Class 10 Bio Most Important Points for Exam[PDF] in Hindi

यहाँ हमने Class 10 Biology Short Notes दिये हैं। इसे आप download कर सकते हैं या फिर बिना download किए हुए बिना भी वैबसाइट पर पढ़ सकते हैं। नोट्स मे दिये गए सभी पॉइंट्स परीक्षा के पॉइंट से बहुत महत्वपूर्ण हैं। यहाँ दिये गए सभी नोट्स अध्याय अनुसार हैं। परीक्षा से पूर्व इन नोट्स को एक बार जरूर पढ़ ले ताकि आप परीक्षा मे अधिक से अधिक नंबर ला सके।

जैव प्रक्रम(Life Processes)

  • सजीवों के शरीर में होने वाले विभिन्न क्रियाकलापों के अध्ययन को शरीर क्रिया विज्ञान (Physiology) कहते हैं।
  • प्रकाश-संश्लेषण अत्यन्त जटिल रासायनिक प्रक्रिया है। इस क्रिया में CO2, जल, क्लोरोफिल, सूर्य प्रकाश के अलावा अनेक एन्जाइम तथा रासायनिक पदार्थ भाग लेते हैं।
  • प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया दो चरणों में होती है— प्रकाशिक अभिक्रिया (Light reaction) तथा अप्रकाशिक अभिक्रिया (Dark reaction) ।
  • प्रकाशिक अभिक्रिया कोशिका में उपस्थित क्लारोप्लास्ट के ग्रेना (Graina) में होती है। इस अभिक्रिया में ATP का निर्माण होता है।
  • श्वसन क्रिया चार चरणों में पूर्ण होती है— श्वासोच्छ्वास (Breathing), गैसों का परिवहन (Transportation of gas), आन्तरिक श्वसन (Internal respiration), कोशिकीय श्वसन (Cellular respiration)।
  • श्वसन में भोजन के अवयवों का ऑक्सीकरण होता है। – ग्लूकोज से पायरूविक अम्ल का बनना ग्लाइकोलिसिस (Glycolysis) कहलाता है।
  • पौधों की जड़ें रसाकर्षण ( Ascent of sap) द्वारा मृदा से जल एवं उसमें घुले लवणों का अवशोषण करती हैं।
  • पौधों में अवशोषण की क्रिया जड़ के मूलरोम प्रदेश में होती है।
  • पौधों में जल वाष्पोत्सर्जन (Vaporization) के कारण उत्पन्न रसारोहन (Ascent of sap) द्वारा ऊपरी सिरों पर पहुँचता है।

नियंत्रण एवं समन्वय(Control and Co-ordination)

  • तन्त्रिका तन्त्र के प्रमुख भाग — केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र, परिधीय तन्त्रिका तन्त्र और स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र हैं।
  • तंत्रिका मानव शरीर में सबसे बड़ी कोशिका है।
  • सजीवों में अंगों तथा अंगतंत्रों का समन्वय हार्मोन ( रासायनिक ) और तंत्रिकीय (वैद्युतकीय) दोनों से होता है।
  • पौधों में तंत्रिकीय नियंत्रण का अभाव होता है।
  • अंतःस्रावी ग्रंथियाँ नलिकाविहीन होती हैं तथा अपने स्राव को सीधे रक्त परिसंचरण में मुक्त करती हैं।
  • तंत्रिका तंत्र हमारी ज्ञानेन्द्रियों द्वारा सूचना प्राप्त करता है तथा हमारी पेशियों द्वारा क्रिया करता है।
    मानव मस्तिष्क तीन झिल्लियों से ढँका है।
  • मस्तिष्क के प्रमुख भाग हैं— अग्रमस्तिष्क, मध्यमस्तिष्क, पश्चमस्तिष्क। शरीर में अग्रमस्तिष्क पूरे मस्तिष्क का दो-तिहाई भाग होता है।
  • मेरुरज्जु खोपड़ी के महारन्ध्र से निकल कर कशेरुकाओं की तन्त्रिका नाल से होती हुई अन्त में कमर तक फैली रहती है।
  • स्वायत्त तन्त्रिका के दो भाग होते हैं— अनुकम्पी और परानुकम्पी | प्रतिवर्ती क्रियाएँ अनैच्छिक होती हैं।

