यहाँ हमने Class 11 Biology Chapter 12 Notes in Hindi दिये है। Class 11 Biology Chapter 12 Notes in Hindi आपको अध्याय को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेंगे और आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे।
Class 11 Biology Chapter 12 Notes in Hindi खनिज पोषण
खनिज तत्व और खनिज पोषण : हरे पेड़-पौधे अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। पौधे कार्बनडाई ऑक्साइड तथा जल की सहायता से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में ऊर्जायुक्त कार्बनिक पदार्थ मुख्यतः कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण (C6H1206) करते हैं।
- अकार्बनिक तत्व खनिज के रूप में भूमि में उपस्थित होते हैं जहां से पौधे उन्हें प्राप्त करते हैं। इन्हें खनिज तत्व या पोषक तत्व कहते है तथा इनके पोषण को खनिज पोषण कहते है।
अनिवार्य खनिज तत्व
कई प्रकार के खनिज तत्व जो पौधों के लिए आवश्यक होते हैं उन्हें अनिवार्य या आवश्यक खनिज तत्व कहते हैं।
अनिवार्य तत्वों का वर्गीकरण-
आवश्यक मात्रा के आधार पर अनिवार्य तत्वों को दो श्रेणियों में बांटा गया है :-
1- बड़े पोषक तत्व : इसमें कई तत्व आते है-
कार्बन (C), ऑक्सीजन (O), हाइड्रोजन (H), फास्फोरस (P), नाइट्रोजन (N), सल्फर (S), पोटैशियम (K), कैल्शियम (Ca), मैग्नीशियम (Mg)
- इन सभी में ऑक्सीजन, कार्बन व हाइड्रोजन मुख्य रूप से C02 एवं H20 से प्राप्त से होते हैं। अन्य सभी मृदा से खनिज के रूप में अवशोषित किए जाते हैं।
2- सूक्ष्म पोषक तत्व : अति सूक्ष्म मात्रा में पौधों को सूक्ष्म पोषक तत्व की जरूरत होती है। इनमें मैग्नीज (Mn), लौह (Fe), ताँबा (C4), मोलिब्डेनम (Mo), जिंक(Zn), बोरोन (B), क्लोरीन (C), निकिल (Ni) आते हैं।
बड़े एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों के कार्य :
नाइट्रोजन : पौधों में सर्वाधिक मात्रा में इसकी आवश्यकता होती है। मुख्यतः NO3– के रूप में इसका अवशोषण होता है। लेकिन NO2 या NO4 के रूप में भी कुछ मात्रा ली जाती है। नाइट्रोजन, प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्लों, विटामिन व हार्मोन का मुख्य संघटक है।
- नाइट्रोजन की कमी से पौधों की वृद्धि रुक जाती है। पुष्पों का विकास नहीं हो पाता।
फास्फोरस : फास्फोरस पादपों द्वारा मृदा से फास्फेट आयनों (H3P04 या HPO4) के रूप में अवशोषित किया जाता है।
- फास्फोरस कुछ प्रोटीन, कोशिका झिल्ली, सभी न्यूक्लिक अग्लों एवं न्यूक्लियोटाइड्स के संघटक है।
- फॉस्फोराइलेशन क्रियाओं में इसका महत्व है।
- फॉस्फोरस की कमी से पत्तियाँ समय से पूर्व झड़ जाती है।
पोटैशियम : पोटैशियम का अवशोषण पादपों द्वारा पोटैशियम आयन (k+) के रूप में होता है।
