Class 11 Biology Chapter 16 Notes in Hindi पाचन एवं अवशोषण

यहाँ हमने Class 11 Biology Chapter 16 Notes in Hindi दिये है। Class 11 Biology Chapter 16 Notes in Hindi आपको अध्याय को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेंगे और आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे।

Class 11 Biology Chapter 16 Notes in Hindi पाचन एवं अवशोषण

पोषण एवं पाचन

कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन व वसा भोजन के प्रमुख घटक हैं। भोजन से शरीर को ऊर्जा और कच्चे पोषक पदार्थ प्राप्त होते है। ये वृद्धि व ऊतकों की मरम्मत के काम आते है। इसी क्रिया को पोषण कहते हैं।

जटिल पोषक पदार्थों को सरल रूप में परिवर्तित करने की क्रिया पाचन कहलाती है।

पोषण के प्रकार

यह निम्न दो प्रकार का होता है –

1- स्वपोषण : इसमें जीव अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। हरे पौधे स्वपोषी कहलाते हैं।

ऐसे सूक्ष्म जीव जो रासायनिक पदार्थों का उपयोग करके अपना भोजन बनाते हैं उन्हें रसायन संश्लेषी स्वपोषी कहते हैं।

2- परपोषण : ऐसे जीव जो भोजन के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पौधों पर आश्रित होते हैं परपोषी या विषमपोषी जीव कहलाते हैं। उदाहरण – सभी जन्तु

जन्तुओं की श्रेणियाँ :

  1. शाकाहारी : ऐसे जन्तु अपना भोजन वनस्पतियों से प्राप्त करते हैं जैसे- गाय, बकरी आदि।
  2. माँसाहारी : ये अपना भोजन किसी अन्य जन्तु के मॉस से प्राप्त करते हैं जैसे- शेर, चीता आदि।
  3. सर्वाहारी : ऐसे जन्तु जो पौधों एवं जन्तुओं दोनों को खाते हैं। जैसे- मनुष्य, कुत्ता, बिल्लो आदि।

परपोषी जंतुओं के प्रकार

इन्हे निम्न श्रेणियों में बांटा गया है –

  1. परजीवी : ये किसी जीवित जन्तु के शरीर से तरल भोजन को प्राप्त करते हैं। जैसे : टेपवर्म, जोंक आदि।
  2. सहजीवी : इसमें पोषद और भोजन ग्रहण करने वाले जीव दोनों को एक- दूसरे से लाभ होता है जैसे – E Coli जो मनुष्य की आहारनाल में पाया जाने वाला एक जीवाणु है।
  3. मृतजीवी : ये अपना भोजन सड़े-गले जन्तुओं एवं पौधों से प्राप्त करते हैं। जैसे- घरेलू मक्खी।

मनुष्य एवं जन्तुओं के लिए आवश्यक पोषक पदार्थ

कार्बोहाइड्रेट

ये कार्बनिक यौगिक हैं जो कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन से बने होते हैं। कार्बोहाइड्रेट से शरीर को ऊर्जा प्राप्त होती है। शरीर के लिए आवश्यक ऊर्जा का लगभग 55-75% भाग कार्बोहाइड्रेट से मिलता है।

वसा

ये भी कार्बन, हाइड्रोजन तथा आक्सीजन से बने कार्बनिक यौगिक हैं। वसा के अपघटन से वसा अम्ल और ग्लिसरॉल प्राप्त होता है। शरीर के लिए आवश्यक ऊर्जा का लगभग 10-20% भाग वसा से प्राप्त होता है।

प्रोटीन

यह शरीर की वृद्धि व मरम्मत के लिए आवश्यक है। अमीनों अम्ल के बहुलीकरण से इनका निर्माण होता है। दाल, मांस, मछली, अण्डा आदि में प्रोटीन पाया जाता है। जीव शरीर का 75% भाग ठोस प्रोटीन का बना होता है।

खनिज लवण

ये भोज्य पदार्थों जैसे – दूध, अण्डा, मांस, सब्जी आदि से प्राप्त होते हैं।

शरीर में लगभग 20 प्रकार के खनिज लवण अल्प मात्रा में पाए जाते हैं।

खनिज लवणों का महत्व :