जीव जनन कैसे करते हैं?(How do Organisms Reproduce)

  • जनन एक विशिष्ट जैव प्रक्रिया है।
  • जनन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सजीवों की एक पीढ़ी अपने जैसे गुणों और विशेषताओं वाली दूसरी पीढ़ी को जन्म देती है।
  • जनन दो प्रकार का होता है— अलैंगिक और लैंगिक ।
  • अलैंगिक जनन में नर-मादा की आवश्यकता नहीं होती पर लैंगिक जनन में नर-मादा की आवश्यकता होती है।
  • अलैंगिक जनन की चार विधियाँ हैं- विखण्डन, मुकुलन, पुनर्जनन एवं कायिक जैसे जड़, तना एवं पतियाँ द्वारा ।
  • कायिक जनन में शरीर का कोई भी भाग नया जनन कर सकता है।
  • कृत्रिम माध्यम में कोशिका, ऊतक या जीव के द्वारा पौधों को उत्पन्न करना सूक्ष्म प्रवर्धन कहलाता है।
  • एकलिंगी जीवों में नर-मादा स्पष्ट रूप से अलग होते हैं। उभयलिंगी जीवों में नर-मादा दोनों प्रकार के युग्मक बनाते हैं।
  • केंचुआ, फीताकृमि, हाइड्रा आदि उभयलिंगी जीव हैं। प्राथमिक यौन अंगों को जनन अंग (Sexual organ) कहते हैं।
  • अण्डाशय और गर्भाशय में होने वाली चक्रीय क्रियाएँ रजोधर्म चक्र (Menstrual cycle) कहलाती हैं।
  • रजोधर्म के 12-14 दिन बाद अण्डोत्सर्ग होता है।
  • भ्रूण का गर्भाशय से जुड़ने को आरोपन कहते हैं।
  • प्लासेंटा (Placenta ) से भ्रूण को पोषण और ऑक्सीजन प्राप्त होती रहती है।
  • गर्भावस्था की समाप्ति पर पूर्ण विकसित भ्रूण का जन्म लेना प्रसव कहलाता है।
  • जनन में एक कोशिका द्वारा डी. एन. ए. प्रतिकृति का निर्माण तथा अतिरिक्त कोशिकीय संगठन का सृजन होता है।
  • यदि हाइड्रा जैसे जीवों का शरीर कई टुकड़ों में अलग हो जाए तो प्रत्येक भाग से पुनरुद्भवन द्वारा नए जीव विकसित हो जाते हैं। इसमें कुछ मुकुलन उभर कर नए जीव में विकसित हो जाते हैं।
  • एड्स (AIDS) अत्यन्त घातक रोग है जो यौन संक्रमण, संक्रमित रक्त और संक्रमित भ्रूण से होता है।

अनुवाशिकता एवं जब विकास(Heredity and Evolution)

  • जनन के समय उत्पन्न विभिन्नताएँ वंशानुगत हो सकती हैं।
  • ग्रेगर जॉन मेण्डल को अनुवांशिकता का जनक माना जाता है।
  • कारक जीन अनुवांशिकता गुणों को परिवार में आगे बढ़ाता है। मानव में 23 जोड़े गुणसूत्र (Chromosome ) और 30000-40000 तक जीन होते हैं।
  • जीन गुणसूत्रों में निश्चित स्थानों पर स्थित होते हैं। यही अनुवांशिकता गुणों को अगली पीढ़ी तक लेकर जाते हैं। अतः गुणसूत्र को चारित्रिक लक्षणों का वाहक कहा जाता है।
  • DNA अनुवांशिकता सूचनाओं को उत्पन्न करता है ।
  • विषाणु में भी अनुवांशिकता तत्त्व DNA है, लेकिन रिट्रोवायरस में RNA है।
  • DNA का पूरा नाम डीऑक्सीरिबोन्यूक्लिक एसिड तथा RNA का पूरा नाम रिबोन्यूक्लिक एसिड है।
  • गुणसूत्र कोशिका विभाजन के समय दिखाई देती हैं। कैरियोटाइप कोशिका गुणसूत्र का भाग होती हैं।
  • DNA द्विचक्राकार रचना है। वाटसन, क्रिक और विल्किंस को इस रचना की खोज करने पर नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ ।
  • DNA के न्यूक्लिओटाइड में पूरक गुण के कारण इसे आनुवंशिक अभियन्त्रण का हथियार माना जाता है।
  • नर में XY लिंग गुणसूत्र होते हैं और मादा में XX लिंग गुणसूत्र होते हैं।
  • जैव विकास अत्यन्तं धीमी गति से होनेवाला क्रमिक परिवर्तन है।
  • मानव के विकास के अध्ययन से हमें पता चलता है कि हम सभी एक ही स्पीशीज के सदस्य हैं जिसका उदय अफ्रीका में हुआ और चरणों में विश्व के विभिन्न भागों में फैला।

