प्राप्त होने वाली ऊर्जा सौर ऊर्जा
  • iv) ध्वनि से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा – ध्वनि ऊर्जा
  • v) प्रकाश से प्राप्त होने वाली ऊर्जा – प्रकाश ऊर्जा
  • vi) स्थिर अवस्था में स्थित किसी वस्तु में संचित ऊर्जा – स्थितिज ऊर्जा (P.E)
  • vii) गत्यावस्था के कारण उसमें संचित ऊर्जा – गतिज ऊर्जा (K.E)

गतिज ऊर्जा

किसी पिंड के गतिशील अवस्था के दौरान उसमें संचित ऊर्जा उसकी गतिज ऊर्जा कहलाती है।

Example:-

  • i) बंदूक से गोली दागने पर गोली की ऊर्जा
  • ii) धनुष से तीर छोड़ने पर तीर की ऊर्जा
  • iii) किसी भी गतिशील पिंड की ऊर्जा

किसी पिंड की गतिज ऊर्जा :- \(\frac{1}{2}mv^2\)

कार्य ऊर्जा प्रमेय

किसी वस्तु की गतिज ऊर्जा में होने वाला परिवर्तन उस पर किए गए कार्य के बराबर होता है, यही कार्य-ऊर्जा प्रमेय कहलाता है।

W = Kf – Ki

यांत्रिक ऊर्जा व यांत्रिक ऊर्जा संरक्षण नियम

  • किसी पिंड की स्थितिज ऊर्जा व गतिज ऊर्जा का योग उसकी यांत्रिक ऊर्जा कहलाती है।
  • इसे U से लिखा जाता है।
  • यांत्रिक ऊर्जा = स्थितिज ऊर्जा + गतिज ऊर्जा
  • U = P. E. + K.E.
  • यदि कोई वस्तु एक विमीय या द्विविमीय गति करती है तो उसके सभी बिन्दुओं पर यांत्रिक ऊर्जा का मान सदैव नियत रहता है। अर्थात् उस क्षण कण की स्थितिज ऊर्जा व गतिज ऊर्जा दोनों का योग नियत रहता है।
  • यांत्रिक ऊर्जा = स्थितिज ऊर्जा + गतिज ऊर्जा  Constant
  • इसका अर्थ यह है कि कुल यांत्रिक ऊर्जा नियत रहेगी किन्तु अलग-अलग स्थितिज ऊर्जा व गतिज ऊर्जा में परिवर्तन हो सकता है।

गुरूत्वीय स्थितिज ऊर्जा

माना कोई एक पिंड जिसका द्रव्यमान m समतल सतह पर स्थित है, समतल सतह से h  ऊँचाई पर इसे उठाने में किया गया कार्य इस पिंड की गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा कहलाती है।

E = mgh

स्प्रिंग – गट्टा निकाय की यान्त्रिक ऊर्जा संरक्षण नियम

माना एक गट्टा जिसका द्रव्यमान m स्प्रिंग की ओर गतिशील है। जैसे ही वह स्प्रिंग के सम्पर्क में आता है तो उसका वेग Maximum (अधिकतम) V0  हो जाता है तो इस स्थिति में इस गट्टे की अधिकतम गतिज ऊर्जा 1/2 mv02  होती है।

स्प्रिंग - गट्टा

अब यह गट्टा उस स्प्रिंग को संकुचित करने लगता है संकुचित करते-करते यह गट्टा स्थिर अवस्था में आ जाता है तथा इस स्थिति में स्प्रिंग में अधिकतम विस्थापन या संकुचन x0 होता है तो इस समय स्प्रिंग की अधिकतम स्थितिज ऊर्जा 1/2ux02 होती है। अर्थात् हम यह कह सकते है कि ग‌ट्टे ने अपनी संपूर्ण गतिज ऊर्जा को स्प्रिंग की स्थितिज ऊर्जा में परिवर्तित कर लिया है [ स्थिति (b)]

