Class 10 Physics Most Important Points for Exam (PDF) in Hindi

यहाँ हमने Class 10 Physics Short Notes दिये हैं। इसे आप download कर सकते हैं या फिर बिना download किए हुए बिना भी वैबसाइट पर पढ़ सकते हैं। नोट्स मे दिये गए सभी पॉइंट्स परीक्षा के पॉइंट से बहुत महत्वपूर्ण हैं। यहाँ दिये गए सभी नोट्स अध्याय अनुसार हैं। परीक्षा से पूर्व इन नोट्स को एक बार जरूर पढ़ ले ताकि आप परीक्षा मे अधिक से अधिक नंबर ला सके।

प्रकाश : परावर्तन और अपवर्तन (Light : Reflection and Refraction)

  • प्रकाश ऊर्जा का एक रूप है जो वस्तुओं को देखने में हमारी सहायता करता है। यह एक भौतिक कारण है जिससे हम किसी वस्तु को देख पाते हैं।
  • परावर्तित किरणें वह होती हैं जो माध्यम में से गुजरकर वस्तु से टकराकर वापस माध्यम में आती हैं।
  • आपतित किरण, परावर्तित किरण और आपतन बिन्दु पर खींचा गया अभिलम्ब तीनों एक ही तल पर होते हैं तथा आपतन कोण एवं परावर्तन कोण आपस में बराबर होते हैं, इसे परावर्तन का नियम कहते हैं ।
  • प्रकाश का परावर्तन दो प्रकार से होता है— (i) नियमित परावर्तन, (ii) अनियमित परावर्तन |
  • समतल दर्पण में बना किसी वस्तु का प्रतिबिम्ब काल्पनिक और सीधा होता है। जिस दर्पण में प्रकाश का परावर्तन वक्र तल पर होता है उसे ‘गोलीय दर्पण’ कहते हैं।
  • किसी गोले के केन्द्र को उस लेंस का वक्रता केन्द्र कहते हैं। किसी लेंस, दर्पण के मुख्य फोकस और प्रकाशिक केन्द्र ध्रुव के बीच की दूरी ‘फोकस दूरी’ कहलाती है।
  • जब प्रकाश एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती है तो अपने पथ से विचलित हो जाती है। किरणों का पथ से विचलित होना प्रकाश का अपवर्तन कहलाता है।
  • वह यंत्र जो छोटी वस्तु को काफी बड़ा करके देखता है उसे सूक्ष्मदर्शी यंत्र कहते हैं।
  • दूर की वस्तु को स्पष्ट दिखाने वाले यंत्र को दूरदर्शी कहते हैं।
  • लेंस का सूत्र – 1/v – 1/u = 1/f [जहाँ = v = लेंस के प्रतिबिम्ब की दूरी, u = बिम्ब की दूरी और f = फोकस दूरी ]
  • अपवर्तन का नियम- (i) किन्हीं दो माध्यमों के लिए आपतन कोण और अपवर्तन कोण की ज्या (sine) का अनुपात स्थिर होता है। (ii) आपतित किरणें, अपवर्तित किरणें और अभिलम्ब एक ही एक तल में होते हैं।
  • गोलीय दर्पण का आवर्धन (m) = -v/u यदि प्रतिबिम्ब वास्तविक हो तो (- m ) तथा काल्पनिक हो तो ( + m ) ।
  • सभी प्रकार के परावर्ती पृष्ठ परावर्तन के नियम का पालन करते हैं।
  • अपवर्ती पृष्ठ अपवर्तन के नियम का पालन करते हैं।
  • गोलीय दर्पण तथा लेंस के लिए नई कार्तीय चिह्न परिपाटी अपनाई जाती है ।
  • गोलीय दर्पण का सूत्र है— 1/v + 1/u = 1/f [जहाँ वस्तु की दूरी (u),प्रतिबिम्ब की दूरी (v), फोकस दूरी (f) होता है]।
  • किसी गोलीय दर्पण की फोकस दूरी वक्रता त्रिज्या की आधी होती है— f = R/2
  • निर्वात में प्रकाश 3 x 108 ms-1 की अत्यधिक चाल से गमन करता है ।
  • श्वेत प्रकाश का विभिन्न सात रंगों में बँटना प्रकाश का वर्ण विक्षेपण कहलाता है। इसे स्पेक्ट्रम ( Spectrum) भी कहा जाता है।

मानव नेत्र एवं रंग-बिरंगा संसार, (Human Eye and Colourful World)

