Class 11 Physics Chapter 5 Notes in Hindi गति के नियम

यहाँ हमने Class 11 Physics Chapter 5 Notes in Hindi दिये है। Class 11 Physics Chapter 5 Notes in Hindi आपको अध्याय को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेंगे और आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे।

Class 11 Physics Chapter 5 Notes in Hindi गति के नियम

न्यूटन ने किसी वस्तु चाहे व स्थिर अवस्था में है या गतिशील अवस्था में है, उसके लिए तीन नियम दिए। ये तीन नियम न्यूटन की गति के तीन नियम कहलाते है।

गति का पहला नियम हमें बल के बारे में बताता है, गति का द्वीतिय नियम उस बल की गणना करना सिखाता है तथा गति का तृतीय नियम लगाए गए बल का कारण बताता है।

जड़त्व (Inertia)

जड़त्व किसी वस्तु का गुण होता है। जड़त्व को द्रव्यमान के तुल्य माना जा सकता है अर्थात् जिस वस्तु का द्रव्यमान जितना अधिक होगा उसका जड़त्व उतना ही अधिक होगा।

जड़त्व को समझने के लिए हम यह कह सकते हैं कि यदि कोई वस्तु स्थिर अवस्था में है या कोई वस्तु गतिशील अवस्था में है तो वह उसी अवस्था में रहने का प्रयास करती है जब तक कि उस पर बाह्य बल न लगे। न्यूटन ने इसे अपने प्रथम नियम में विस्तार से समझाया है।

न्यूटन का प्रथम नियम (जड़त्व का नियम)

न्यूटन के इस नियम के अनुसार “यदि कोई वस्तु स्थिर अवस्था में है या गतिशील अवस्था में है तो वह उसी अवस्था में रहने का प्रयास करती है जब तक की उस पर बाह्य बल न लगे। बाह्य बल लगने की स्थिति में वस्तु अपनी आरम्भिक अवस्था से दूसरी अवस्था में चली जाती है”। न्यूटन का यह नियम जड़त्व का नियम कहलाता है।

न्यूटन ने इसे तीन भागों में बाँटा है:-

  • स्थिर अवस्था का जड़त्व
  • गत्यावस्था का जड़त्व
  • दिशा का जड़त्व

(i) स्थिर अवस्था का जड़त्व:- “यदि कोई वस्तु स्थिर अवस्था में है तो वह उसी अवस्था में रहने का प्रयास करेगी जब तक की उस पर कोई बाह्य बल न लगे। बाहा बल लगने की स्थिति में वस्तु स्थिरावस्था से गत्यावस्था में चली जाती है।”

जैसे :-

  • किसी खड़ी बस की सीट पर बैठा व्यक्ति, बस के अचानक चलने पर वह पीछे की ओर झुकता है।
  • घोड़े पर बैठा व्यक्ति घोड़े के अचानक दौड़ने पर वह पीछे की ओर गिरने लगता है।

(ii) गत्यावस्था का जड़त्व:- “यदि कोई वस्तु गतिशील अवस्था में है तो वह उसी अवस्था में रहने का प्रयास करेगी जब तक कि उस पर कोई बाह्य बल न लगे। बाह्य बल लगने की स्थिति में वह अपनी मूल अवस्था को बदलकर किसी अन्य अवस्था में चली जाती है।”

जैसे:-

  • तेज चलती बस के अचानक ब्रेक लगने पर सीट पर बैठा व्यक्ति आगे की ओर झुक जाता है।
  • घोड़े के अचानक रूकने पर घोड़े पर बैठा व्यक्ति आगे की ओर गिरने लगता है।

(iii) दिशा का जड़त्व:- “यदि कोई वस्तु एक निश्चित दिशा में बाह्यबल की उपस्थिति में अपने आप को बनाये रखती है, बाह्य बल के हटते ही वह एक स्पर्श रेखा की दिशा में गति करने लगती है । किन्तु यह ज्ञात रहे कि वस्तु केवल वृताकार पथ में गतिशील हो |” 

जैसे:-

धागे से बँधे पत्थर को गोल घुमाते हुए अचानक इसे छोड़ने पर वह स्पर्श रेखा की दिशा में गति करने लगता है।

