यहाँ हमने Class 10 Science Chapter 7 Notes in Hindi दिये है। Class 10 Science Chapter 7 Notes in Hindi आपको अध्याय को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेंगे और आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे।
Class 10 Science Chapter 7 Notes in Hindi नियंत्रण और समन्वय
नियंत्रण और समन्वय
- पर्यावरण की अनुक्रिया के प्रति उत्पन्न होने वाले परिवर्तन का तंत्रिका तंत्र द्वारा नियंत्रित करना नियंत्रण कहलाता है।
- इन परिवर्तनों के प्रति प्रतिक्रिया करके शरिर को शुव्यस्थीत तरिके से कार्य करवाना समन्वय कहलाता है।
जन्तु तंत्रिका तंत्र
बहुकोशिकिय जन्तुओ मे उनके कार्य मे समन्वय बढ़ाने के लिए विशिष्ट अगं पाए जाते है जो उनको समन्वय बढ़ाने में सहायता करते हैं।
1. ग्राही
बहुकोशिकिय जीवो में बाहरी वातावरण से सुचनाओ को ग्रहण करने वाले अंगो को ग्राही कहते है।
मानव शरिर में इन्हें ज्ञानेन्द्रियाँ भी कहते हैं यह संख्य में पांच होती है।
- प्रकाश के प्रति संवेदनशील – प्रकाशग्राही (आँख)
- ऊष्मा के प्रति संवेदनशील – ऊष्माग्राही (त्वचा)
- ध्वनि के प्रति संवेदनशील – ध्वनिग्राही (कान)
- स्वाद के प्रतिसवेदनशील -स्वाद ग्राही (जीभ)
- घ्राण (गन्द) के प्रति संवेदनशील – गन्द ग्राही (नाक)
2. तंत्रिका कोशिका( न्युरॉन)
(i) संरचना:-
तंत्रिका कोशिका मानव शरिर की सबसे लम्बी कोशिका होती है। इसमे विद्युत आवेग (न्युज) को ग्रहण करने के लिए धागे नुमा सरंचना होती है जिसे ध्रुमिका कहते है। तंत्रिका कोशिका मे एक केंद्रक पाया जाता है। ध्रुमिका और केन्द्रक के बीच कोशिका द्रव्य या कोशिकाकाय भरा हुआ रहता है।
तंत्रिका कोशिका में एक लंबी संरचना पाई जाती है जो कोशिका काय को तंत्रिका के अंतिम भाग से जोड़ता है।
नोट:- दो तांत्रिका कोशिका के बीच जहाँ वो जुड़ी हुई होती है वहाँ छोटे- छोटे रिक्त स्थान पाए जाते हैं जिन्हे सिनेप्स कहते है।
तत्रिका कोशिका की क्रियाविधि
ग्राही अंगों द्वारा ग्रहण किया गया विद्युत आवेश (न्यूज) कोशिका के द्रुमिका द्वारा ग्रहण किया जाता है। यह आवेश दुमिका से कोशिकाकाय तक जाता है जहाँ से इन आवेशों को तंत्रिकाक्ष की सहायता से तंत्रिका कोशिका के अंतिम शिरे तक पहुँचा दिया जाता है। तंत्रिकाक्ष के अंतिम शिरे पर विद्युत आवेश द्वारा कुछ रसायन छोड़े जाते हैं तथा विद्युत आवेश इनसे होता हुआ अगली तंत्रिका कोशिका के दुमिका ग्रहण कर लीया जाता है।
मानव मस्तिष्क
हमारे शरिर का लगभग सम्पूर्ण भाग मस्तिष्क के द्वारा नियंत्रित किया जाता है इसलिए मस्तिष्क को think tank of the body कहाँ जाता है। यह हमारे कपाल में अस्ति बॉक्स द्वारा सुरक्षित रहता है।
- मस्तिष्क तीन झीलियों से सुरक्षित रहता है जिसे मस्तिष्क आवरण कहते है।
- झीलियों के बीच का स्थान मेरू द्रव से भरा रहता है जो हमारे मस्तिष्क की सुरक्षा बाहरी आघातों से करता है।
मस्तिष्क के भाग
अग्र मस्तिष्क
मस्तिष्क का यह भाग मनुष्य रूप से सोचने वाला भाग होता है।
अग्र मस्तिष्क को तीन भागों में बाटा जाता है।
