यहाँ हमने चोल साम्राज्य नोट्स(Chol Samrajya in Hindi) हिन्दी मे दिये है। चोल साम्राज्य नोट्स(Chol Samrajya in Hindi) आपको अध्याय को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेंगे और आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे।
Chol Samrajya in Hindi। चोल साम्राज्य नोट्स
चोल साम्राज्य
- दक्षिण भारत में स्थापित चोल साम्राज्य की स्थापना विजयालय ने की थी। यह मुख्य रूप से तमिलनाडू में स्थित है।
- चोल साम्राजय “पेन्नार” और कावेरी नदियों के बीच “पूर्वी तट पर स्थित था।
- विजयालय ने तंजावुर एवं तंजौर पर अधिकार करके “नरकेसरी” की उपाधि धारण की थी। ये
- चोल साम्राज्य को भारत में स्थानीय स्वशासन प्रणाली का जन्मदाता कहा जाता है।
प्रमुख शासन
A. आदित्य प्रथम (871ई से 907ई):-
आदित्य प्रथम (871ई से 907ई):- इसने चोलो को पूर्ण रूप से स्वतंत्र घोषित किया था। पल्ल्वो को परास्त करने के उपलक्ष में आदित्य ने “कोडण्डराम” की उपाधि धारण की।
B. परांतक प्रथम (907 ई. से 953):-
चोल अधिपत्य का वास्तविक स्थापना प्रथम के समय में ही हुई थी। उसने मदुरै के पांड्य राजा को हराया और “मदुरैकोड” की उपाधि धारण की। 949 ई. के उपरांत राष्ट्रकूट शासक कृष्ण तृतीय द्वारा पराजीत हुआ।
C. राजराजा प्रथम 985ई. से 1014 ई:-
985ई. में राजराजा के राज्यारोहन के साथ चोल सम्राज्य के महानता का युग प्रारम्भ हुआ।
- इसने सर्वप्रथम चेरों की नौसेना को कंडलूर में परास्त किया तथा इस विजय के उपलक्ष में “काण्डलूर” की उपाधि धारण की।
- इसने सररिलांनका के उत्तरी भाग पर अधिकार कर के उसे पोल सम्राज्य में मिला लिया और एक नया प्रान्त बनाकर उसे “मुमडीचोल मंडलम’ नाम दिया। इस समय श्रीलंका के राजा “महिन्द पंचम” थे।
- राजराजा से “अनुराधापुर” के स्थान पर पोलन्नरुआ अपनी राजधानी बनाई तथा इस नाम “जयनाथ मंडलम” रखा।
