Class 11 Biology Chapter 8 Notes in Hindi कोशिका: जीवन की ईकाई

यहाँ हमने Class 11 Biology Chapter 8 Notes in Hindi दिये है। Class 11 Biology Chapter 8 Notes in Hindi आपको अध्याय को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेंगे और आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे।

Class 11 Biology Chapter 8 Notes in Hindi कोशिका: जीवन की ईकाई

कोशिका( The cell)- कोशिका सभी जीवों की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक ईकाई है, कोशिका का कोई निश्चित आकार नहीं होता है, यह विभिन्न आकार की हो सकती है। जैसै गोलाकार अंडाकार आदि।

ऊतक- समान कार्य व समान समान संरचना वाले कोशिकाओं के समूह को ऊतक कहते हैं।

कोशिका की खोज- राबर्ट हुक ने 1665 ई. में की थी। इन्होंने ही सर्वप्रथम कोशिका भित्ति की खोज की।

ल्यूबेनहाक ने सर्वप्रथम जीवित कोशिका की खोज की। ल्यूबेनहाक ने ‘कोशिका’ को जीवन आधारभूत इकाई कहा।

ह्यूगो वान मोल तथा जोहानस पुरकिंजे ने कोशिका में जेली सदृश्य पदार्थ को प्रोटोप्लास्ट कहा।

कोशिका सिद्धांत (cell theory)

सन 1838 में जर्मनी के वनस्पति वैज्ञानिक मैथीयस श्लीडेन ने बहुत सारे पौधे के अध्ययन के बाद पाया की ये पौधे विभिन्न प्रकार के कोशिकाओं से मिलकर बने होते हैं। लगभग इसी समय 1838 में एक ब्रिटिश प्राणी वैज्ञानिक पियोडोर श्वान ने विभिन्न जन्तु कोशिकाओं के अध्ययन के बाद पाया कि कोशिकाओं के बाहर एक पतली पर्त मिलती है। जिसे हम जीवद्रव्य कला कहते हैं।

पहली बार रुडोल विरचोव ने स्पष्ट किया कि कोशिका विभाजित होती है और नई कोशिकाओं का निर्माण पूर्ववर्ती कोशिकाओं के विभाजन से होता है‌। विरचोव ने श्लीडेन वह श्वान की कल्पना को रुपान्तरित कर नया कोशिका सिद्धांत प्रतिपादित किया। वर्तमान समय में कोशिका सिद्धांत इस प्रकार है –

  • सभी जीव कोशिका व कोशिका उत्पाद के बने होते हैं।
  • नई कोशिकाएं पूर्ववर्ती कोशिकाओं से मिलकर बनी होती है।

वर्तमान समय में कोशिका सिद्धांत इस प्रकार है

  • सभी जीव कोशिका व कोशिका उत्पाद के बने होते हैं
  • नई कोशिकाएं पूर्ववर्ती कोशिकाओं से बनी होती हैं।

कोशिका के प्रकार

कोशिका दो प्रकार की होती है –

  1. प्रोकैरियोटिक
  2. यूकैरियोटिक

1. प्रोकैरियोटिक कोशिका

pro का मतलब होता है प्राचीन तथा kayotic से जिसका अर्थ है, केन्द्रक। अतः प्रोकैरियोटिक कोशिका एक ऐसी कोशिका है, जिसका केन्द्रक प्राचीन प्रकार का है। इसमें सत्य केन्द्रक का आभाव होता है। यूकैरियोटिक कोशिका अत्यंत सरल प्रकार की होती है तथा काफी तेजी से विभाजित होती है ।

प्रोकैरियोटिक कोशिका में पाये जाने वाले आवरण जो कोशिका को चारों ओर से घेरे होते हैं:- अधिकांश प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं विशेषकर जीवाणु कोशिकाओं में एक जटिल रासायनिक कोशिका आवरण मिलता है। जीवाणुओं में कोशिका आवरण दृढ़तापूर्वक बंधकर तीन स्तरीय संरचना बनाते हैं – जैसे  बाह्य परत ग्लाइकेलिक्स जिसके पश्चात क्रमश: कोशिका भित्ति एवं जीवद्रव्य झिली होती है।