संवेग (Momentum)

किसी वस्तु के द्रव्यमान व वेग का गुणनफल संवेग कहलाता है। इसे p से लिखा जाता है। यह एक सदिश राशि होती है। इसकी दिशा वही होती है जो वेग की होती है। अर्थात जिस दिशा में कोई वस्तु गतिशील है संवेग, वेग उसी दिशा में उत्पन्न होगा।

संवेग (Momentum)

इकाई:-

संवेग =  kg x मी०/sec = kg x m x sec-1

विमा:- [M1L1T-1]

(ii) न्यूटन की गति का द्वितीय नियम (संवेग का नियम):-

इस नियम के अनुसार ” किसी वस्तु के संवेग में परिवर्तन की दर, उस पर लगाये गए बल F के बराबर होती है।

न्यूटन की गति का द्वितीय नियम

जैसे:-

क्रिकेट में जब खिलाड़ी गेंद को catch करता है तो वह अपने हाथों को पीछे की ओर लेकर जाता है क्योंकि उसे कम से कम चोट लगे।

Cause (कारण):- हाथ को पीछे ले जाने पर गेंद के संवेग में परिवर्तन होने में लगा समय बढ़ जाता है जिसके कारण बल F का मान घट जाता है।

आवेग (Impulse):-

किसी वस्तु पर अल्प समय के लिए लगाया गया बल, आवेग कहलाता है। इसे I से लिखा जाता है। यह एक सदिश राशी होती है जिसकी दिशा लगाए गए बल की दिशा में होती है।

आवेग (Impulse):-
  • इकाई :- I = N × sec
  • विमा:- [I] = [M1L1T-2 T1]
  • [I] = [M1L1T-1]

बल-समय अक्षों के बीच का ग्राफ (आवेग का ग्राफ):-

आवेग का ग्राफ

संवेग – आवेग प्रमेय:-

किसी वस्तु पर बल लगाने पर वस्तु के संवेग में परिवर्तन, आवेग के बराबर होता है |

(iii) न्यूटन की गति का तृतीय नियम (क्रिया-प्रतिक्रिया का नियम):-

यदि कोई एक वस्तु किसी दूसरी वस्तु पर बल लगाती है तो वह दूसरी वस्तु भी पहली वस्तु पर समान परिमाण व विपरीत दिशा में बल लगाती है, इस नियम को  क्रिया – प्रतिक्रिया का नियम कहते है।

पहली वस्तु हमेशा द्वितीय वस्तु पर क्रिया बल लगाती है जबकि दूसरी वस्तु द्वारा पहली वस्तु पर प्रतिक्रिया बल अपने आप लगता है। अर्थात् इस नियम की पालना के लिए दो बल अलग-अलग वस्तुओं पर होने चाहिए। इसलिए बल हमेशा युग्म में पाया जाता है। एकल बल की संभावना नहीं की जा सकती।

क्रिया-प्रतिक्रिया का नियम

Example:-

  1. बन्दूक से गोली दागते समय गोली का आगे जाना क्रिया व बन्दूक का पीछे हटना प्रतिक्रिया बल कहलाता है।
  2. पानी में नाविक जब चप्पू से पानी से पीछे हटाता है तो पानी का पीछे हटना क्रिया व नाव का आगे बढ़ना प्रतिक्रिया बल कहलाता है।
  3. रॉकेट के प्रतिपादन के समय ईंधन का जलते हुए नीचे की ओर आना क्रिया व रॉकेट का ऊपर जाना प्रतिक्रिया बल कहलाता है।
  4. सड़क पर चलते समय सड़क व पाँव के बीच लगने वाला घर्षण बल क्रिया बल तथा व्यक्ति का आगे की ओर बढना प्रतिक्रिया बल कहलाता है।

निकाय का संवेग संरक्षण नियम

 दो या दो से अधिक वस्तुओं का समूह निकाय कहलाता है।

किसी निकाय का कुल संवेग, उस निकाय में उपस्थित सभी वस्तुओं के भिन्न-भिन्न संवेगों के सदिश योग के बराबर होता है।

