Here we have provided Madhur Madhur Mere Deepak Jal Class 10 Solutions Hindi – [NCERT + PYQ]. These solutions will help you in understanding the chapter better & will make you with the types of questions that can be framed for your exam.
NCERT Madhur Madhur Mere Deepak Jal Class 10 Solutions Hindi:
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
प्रश्न 1. प्रस्तुत कविता में ‘दीपक’ और ‘प्रियतम’ किसके प्रतीक हैं?
उत्तर- प्रस्तुत कविता में ‘दीपक’ आस्था तथा ‘प्रियतम’ ईश्वर के प्रतिक है। जिस प्रकार प्रियतम के आने पर हम रौशनी फैलते है उसी प्रकार ईश्वर को अपने मन में बसा सके इसलिए आस्था रूपी दीपक जलना होगा।
प्रश्न 2. दीपक से किस बात का आग्रह किया जा रहा है और क्यों ?
उत्तर- दीपक से आग्रह किया गया है की वह हर परिस्थिति में जलता रहे। दीपक से आग्रह है की वह युग-युग जलते रहे, प्रतिदिन जलते रहे। हर पहर जलते रहना चाहिए। दीपक हमारी आस्था के रूप में जल रहा है। जब तक दीपक जलेगा तब तक हमारे भीतर आस्था भी बानी रहेगी।
प्रश्न 3. ‘विश्व-शलभ’ दीपक के साथ क्यों जल जाना चाहता है?
उत्तर- शलभ का अर्थ है पतंगा। जिस प्रकार पतंगा दीपक की रौशनी से आकर्षित होकर उसके पास ही रमता है और उसकी लौ में ही मर जाता है। उसी प्रकार आस्था रूपी दीपक में शलभ के समान विश्व भी मंडराते है। वह इस ‘विश्व-शलभ’ दीपक के साथ जल जाना चाहता है क्योकि इससे उनके भीतर की बुराइयों का नाश होगा। उनके मन से अहंकार, लोभ , ईर्ष्या आदि भावनाये आस्था रूपी दीपक में जलकर राख हो जाएगी।
प्रश्न 4. आपकी दृष्टि में ‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल’ कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर है-
(क) शब्दों की आवृत्ति पर।
(ख) सफल बिंब अंकन पर।
उत्तर- मेरी दृष्टि में ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ कविता का सौंदर्य ‘शब्दों की आवृति’ और ‘सफल बिंब अंक” दोनों पर निर्भर करता है। शब्दों की आवृति अथार्त शब्दों का बार-बार आना कविता की सुंदरता को बड़ा रहा है। मधुर-मधुर,पुलक-पुलक,सिहर-सिहर,युग-युग, विहँस-विहँस आदि आवृत्तियों का प्रयोग कविता में हुआ है। सफल बिंब अंकन अथार्त किसी वस्तु का आकर प्रकट करना। कविता में भी हमारे भीतर का बिम्ब दर्शया है।
प्रश्न 5. कवयित्री किसका पथ आलोकित करना चाह रही है?
उत्तर- कवयित्री अपने आस्था रूपी दीपक से प्रियतम रूपी ईश्वर का पथ आलोकित करना चाह रही है।
प्रश्न 6. कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन से क्यों प्रतीत हो रहे हैं?
उत्तर- कवयित्री आकाश के तारे स्नेहहीन से प्रतीत हो रहे हैं क्योकि वे संसार में अपना प्रकाश फैलाने में असमर्थ है। ऐसा इसलिए क्योकि उनके भीतर कोई भाव नहीं है अथार्त कोई आस्था नहीं है। उसी प्रकार मनुष्य भी कई दीपक जलाता परन्तु उसमे वह आस्था नहीं होती है। आस्था रूपी दीपक तो मन में भी जलाया जा सकता है उसके लिए बाहरी मन से केवल विश्व को दिखावा करने के लिए दीपक जलने की आवश्यकता नहीं है।
प्रश्न 7. पतंगा अपने क्षोभ को किस प्रकार व्यक्त कर रहा है?