  1. कैल्शियम व फास्फेट जैसे खनिज लवण हड्डियों व दातों के मुख्य घटक है।
  2. खनिज तत्व जैसे- K, Na, Ca हृदय स्पंदन के लिए, पेशी संकुचन व रुधिर स्कंदन के लिए जरूरी है।
  3. Mg, zn, cu, co जैसे खनिज तत्व एंजाइमो के सहघटक के रूप में कार्य करते हैं।
  4. कुछ खनिज लवण जैसे Na, Cl , P, K आदि अम्ल क्षार संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

विटामिन

इसकी खोज फंक ने की, ये सरल कार्बनिक यौगिक है जो शरीर की उपापचयो क्रियाओं के लिए आवश्यक है। शरीर में विटामिन की कमी से होने वाले रोग को अपूर्णता रोग कहते हैं।

विटामिन को दो मुख्य श्रेणियों में बांटा गया है

  1. जल में घुलनशील विटामिन
  2. वसा में घुलनशील विटामिन

1. जल में घुलनशील विटामिन: इनका संचय शरीर में नहीं होता। अतः इसकी आवश्यकता हमें प्रतिदिन होती है। ये निम्न होते हैं-

(a) विटामिन Br कॉम्प्लेक्स: यह नाइट्रोजन युक्त विटामिन का समूह है और सह-एंन्जाइम के रूप में उपापचय में भाग लेता है। ये निम्नलिखित प्रकार के होते में –

विटामिनकार्यलक्षणकमी से होने वाले रोग
1. विटामिन B1 या थियामीन। यह हरी सब्जी, अंडे , माँस, आदि से मिलता है।यह पेशियां, तंत्रिकाओ व हृदय की कार्यिकी के लिए आवश्यक है।कमी से हृदय पेशियां कमज़ोर हो जाती है।वेरी वेरी नमक रोग होता हैI
2- विटामिन B2 या राइबोफ्लेविन। यह अण्डा, दूध मास, पनीर आदि से मिलता है।यह स्वास्थ्य व वृद्धि के लिए आवश्यक है।होंठ फटना, मस्तिष्क थकना आदि।किलोसिस रोग हो जाता है।
3- विटामिन B3 या पेन्टोथेनिक अम्ल यह अण्डा, माँस, ईध, यकृत, मूगफली से मिलता है।यह सहएंजाइम A का मुख्य घटक है।त्वचा खुरदुरी हो जाती है।त्वचा रोग होता है।
4. विटामिन B5 या निकोटिनिक अम्ल यह मांस, मछली, अनाज, पनीर आदि में मिलती है।यह NAD का मुख्य घटक है।शरीर का कमज़ोर होना।शरीर में वसा अम्ल का संश्लेषण नहीं हो पाता।

(b)- विटामिन c या ऐस्कार्बिक अम्ल: यह प्रतिरक्षी विटामिन है जो खट्टे पदार्थों जैसे- टमाटर, सन्तरा, नींबू आदि में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। इसकी कमी से स्कर्वी रोग होता है जिससे रुधिर स्राव होता है, मसूडे सूंज जाते हैं, प्रतिरक्षा क्षमता व जनन क्षमता में कमी आ जाती है।

2- वसा में घुलनशील विटामिन: ये मूत्र के साथ उत्सर्जित नहीं होते जिस कारण इसका संचय उतकों में हो जाता है ये निम्न प्रकार के होते हैं –

  • (a) विटामिन A या रेटिनॉल: इसका संश्लेषण यकृत में कैरोटीन से होता है। यह पपीता, गाजर, संतरा, आम पालक आदि में मिलता है इसकी कमी से रतौंधी रोग होता है।
  • (b)- विटामिन D या कैल्सिफेरोल: यह अंडा मछली के तेल, गुर्दा, दूध, मक्खन में मिलता है। इसकी कमी से बच्चों की हड्डियाँ कोमल, लचीली व टेढ़ी हो जाती है।
  • (c)- विरामित E या टोकोफेरॉल: यह अण्डा, अंकुरित अनाज, वनस्पति तेल आदि में मिलता है। इसकी कमी से जनन क्षमता कम हो जाती है।
  • (d)- विटामिन K या नैफ्थोक्विनोन: यह हरे पत्तों वाली सब्जियों, बथुआ, पालक, गोभी, सोयाबीन में मिलता है। इसकी कमी से चोट लगने पर रक्तस्राव देर तक होता रहता है।

जल

मानव शरीर में जल की मात्रा 60-70% तक होती है। यह शरीर में होने वाली जैविक क्रियाओं के लिए आवश्यक है । एक स्वस्थ मनुष्य को दिन में 3-4 लीटर पानी पीना चाहिए।