- राजराजा ने अपनी विजय अभियानों का समापन मालदीव द्वीप समूह के विजय से किया।
- इसने तंजौर में “बृहदेश्वर या राजराजेश्वर मंदिर (शिव मंदिर) का निर्माण किया।
- इसने एक दूत मंडल चीन भी भेज था।
- इसने अभिलेखों को ऐतिहासिक प्रशस्ति के साथ लिखने की प्रथा चलाई।
- इसने ‘मुम्माडिचोल देव, जगोण्ड, चोल मार्तंड आदि की उपाधियां भी ग्रहण की थी।
D. राजेन्द्र प्रथम (1012 ई. से 1044 ई.)
- राजराजा प्रथम की मृत्यु के बाद उनका पुत्र “राजेन्द्र प्रथम सम्राट बना तथा उसने भी अपनाने पिता के साम्राज्यवादी नीति को आगे बढ़ाया।
- अपने शासन के पांच वर्ष 1017 में उसने संपूर्ण श्रीलंका पर विजय प्राप्त किया।
- राजेन्द्र प्रथम से श्रीलंका के तत्काल शासक महिन्द पंग” को बंदी बनाकर चोल राज्य भेज दिया जहां 12 वर्षों के बाद उनकी मृत्यु हो गयी।
- ये प्रथम शासक था जो गंगा घाटी क्षेत्र पर आक्रमण किया था। इस गंगाघाटी क्षेत्र पर विजय के बाद राजेन्द्र ने गंगैकोड चोल की उपाधि धारण की तथा इस उपलक्ष में राजेन्द्र-l गंगैकोडचोलपुरम नामक नई राजधानी कावेरी नदी के तट पर बसाया।
- इस राजधानी के निकट सिंचाई के लिए “चोलगंगम” नामक विशाल तालाब की स्थापना करवाया।
- इसके समय में नौ सेना इतनी मजबूत थी कि बंगाल की खाड़ी को “चोलों का झील” कहा जाता था।
- राजेन्द्र के उपलब्धियों के बारे में उसके अभिलेख “तिरुवालगाडू” एवं करंदाई( तंजौर )से पता चलता है।
E. राजाधिराज प्रथम (1044ई. से 1054ई.):-
- राजेन्द्र- l के मृत्यु के बाद उसका पुत्र राजाधिराज प्रथम उत्तराधिकारी बना ।
- कल्याणी पर विजय के उपलक्ष में इसने कल्याणी नगर में अपना राज्याभिषेक कराकर विजय राजेन्द्र” की उपाधि धारण की।
- चालुक्य नरेश “सोमेश्वर के साथ हुए “कोप्पम” के युद्ध में राजाधिराज मारा गया।
F. राजेन्द्र द्वितीय (1054 ई. से 1064ई):-
- यह राजाधिराज का छोटा भाई था। राजाधिराज की हत्या के बाद इसी युद्ध में राजेन्द्र ने चालुक्यों को पराजित करके युद्ध क्षेत्र में ही अपना राज्याभिषेक किया।
G. वीर राजेन्द्र (1064ई. से 1070 ई.):-
- इसने तुंगभद्रा के तट पर एक “विजय स्तम्भ” की स्थापना की तथा इन्होंने “राजकेशरी” की भी उपाधि धारण की थी।
H. अधिराजेंद्र ( 1067ई – 1070 ई):-
इसकी हत्या उग्र भीड़ ने कर दी थी।
I. कुलोतुंग प्रथम (1070ई – 1120ई.):-
- राजेन्द्र- । का परपोता राजेन्द्र-।। था जो कुलोतुंग- । के नाम से चोल साम्राज्य का शासन किया। इसका शासनकाल शांति का काल था।
- इसके शासनकाल में ही श्रीलंका के राजा “विजयबाहु” ने अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी थी।
- 1077 ई. में कुलोतुंग-1 ने 92 व्यक्तियों का एक दल चीन भेजा था।
- अपने शासनकाल के अंतिम वर्षों में कुलोतुंग को दो बार कलिंग के विरुद्ध युद्ध करना पड़ा था।
J. कुलोतुंग-I। (1133ई. से 1150 ई.):-
- विक्रमचोल ने कुलोतुंगना के नाम से चोल साम्राज्य पर शासन किया। उसने चितम्बरम में स्थित नटराज मंदिर का पुनरुद्धार कराया तथा दान भी दिये।
- इसने चितम्बरम स्थित “गोविन्दराज मंदिर” की प्राचीन वैष्णव मूर्ति को समुद्र में फेकवा दिया था।
- इसने “त्याग समुद्र” की उपाधि धारण की थी।
K. कुलोतुंग -।।। (1178ई. से 1218ई.):-
- यह चोल साम्राज्य का अंतिम महान शासक था इसने कुम्भकोणम के निकट तिरुभुवन में “कम्पारेश्वर मंदिर बनवाया।
L. राजेन्द्र-III (1246ई. से 1279 ई.):-
- इसे एक युद्ध में पांड्य शासक सुंदर पांड्य ने पराजित किया तथा 1310 ई. तक शासन किया परन्तु 1310ई. में भारत पर मलिक काफूर के आक्रमण के बाद पूर्णतः समाप्त हो गया।
चोल प्रशासन