  • नेत्र (Eye) की रचना एक कैमरे की तरह है। इसमें उल्टा, छोटा और वास्तविक प्रतिविम्ब बनता है।
  • आँख में प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनता है ।
  • नेत्र गोलक लगभग 2-3 सेमी० व्यास का एक गोला है। कॉर्निया और एक्स ह्यूमर प्रकाश की किरणों का अपवर्तन करते हैं।
  • क्रिस्टलीय लेंस बिम्ब बनाने में सहायक होता है।
  • 1 रेटिना अति संवेदनशील झिल्ली है जिस पर असंख्य प्रकाशसंवेदी कोशिकाएँ होती हैं।
  • आँख में बहुत निकट की वस्तु का रेटिना पर प्रतिबिम्ब नहीं बन पाता जिस कारण वह धुंधला दिखाई पड़ता है।
  • 16 पढ़ने के लिए आँख को पृष्ठ से लगभग 25 सेमी की दूर पर रखा जाना चाहिए।
  • लगभग 60 वर्ष की आयु में निकट दृष्टि बिन्दु लगभग 200 सेमी० हो जाता है । इसलिए इस आयुवर्ग को पढ़ने के लिए चश्मा लगाना पड़ता है। श्वेत प्रकाश का इसके अवयवी वर्गों में विभाजन प्रकाश का वर्ण विक्षेपन कहलाती है।
  • विभेदन सीमा के प्रतिलोम को सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता कहते हैं। दूरदृष्टि दोष में नजदीक की वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना के बाहर बनता इसलिए इस दोष के उपचार हेतु उत्तल लेंस का प्रयोग किया जाता है; इससे प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनता है।
  • निकट दृष्टि दोष में दूर की वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना के आगे बनता है। इसके निराकरण के लिए अवतल लेंस का प्रयोग किया जाता है जिससे प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनने लगता है।
  • नेत्र की वह क्षमता जिसके कारण लेंस, अपनी फोकस दूरी को समायोजित करके निकट तथा दूरस्थ वस्तुओं को फोकसित कर लेता है, नेत्र की समंजन क्षमता कहलाती है।

विद्युत (Electricity)

  • आवेश का मात्रक कूलॉम है। एक कूलॉम आवेश के लिए 6.25 x 1018 इलेक्ट्रॉन की आवश्यकता होती है।
  • एक मात्रक धन आवेश को अनंत से किसी बिन्दु तक लाने में किये गए कार्य की मात्रा को उस बिन्दु पर विभव कहते हैं।
  • चालक के छोरों के बीच का विभवान्तर वह विद्युतीय कारक है जो चालक के भीतर इलेक्ट्रॉनों को निम्न विभव से उच्च विभव की ओर अग्रसर होने को बाध्य करता है । इस विद्युतीय कारक को विद्युतवाहक-बल कहते हैं।
  • इकाई आवेश को, एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में किए गए कार्य की मात्रा को, उन दो बिन्दुओं के बीच का विभवान्तर कहते हैं।
  • जब दो बिन्दुओं के बीच में एक कूलॉम आवेश प्रवाहित होने से एक जूल ऊर्जा उत्पन्न हो, तो इन दोनों बिन्दुओं के बीच का विभवान्तर एक वोल्ट होता है।
    1 वोल्ट = 1 जूल / 1 कूलॉम
  • विद्युतीय आवेश के बहने की दर को विद्युत धारा कहते हैं। धारा का परिमाण परिपथ में प्रति सेकेण्ड गुजरने वाली आवेश की मात्रा है। धारा =आवेश / समय
  • धारा की इकाई एम्पियर है।
  • यदि परिपथ में एक सेकेण्ड में एक कूलॉम आवेश बहे तो परिपथ में धारा एक एम्पियर होगी।
  • किसी चालक का प्रतिरोध इसके सिरों में विभवान्तर V तथा इसमें से प्रवाहित धारा I का अनुपात है,
    R =V / I = प्रतिरोध की इकाई ओम है।
  • चालक का प्रतिरोध एक ओम तब होता है जबकि इसमें एक एम्पियर धारा प्रवाहित हो तथा इसके सिरों के मध्य का विभवान्तर एक वोल्ट हो ।
  • श्रेणीबद्ध प्रतिरोध का समतुल्य प्रतिरोध इन प्रतिरोध के योग के बराबर होता है। पार्श्वबद्ध प्रतिरोधों के समतुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम उन प्रतिरोधों के व्युत्क्रमों के योग के बराबर होता है।
    R = R1 + R2 + R3 + ……. और R = 1/R1 + 1/R2 + 1/R3 + …..
  • विद्युतीय शक्ति का मात्रक वाट है जो एक वोल्ट विभवान्तर पर एक एम्पियर धारा प्रवाहित करने के बराबर होता है। वाट = वोल्ट x एम्पियर
  • विद्युत परिपथ में इकाई समयावधि में किए गए कार्य, अर्थात् इकाई समय में उपभुक्त ऊर्जा को हम विद्युत शक्ति कहते हैं। एक किलोवाट घंटा (Kwh) को एक यूनिट विद्युत ऊर्जा कहते हैं। 1 किलोवाट – घंटा = 1000 वाट घंटा होता है।
  • बल्ब के अन्दर का चालक तार इतना गर्म हो जाता है कि उसमें प्रकाश निकलने लगता है। अतः उसे तापदीप्त लैम्प कहते हैं।
  • किसी विद्युत परिपथ में कम प्रतिरोध से होकर धारा के प्रवाहित होने को शार्ट-सर्किट कहते हैं।
  • विद्युत शक्ति P का सूत्र इस प्रकार लिखा जाता है— P =W/t = I2R = V2/R , यहाँ शक्ति P का मात्रक वाट है।
  • विद्युत धारा I का मात्रक एम्पियर, प्रतिरोधक R ओम और विभव V का मात्रक वोल्ट है।
  • 1000 वाट = 1 किलो वाट, 746 वाट = 1 हॉर्स पॉवर ।
  • 1 Kwh = 3,60,000 जूल = 3.6 x 106 का जूल ।
  • ताप विद्युत प्रभाव तीन प्रकार के होते हैं— (i) सीबैक प्रभाव (ii) पैलिल्पर प्रभाव तथा (iii) थॉमसन प्रभाव |
  • विद्युत अपघटों में विद्युत प्रवाहन प्रक्रम को विद्युत अपघटन कहते हैं। किसी प्रतिरोधक में क्षयित अथवा उपभुक्त ऊर्जा को इस प्रकार व्यक्त किया जाता है—W=V×I x t

विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव (Magnetic Effect of Electric Current)

  • परिनालिका – यदि किसी तार को लपेट कर कुंडली बना दी जाए तो उसे परिनालिका कहते हैं।
  • चुम्बकीय क्षेत्र – चुम्बक के चारों ओर का वह क्षेत्र जहाँ तक चुम्बक प्रभाव डालता है, उसे चुम्बक क्षेत्र कहते हैं ।
  • दिष्ट धारा- वह धारा जिसकी दिशा सदा एक ही दिशा में रहती हैं।
  • प्रत्यावर्ती धारा- वह धारा जिसकी दिशा सदा बदलती रहती है।
  • ट्रांसफॉर्मर – विद्युत की वोल्टता को बढ़ाने या घटाने वाले उपकरण को टांसफॉर्मर कहते हैं।
  • विद्युत जनित्र – विद्युत धारा उत्पन्न करने वाले उपकरण को विद्युत जनित्र कहते हैं।
  • विद्युत शक्ति – किसी चालक में विद्युत ऊर्जा के व्यय होने की दर को विद्युत शक्ति कहते हैं।
  • विद्युत ऊर्जा – विद्युत धारा द्वारा किसी कार्य करने की क्षमता को विद्युत ऊर्जा कहते हैं।
  • विद्युत चुम्बकीय प्रेरण – चुम्बकीय क्षेत्र में परावर्तन के द्वारा इससे संबद्ध कुंडली में आवेश की उत्पत्ति को विद्युत प्रेरण कहते हैं।
  • स्नो का नियम- जब चुम्बकीय सूई के ऊपर स्थित तार से दक्षिण से उत्तर की ओर आवेश गुजारा जाता है तो उसका उत्तरी सिरा पश्चिम की ओर घूम जाता है।
  • प्यूज — कर्म गलनांक वाला तार फ्यूज कहलाता है जिसे किसी विद्युत परिपथ में लगाया जाता है।
  • भूसंपर्कित – उच्च शक्ति वाले विद्युत उपकरणों के धात्विक फ्रेम को घरेलू परिपथ की भू-तार से जोड़ना भूसंपर्कित कहलाता है।
  • लघुपथन- जब विद्युत ले जाने वाली और उदासीन तार पर आपसी संबंध होने से अत्यधिक धारा प्रवाहित होने लगती है, उसे लघुपथन कहते हैं।
  • विद्युत मीटर यह वह यंत्र जिसके द्वारा विद्युत परिपथ में प्रयुक्त होने वाली विद्युत ऊर्जा मापी जाती है।
  • फ्लेमिंग का बायें हाथ का नियम – बायें हाथ की तर्जनी, मध्यमा और अंगूठे को आपस में इस प्रकार हम फैलाएँ कि तर्जनी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा तथा मध्यमा विद्युत धारा की दिशा को प्रकट करे तो चालक की गति की दिशा अंगूठे की दिशा में होगी।
  • अपचायी क्रिया — अधिक वोल्टता की प्रत्यावर्ती धारा को कम वोल्टता की प्रत्यावर्ती धारा में बदलना अपचायी क्रिया कहलाता है।
  • विद्युत शॉक – शरीर के किसी भाग के विद्युत परिपथ के उच्च विभवान्तर वाले किसी बिन्दु से छूने पर लगने वाले झटके को विद्युत शॉक कहते हैं।
  • अतिभारण- यदि किसी परिपथ से निर्धारित सीमा से अधिक विद्युत धारा प्रवाहित की जाए तो तार के अधिक गर्म होने से उसमें आग पकड़ सकती है जिसे अतिभारण कहते हैं ।