माना कोई निकाय तीन वस्तुओं से मिलकर बना है तो इन तीनों वस्तुओं का संवेग क्रमश P1, P2, P3 होगा । तो निकाय का संवेग

संवेग संरक्षण नियम

” बाह्यबल की अनुपस्थिति में किसी निकाय का कुल संवेग हमेशा नियत होता है”

संवेग

बाह्यबल की अनुपस्थिति में निकाय के कुल संवेग में परिवर्तन शून्य रहता है | अर्थात

संवेग

द्विकण निकाय का संवेग संरक्षण नियम

ऐसा निकाय जिसमे केवल दो वस्तुएँ स्थित हो।

निकाय का कुल संवेग = P  = P₁ + P₂

बाह्यबल की अनुपस्थिति में निकाय का कुल संवेग

P = P₁ + P₂ =  नियत

बाह्यबल की अनुपस्थिति में निकाय में परिवर्तन

∆P = ∆P₁ + ∆P₂ = 0

रिकॉईल वेग (Re Coil Velocity) या प्रतिक्षेप / प्रतिक्षेप्य / प्रतिक्षिप्ति वेग:-

जब बन्दूक से गोली दागी जाती है तो गोली आगे की दिशा में तथा बन्दूक पीछे की ओर एकवेग से धक्का लगाती है तो इस स्थिति में बन्दूक पीछे की ओर जिस वेग से धक्का लगाती है वह वेग प्रतिक्षेप्य वेग कहलाता है।

1N की परिभाषा :-

यदि F= ma

1N = 1kg x l m/s2

“1N किसी वस्तु पर वह बल होता है, जो 1Kg द्रव्यमान वाली वस्तु में 1m/s2 का त्वरण उत्पन्न कर दे।”

विभिन्न पद्धतियों में बल की इकाई:-

  • M.K.S. पद्धति में :- F = ma = 1N = 1Kg × 1m/s2 = Kgms-2
  • C.G.S. पद्धति में:- F = ma = 1 डाईन = 1ग्राम × 1cm/s2
  • F.P.S. पद्धति में:- F = ma = 1पौणडल = 1 पौंड × 1 फीट/s2

लिफ्ट में व्यक्ति द्वारा अनुभव किया जाने वाला बल :-

बल एक अनुभव है जो पिंड सदैव महसूस करता है। कई बार हमने देखा है कि जब एक व्यक्ति किसी लिफ्ट में या किसी झूले में बैठा हो और इनकी गति नीचे की ओर हो तो व्यक्ति अपने आप को बहुत ही हल्का महसूस करने लगता है। इसका कारण यह है कि पिंड द्वारा महसूस किया जाने वाला बल उसके भार की तुलना में कम हो जाता है।

ठीक इसकी उल्टी स्थिति में जब कोई व्यक्ति किसी लिफ्ट या झूले में ऊपर की दिशा में गति करने लगता हो तो वह अपने आपको अपने भार की तुलना में भारी महसूस करता है। इससे सम्बन्धित कुछ गणनाएँ निम्नलिखित है:-

1. जब लिफ्ट व व्यक्ति दोनों स्थिर हो :-

लिफ्ट

R=mg

बल की संतुलन अवस्था समीकरण R=mg

यहाँ R व्यक्ति द्वारा अनुभव किया जाने वाला बल है जो कि उसके भार के बराबर है।

Chapter 2: मात्रक और मापन
Chapter 3: सरल रेखा मे गति

2. जब लिफ्ट a त्वरण से नीचे की ओर गतिशील है

अब बल की अवस्था समीकरण

  • R+ma = mg
  • R = mg – ma

अत: अनुभव किया जाने वाला बल व्यक्ति के भार की तुलना में कम होगा इसलिए व्यक्ति अपने आप को हल्का महसूस करने लगता है।

3. जब लिफ्ट a त्वरण से ऊपर की ओर गतिशील हो:-

लिफ्ट

बल की अवस्था समीकरण R = mg+ma

अत: अनुभव किया जाने वाला बल व्यक्ति के भार की तुलना में अधिक होता है। इसलिए व्यक्ति अपने आप को भारी महसूस करने लगता है।