- पोटेशियम प्रोटीन, संश्लेषण, रंध्रों के खुलने व बन्द होने, एन्जाइम को सक्रियता, कोशिकाओं को स्फीत अवस्था में बनाए रखने में शामिल होता है।
- पोटैशियम की कमी से पौधा बौना हो जाता है, पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे पड़ जाते हैं, तने कमजोर हो जाते है जिस कारण हवा व बरसात में अनाज के पौधे मुड़ जाते हैं।
कैल्शियम : कैल्शियम को पादप मृदा से कैल्शियम आयनों (CA+2) के रूप में अवशोषित करते हैं।
- यह कुछ एन्जाइम को सक्रिय करता है और उपापचय क्रियाओं के नियन्त्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- कैल्शियम की कमी से हरितलवक ठीक से कार्य नही करता, पुष्प शघ्रि गिर जाते है आदि।
मैग्नीशियम : पादपों द्वारा यह डियोजी मैग्नीशियम (Mg+2) आयन के रूप में अवशोषित होता है। यह प्रकाश संश्लेषण तथा श्वसन क्रिया के एंजाइमों को सक्रियता प्रदान करता है। यह DNA व RNA के संश्लेषण में भी शामिल होता है।
- इसकी कमी से पत्तियों में हरिमहीनता आ जाती है जो बाद मे तरुण पत्तियों में भी दिखती हैं।
गन्धक : गन्धक को पादप द्वारा सल्फेट के रूप में लिया जाता है। यह मेथियानीन व सिस्टीन नाम के अमीनों अग्लो में पाया जाता है।
- इसकी कमी से पत्तियों में हरिमहीनता उत्पन्न होती है।
लोहा : लोहा को पादप फेरिक आयन (fe+3) के रूप में लेता है । पौधों को इसकी अनिवार्यता अधिक होती है।
- यह केरेलेज एंजाइम को सक्रिय कर देता है और यह वर्णहरित के निर्माण में अनिवार्य है।
- इसकी कमी से पल्लियाँ पीली पड़ जाती है, व हरिमहीनता उत्पन्न हो जाती है।
मैग्नीज : यह पादपों से मैग्नस आयन (Mn+2) के रूप मे अवशोषित होता है।
- मैग्नीज का प्रमुख कार्य जल के अणुओं को प्रकाश संश्लेषण दौरान विखण्डित कर ऑक्सिजन को उत्सर्जित करना।
- इसकी कमी से हरिमहीनता का लक्षण पत्तियों में दिखता है।
जिंक : जिंक को पादप द्वारा (Zn+2) आयन के रूप में लिया जाता है। यह विभिन्न एन्जाइमों को मुख्य रूप से कार्बोक्सीलेज को सक्रिय करता है।
इसकी कमी से पत्तियाँ विकृत होने लगती हैं। पौधों में पुष्पन की क्रिया ठीक से नहीं हो पाती है।
ताँबा : ताँबा क्यूप्रिक आयन (Cu+2) के रूप में अवशोषित होता है। लौह की तरह यह भी उन विशेष एन्जाइमों को जो रेडॉक्स प्रतिक्रिया से जुड़े होते हैं को संलग्न करता है और यह भी विपरीत दिशा में Cu+ से Cu+2 में ऑक्सीकृत होता है।
- इसकी कमी से नीबू प्रजाति के पौधों में शीर्षरंभी रोग हो जाता है।
बोरोन : यह B03-3 या B407-2 आयनों के रूप में अवशोषित होता है।
- बोरोन की अनिवार्यता Ca+2 को ग्रहण तथा उपयोग करने, कोशिका विभेदन व कार्बोहाइड्रेट के स्थानान्तरण में होती है।
- इसकी कमी से पुष्पन रूक जाता है, पत्तिया काली पड़ जाती हैं।
मोलिब्डेनम : यह पादप द्वारा मोलिब्डेट आयन (MoO2+2) के रूप में प्राप्त होता है।
- यह नाइट्रोजन उपापचय के अनेक एन्जाइमों का घटक है।