उत्तर- पतंगा ने अपने क्षोभ को इस प्रकार व्यक्त किया है की वह दीपक की ज्योति से आकर्षित होकर वही घूमना चाहता है और अपना सब कुछ समाप्त करना चाहता है परन्तु वह उसकी लौ में आकर मर जाता है। वैसे ही मनुष्य भी ईश्वर को प्राप्त करना चाहता है परन्तु अपने अहंकार को नहीं त्यागना चाहता। और ईश्वर और अहंकार कभी साथ नहीं रह सकते है।
प्रश्न 8. कवयित्री ने दीपक को हर बार अलग-अलग तरह से ‘मधुर मधुर, पुलक-पुलक, सिहर-सिहर और विहँस-विहँस’ जलने को क्यों कहा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- दीपक कभी एक समानता के साथ नहीं जलता है। कभी वह धीमा होता है तो कभी एक दम फड़फड़ाने लगता है। उसी असमानता को व्यक्त करने हेतु कवयित्री ने दीपक को हर बार अलग-अलग तरह से ‘मधुर-मधुर, पुलक-पुलक, सिहर-सिहर और विहँस-विहँस’ जलने को कहा है। मधुर-मधुर जलने से कवियत्री का कहना है की आस्था रूपी दीपक मधुरता से जल रहा है। पुलक-पुलक से अर्थ है की दीपक फड़फड़ा कर जलने लगा। सिहर-सिहर से आश्चर्य है की दीपक धीमे-धीमे जले ताकि वह लम्बे समय तक अपनी ज्योति बनाये रखे। विहँस-विहँस का मतलब है कोमलता से जलना ताकि कोई भी अपनी बिजली से उसे बुझा न सके।
प्रश्न 9. नीचे दी गई काव्य-पंक्तियों को पढ़िए और प्रश्नों का उत्तर दीजिए-
जलते नभ में देख असंख्यक,
स्नेहहीन नित कितने दीपक;
जलमय सागर का उर जलता,
विद्युत ले घिरता है बादल !
विहँस विहँस मेरे दीपक जल !
- ‘स्नेहहीन दीपक’ से क्या तात्पर्य है?
- सागर को ‘जलमय’ कहने का क्या अभिप्राय है और उसका हृदय क्यों जलता है?
- बादलों की क्या विशेषता बताई गई है?
- कवयित्री दीपक को ‘विहँस विहँस’ जलने के लिए क्यों कह रही हैं?
उत्तर-
- ‘स्नेहहीन दीपक’ से तात्पर्य है की इसमें कोई भाव नहीं है। उसमे ना ही प्रेम है और ना ही आस्था। यह सभी आकाश में बेस सितारों के समान है जो स्वयं के लिए प्रकाशित है।
- सागर को ‘जलमय’ कहने का अभिप्राय है की उसमे असीम जल समाया हुआ है परन्तु वो किसी की भी प्यास को संतुष्ट करने में असमर्थ है। उसका जल खारा होने से उसे कोई नहीं पिता। उसका हृदय इसलिए जल रहा है क्योकि इतना विशाल होने पर भी कोई उसका उपयोग नहीं कर रहा है। उसी प्रकार संसार में कई लोग दीपक जलाते है परन्तु हर दीपक में आस्था नहीं होती है।
- बादलों की विशेषता बताई गई है की वह अपना जल धरती पर बरसा कर उसे हरा भरा कर देता है।
- कवयित्री दीपक को ‘विहँस विहँस’ जलने के लिए कह रही हैं क्योकि अगर कोई भी इस दीपक को बुझाने का प्रयास करे तो वह असफल हो जाए। धीमे-धीमे जलने से वह अपनी आस्था को बिना किसी संकट के लम्बे समय तक बनाये रखने का प्रयास करती है।
प्रश्न 10. क्या मीराबाई और अधिनिक भीरा’ महादेवी वर्मा इन दोनों ने अपने-अपने आराध्य देव से मिलने के लिए जो युविक तयाँ अपनाई हैं, उनमें आपको कुछ समानता या अंतर प्रतीत होता है? अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर- मीराबाई और महादेवी वर्मा ने अपने-अपने आराध्य देव से मिलने के लिए जो युक्तियाँ अपनाई हैं उनमें सामानताएँ और अंतर् दोनों देखने को मिलता है। मीराबाई अपने भौतिक जीवन से निराश होकर घर-परिवार त्याग कर श्री कृष्ण की भक्ति में लग गई। वही महादेवी वर्मा भी अपनी उच्च शिक्षा का त्याग करते हुए नारी शिक्षा प्रसार से जुट गई और आंदोलन में भी अपना योगदान दिया और साहित्य को समर्पित हो गई। मीराबाई और महादेवी वर्मा दोनों ने ही समस्त रचनाकारों और कवियों के बिच अपना एक विशिष्ट स्थान बनाया। जहा मीराबाई के पद प्रचलित थे वही महादेवी वर्मा की कविताये अपरिचित थी।
(ख) निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए–
प्रश्न 1.
दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु ल गल !
उत्तर- इन पंक्तियों में कवयित्री का भाव है की जब अहंकार उनके मन से निकल गया , उसका एक-एक कण गल कर अलग हो गया तब उनका आस्था रूपी दीपक फड़फड़ाकर जलने लगा और अब उनको चारो और प्रकाश दिखाई दे रहा है।
प्रश्न 2.
युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षा प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर !
उत्तर- कवयित्री का भाव यह है कि परिस्थिति किसी भी हो पर आस्था रूपी दीपक हमेशा जलते रहे। वह अपनी रौशनी प्रतिपल बनाये रहे। प्रतिदिन वह उसकी ज्योति से आस्था का भाव बनाये रखे। जब आस्था का भाव दीपक के समान रोशन होते हुए दिखाई देगा तो ईश्वर की प्राप्ति हमे निश्चित ही होगी।
प्रश्न 3.
मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन !
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति का तात्पर्य है की जिस प्रकार मोमबत्ती जलती है और खुद को पिघलती है। वैसे ही कवियत्री स्वयं को मोमबत्ती की तरह जला रही है और अहंकार रूपी मोम को वह अपने मन से पिघल कर बहार कर रही है।
भाषा अध्ययन
प्रश्न 1. कविता में जब एक शब्द बार-बार आता है और वह योजक चिह्न द्वारा जुड़ा होता है, तो वहाँ पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार होता है; जैसे-पुलक-पुलक। इसी प्रकार के कुछ और शब्द खोजिए जिनमें यह अलंकार हो।
उत्तर– पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार वाले कविता में आए अन्य शब्द-मधुर-मधुर, युग-युग, गल-गल, पुलक-पुलक, सिहर-सिहर और विहँस-विहँस।
योग्यता विस्तार
प्रश्न 1. इस कविता में जो भाव आए हैं, उन्हीं भावों पर आधारित कवयित्री द्वारा रचित कुछ अन्य कविताओं का अध्ययन करें; जैसे-
(क) मैं नीर भरी दुख की बदली
(ख) जो तुम आ जाते एकबार
ये सभी कविताएँ ‘सन्धिनी’ में संकलित हैं।
उत्तर-
(क) मैं नीर भरी दुख की बदली!
स्पन्दन में चिर निस्पन्द बसा
क्रन्दन में आहत विश्व हँसा
नयनों में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झारिणी मचली
मेरा पग-पग संगीत भरा
श्वासों से स्वप्न-पराग झरा
नभ के नव रंग बुनते दुकूल
छाया में मलय-बयार पली।
मैं क्षितिज-भृकुटि पर घिर धूमिल
चिन्ता का भार बनी अविरल
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,
नव जीवन-अंकुर बन निकली!
पथ को न मलिन करता आना
पथ-चिह्न न दे जाता जाना;
सुधि मेरे आगन की जग में
सुख की सिहरन हो अन्त खिली!
विस्तृत नभ का कोई कोना
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना, इतिहास यही-
उमड़ी कल थी, मिट आज चली!