- (A) प्रमष्तिष्क: यह मस्तिष्क का सबसे जटील व बड़ा भाग होता है इसका प्रत्येक भाग अलग अलग कार्यो को नियंत्रित करता है।
- (B) थैलेमस मस्तिष्क: यह अग्र मस्तिष्क के केंद्र में स्थित होता है सभी संवेदी सूचनाएं थैलेमस से होकर गुज़रती है।
- (C) हाइपोथैलेमस मस्तिष्क: यह थैलेमस के नीचे स्थित होता है। रक्त दाब, शारीर का तापमान, भूख, प्यास आदि का नियंत्रण इसी के कारण होता है।
(2) मध्य मस्तिष्क
मस्तिष्क का यह भाग दृष्टि, श्रवण (सुनना) तथा सिर, गर्दन एवं दंड की प्रतिवति गतियों को नियंत्रित करता है। आंख की पुतली, अभिनेत्र लेन्स का आकार तथा आँख की पेशियों की गति मस्तिष्क के इसी भाग द्वारा नियंत्रित की जाती है।
(3) पश्च मस्तिष्क
- मस्तिष्क का यह भाग पॉन्स, अनुमस्तिष्क, व मेडुला ओब्लांगाटा से मिलकर बनता है।
- पॉन्स श्वसन क्रिया के नियंत्रण में सहायक होता है।
- अनु मस्तिष्क शारीरिक गतियाँ तथा आसन का समन्वय करता है।
- मेडुल्ला मेडुला ओब्लांगाटा हृदय स्पद, श्वसन, रक्त चाप को नियंत्रित करता है तथा निगलना, खासना, छीकना और वर्मन जैसी क्रियाएँ नियंत्रित करता है।
क्रियाएँ:
हमारे शरिर को नियंत्रण करने व समन्वय बढ़ाने के लिए अनेक क्रिया होती है जिन्हें तीन भागों में बाटा जाता है।
- एच्छिक क्रिया
- अनेच्छिक किया
- प्रतिव्रति क्रिया
- एच्छिक क्रिया:- वे क्रियाएँ जिनको हम नियंत्रित कर सकते है जैसे बोलना, लिखना, दौड़ना आदि।
- अनेच्छिक क्रिया:- वे क्रियाएँ जिनको हम नियंत्रित नहीं कर सकते हैं जैसे- हृदय का धड़कना, श्वसन, पाचन आदि।
- प्रतिप्रति क्रिया:- वे सभी क्रियाएँ जो किसी उदिपन के प्रति अचानक होती है, उन्हें प्रतिवति क्रिया कहते -जैसे पलक का झपकना, पैर को उठाना, खाना देखकर लार टिपकना आदि। प्रतिव्रति क्रियाओं का नियंत्रण मेरुराजु द्वारा होता है।
Chapter 1: रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण
Chapter 2: अम्ल, क्षारक एवं लवण
Chapter 3: धातु एवं अधातु
Chapter 4: कार्बन एवं उसके यौगिक
Chapter 5: तत्वों का आवर्त वर्गीकरण
Chapter 6: जैव प्रक्रम
पादपो में समन्वय
प्राणियों के भाँति पौधों में तंत्रिका तंत्र तथा समवेदी अंग जैसे आँख, कान, नाक आदि नहीं पाए जाते फिर भी उनमे पर्यावरण में होने वाले परिवर्तन को महसूस करने की क्षमता पाई जाती है। जैसे छुई-मुई के पौधे को छुने पर सिकोड़ जाती है। बीज जब अंकुरित होता है तो जड़ हमेशा नीचे तरफ
पौधो मे नियंत्रण और समन्वय के लिए पादप हार्मोनश होते हैं जो पौधे के अलग-अलग कार्यो में काम आते है।
पादपो में पाए जाने वाले हार्मोन:-
- ऑक्सीन हार्मोन
- जिबरेलीन हार्मोन
- साइटोकाइशमीन हर्मोन
- एब्सीसीक अम्ल हर्मोन
- इथाइलीन हार्मोन
(i) ऑक्सीन हार्मोन: यह वृद्धि हार्मोन होता है जो कि प्ररोह (कोपले) के अग्र भाग में वृद्धि करता है।
ऑक्सीन हार्मोन प्रकाश की उपस्थिति में कम गति से वृद्धि करते है इसलिए जब किसी पेड़ को एक दिशा से प्रकाश मिलता है तो वह कम वृद्धि करके प्रकाश की तरफ झुक जाता है ।
(ii) जिबरेलीन हार्मोन:- यह भी एक वृद्धि हार्मोन है जो की वृद्धि करता है तथा उन्हें मजबूत बनाता है।