- इसकी कमी से अमीनो अम्ल एकत्र हो जाते है व पुष्पन रुक जाता है।
क्लोराइड : इसे क्लोराइड आयन (Cl-) के रूप में अवशोषित किया जाता है। यह प्रकाश संश्लेषण में जल के विखण्डन के लिए अनिवार्य है।
- इसकी कमी से पत्तियां मुरझा जाती है और जड़े छोटी रह जाती हैं।
आवश्यक पोषक तत्वों की कमी के लक्षण: पौधों की वृद्धि का रुक जाना, कुछ अकारिकीय बदलावों का आ जाना आदि। इसके अतिरिक्त क्लोरोसिस रोग का होना, कोशिका विभाजन का रूक जाना, पुष्पन में देरी होना आदि इसके लक्षण हैं।
खनिज लवणीय विषाक्तता: सूक्ष्म पोषक तत्वों की अनिवार्यता कम मात्रा में होती है लेकिन हल्की सी कमी होने पर भी अपर्याप्तता के लक्षण दिखते हैं बल्कि इनकी अल्प वृद्धि से व थोड़ी सी अधिकता से विषाक्तता उत्पन्न होती है।
उदाहरण : भूरे धब्वे जो क्लोरोटिक शिराओं द्वारा घिरे रहते हैं मैग्नीज की विषाक्तता के मुख्य लक्षण हैं।
Chapter 1 जीव जगत
Chapter 8 कोशिका: जीवन की ईकाई
Chapter 10 कोशिका चक्र और कोशिका विभाजन
Chapter 11 पौधों में परिवहन
Chapter 13 उच्च पादपों में प्रकाश संश्लेषण
हाइड्रोपोनिक्स : सन् 1860 में जे० वान ने प्रस्तुत किया कि बिना मिट्टी के पौधे विशेष पोषक विलयन में वृद्धि कर सकते हैं। इसी प्रकार के मृदाविहीन संवर्धन या विलयन संवर्धन विधि को ही हाइड्रोपोनिक्स कहते हैं। सामान्य पोषक विलयन में निम्न परिस्थितयाँ होनी चाहिए हैं:-
- सभी अनिवार्य खनिज घुलनशील हों।
- विलयन अधिक तनु हो और समय-समय पर बदला जाना चाहिए।
- विलयन संतुलित हो ।
- विलयन में वायु का आवागमन बना रहे।
- विलयन का PH आवश्यकतानुसार हो।
मृदाविहीन संवर्धन के प्रकार
यह मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है –
1- बालू का संवर्धन : इसमें पौधे की जड़ को शुद्ध बालू में रखते हैं और समय-समय पर इसमें पोषक विलयन डालते हैं। बालू के संवर्धन में वायु का उचित आवागमन होता है अत: इसे विलयन संवर्धन से अच्छा मानते हैं।
2- विलयन संवर्धन : इसमे पौधे की जड़ तरल पोषक विलयन में रहती है। इसके लिए सीसे का जार या पॉलीएथिलीन का उपयोग करते हैं। विलयन में हवा प्रवेश के लिए उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
नाइट्रोजन उपापचय
नाइट्रोजन चक्र : यह पौधों व जन्तुओं के लिए आवश्यक पोषक तत्व है इसका प्रयोग प्रोटीन, एन्जाइम, अमीनो अम्ल, नाइट्रोजन क्षारों, ATP, साइटोक्रोम, फाइटोक्रोम, विटामिन आदि के निर्माण में होता है।
वायुमण्डल में नाइट्रोजन अधिक है किन्तु पौधे इसे मृदा से नाइट्रेट (NO3-) आयन के रूप में अवशोषित करते हैं। इसे अमोनिया में अपचयित करते हैं उसके बाद इससे जीवद्रव्य में एन्जाइम, प्रोटीन, हाइड्रोजन ग्राही पदार्थों अमीनो अम्ल आदि का निर्माण होता है।
सभी जन्तु अपने नाइट्रोजन के लिए पौधों पर आश्रित होते हैं।