रॉकेट नोदन या रॉकेट प्रतिपादन (Thrust of Rocket) का त्वरण

संवेग संरक्षण नियम से –

रॉकेट नोदन

यहाँ dm/dt = प्रति सैकण्ड खर्च होने वाले ईंधन का मान

u = जलते हुए ईंधन की गैसों का वेग

M = रॉकेट का द्रव्यमान

संगामी बलों का सन्तुलन

किसी एक बिन्दु पर लगने वाले बल संगामी बल कहलाते है व संगामी बल लगने के बाद भी वह बिन्दु / वस्तु स्थिर अवस्था में है तो हम इसे संगामी बलों का सन्तुलन कहते है।

(i) यदि किसी वस्तु पर केवल एक बल लगे

संगामी बलों

ii) यदि किसी वस्तु पर दो बल लगे

F1 + F2 = 0
F1=-F2

[ दोनों बल परिमाण में समान व दिशा में विपरित होने चाहिए]

(iii) यदि किसी वस्तु पर तीन बल लगे:-

यदि किसी बिन्दू पर लगने वाले तीनों बल मिलकर एक बंद त्रिभुज का निर्माण करे तो यह संगामी बलों का सन्तुलन कहलायेगा।

बल

किसी बिन्दु पर लगने वाले तीनों बलों में अन्तिम बल उन दोनों बलों के परिणामी बल के परिमाण के समान व दिशा में विपरीत हो तो इसे संगामी बलों का सन्तुलन कहते है।

संगामी बलों

Free body Diagram (FBD)

जब किसी निकाय में बहुत अधिक बल लगते हों तथा हमें उन सभी बलों का मान ज्ञात करना हो व उन बलों के कारण उस निकाय का त्वरण कितना होगा? ये सभी मान ज्ञात करने के लिए हम एक विशेष प्रकार की विधि काम में लेते हैं यह विधि FBD कहलाती है।

तनाव बल :-

  1. एक ही रस्सी के सभी बिन्दुओं पर तनाव बल एक समान होता है।
  2. एक ही रस्सी में नेट तनाव बल शून्य होता है।
  3. रस्सी अलग-अलग होने पर तनाव बल भी अलग-अलग होता है।
  4. तनाव बल हमेशा सम्पर्क बिन्दू से परे लगता हैं।

घर्षण (Friction)

दो वस्तुओं के मध्य होने वाली आपेक्षिक गति का विरोध करने वाला बल, घर्षण बल कहलाता है, जैसे:-

किसी समतल फर्श पर गेंद को लुढकाने पर वह लुढकती हुए आगे की ओर गतिशील  होती है किन्तु कुछ समय पश्चात उसका वेग समय के साथ घटने लगता है, और वह घटते-घटते शून्य हो जाता है तथा वस्तु रूक जाती है। ऐसा तभी संभव हुआ होगा जब कोई बल गेंद के वेग के विपरीत दिशा में लगा होगा और यह बल घर्षण बल होता हैं।

घर्षण बल को तीन भागों में बाँटा गया है:-

  • स्थैतिक घर्षण बल
  • गतिक घर्षण बल
  • लौटनी घर्षण बल

स्थैतिक घर्षण बल

  • गति के विपरीत दिशा में लगने वाला बल स्थैतिक घर्षण बल (static) जो वस्तु को स्थिर बनाए रखता है।
  • स्थैतिक घर्षण बल का वह अधिकतम मान जिसके बाद से वस्तु में गति उत्पन्न हो जाती है, सीमान्त स्थैतिक घर्षण बल कहलाता है।
  •  जिसे (Fs) max से लिखा जाता है व स्थैतिक घर्षण बल को Fs से।
  • वस्तु का भार mg जितना अधिक होगा स्थैतिक घर्षण बल का मान उतना ही अधिक होगा।

गतिक घर्षण बल

  • यदि कोई वस्तु गतिशील अवस्था में है तो इस अवस्था में उसकी गति का विरोध करने वाला बल, गतिक घर्षण बल कहलाता है।
  •  जिसे Fk से लिखा जाता है। व (Fk)max सीमान्त गतिक घर्षण बल कहलाता है ।
  • गतिक घर्षण बल Fk  स्थैतिक घर्षण बल  Fs की तुलना में कम होता है।
  • Example:- एक खड़ी बस को धक्का लगाने के लिए लगभग दस आदमियों की आवश्यकता होती है व एक गतिशील बस को धक्का लगाने के लिए सामान्यत: दस से भी कम आदमियों की आवश्यकता होती है।