- केंद्रीय प्रशासन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति “राजा” था।
- शासन राजतंत्रात्मक था। उपराजा के रूप में सदा राजकुमारी की नियुक्ति होती थी।
- सरकारी पद वंशानुगत थे। सरकारी अधिकारी दो भागों में विभक्त था। ऊपरी श्रेणी के सरकारी अधिकारी को पेरुनंदनम तथा निम्न श्रेणी के सरकारी अधिकारी को ‘शिरूनदम कहा जाता था।
- राजा के व्यक्तिगत अंगरक्षको को “वडैक्कार” कहा जाता था।
- राज्य के मंत्रियों को उदनकुट्टम कहा जाता था।
- प्रशासन की सुविधा के लिए विशाल चोल साम्राज्य छः प्रान्तों में विभक्त था। प्रान्तों को “मंण्डलम” कहा जाता था।
- चोल साम्राज्य की प्रशासनिक इकाई राज्य मंडल, वलनाडू, नाडु, कुर्रम या कोट्टम में विभक्त था।
- स्थानीय स्वशासन प्रणाली के तहत गांवों में दो प्रकार की संस्था कार्य करती थी।
A. सभा/महासभा:- यह उच्च वर्गों की संस्था थी जिसमे मुख्य रूप से ब्राह्मण एवं उच्च जाति के लोग भाग लेते थे।
B. उर:- यह साधारण जनता की सभा थी जिसमे आम जनता भाग लेती थी।
राजस्व व्यवस्था
- राज्य की आप का प्रमुख साधन ‘भूमिकर था। जिसे ग्राम सभाएं वसूल करती थी। कृषि उत्पादन का 1/3 भाग भूराजस्व के रूप में वसूल किया जाता था।
- भूमिकर के अतिरिक्त चोल राजा व्यापार कर एवं विवाह समारोह पर भी कर लगाया जाता था।
- अन्न का मान एक कलम = तीन मन था।
- सोन के सिक्के को काशू कहा जाता था।
- वेली भूमिमाप की इकाई थी।
- राजस्व विभाग के प्रमुख अधिकारी को “वरितपोतराक कहलाते थे।
सैन्य संगठन:-
- चोल सेना के तीन प्रमुख अंग थे।
- पदाति (पैदल सेना) 2. गजारोही सेना( हाथी सेना) 3. अस्वरोही सेना (घुड़सवार सेना)
- राजा सैन्य संगठन का प्रधान होता था।
- सेना की टुकड़ियों के प्रधान को “नायक तथा सेना अध्यक्ष या प्रधान सेनापति को “महादण्डनायक / सेनापति” कहा जाता था।
- सेना के ब्राह्मण सेनापति को ब्रह्माधिराज” कहा जाता था।
- न्याय समितियों को “न्यायातर” कहा जाता था।
स्थानीय प्रशासन
- स्थानीय प्रशासन व्यवस्था में समिति प्रणाली को लागू किया गया था जिसे “वारियम” कहा जाता था। वारियम के सदस्य की कार्यावधि तीन वर्ष की होती थी।
चोल समाज
- चोल समाज दो वर्गो में विभक्त था। 1.ब्राह्मण 2. अब्राह्मण
- शुद्र कृषक “वेल्लाल” कहलाते थे।
- इस काल में रथराज नामक नए वर्ग का उदय हुआ था जिनकी उत्पत्ति उच्च वर्ग के पुरुषों और निम्न वर्ग की महिलाओं के संयोग से माना जाता था।
- महिलाओं की स्थिति उत्तर भारत की अपेक्षा अच्छी थी।
कला एवं संस्कृतिः
- चोल काल में शैव तथा वैष्णव दोनों धर्म महत्वपूर्ण थे।
- इस काल में तमिल भाषा एवं साहित्य की काफी विकास हुई थी।
- रामायण को तमिल भाषा में अनुवाद प्रसिद्ध तमिल विद्वान “कम्बन” ने किया था।
- कुलोतुंग द्वितीय द्वारा समुद्र में फैकी गयी “गोविन्दराज” की मूर्ति को प्रसिद्ध संत “रामानुजाचार्य” ने तिरुपति बालाजी मंदिर (आंध्रप्रदेश) में फिर से स्थापित करवाया था।
- चोल काल में मंदिर निर्माण में द्रविड शैली का उपयोग होता था तथा मंदिर पिरामिड आकार के बनते थे।
- मंदिर के प्रवेश द्वार को “गोपुरम” एवं मंदिर के शिखर को “विमान” कहा जाता था।
- तमिलनाडु का चिदम्बरम मंदिर “नटराज” की प्रतिमा के लिये प्रसिद्ध है जो कांसे की बनी है तथा चतुर्भुजाकार है।
- मंदिर में राजा-रानी की मूर्ति स्थापित करने की परंपरा पहली बार चोलों ने ही शुरू की थी।
- चोलेश्वर मन्दिर का निर्माण “विजयालय” ने करवाया था।
- ईंटों के स्थान पर पत्थरों का उपयोग चोलों के काल में ही शुरू हुआ था।
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