उदाहरण – जीवाणु, नील हरित, शैवाल एवं माइकोप्लाज्मा।

यूकैरियोटिक कोशिका ( Eukariyotic cell)

जीवाणु नील हरित शैवाल एवं माइकोप्लाजमा को छोड़कर अन्य सभी पादप एवं जंतु कोशिकाओं को यूकैरियोटिक कोशिका कहते हैं।

Ex- लवक, माइटोकांड्रिया,गाल्जीकाय आदि उपस्थित होती है।

प्रोकैरियोटिक तथा यूकैरियोटिक कोशिका में अंतर

प्रोकैरियोटिक कोशिकायूकैरियोटिक कोशिका
1.इसमें सत्य केंद्र को अभाव होता है, केंद्रक कला नहीं पाई जाती है।1. इनमें पूर्ण विकसित केंद्रक पाया जाता है। केंद्रक चारों तरफ से केंद्रक कला द्वारा घिरा होता है।
2.इनमें झिल्ली युक्त कोशिकांग जैसे माइटोकॉन्ड्रिया, गाल्जीकाय अंत: प्रदयी जालिका आदि नहीं पाई जाती।2. इनमें सभी कोशिकांग जैसे माइट्रोकांड्रिया, लवक, ग्लाजीकाय आदि पाए जाते हैं।
3.इनमें श्वसन मीसोसोम द्वारा होता है।3. इनमें श्वसन माइट्रोकांड्रिया द्वारा होता है।
4.राइबोसोम 705 प्रकार का होता है।4. इनमें राइबोसोम 705 व 805 दोनों प्रकार का पाया जाता है।
5.इनमें रिक्तिका नहीं पायी जाती है।5. इसमें रिक्तियों पाई जाती है।

कोशिका भित्ति

  • इसकी खोज रॉबर्ट हुक ने की थी।
  • पौधों में यह सबसे बाहरी दृढ़ निर्जीव आवरण बनाता है।
  • कोशिका भित्ति अलग-अलग जीवों की अलग-अलग पदार्थ की बनी होती है।
  • Ex- जीवाणु में कोशिका भित्ति प्रोटीन लिपिड तथा पोलीसैकैराइड की बनी होती है।

कोशिका भित्ति की उत्पत्ति कैसे होती है?

कोशिका विभाजन के समय केंद्रक विभाजन के पश्चात केंद्रक प्लेट बनती है, जो आगे चलकर कोशिका भित्ति बनती है। यह कोशिका प्लेट इस प्रकार बनती है। विभाजित होती हुई कोशिकाओं के मध्य इक्वेटर पर गाल्जीकाय से टूटी थैलियां अंत: प्रदयी जालिका एवं तर्कतंतु इकट्ठा होकर फ्रेग्मोंप्ला्सट बनाते हैं। फ्रेग्मोंप्ला्सट को कोशिका भित्ति का प्राथमिक पदार्थ माना जाता है। फ्रेग्मोंप्ला्सट से कोशिका प्लेट का निर्माण होता है, जिससे कोशिका भित्ति बनती है‌

 कोशिका भित्ति के कार्य

यह एक पूर्ण पारगम्य परत है। कोशिका भित्ति का मुख्य कार्य कोशिका को दृढ़ता प्रदान करती है, परन्तु स्वयं निर्जीव होती है।

कोशिका झिल्ली या कोशिका कला (cell membrane)

सभी जीवो में जीवद्रव्य को घेरे हुए एक अर्धपारगम्य या विभेदी पारगम्य झिल्ली पाई जाती है, जिसे कोशिका कला या जीवद्रव्य कला कहते हैं।

जंतु कोशिका में यह सबसे बाहरी आवरण बनाती है, जबकि वनस्पति कोशिकाओं में यह कोशिकाओं में सबसे बाहरी आवरण बनाती है, जबकि वनस्पति कोशिका में कोशिका भित्ति के ठीक नीचे पाई जाती है।

