शेरशाह सूरी का इतिहास । Shershah Suri in Hindi

यहाँ हमने शेरशाह सूरी का इतिहास हिन्दी (Shershah Suri History in Hindi) मे दिये है। शेरशाह सूरी नोट्स (Shershah Suri in Hindi) आपको अध्याय को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेंगे और आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे।

शेरशाह सूरी का इतिहास । Shershah Suri in Hindi

द्वितीय अफगान वंश की नीव शेरशाह सूरी ने रखी

शेरशाह सूरी (1540-45 ई०)

बचपन का नाम – फरीद खाँ

  1. पिता- हसन खाँ
  2. दादा- इब्राहिम शूर ( घोड़े का व्यापारी )
  3. उपाधियाँ- शेर खाँ, हजरत-ए-आला शेरशाह
  4. जन्म- 1472 ई० (पजांब के बजवाड़ा में)
  • हसन ख़ाँ (शेरशाह का पिता) हिसार (हरियाणा) के जागीरदार जमाल खाँ के यहां नौकरी करता था।
  • सिकन्दर शाह लोदी ने जमाल खां को जौनपुर का जागीरदार नियुक्त कर दिया तो जमाल खां ने अपने अधीन हसन खां को हाजीपुर, सहसाराम, ख्वासपुर का जागीरदार बना दिया। शेरशाह का अपने पिता हसन खां से झगड़ा हो गया जिसके पश्चात वह जौनपुर आकर 3 वर्षों तक अरबी, फारसी, हिन्दी व गणित की शिक्षाएं प्राप्त की।
  • 1497 ई० में जमाल खाँ ने पिता व पुत्र के बीच समझौता करवा कर हाजीपुर भेज दिया।
  • 21 वर्षो तक शेरशाह सूरी ने अपने पिता के कार्यों में हाथ बटवाया और प्रशासनिक कार्यों को भी किया।
  • शेरशाह सूरी अपनी सौतेली माताओं से झगड़ा कर 1518 ई० में आगरा में दौलत खाँ लोदी के शरण में चला गया।
  • 1520 ई० में हसन खाँ की मृत्यु हो जाने पर सुल्तान इब्राहिम शाह लोदी ने शेरशाह को हाजीपुर का जागीरदार बना दिया ।
  • शेरशाह सूरी का जागीर के बटवारे को लेकर सौतेले भाई सुलेमान से मतभेद हो जाने के कारण वह दक्षिणी बिहार के सुबेदार वहार खाँ लोहानी के यहा जाकर नौकरी करने लगा ।
  • एक दिन वराह खाँ लोहानी के साथ शिकार खेलते समय एक बार में एक शेर को शेरशाह सूरी ने मार दिया। इस बहादुरी से प्रसन्न होकर वहार खाँ लोहानी ने शेरशाह सूरी को शेर खाँ की उपाधि तथा अपने अल्पवयस्क पुत्र जलाल खाँ का संरक्षक नियुक्त कर दिया ।
  • 1526 ई० में बाबर ने मुगल वंश की नींव डाली उसी समय वहार खाँ लोहानी मुहम्मदशाह की उपाधि धारण करके दक्षिणी बिहार का स्वतन्त्र शासक बन बैठा।
  • शेरशाह की बढ़ती हुई प्रतिष्ठा से लोहानी सरदार शेरशाह से ईर्ष्या करने लगे जिससे शेरशाह मुगलों की सेना में भर्ती होकर चन्देरी के युद्ध में बाबर की ओर से युद्ध किया।
  • शेरशाह सूरी पुनः 1528 ई० में वहार खाँ लोहानी उर्फ मुहम्मद शाह के यहां चला गया।
  • 1528 ई० मे वहार खाँ की मृत्यु हो जाने के पश्चात शेरशाह ने वहार खाँ की पत्नी दुदु से शादी करके हजरत-ए-आला की उपाधि धारण करके दक्षिणी बिहार का स्वामी बन बैठा।
  • शेरशाह सूरी ने 1530 ई० मे चुनार के किलेदार ताज खां की विधवा पत्नी लार्ड मल्लिका से विवाह करके चुनार के किले पर अधिकार कर लिया ।

राज्याभिषेक

17 मई 1540 ई० को कन्नौज अथवा बिलग्राम के युद्ध में हुमायु को पराजित करने के बाद 10 जून 1540 ई० को शेरशाह ने अपना राज्यभिषेक करवाया।

साम्राज्य विस्तार

बंगाल विद्रोह (1541 ई०)