ऊर्जा के स्रोत (Sources of Energy)

  • ऊर्जा (Energy) – कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं।
  • गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy ) – वस्तुओं में उनकी गति के कारण कार्य करने की क्षमता को गतिज ऊर्जा कहते हैं, जैसे गतिशील वायु, गतिशील जल आदि ।
  • स्थितिज ऊर्जा (Potential Energy ) — किसी वस्तु की स्थिति के कारण कार्य करने की क्षमता स्थितिज ऊर्जा कहलाती है, जैसे- खींचा हुआ तीर कमान, पहाड़ों पर पड़ी बर्फ आदि ।
  • ऊर्जा संरक्षण नियम (Law of Conservation of Energy ) – ऊर्जा को बनाया या मिटाया नहीं जा सकता, उसे केवल दूसरे रूप में बदला जा सकता है।
  • इंजन (Engine) – यह उपकरण जिसके द्वारा ऊष्मीय ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदला जाता है।
  • सौर ऊर्जा (Solar Energy ) – सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा ।
  • पवन ऊर्जा (Wind Energy ) – वायु के विशाल द्रव्यमान की गतिशीलता से संबद्ध गतिज ऊर्जा को पवन ऊर्जा कहते हैं।
  • कृष्ण पट्टी या सतह (Black Surface) – वह पट्टी या सतह जो परावर्तक सतह की अपेक्षा अधिक ऊष्मा का अवशोषण करती है।
  • सौर कुकर (Solar Cooker ) – सौर ऊर्जा से कार्य करने वाला उपकरण जिसे खाना बनाने के लिए उपयोग किया जा सके।
  • सौर सेल (Solar Cell) – ऐसी युक्ति जो सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करती है।
  • सागरीय तापीय ऊर्जा (Ocean Thermal Energy ) – महासागर की सतह के जल तथा गहराई में स्थित जल के ताप में सदैव कुछ अन्तर होता है। यह अन्तर 20°C तक भी हो सकता है। इस रूप में उपलब्ध ऊर्जा को सागरीय तापीय ऊर्जा कहते हैं।
  • लवणीय प्रवणता (Salinity Ingradients ) — लवण सान्द्रता की भिन्नता को लवणीय प्रवणता कहते हैं।
  • ईंधन (Fuel ) – वे पदार्थ जिनको जलाकर ऊष्मा उत्पन्न की जाती है, ईंधन कहलाते हैं।
  • जीव द्रव्यमान (Biomass) – जन्तुओं और पौधों के शरीर में उपस्थित पदार्थ को जीव द्रव्यमान कहते हैं।
  • बायोगैस (Biogas ) – यह CH4 , CO2 तथा HS गैसों का मिश्रण है। प्रायः वनस्पति (गोबर) या जन्तु अपशिष्ट पदार्थों के जल की उपस्थिति में किण्वन के फलस्वरूप प्राप्त होती है।
  • भंजक आसवन (Destructive Distillation ) — किसी पदार्थ को वायु की अनुपस्थिति में अत्यधिक गर्म करना भंजक आसवन कहलाता है। कोयले के भंजक आसवन से कोलतार, कोक तथा कोल गैस की प्राप्ति होती है।
  • जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuel ) – जीवाश्म ईंधन पृथ्वी की सतह में दबे हुए जन्तु तथा वनस्पति के अवशेषों से बनते हैं। कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस जीवाश्म ईंधन हैं।
  • द्रवित पेट्रोलियम गैस (L. P. G . ) – यह द्रवित पेट्रोलियम गैस है जो कि घरेलू ईंधन है। यह नॉरमल ब्यूटेन तथा आइसोब्यूटेन का मिश्रण है।
  • संश्लिष्ट तेल (Synthetic Petroleum ) – यह कोयले की उच्च ताप तथा दाब पर हाइड्रोजन के साथ अभिक्रिया द्वारा बनता है।
  • ज्वलन ताप (Ignition Temperature ) — जिस विशेष तापक्रम पर कोई बाह्य पदार्थ जलना आरम्भ करता है, ज्वलन ताप कहलाता है।

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