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कोशिका झिल्ली के कार्य

इसके कार्य निम्न हैं

1. पारगम्यता( permeability)-  कोशिका झिल्ली की प्रकृति अर्धपारगम्य या विभेदी पारगम्य या चयनात्मक  पारगम्य होती है।

यह केवल केवल कुछ विशेष आकारों तक के ही अणुओं को अपने आर-पार होने देती है।

2. निष्क्रिय अभिगमन (passive transport)-  इस प्रकार के अभिगमन में बिना ऊर्जा खर्च किए कुछ आयन पानी के अणु आदि कोशिका झिल्ली से होकर सीधे ही अंदर या बाहर आ सकते हैं।

3.सक्रिय अभिगमन(Active transport)-  इस प्रकार के अभिगमन में कोशिका झिल्ली में उपस्थित विभिन्न प्रकार के वाहक अणुओं द्वारा ऊर्जा का प्रयोग कर विभिन्न प्रकार की अणुओं को उनकी सांद्रता विभव के विपरीत दिशा में स्थानांतरित किया जाता है।

4. भक्षाणू क्रिया- इस क्रिया में कोशिका झिल्ली द्वारा बाह्रय ठोस पदार्थों का भक्षण किया जाता है।

5. पिनोसाइटोसिस (pinocytosis)-  कोशिका झिल्ली द्वारा तरल पदार्थों को ग्रहण करने की क्रिया को पिनोसाइटोसिस कहते हैं।

कोशिका द्रव्य (cytoplasm)

  कोशिका द्रव्य के दो भाग हैं:-

  1. वह भाग जहां विभिन्न कोशिकांग जैसे माइट्रोकांड्रिया गाल्जीकाय, लवक आदि पाए जाते हैं, इस भाग को टूोफोलाज्म  कहते हैं। तथा
  2. वह भाग जहां कोशिकांग नहीं पाए जाते हैं इस भाग को साइटोसाल कहते हैं।

रसधानी या रिक्तिका (Vacuole)

रसधानी एकल कला युक्त कोशिकांग है। इसके आवरण को टोनोप्लास्ट कहते हैं।

पौधों की कोशिका में रितिका 90 % स्थान घेरती है। रसधानी के अंदर पाए जाने वाले द्रव्य को कोशिका रस कहते हैं।

अमीबा संकुचनशील रसधानी पाई जाती है जिसका कार्य उत्सर्जन एवं परासरण नियंत्रण है।

अंत: प्रदव्यी जालिका(endoplasmic reticulum)

यह एक नालिकावत जालिका तंत्र है जो केंद्रक से सटा होता है‌। इसकी खोज पोर्टर ने की थी।

अंत: प्रदव्यी जालिका के कारण अन्त: कोशिकीय स्थान दो भागों में बंट जाता है। अंत: प्रदव्यी जालिका के अंदर का स्थान ल्यूमिनल तथा इसके बाहर का स्थान एक्स्ट्राल्यूमिनल कहलाता है।

अंत: प्रदव्यी जालिका की संरचना:-

यह जीव द्रव्य में पाई जाने वाली सबसे बड़ी झिल्ली होती है। कोशिका में यह अग्र लिखित तीन रूप में मिलती है।

  1. सिस्टेर्नी
  2. थैलियां
  3. नालिकाएं

अंत: प्रदव्यी जालिका  के प्रकार:-

 यह दो प्रकार की होती है

  1. अकणिकामय अन्त: प्रदव्यी जालिका
  2. कणिकामय अन्त: प्रदव्यी जालिका

अंत: प्रदयी जालिकाके कार्य

  1. प्रोटीन संश्लेषण
  2. लिपिड संश्लेषण

गाल्जीकाय (Golgi body)

 इसकी खोज सर्वप्रथम कैमिलो गाल्जी ने की थी। इसे पादप कोशिकाओं में डिक्टियोसोम कहा जाता है।