  • बंगाल के तत्कालीन शासक मुहम्मद शाह की मृत्यु हो जाने के पश्चात खिज्र खाँ ने बंगाल में अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी। शेरशाह बंगाल पहुंच खिज्र खाँ को कैद कर लिया तथा बंगाल को 19 सरकारो (जनपदो) में विभाजित कर दिया
  • प्रत्येक सरकार में शिकदार-ए-शिकदारान नामक पद का सृजन करके छोटे-छोटे सैन्य टुकड़ियो में विभाजित कर दिया। प्रत्येक शिकदारों के ऊपर एक असैनिक अधिकारी अमीर (अमीन)-ए-बंग्ला के पद का सृजन किया।
  • अमीर-ए- बंग्ला के पद पर सर्वप्रथम काजी फजीलात को नियुक्त किया गया था ।

मालवा विजय (1542 ई०)

शेरशाह सूरी ने बुन्देलखण्ड से उज्जैन के बीच मालवा क्षेत्र के शासक मल्लू खाँ उर्फ कादिरशाह पर आक्रमण किया तो कादिरशाह भयभीत होकर आत्मसमर्पण कर दिया।

रायसीन पर आक्रमण (1543)

शेरशाह सूरी 1543 ई० मे बिहार राज्य के पाटलिपुत्र गया तथा उसने पाटलिपुत्र का नाम बदलकर पटना रखा।

वहा पहुंचने पर उसे मालूम हुआ कि रायसीन के राजपूत राजा पूरनमल मुस्लिम महिलाओं को शहर में नाचने के लिए मजबूर कर दिया है।

यह खबर पाकर शेरशाह ने रायसीन पर आक्रमण करके विश्वासघात द्वारा पूरनमल को मारकर रायसीन पर अधिकार कर लिया।

15.43 ई० में शेरशाह सूरी का बड़ा बेटा कुतुब खां अपने पिता द्वारा किये गये विश्वासघात से दुखी होकर आत्महत्या कर लिया था।

मारवाड विजय (1544 ई०)

  • 1544 ई० में शेरशाह सूरी ने अत्यधिक समय तक मारवाड़ के किले का घेरा डाले रहा।
  • लम्बे समय तक घेरा डालने के बाद अन्ततः उसे सफलता तो मिली लेकिन अत्यधिक समय लग जाने के कारण शेरशाह सूरी ने कहा था कि “मै मुट्ठी भर ज्वार (बाजरा) के लिए पूरा हिन्दुस्तान खो दिया “।

कालिजर पर आक्रमण (1545 ई०)

  • 1544 ई० मे कालिजर विजय हेतु शेरशाह ने प्रस्थान किया। उस समय कालिंजर पर राजा कीरत सिंह शासन कर रहा था। कीरत सिंह ने जब कोई प्रतिरोध नहीं किया तब शेरशाह सूरी ने 22 मई 1545 ई० को किले पर गोला बरसाने का आदेश दे दिया। उसी वक्त एक गोला किले की दिवार से टकराकर वापस रखे हुए गोला बारूद पर आ गिरने से भयकर विस्फोट हुआ जिससे शेरशाह घायल हो गया व उसी दिन उसकी मृत्यु हो गयी।
  • शेरशाह को उसके द्वारा बनवाये गये सहसाराम (बिहार) के मकबरे में दफना दिया गया।
  • इस प्रकार गुजरात, कश्मीर, आसाम को छोड़कर शेष उत्तर भारत में शेरशाह का साम्राज्य फैला हुआ था। बंगाल सहित शेरशाह का पूरा साम्राज्य 47 सरकारों (जनपदो) में विभाजित था।

प्रशासन

  • साम्राज्य – सुल्तान
  • सूबा – सूबेदार
  • सरकार – शिकदार – ए- शिकदारान
  • परगना – आमिल / शिकदार
  • गाँव / ग्राम – मुकद्दम / चौधरी

शेरशाह सूरी ने केन्द्रीय प्रशासन के संचालन के लिए पाँच प्रमुख विभागों की स्थापना की –