3) लौटनी घर्षण बल

जब कोई पिंड किसी समतल सतह पर लुढकता है तो उसके वेग के विपरीत दिशा में लगने वाला बल, लौटनी घर्षण बल कहलाता है।

जिसे FR से लिखा जाता है तथा सीमान्त लौटनी घर्षण बल  (FR)max से लिखा जाता है।

घर्षण से संबंधित मुख्य बातें –

  1. घर्षण बल की दिशा हमेशा वस्तु के वेग की दिशा के या जिस दिशा में वस्तु गति करना चाहती हो, उस दिशा के विपरीत दिशा में होती है।
  2. घर्षण बल सदैव दो वस्तुओं की संपर्क सतह के मध्य लगता है।
  3. घर्षण बल एक विद्युत बल है।

घर्षण से लाभ

  1. घर्षण की सहायता से हम चल सकते है।
  2. घर्षण की सहायता से हम लिख सकते है।
  3. घर्षण की सहायता से ब्रेक लगते है।
  4. वायुमंडल में उपस्थित घर्षण बल के कारण ही उल्कापिंड ऊपर वायुमंडल में ही घर्षण के माध्यम से नष्ट हो जाती है, जिसके कारण वह पृथ्वी पर नहीं पहुँच पाती।

घर्षण से हानियाँ

  • घर्षण की वजह से मशीनों के पूर्जे घिस जाते है।
  • घर्षण की वजह से गाड़ियों के टायर घिस जाते है।
  • घर्षण की वजह से कपड़े जल्दी फट जाते है।
  • घर्षण की वजह से बाँस के जंगलों में आग लग जाती है।

घर्षण कम करने के उपाय

  • सतह को चिकनी बनाकर । जैसे:- तेल या लुबरिकेन्टस् का उपयोग कर ।
  • बॉल्स बेयरिंग का उपयोग कर घर्षण को कम किया जा सकता है |
  • मशीनों से घर्षण की वजह से आने वाली आवाजों को बंद करने के लिए हम ग्रिस का उपयोग करते है, जिससे घर्षण कम हो जाता है।
  • केरमबोर्ड पर पाउण्डर छिड़ककर घर्षण को कम किया जाता है।

नततल पर विश्रान्ति कोण (angle of restat indnd Plane)

“किसी नततल का क्षैतिज के साथ वह अधिकतम कोण जब तक कोई पिंड उस नततल पर विश्रान्ति अवस्था में बना रहे, विश्रान्ति कोण कहलाता है।”

विश्रान्ति कोण

किसी समतल सतह पर वाहन का मुड़ना (वाहन का अधिकतम वेग)

\(V_max = \sqrt{μrg}\)

यह समतल सतह पर मुड़ते समय किसी वाहन का घर्षण की उपस्थिति में अधिकतम  सुरक्षित वेग कहलाता है।

सड़क का करवट या बैंकिंग

मोड़ की जगह पर सड़क बनाते समय सड़क बाहरी किनारा कुछ ऊँचाई तक ऊपर उठा दिया जाता है। जिससे वह सड़क ढालू के आकार की लगती है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि वाहन चालक को मुड़ते समय बार-बार ब्रेक न लगाने पड़े। अर्थात् वाहन के वेग को बार- बार कम न करना पड़े। ऐसा करना सड़क का बैंकिंग या सड़क में करवट करना कहलाता है।

क्षैतिज से सड़क जितने कोण से ऊपर उठाई जाती है। उसे सड़क का करवट कोण कहते है।

वृतीय गति (Circular motion)

जब कोई वस्तु किसी मूल बिन्दू के सापेक्ष वर्ताकार पथ पर गति करती है तो इसे उस वस्तु की वृतीय गति/ वर्तुल गति कहते है।