गाल्जीकाय कार्य-

  1. स्त्रावण(Secretion)-  यह गाल्जीकाय का मुख्य कार्य है। थैलियों में पालीसैकैराइड एवं एंजाइम आदि एकत्रित होते रहते हैं। जिन्हें गाल्जीकाय समय-समय पर कोशिका की सतह पर बाहर स्रावित करते रहते हैं।
  2. कोशिका भित्ति का निर्माण- कोशिका भित्ति के निर्माण के समय गाल्जीकाय द्वारा हेमीसेल्यूओज का स्रावण किया जाता है।
  3. हार्मोन का उत्पादन
  4. शुक्रजनन के अंतर्गत अग्रपिण्डक का निर्माण

गाल्जीकाय को कोशिका का ट्रैफिक पुलिस भी कहते हैं, क्योंकि यह कोशिका के विभिन्न पदार्थों को जिस स्थान तक पहुंचाना होता है। बेंसिकल के रूप में बंद करके पहुंचा दिया जाता है।

माइट्रोकांड्रिया(mitochondria)

माइटोकॉन्ड्रिया की खोज अल्टमान ने की थी। उन्होंने इसे बायोप्लास्ट नाम दिया था। सन 1897 में सी. बेड़ा ने इसको माइटोकॉन्ड्रिया नाम दिया।

माइट्रोकांड्रिया का आकार एवं संरचना एवं संख्या-

माइट्रोकांड्रिया छड़नुमा, दीर्घ वृत्ताकार, गोलाकार ,अंडाकार आदि आकृति के होते हैं। सामान्यता इनकी संख्या कोशिकाओं में 40 से 50 हो सकती है। यकृत कोशिकाओं में इनकी संख्या 1500 तक होती है।

माइट्रोकांड्रिया दो कलाओं से घिरी होती है। बाहरी कला चिकनी होती है जबकि अंदर की कला जीवद्रव्य में अंदर की ओर उंगलियों के समान प्रवर्ध बनाती है। जिन्हें शिखर या क्रिस्ट्री कहते हैं।

माइट्रोकांड्रिया के अंदर खाली स्थान में एक प्रोटीन युक्त समांग पदार्थ का भरा रहता है, जिसे मैट्रिक्स कहते हैं।

माइट्रोकांड्रिया के कार्य –

माइट्रोकांड्रिया को कोशिका का उर्जा गृह कहते हैं क्योंकि इसमें आवसीश्वसन के फल स्वरुप एटीपी के रूप में ऊर्जा मुक्त होती है।

माइटोकॉन्ड्रिया के मैट्रिक्स में क्रेबस चक्र से संबंधित विभिन्न एंजाइम पाए जाते हैं। यहीं पर क्रेब्स चक्र अभिक्रिया संपन्न होती है।

लवक (plastids)

यह केवल पौधों की कोशिका में पाए जाते हैं ,प्रोकैरियोटिक तथा जंतु कोशिका में अनुपस्थित होते हैं। इसकी खोज हीकल ने 1865 में की थी। इसका नाम प्लाडिटृस  शिम्पर ने 1885 में रखा।

 लवक के प्रकार

  1. अवर्णी लवक
  2. वर्णी
  3. हरित लवक

1.अवर्णी लवक(leucoplast)- ये रंगहीन लवक होते हैं जो पौधों के भोज्य पदार्थ संग्रह करने वालों भागों जैसे भूमिगत तनो, या जड़ो आदि में पाए जाते हैं तथा भोज्य पदार्थों का संग्रह करते हैं।

 यह तीन प्रकार के होते हैं

  • प्रोटीनोप्लास्ट
  • ऐमाईलोप्लास्ट
  • इलायोप्लास्ट

2.वर्णी लवक

 हरे रंग को छोड़कर अन्य सभी रंग के लवक को वर्णी लवक कहा जाता है। ये पौधों के रंगीन भागों  जैसै पुष्पों, फलो, कलियों आदि में पाए जाते हैं।

  यह निम्न प्रकार के होते हैं

  • फियोप्लास्ट
  • रोडोप्लास्ट
  • क्रोमेटोफोर

3. हरित लवक(chloroplast)- इसकी खोज शिम्पर ने की थी। हरित लवक अधिकतर पत्ती के पर्णमध्योतक कोशिकाओं में पाए जाते हैं।