  • दीवान. ए. विजारत:- यह विभाग वित्त विभाग से सम्बन्धित या अन्य विभागों में यह प्रमुख था जिसका नियन्त्रण अन्य सभी विभागों पर होता था। राज्य की आय और व्यय का लेखा जोखा रखना भी इस विभाग का कार्य होता था।
  • दीवान-ए-रिसालत:- यह विदेश विभाग होता था जो राज्यो के साथ सम्बंध तथा अन्य कार्यवाहियो को सम्पादित करता था।
  • दीवान- ए आरिज / अर्ज:- यह सैन्य विभाग होता था। इस विभाग द्वारा सैनिकों की भर्ती, वेतन, प्रसिक्षण व अन्य कार्यवाहियो को करने की जिम्मेदारी होती थी।
  • दीवान-ए-ईशा:- यह आलेखन विभाग होता था। इस विभाग द्वारा सुल्तानों के आदेशो को लिपिबद्ध करके अन्य विभागो का सूचनार्थ भेजा जाता था।
  • दीवान-ए-कजायह न्या:- विभाग था।

भू- राजस्व कर

  • शेरशाह सूरी ने भू राजस्व कर रैयतवाड़ी प्रथा के आधार पर वसूल किया था।
  • रैयतवाड़ी प्रथा के द्वारा किसानों से सीधे बात चीत करके भू राजस्व संग्रह किया किया जाता था। इस प्रथा का प्रारम्भ सर्वप्रथम शेरशाह सूरी ने ही किया था।
  • भू राजस्व कर पैदावार का 1/3 भाग वसूल किया जाता था परन्तु मुल्तान से 1/4 भाग ही भू राजस्व वसूला जाता था।
  • शेरशाह सूरी ने भूमि माप हेतु गज- ए – सिकन्दरी नामक ईकाइ का प्रयोग किया जो 32 अंगुल या 314 मीटर होता था।

सड़क एंव सराय का निर्माण

सडक-ए-आजम

4 सड़के-

  • पश्चिम बंगाल – (सोनार गाँव से अटक तक)
  • आगरा से बुहरानपुर तक
  • आगरा से चित्तौड़ तक
  • लाहौर से मुल्तान तक
  • उपर्युक्त सड़को का निर्माण शेरशाह सूरी द्वारा किया गया था। इन सड़को को सड़क-ए-आजम कहा जाता था।
  • भारतीय गवर्नर जनरल लॉर्ड ऑकलैण्ड (1836-42 ई०) ने सड़क-ए-आजम का नाम बदलकर ग्रांट ट्रक रोड (G.T Road) रखा था।
  • उपर्युक्त सड़को पर शेरशाह सूरी ने 1700 सरायो का निर्माण करवाया था। दो सरायो के बीच की दूरी लगभग 3-4-मील की होती थी।
  • इन सरायो से डाक व्यवस्थाएं भी संचालित की जाति थी ।

न्याय व्यवस्था

  • शेरशाह सूरी न्याय व्यवस्था का सबसे प्रमुख पदाधिकारी था। वह प्रत्येक बुद्धवार की शाम न्याय के लिए बैठता था। वह किसी प्रकार का भेद भाव नहीं करता था।
  • सुल्तान के नीचे के स्तर के मुकदमो को देखने के लिए दीवान – ए- काजी की नियुक्ति की गयी थी।
  • सरकारी स्तर के मुकदमों को देखने वाला अधिकारी मुन्सिफ – ए- मुंशिफान था ।

गुप्तचर व्यवस्था

गुप्तचर व्यवस्था “दीवान-ए-वरीद” के अधीन होती थी जो प्रत्येक सूबो एवं सरदारों गुप्त संदेश वाहको के माध्यम से सूचनाएं एकत्रित करता था

साहित्य

मलिक मुहम्मद जायसी शेरशाह सूरी के दरबारी कवि थे। इन्होने पदमावत, अखरावट व आखिरी कलाम नामक काव्यो की रचना की।

सिक्के

  • चाँदी:- नाम – रूपया, वजन – 180 ग्रेन
  • ताँबा:- नाम- दाम, वजन- 380 ग्रेन

स्थापत्य कला

  • शेरशाह सूरी ने हुमायु द्वारा बनवाये गये दीनपनाह भवन पर पुराने किले का निर्माण करवाया तथा उस किले के अन्दर किला-ए-कहना नामक मस्जिद का निर्माण करवाया।
  • बिहार मे – रोहतास गढ़ का किला गढ़ बनाया।
  • शेरशाह सूरी ने कन्नौज नगर को बरबाद करके शेरशाह सूर नगर बसाया व 1543 ई. मे पाटलिपुत्र का नाम बदल पटना रखा।

Tagged with: sher shah suri history | sher shah suri history in hindi | sher shah suri in hindi | शेरशाह सूरी | शेरशाह सूरी इन हिंदी | शेरशाह सूरी का इतिहास

Have any doubt

Your email address will not be published. Required fields are marked *