Chapter 1: जीव जगत
Chapter 7: नियंत्रण और समन्वय
Chapter 8: कोशिका: जीवन की ईकाई
Chapter 10: कोशिका चक्र और कोशिका विभाजन
Chapter 11: पौधों में परिवहन
Chapter 12: खनिज पोषण
Chapter 13: उच्च पादपों में प्रकाश संश्लेषण

मनुष्य का पाचन तन्त्र

यह आहारनाल व सहायक ग्रंथियों से मिलकर बना होता है।

आहारनाल

यह मुख से प्रारम्भ होकर गुदा द्वार तक फैली 8-10 मीटर लंबी व कुंडलित नली है।
इसके मुख्य भाग निम्न हैं :

  1. मुख एवं मुखगुहा
  2. ग्रसनी एवं ग्रासनली
  3. आमाशय
  4. छोटी आंत
  5. बड़ी आंत

1- मुख एवं मुखगुहा

दो चल होंठो के बीच स्थित अनुप्रस्थ दरार मुखद्वार कहलाता है जो मुखगुहा में खुलता है। मुखगुहा के पीछे अधिजिव्हा होती है जो भोजन निगलते समय भोजन को नासिका गुहिकाओं में जाने से रोकता है।

मुखगुहा में कई प्रकार के दांत और एक पेशीय जिव्हा होती है।

प्रत्येक जबड़े में 16 दाँत 8 दाई और 8 बाई ओर स्थित होते है इनमें :

  • a) कृन्तक i(2)
  • b) रदनक c(1)
  • c) अग्रचवर्णक pm (2)
  • d) चवर्णक m(3)

जिव्हा : यह स्वाद की जानकारी देता है। उसके अतिरिक्त भोजन में लार का मिश्रण तथा भोजन को दांतों की ओर धकेलकर चबाने के लिए मदद करती है।

2. ग्रसनी एवं ग्रासनली

मुखगुहा के पीछे एक कीप के आकार की गुहा होती है जिसे ग्रसनी कहते है इसके तीन भाग होते हैं –

  • नासोफैरिक्स: यह तालु के ऊपर का कोमल व चौड़ा भाग है।
  • ओरोफैरिक्स: यह तालु की नीचे का भाग है। मुखगुहा इसी में खुलती है।
  • लैरिंगोफैरिक्स: यह कंठ के पीछे का भाग है।

ग्रासनली लगभग 25 cm की एक पतली लग्बी, नली है। इसकी भित्ति पर श्लेष्मा ग्रन्थियाँ पायी जाती है जिनसे श्लेष्मा होता रहता है। ग्रासनली की क्रमाकुंचन गति के कारण भोजन आमाशय में जाता है।

3. आमाशय

यह देहगुहा के ऊपरी भाग में स्थित होता है।

आमाशय के कार्य : भोजन का संग्रह करना, आमाशय की जठर ग्रन्थियों से होने वाले स्राव से कार्बोहाइड्रेट व प्रोटीन का आंशिक पाचन होता है। आमाशय से स्रावित HCl अम्ल भोजन के जीवाणुओं को मार देता है।

यहाँ पर एल्कोहल, शर्करा, जल में घुले पदार्थों व औषधियों आदि का अवशोषण होता है।

4. छोटी आंत

यह लगभग 7 मीटर लंबी व 2.5 सेमी चौड़ी होती है। इसके तीन भाग होते हैं –

  • (i) गृहणी : यह अग्र भाग है। 4 आकार की नली होती है। पित्तवाहिनि, पित्तरस तथा अग्नाशयी वाहिनी अग्नाशयी रस को ग्रहणी में लाती हैं।
  • (ii) मध्यांत्र : यह 2.5 मी लंबी नली है।
  • (iii) शोषान्त्र : यह छोटी आंत का पश्च भाग है। यह आंत की अवशोषण सतह को बढ़ा देता है।

5. बड़ी आंत

शोषान्त्र बड़ी आंत में घुलती है। बड़ी आंत तीन भागों से बनी होती है अन्धनाल, वृहदान्त्र और मलाशय।

  • अन्धनाल: यह छोटी व बड़ी आंत के मिलने का स्थान है। यह एक छोटा थैला है जिसमें कुछ सहजीवी सूक्ष्मजीवी रहते हैं।
  • वृहदान्त्र : यह 4 आकार की नलिका है जो मलाशय में खुलती है।
  • मलाशय : यह लगभग 15 सेमी लग्बी होती है जो मलद्वार द्वारा शरीर से बाहर खुलता है।
  • बड़ी आत में बचे हुए भोजन व जल का अवशोषण होता है और अवशिष्ट पदार्थों को मलद्वार से त्याग दिया जाता है |