हरित लवक के भीतर एक अर्धठोस द्रविय पदार्थ भड़ा होता है, जिसे पिठिका स्ट्रोमा कहते हैं। बाह्य तथा अंता कला के बीच स्थित खाली स्थान को पेरीप्लास्टिडियल स्थान कहते हैं।

हरित लवक के कार्य

हरित लवक का मुख्य कार्य सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग कर कार्बोहाइड्रेट का निर्माण करना होता है। अंत: हरित लवक को कोशिका का रसोईघर कहा जाता है।

लयनकाय(Lysosome)

लाइसोसोम जल अपघटनीय एंजाइमों से भरी थैलियां हैं। लाइसोसोम का अर्थ पाचक काय।

 इसकी खोज डी दुबे ने की थी।

लाइसोसोम की उत्पत्ति

लाइसोसोम की उत्पत्ति गाल्जीकाय की थैलियों या अंत: प्रदयी जालिका की नालीकाओं से होती है।

कार्य

  • बाहरी पदार्थों का पाचन
  • कोशिकाओं में आंतरिक पाचन
  • स्वनष्टीकरण

राइबोसोम( Ribosome)

राइबोसोम की खोज जार्ज पैलैड ने की थी। राइबोसोम कोशिका में पाए जाने वाले सबसे छोटा एवं झिल्ली रहित कोशिकांग है।

राइबोसोम की दोनों उपइकाइयां की Mg++ सांद्रता से आपस में जुड़े लेते हैं। राइबोसोम के प्रोटीन को कोर प्रोटीन कहते हैं।

राइबोसोम के कार्य

राइबोसोम का मुख्य कार्य प्रोटीन का संश्लेषण की क्रिया द्वारा प्रोटीन का निर्माण करना होता है। इसी कारण राइबोसोम को प्रोटीन निर्माण की फैक्ट्री भी कहते हैं।

पॉली राइबोसोम( polyribosome)

 प्रोटीन संश्लेषण के  समय 4-5 राइबोसोम एमआरएनए के एक धागे पर एक कतार में बंध कर एक श्रृंखला बनाते हैं। जिसे पॉलिराइबोसोम कहते हैं ।

माइक्रोबॉडीज (Microbodies)

इनका निर्माण अंतः प्रदयी जालिका एवं गाल्जीकाय के थैलियों के टूटने से होता है। ये निम्नलिखित प्रकार के होते हैं:-

  1. परऑक्सीसोम्स
  2. ग्लाइऑक्सीसोम्स
  3. स्फीरोसोम्स

1. परऑक्सीसोम्स

ये उन पौधों में पाया जाता है जिनमें प्रकाश श्वसन की क्रिया होती है। जंतु कोशिकाओं में यह यकृत एवं वृक्क में पाए जाते हैं। पर ऑक्सीसोम्स  के द्रव्य में भी लाइसोसोम के समान जल अपघटनीय  एंजाइम पाए जाते हैं। जिसमें ऑक्सीडेज एवं के केटालेज मुख्य है।

उपापचय के फल स्वरुप कोशिका में उत्पन्न होने वाले विषैले पदार्थ हाइड्रोजन पराक्साइड का निर्माण करते हैं।

जुगनू के  परऑक्सीसोम्स में luciperase नामक एंजाइम पाया जाता है जिससे जुगनू अंधेरे में प्रकाश उत्पन्न करता है।

2. ग्लाइऑक्सीसोम्स

यह सबसे बड़ी माइक्रोबॉडीज है। यह प्राय: वसीय बीजों जैसे मूंगफली तथा अरंड की कोशिकाओं में जहां पर वसा कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तन होता है पाए जाते हैं।

3. स्फीरोसोम्स

इसकी खोज परनर ने की थी। इसमें भी लाइसोसोम की तरह जल अपघटनीय एंजाइम पाए जाते हैं। वसीय बीजों में यह सबसे ज्यादा पाया जाता है।