(ख) जो तुम आ जाते एक बार।
कितनी करुणा कितने संदेश।
पथ में बिछ जाते बन पराग,
गाता प्राणों का तार-तार।
अनुराग भरा उन्माद राग
आँसू लेते वे पद पखार।
हँस उठते पल में आर्द्र नयन,
धुल जाता ओठों से विषाद,
छा जाता जीवन में वसंत,
लुट जाता चिर संचित विराग
आँखें देती सर्वस्व वार।
जो तुम आ जाते एक बार।
प्रश्न 2. इस कविता को कंठस्थ करें तथा कक्षा में संगीतमय प्रस्तुति करें।
उत्तर- छात्र कविताओं को कंठस्थ कर उनका गायन स्वयं करें।
प्रश्न 3. महादेवी वर्मा को आधुनिक मीरा कहा जाता है। इस विषय पर जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर- महादेवी वर्मा को आधुनिक मीरा कहा जाता है। महादेवी वर्मा मीरबाई की तरह की अपनी कविता के माध्यम से अपने आराध्य देव से मिलने की कामना की है। दोनों की कविताओं में प्रभु के प्रति सच्ची भक्ति देखने को मिलती है साथ ही दोनों प्रभु की प्राप्ति न होने पर अपनी पीड़ा बताती है। मीराबाई श्री कृष्ण की दासी बनकर उनके दर्शन करना चाहती है और महादेवी वर्मा भी अपने प्रियतम के दर्शन के लिए दीपक जलना चाहती है। दोनों की कविताओं में भक्ति रास स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है।
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Some Important Madhur Madhur Mere Deepak Jal Class 10 Solutions Hindi:
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. कवयित्री ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ कविता में किसका पथ आलोकित करना चाहती है?
उत्तर- कवयित्री ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ कविता के माध्यम से अपने आस्था रूपी दीपक से अपने प्रियतम का पथ आलोकित करना चाहती है।
प्रश्न 2. कवयित्री आस्था का दीप किस तरह जलने की कामना करती है?
उत्तर- कवयित्री आस्था का दीप जलने की कामना इस प्रकार करती है की वे चाहती है की यह दीपक प्रतिपल जलता रहे। कोई भी परिस्थिति आजाये परन्तु इस दीपक की ज्योति काम ना हो पाए। इस दीपक को प्रतिदिन अपनी ज्योति से रौशनी फेलनि होगी तभी आस्था का भाव बना रहेगा। कवियत्री चाहती है की यह दिप युगो-युगो तक जलता रहे और अपनी आस्था बनाये रखे।
प्रश्न 3. विश्व के शीतल-कोमल प्राणी क्या भोग रहे हैं और क्यों ?
उत्तर- विश्व के शीतल-कोमल प्राणी आस्था रूपी दीपक में खुद को न जला देने का भोग, भोग रहे हैं। संसार किसी पतंगा के भांति स्वयं को दीपिक की लौ में जलना चाहते है परन्तु वह असफल हो जाते है। लौ में जलने से तात्पर्य है की अपने अहंकार को नष्ट करना। विश्व के शीतल-कोमल प्राणी अपना अहंकार दूर नहीं कर पा रहे है इसलिए उन्हें पछतावा हो रहा है।
प्रश्न 4. विश्व-शलभ को किस बात का दुख है?
उत्तर- शलभ का अर्थ पतंगो से है और विश्व-शलभ का अर्थ संसार के लोगो का पतंगा बनने से है। संसार के लोग पतंगा की तरह दीपक की लौ में जलना चाहते है अथार्त अपना अहंकार त्यागना चाहते है। परन्तु वह ऐसा नहीं कर पाते है और दुखी हो रहे है।
प्रश्न 5. कवयित्री का ‘जलमय सागर’ से क्या तात्पर्य है ? उसका हृदय क्यों जलता है?
उत्तर- कवयित्री का ‘जलमय सागर’ से तात्पर्य है कि जिस प्रकार सागर में असीमित जल भरा हुआ है परन्तु फिर भी वह किसी की एक बून्द की भी प्यास बुझाने में सक्षम नहीं है। उसी प्रकार ये विश्व भी कई दीपक जलाता है परन्तु वह दीपक स्नेहहीन है। जिस प्रकार समुद्र का जल खारा होने से वह किसी के काम नहीं आ सकता उसी प्रकार विश्व में जलाये हुए स्नेहहीन दीपक कोई आस्था ना प्रकट कर सकते है और नहीं बनाने का वादा कर सकते है। जलमय सागर का हृदय यह जानकर जलता है की उसके इतने विशाल होने पर भी वह किसी के काम नहीं आ सकता अथार्त उसका होना व्यर्थ है।
प्रश्न 6. कवयित्री अपने जीवन का अणु-अणु गलाकर क्या सिद्ध करना चाहती है?