आहारनाल की आन्तरिक संरचना

आहारनाला की दीवार में ग्रसनी से मलाशय तक चार स्तर होते हैं – सिरोसा, मस्कुलेरिस, सबम्पूकोसा, और म्यूकोसा।

सिरोसा : यह वाह्य परत है जो एक पतली मोजोथीलियम व कुछ संयोजी ऊतक से बनी होती है।

मस्कुलेरिस : यह आन्तरिक वर्तुल पेशियों व बाह्य अनुदैर्ध्य पेशियों की बनी होती है।

सबम्यूकोसा : यह रुधिर, लसीका व संयोजी ऊतक से बना होता है।

म्यूकोसा : आहारनाल का यह सबसे भीतरी स्तर है। यह आमाशय में अनियमित वलय बनाता है लेकिन छोटी आंत की पूरी आंतरिक सतह पर श्लेष्मीका के असंख्य छोटे – छोटे अंगुलीनुमा उभार होते हैं जिन्हें रासंकुर कहते हैं।

पाचक ग्रन्थियाँ

इनमें लार ग्रन्थियाँ, यकृत और अग्न्याशय शामिल है।

1. लार ग्रन्थियाँ

लार ग्रंथि का निर्माण तीन जोड़ी ग्रंथियों से होता है। ये निम्नवत हैं –

  • a) कर्णपूर्व ग्रंथि: यह सबसे भीतरी लार ग्रन्थि है जो मुखगुहा में खुलती है। इस ग्रंथि में विषाणु के संक्रमण से गलसुआ रोग हो जाता है।
  • b) अधोजंभ ग्रन्थि: यह जीभ के नीचे होती है और श्लेष्म का स्राव करती है।

2. यकृत

यह मनुष्य के शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है। यह दो पालियों बायी पाली व दायी पाली वाला होता है। यकृत पालियां यकृत की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई है। इसके अंदर यकृत कोशिकाएं रज्जु की भांति व्यवस्थित रहती है।

यकृत कोशिकाओं से पित्त का स्राव होता है जो एक क्षारीय द्रव्य होता है और जिसमे पित्त वर्णक तथा पित्त लवण पाए जाते हैं।

यकृत के कार्य

  • a) पित्त रस का स्त्राव: यकृत की कोशिकाएं पित्त रस का स्त्राव करती है जो भोजन के पाचन का कार्य करती हैं।
  • b) ग्लूकोज का संचय: रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ने पर यकृत में ग्लूकोज ग्लाइकोजन के रूप में जमा होता है इस क्रिया को ग्लाइकोजेनेसिस कहते हैं।
  • c) ग्लाइकोजिनोलाइसिस: जब रक्त में ग्लूकोज कम हो जाता है तो यकृत में संचित ग्लाइकोजन ग्लूकोज में बदल जाता है। इस क्रिया को ग्लाइकोजिनोलाइसिस कहते हैं।
  • d) प्रोटीन का विअमोनीकरण: यकृत प्रोटीन के संचय को रोककर आवश्यकता से अधिक अमीनो अम्ल को पाइरुविक अम्ल व अमोनिया में बदल देता है। इसे विअमोनीकरण कहते हैं।

3. अग्न्याशय

यह बहिःस्रावी व अन्त: स्रावी दोनो ग्रन्थियों की तरह कार्य करता है जिसके बहिःस्रावी भाग से क्षारीय अग्न्याशयी स्राव निकलता है और अन्त: स्रावी भाग से इन्सुलिन व ग्लूकेगॉन हार्मोन का स्राव होता है।

अन्त: स्रावी भाग के पिंडकों के मध्य से संयोजी ऊतक में पीले रंग की कोशिकाओं के समूह मिलते है जिन्हें लैंगरहेन्स को द्विपिकाएं कहते हैं ये निम्न प्रकार का होती है –

  • a) बीटा कोशिकाएं: ये इन्सुलिन हार्मोन बनाती है जो यकृत के अंदर ग्लूकोज को ग्लारकोजन में संचित करता है। इन्सुलिन की कमी से मधुमेह रोग होता है।
  • b) एल्फा कोशिकाएँ : ये ग्लूकेगॉन हार्मोन बनाती है। ये इन्सुलिन के प्रभाव को कम करती है।