पुनः जन्तुओं व पौधों की मृत्यु व विघटन के बाद नाइट्रोजन वायुमण्डल में चली जाती है।
नाइट्रोजन चक्र निम्नलिखित पाँच चरणों में पूरी होती है-
1- नाइट्रोजन स्थिरीकरण :
अजैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण : नाइट्रोजन व ऑक्सीजन नाइट्रोजन के ऑक्साइड बनाते है जो मिट्टी में अवशोषित होकर नाइट्रोजन का निर्माण करता है।
N₂+ O₂ → 2NO
2NO+O₂ → 2NO₂
2NO₂+H₂O → 2H+ + N₂- + 2O₂-
फैन्किया (frankia) एक सहजीवी नाइट्रोजन स्थिरीकारक जीवाणु है।
जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण : इस नाइट्रोजन के स्थिरीकरण की क्षमता केवल कुछ ही नाइट्रोजन स्थिरीकारक जीवाणुओं व नीले – हरे शैवालों में होती है। क्योंकि इससे सम्बन्धित एन्जाइम नाइट्रोजिनेज केवल प्रोकेरियोटिक जीवों में मिलते है। कुछ प्रमुख नाइट्रोजन स्थिरीकारक जीवाणु निम्नलिखित है:
- अवायवीय स्वतन्त्र जीवी जीवाणु क्लोस्ट्रिडियम।
- वायवीय स्वतन्त्र जीवी जीवाणु बीजेरेन्किया।
- वायवीय स्वतन्त्र जीवी मृतजीवी जीवाणु एजोरोबैक्टर।
- सहजीवी मृतजीवी जीवाणु क्लेबसिएला।
- सहजीवी मृतजीवी जीवाणु राइजोबियम।
- अवायवीय आत्मपोषी जीवाणु क्लोरोबियम
- अवायवीय आत्मपोषी व मुक्तजीवी जीवाणु रोडोस्पाइरिलम।
- नाइट्रोजन स्थिरीकरण के लिए अवायवीय स्थिति का होना आवश्यक है।
2- नाइट्रिकरण : इसमें अमोनिया का नाइट्राइट व नाइट्राइट का नाइट्रेट में ऑक्सीकरण होता ऑक्सीकरण होता है जिसे नाइट्रीकरण कहते हैं।
2NH3 + 3O₂ → 2NO₂- +2H+ 2H₂O
2NO₂- + O₂ → 2NO3-
3- अमोनीकरण : अमीनो अम्ल के ऑक्सीकारी विनाइट्रोजनीकरण द्वारा अमोनिया बनती है। एमाइड के ऑक्सीकरण से अमोनिया बनती है।
- मुक्त अमोनिया पौधों के लिए विषैली होती है इसलिए इसे नाइट्किारक जीवाणुओं द्वारा नाइट्रीकरण क्रिया के फलस्वरूप नाइट्रेट (N03-) में परिवर्तित करते हैं जो जड़ो द्वारा अवशोषित हो जाता है।
4- विनाइट्रीकरण : स्यूडोमोनास डिनाइट्रिफिकेन्स, थायोबैसिलस डिनाइटिफिकेन्स मृदा में उपस्थित बद्ध नाइड्रोजन को गैसीय अवस्था में मुक्त करने की क्षमता रखते हैं।
- ये भूमि की उर्वरा शक्ति को कम करते हैं।
5- शरीर में नाइट्रोजन उत्सर्जन : सर्वप्रथम अपघाटनकारी जीवाणुओं द्वारा मृत पौधों व जंतुओं के प्रोटीन का अमोनिया में अपघटन होता है। यह अमोनिया नाइट्रीकारी जीवाणुओं द्वारा पहले नाइट्राइट फिर नाइट्रेट में बदल जाता है।
- यदि मृदा के नाइट्राइट की अधिकता हो जाती है तो विनाइट्रीकारी जीवाणु इन्हें पुनः चक्रीकरण के लिए नाइट्रोजन गैस में बदल देते हैं।
- मानव मृदा की उर्वरता को बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों का भी प्रयोग करता है। क्योंकि अधिक उपज के लिए नाइट्रोजनयुक्त उर्वरक आवश्यक होता है।
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