यह गति द्विविमीय गति का उदाहरण है।

यह रेखीय विस्थापन तथा कोणीय विस्थापन में सम्बन्ध बताता है।

कोणीय वेग (w)

वृताकार गति में इकाई समय में तय कोणीय विस्थापन, कोणीय वेग (w) कहलाता है।

V = rw

यह रेखीय वेग व कोणीय वेग में संबंध बताता है।

आवर्तकाल (T)

किसी वर्ताकार गति में किसी वस्तु को एक चक्कर तय करने में लगा समय उसका आवर्तकाल (T) कहलाता है।

इसकी इकाई सैकण्ड (sec) होती है।

आवृति (Frequency) (n या f )

प्रति सेकण्ड चक्करों की संख्या उसकी, आवृति कहलाती है।

              n = 1/T
इकाई  = 1/sec

कोणीय वेग व आवृत काल में संबंध

w = 2π/T

कोणीय वेग व आवृति में सम्बन्ध –

w = 2πn

अभिकेन्द्रीय त्वरण / त्रिज्य त्वरण

त्रिज्य त्वरण

माना कोई वस्तु r त्रिज्या के वृताकार पथ पर एक समान चाल v से गति कर रही है किन्तु इसके वेग की दिशा प्रति क्षण परिवर्तित होती है जिससे इस वस्तु में त्वरण उत्पन्न होता है जिसकी दिशा वेग की दिशा के लम्बवत होती है। अर्थात् वृताकार पथ के केन्द्र की ओर, तो इस त्वरण को अभिकेन्द्रीय त्वरण या त्रिज्य त्वरण कहते है।

a = v2/r

यह a वृताकार गति कर रहे वस्तु का अभिकेन्द्रीय या  त्रिज्य त्वरण कहलाता है।

अभिकेन्द्रीय बल (Contripetal force)

जब कोई वस्तु किसी वृताकार पथ में एक समान वेग v से गति करती है तो उस पर कोई एक  ऐसा बल लगता है, जो वस्तु को समान त्रिज्या के वृताकार पथ में बनाए रखता है,अभिकेन्द्रीय बल कहलाता है।

इसकी दिशा वस्तु के वेग के लम्बवत् तथा वृताकार पथ के केन्द्र की ओर होती है।

अत: अभिकेन्द्रीय बल :- \(F =\frac{mv^2}{r}\)

क्षैतिज तल में वृतीय गति

क्षैतिज तल में वृतीय गति

यहाँ T क्षैतिज तल पर वृताकार पथ में गति कर रहे पिंड का आवर्तकाल है जो कि धागे की प्रभावी लम्बाई l व कोण θ पर निर्भर करती है |

यहाँ हम g नियत =  9.8 m/s2 मानते है।

उर्ध्व तल में वृतीय गति

जब कोई पिंड किसी उर्ध्व तल में वृताकार पथ में वृतीय गति करता हो तो यह उर्ध्व तल में वृतीय गति कहलाती है।- बिंदु Aपर पिंड का वेग अधिकतम व बिन्दु C पर पिंड का वेग न्यूनतम होता है।

यदि कोई वस्तु नियत वेग के साथ गतिशील हो किन्तु उसका द्रव्यमान समय के साथ परिवर्तित होता हो तो उस निकाय या तंत्र पर बल निम्न प्रकार से ज्ञात कर सकते है।

जड़त्वीय या अजड़त्वीय निकाय (तन्त्र) (System/ Frame)

जड़त्वीय फ्रेम:- ऐसा फ्रेम जो एक नियत बिन्दू के सापेक्ष स्थिर हो, जड़त्वीय फ्रेम कहलाता है।

जिसके सापेक्ष हम किसी भी वस्तु के गति, चाल, त्वरण, विस्थापन आदि के मान ज्ञात कर सकते है। अर्थात् जिसमें न्यूटन के सभी नियम लागू होते हो, जड़त्वीय फ्रेम कहलाता है।

अजड़त्वीय फ्रेम:- ऐसा फ्रेम जो एक मूल बिन्दू पर स्थिर न हो, अजड़त्वीय फ्रेम कहलाती है।

जिसमें न्यूटन के नियम लागू नहीं होते।

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