पक्ष्माभिका एवं कशाभिका ( cilia and flagella)

पक्ष्माभिका एवं कशाभिकाएं पू़छ की तरह कोशिका झिल्ली पर मिलने वाली अपवृद्धी है। पक्ष्माभिकाएं सूक्ष्म संरचना है जो चप्पू की तरह कार्य करती है।

 कार्य-  1.गमन(locomation)

कुछ शैवाल, युग्मक, प्रोटोजोआ, चल बीजाणू आदि कशाभिका या पक्ष्माभिका की सहायता से गति करते हैं।

2. गैसीय  आदान-प्रदान-

संघ सिलेन्टेट्रा के जंतु पक्ष्माभिका की गति से पानी की तरंग बनाते हैं जिससे लगातार श्वसन के लिए O2 मिलती  है तथा CO2 बाहर निकलती है।

तारककाय या सेंट्रोसोम

ये जंतु कोशिका में पाए जाने वाले विशेष कोशिकांग है जो कोशिका विभाजन में सहायक है, यह केवल जंतु कोशिका में केंद्रक के समय पाए जाते हैं। जबकी वनस्पति कोशिकाओं में यह अनुपस्थित रहते हैं, परंतु यह कुछ शैवालों, कवकों बायोफाइट्स मे पाए जाते हैं।

केंद्रक (Nucleus)

केंद्रक की खोज सर्वप्रथम रॉबर्ट ब्राउन ने की थी। समान्यत: यह कोशिका के मध्य में पाया जाता है, लेकिन ये कभी-कभी एक से अधिक संख्या में पाए जाते हैं

इनके निम्न प्रकार है:-

  • एककेंद्रकीय कोशिकाएं:- प्राय: सभी उच्च श्रेणी की जंतु कोशिका  है।
  • द्विकेंद्रीकरण कोशिकाएं-  दो केंद्रक पाए जाते है।
  • बहुकेंद्रीय कोशिकाएं- दो से अधिक केंद्रक पाए जाते हैं।

केंद्रक का रासायनिक संगठन-

केंद्रक में न्यूक्लियोप्रोटीन मिलते हैं ,केंद्रक में प्रोटीन 70 %, डीएनए 10 %, आरएनए 2-3% तथा फास्फोलिपिड 3-5%  मिलता है।

केंद्रीक ( Nucleolus)

केंद्रीक की खोज फोटेना ने की थी। प्राय: एक केंद्रक में एक ही केंद्रीक पाया जाता है,  परंतु इनकी संख्या अधिक भी हो सकती है। केंद्रीक के ऊपर कोई भी कला नहीं पाई जाती है। इस प्रकार यह केंद्रक द्रव्य तथा क्रोमैटिन कि सीधे संपर्क में होता है । इसके दो भाग्य हैं

  1. कणिकामय – इसे पार्स ग्रेन्यूलोसा कहते हैं।
  2. तन्तुमय- इसे पार्स फाइब्रिलोसा कहते हैं।

गुणसूत्र (chromosomes)

गुणसूत्र की खोज स्ट्रासबर्गर ने 1875 में की थी। कोशिका विभाजन के समय केंद्रक में उपस्थित क्रेमैटिन अवस्थित होकर अति कुंडलित संरचना बनाती है जिसे गुणसूत्र कहते हैं। मनुष्य में 46 गुणसूत्र पाए जाते हैं।

विशेष प्रकार की गुणसूत्र-

  • 1. लैम्पब्रुश गुणसूत्र- इस प्रकार के गुणसूत्र कशेरुकी  गुणसूत्र जंतुओं की अंडक में मिलते हैं। इनका आकार अत्याधिक बड़ा होता है।
  • 2. पॉलिटीन गुणसूत्र-  ई.जी. ने 1331 में सर्वप्रथम इन्हें देखा। टी. एस. पैटल ने ड्रोसोकिला की लार ग्रंथियों में बहुत लम्बे तथा चौड़े गुणसूत्र देखें तथा इन्हें पॉलीटीन गुणसूत्र कहा।

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