स्प्रिंग में अधिकतम संकुचन के पश्चात् स्प्रिंग पुनः अपनी सम्यवस्था में व गट्टा पुन: v वेग से उसी दिशा में जाने का प्रयास करता है तो इस क्षण गट्टे में गतिज ऊर्जा 1/2mv2 व स्प्रिंग की स्थितिज ऊर्जा 1/2ux2  होती है। [ स्थिति (c) ]

जब स्प्रिंग पुन: अपनी साम्यवस्था में आ जाती है तो स्प्रिंग की स्थितिज ऊर्जा 0 व गट्टा  अपने अधिकतम वेग V0 के कारण गतिज ऊर्जा  1/2mv02   प्राप्त करता है | [ स्थिति(d) ]

इन सभी स्थितियों का विश्लेषण करने पर यह पता चलता है कि सभी स्थितियों में स्प्रिंग गट्टा निकाय की कुल यांत्रिक ऊर्जा संरक्षित रहती है।

स्प्रिंग गट्टा निकाय के लिए विस्थापन- ऊर्जा में ग्राफ:-

spring graph

टक्कर या संघट्ट (Collision)

दो पिंडों के मध्य होने वाली अन्योन्य क्रिया से उनके संवेग में होने वाला परिवर्तन, टक्कर या संघट्ट कहलाती है।

ऊर्जा के आधार पर टक्कर दो प्रकार की होती है:-

प्रत्यास्थ टक्कर

  • ऐसी टक्कर जिसमें संवेग संरक्षित तथा गतिज ऊर्जा भी संरक्षित रहती है, प्रत्यास्थ टक्कर कहलाती है।
  • जैसे:- दो परमाणुओं के मध्य होने वाली टक्कर, न्यूट्रॉनों के मध्य होने वाली टक्कर, अणुओं के मध्य व हाथी दाँत से बनी गेंदों के मध्य होने वाली टक्कर

अप्रत्यास्थ टक्कर

ऐसी टक्कर जिसमें केवल संवेग संरक्षित रहता है किन्तु गतिज ऊर्जा संरक्षित नहीं रहती है।

जैसे:- सामान्य पिंडों में होने वाली टक्कर

पथ या दिशा के आधार पर टक्कर दो प्रकार की होती है :-

  • सरल रेखीय टक्कर 
  • द्विविमीय या तिर्यक टक्कर

दो पिंडों की पूर्णत : सरल रेखीय प्रत्यास्थ टक्कर

दो पिंड जिनके द्रव्यमान m1 व m2  है। एक ही दिशा में क्रमश u1 व u2 से  गतिशील है। [ u1 > u2 ] कुछ समय पश्चात दोनों में टक्कर होती है। टक्कर के पश्चात् m1 व m2  का वेग क्रमश: v1 व v2 हो जाता है।

u1 – u2 = -v1 + v2

यहाँ (u1-u2) टक्कर से पहले दो पिंडों के पास आने का सापेक्ष वेग व (v2-v1) टक्कर के बाद दो पिंडों के दूर जाने का सापेक्ष वेग है।

संरक्षी व असंरक्षी बल (Conservation Force and Non – Conservation Force)

  • जब किसी कण की आरंभिक अवस्था में व अंतिम अवस्था में दोनों स्थितियों में गतिज ऊर्जा का मान समान हो तो ऐसा बल संरक्षी बल कहलाता है।
  • यदि कण की आरंभिक गतिज ऊर्जा का मान व अंतिम गतिज ऊर्जा का मान समान नहीं हो तो ऐसा बल असंरक्षी बल कहलाता है।
  • सरंक्षी बल द्वारा किया गया कार्य सदैव शून्य होता है, जबकि असंरक्षी बल द्वारा किया गया कार्य शून्य नहीं होता।
  • संरक्षी बल पथ की लम्बाई पर निर्भर नहीं करता जबकि असंरक्षी बल पथ की लम्बाई पर निर्भर करता है।

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