(iii) साइटोकाइनीन हार्मोन:- यह भी एक वृद्धि हार्मोन है जो कोशिका विभाजन को प्रेरित करता है। यह हार्मोन स्मपूर्ण पौधे की वृद्धि कर सकता है परन्तु यह फलो व बीजो में अधिक मात्रा में काम करता है ।
(iv) एब्सिसीक ऐसिड: यह वृद्धि रोधक हॉर्मोन होता है। यह पत्ती, बीज़ तथा कलियों की वृद्धि रोकता है।
नोट:- पत्तियों के गिरने का कारण एब्सिसीक हार्मोन होता है।
(v) इथाइलीन हॉर्मोन: यह हॉर्मोन फलों को पकाने का काम करता है ।
पौधे से सम्बन्धीत कुछ परिभाषाएँ
(i) जतानुवर्तन: नमी के कारण पादप की जड़ों के द्वारा जल की तरफ गति करना जलानुवर्तन कहलाता है। जैसे- बायो फाइटस कवक आदि में यह गति पाई जाती है।
यह गति जड़ में पाई जाती है।
(ii) प्रकाशनुवर्तन: पादपो के प्ररोह के द्वारा ऑक्सीन हार्मोन की वजह से प्रकाश की तरफ गति करना प्रकाशनुवर्तन कहलाता है।
ऑक्सीन हार्मोन के कारण प्रकाश की विपरित दिशा में कोशिका विभाजन अधिक होता है इसलिए पौधा प्रकाश की तरफ झुक जाता है।
(iii) गुरुत्वनुवर्तन: जड़ो द्वारा गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव से भूमि में नीचे की तरफ वृद्धि करना गुरुत्वनुवर्तन कहलाता है।
(iv) कम्पानुवर्तन: किसी पौधे विभिन्न भाग में कम्पन्न की वजह से होने वाली गति कम्पानुवर्तन गति कहलाती है।
जन्तुओ मे हार्मोन
ग्रंथि का नाम | हार्मोन | स्थान | कार्य |
---|---|---|---|
पीयूष ग्रंथि | विरयुरीराइन | मस्तिष्क | अधिक स्राव से बौनापन |
थायराइड ग्रंथी | थायरॉक्सीन | गले मे | आयोडीन की कमी से घेंघा, गाइटर गलगण्ड का रोग हो जाता है। |
एड्रीनल ग्रंथी | एड्रीनलीन | वक्र मे ऊपर | यह हार्मोन उच्च रक्त चाप को नियंत्रित करता है। |
अग्नाश्य ग्रंथी | इन्सुलीन | आमाश्य के पास | यह शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करता है |
वृषण | टेस्टॉस्टेरॉन | जाँघ के ऊपर | जनन क्रिया व नर के सेक्स अंगो को विकास प्रदान करता है। |
अण्डाश्य | जाँघ के ऊपर | जनन क्रिया व मादा के सेक्स अंगो को विकास प्रदान करता है। | |
हाइपोथेलेमस | मुक्त हार्मोन | मस्तिष्क | ग्रंथियो का नियंत्रण करना |
थाइमस | थाइमोसीन | रोग प्रतिरोधक क्षमता |
ग्रंथियों से सम्बन्धित अन्य बाते
- पीयुष ग्रंथी को मास्टर ग्रंथी कहा जाता है क्योंकि सभी ग्रंथियों जैसे थॉयराइड, एड्रीनल आदि को नियंत्रित करती है।
- हाइपोथेलेमस ग्रंथी को हेडमास्टर ग्रंथी या मास्टर ऑफ मास्टर ग्रंथी कहा जाता है क्योंकि यह पीयुष ग्रंथी को नियंत्रित करती है।
- एड्रीनल ग्रंथी को अधीवृक ग्रंथी भी कहते है क्योंकि यह दोनो वृकों के ऊपर लगी होती है।
- एड्रीनल ग्रंथी से निकलने वाले हॉर्मोन एड्रीनलीन हॉर्मोन को करो या मरो, ल़डो या भागो, संकटकालीन हॉर्मोन कहा जाता है।
- आयोडीन की कमी से थायरोक्सीन हार्मोन कम बनता है। जिस कारण गलगंड रोग हो जाता है। इस रोग में व्यक्ति का गल्ला सुजकर लटक जाता है।
- अग्नाशय को लेगंरहैन्स द्वीपिकाओ से इंसुलिन हॉर्मोन निकलता है।
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