अग्न्याशय के कार्य :

  1. अग्न्याशय रस का निर्माण करता है जिसमें तीन एन्जाइम होते हैं –
    • a) ट्रिप्सिन: यह प्रोटीन तथा पेप्टोन को पेप्टाइड तथा ट्राइपेप्टाइड में विघटित करता है।
    • b) ऐमाइलोप्सिन: यह स्टार्च को ग्लूकोज में बदल देता है।
    • c) लाइपेज: यह वसा को ग्लिसरॉल तथा वसा अग्लों में विघटित करता है।
  2. इन्सुलिन का स्राव: यह ग्लूकोज की मात्रा को स्थिर करता है।
  3. ग्लूकेगान का स्राव: यह इन्सुलिन के प्रभाव को कम कर देता है।

भोजन का पाचन

1. मुखगुहा में पाचन

लार का श्लेण्म भोजन के कणों को चिपकाता है और उन्हें बोलस में रूपान्तरित करता है। यहां से निगलकर यह गृसिका में जाता है। पाचन की रासायनिक प्रक्रिया मुखगुहा में कार्बोहाइड्रेट को जल अपघटित करने वाले एन्जाइम टायलिन से शुरू होती है। लार में उपस्थित लाइसोजाइम जीवाणुओं के संक्रमण रोकता है।

2. अमाशय में पाचन

आमाशय की म्यूकोसा में जठर ग्रन्थि स्थित होती है जिसमें श्लेष्मा ग्रीवा कोशिका, पेप्टिक या मुख्य कोशिका, भित्तिय कोशिका स्थित होती है।

(i) श्लेष्मा गृवा कोशिकाएं: ये म्यूकस का स्राव करती है।

(ii) पेप्टिक कोशिकाएं: ये प्रोएंजाइम पेप्सिनोजन का स्राव करती है।

(iii) भित्तीय या ओक्सिन्टिक कोशिकाएं: ये HCL व नैज कारक का स्राव करती है। आमाशय में भोजन का संग्रहण 4-5 घंटे तक होता है। आमाशय की पेशीप दीवार के सकुंचन से भोजन अग्लीय जठर रस में मिल जाता है जिसे काइम कहते हैं। जठर ग्रन्थियाँ थोड़ी मात्रा में लाइपेज का स्राव करती है।

3. छोटी आंत में पाचन

अग्न्याशयी नलिका व आंत के द्वारा यकृत क्रमशः पित्त, अग्न्याशयी रस और आंत्र रस छोटी आंत में छोड़ जाते है। आंत्र श्लेण्म का स्राव करती है। आंत्र म्यूकोसा के द्वारा स्रावित एन्टेरोकाइनेज द्वारा ट्रिप्सिन में बदल जाता है जो अग्न्याशयी रस के अन्य एंजाइमो को सक्रिय करता है।

सम्पूर्ण प्रक्रिया के बाद निर्मित सरल पदार्थ छोटी आंत के क्षुद्रांत भाग में अवशोषित हो जाते हैं। और अपचयित व अन अवशोषित पदार्थ बड़ी आंत में चले जाते हैं।

4. बड़ी आंत में पाचन

यहाँ कोई महत्वपूर्ण पाचन क्रिया नहीं होती है। बड़ी आत का कार्य है:-

  • कुछ जल, खनिज व औषध का अवशोषण करना।
  • श्लेण्म का स्राव करना जो निकास को आसान बनाता है।

पदार्थों का अवशोषण – मुख, आमाशय, छोटी आत व बड़ी आंत जो आहारनाल के प्रमुख भाग है, में होता है लेकिन सबसे अधिक अवशोषण छोटी आंत में होता है।

पाचन तन्त्र के विकार

1. कुपोषण जनित रोग

a) क्वाशिओरकर : भोजन में लगातार होने वाली प्रोटीन की कमी से क्वाशिओरकर रोग होता है। यह 1 से 3 साल के बच्चों में अधिक होता है।

b) मैरेस्मस : यह बच्चों में होने वाला रोग है जो लंबे समय तक भोजन में प्रोटीन व ऊर्जा की कमी से होता है। अत: इसे प्रोटीन कुपोषण कहते हैं।

  • इस रोग से प्रभावित बच्चा दुर्बल व कमजोर हो जाता है। त्वचा पर झुर्रियों पड़ जाती है, आंखें भीतर धँस जाती है आदि।
  • इस रोग को भुखमरी कहते हैं।

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