उत्तर- कवयित्री अपने जीवन का अणु-अणु गलाकर यह सिद्ध करना चाहती है की उनके मन से सारा अहंकार मोमबत्ती की भांति पिघल कर निकल गया है। अब उनके मन में किसी अहंकार की कोई जगह नहीं है। अंहकार के समाप्त होने पर अब उन्हें चारो और से रौशनी आती हुई दिखाई दे रही है। और अब उन्हें ईश्वर की प्राप्ति भी हो सकती है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल।’ कविता कि भक्ति भावना का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ कविता में कवियत्री ने आस्था रूपी दीपक जाया है और उसे प्रतिपल जलने की कामना की है। कठिन परिस्थितियों में भी प्रतिदिन अपनी ज्योति बनाये रखने की प्रार्थना की है। वे चाहती है की यह दिप युगो-युगो तक रोशन रहे ताकि आस्था भी इसी के साथ हमेशा बानी रहे। वह अपने प्रियतम को अपने मन में बसाना चाहती है और उनके स्वागत के लिए ही वह यह दिप भी जलती है। वह अपने शरीर की तुलना मोमबत्ती से करके अपने अहंकार को पिघलने की बात कर रही है। कवियत्री यह भी कहती है की उन्होंने अपने कण कण से अहंकार को नष्ट कर दिया है ताकि उनके प्रियतम उन्हें प्राप्त हो सके। और जब उनका अहंकार का नाश हो जाता है तब वह अपने चारो और प्रकाश देखती है। जब वह यह सुख प्राप्त कर लेती है तो वह विश्व को भी इसका आनंद लेने को सहायता करती है। वो कहती है की संसार के लोग भी इस दीपक की ज्योति में किसी पतंगा के समान जलना चाहते है और अपना अहंकार मेरी तरह ख़तम करना चाहते है। परन्तु वह विफल हो जाते है ,वह दीपिक से विनती करती है की वह धीमे जले ताकि संसार के लोगो को उसमे जलने का अवसर मिल सके और वो भी एक नए प्रकाश को अपने जीवन में ला सके। कवियत्री का मानना है की विश्व में कई दीपिक जलाये जाते है परन्तु वे सभी आस्था का रूप नहीं होते है। उनमे से कई को वह स्नेहहीन भी बताती है। सच्ची आस्था को प्रकट करने के लिए किसी दिखावे की आवश्यकता नहीं होती है वह अपने भीतर भी प्रकट किया जा सकता है। समुद्र का जल जिस प्रकार किसी की प्यास नहीं बुझा सकता उसी प्रकार यह स्नेहहीन दीपक आस्था को प्रकट नहीं कर सकता। संसार में ऐसे कई व्यक्ति होंगे जो इस दीपक को बुझाना चाहते होंगे परन्तु कवियत्री दीपक को फिर भी जलने के लिए प्रेरित करती है।
प्रश्न 2. ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ कविता में विश्व-शलभ का वर्णन किस प्रकार किया गया है ?
उत्तर- ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ कविता में विश्व-शलभ का वर्णन इस प्रकार से किया गया है की संसार के लोग पतंगा की तरह दीपक की लौ में न जलने का पछतावा कर रहे है। पतंगा दीपक की लौ में अपना सब कुछ त्याग करना चाहता है वैसे ही संसार भी अपनी बुराइया जैसे अहंकार, ईर्ष्या , लोभ आदि को इस लौ में जला देना चाहता है और अपने मन से समाप्त कर देना चाहता है। परन्तु वे सब यह करने में असमर्थ है। इसलिए कवित्री दीपिक की ज्योति को धीमे-धीमे जलने को कहती है ताकि सब अपनी बुराइया जलाकर एक नए प्रकाश को देख पाए और उसे अपने जीवन में उतार पाए।
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