हमारा पयोवरण(Our Environment)

  • पर्यावरण उन सभी दशाओं या पदार्थों का योग है जो जीवों के जीवन और विकास को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित करता है।
  • एक निश्चित समय में खास स्थान में पाये जाने वाले कुल पौधों एवं जन्तुओं की संख्या को बायोटा (Biota ) कहते हैं। यह दो प्रकार के होते हैं—Flora एवं Fauna है।
  • एक निश्चित समय में खास स्थान में पाये जाने वाले कुल पौधों की संख्या को फ्लोरा (Flora) कहते हैं ।
  • एक निश्चित समय में खास स्थान में पाये जाने वाले कुल जन्तुओं की संख्या को फौना (Fauna) कहते हैं।
  • जैव एवं अजैव कारक के बीच पदार्थ एवं ऊर्जा के आदान-प्रदान का प्रकार्यात्मक तंत्र पारितंत्र या पारिस्थितिक तंत्र (Eco-system) कहलाता है।
  • एक क्षेत्र के सभी पारिस्थितिक तंत्रों को एक साथ मिलाने से प्राप्त बड़ी इकाई को जीवोम या बायोम (Biome) कहते हैं।
  • विश्वभर के समस्त बायोमों को मिलाकर एक बड़ी इकाई का निर्माण होता है, जिसे जीवमंडल (Biosphere) कहते हैं। यह विशालतम् स्वयंपोषी जैव तंत्र ( पारिस्थितिक तंत्र) है।
  • वे पदार्थ जो जैविक प्रक्रम द्वारा अपघटित नहीं हो पाते उन्हें अजैव निम्नीकरणीय (Non Bio-degradable) कहते हैं। जैसे— प्लास्टिक, भारी धातु, जैसे (Hg, Cd, As) इत्यादि।

प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन(Management of Natural Resources)

  • प्रकृति में पाये जानेवाले उपयोगी पदार्थों को प्राकृतिक संसाधन (Natural resources) कहते हैं।
  • ऐसे संसाधन जिसकी उपलब्धता सीमित है और जो मनुष्यों की क्रियाओं द्वारा समाप्त हो रहे हैं को क्षय योग्य प्राकृतिक संसाधन (Exhaustible resources) कहते हैं। जैसे—खनिज, कोयला, पेट्रोलियम इत्यादि ।
  • ऐसे संसाधन जो मनुष्यों की क्रियाओं द्वारा समाप्त नहीं हो सकते हैं, को अक्षय प्राकृतिक संसाधन कहते हैं। जैसे—- हवा, सूर्य का प्रकाश, समुद्र, पृथ्वी के अन्दर की गर्मी इत्यादि ।
  • ऐसे संसाधन जिनका प्रकृति में चक्रीकरण हो सकता है को नवीकरणीय स्रोत कहते हैं। जैसे— लकड़ी, जल इत्यादि ।
  • ऐसे संसाधन जो एक बार प्रयोग करने के बाद समाप्त हो जाते हैं और जिनका चक्रीकरण नहीं हो सकता उसे अनवीकरणीय स्रोत कहते हैं। जैसे—कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि ।
  • इकाई क्षेत्र में पाये जानेवाले पौधे, जन्तु उनके वास स्थान एवं उनके बीच परस्पर संबंध को जैव विविधता कहते हैं।
  • भूमि के नीचे पाये जानेवाले जल को भूमिगत जल कहते हैं। वर्षा जल या उपयोग हो चुके जल को भू-तल में संग्रह करना जल संग्रहण (Water harvesting) कहलाता है।
  • जल का पर्यावरण में परिवहित होते रहना जल चक्र कहलाता है।
  • सूक्ष्म या छोटे पौधे या जन्तु जो तालाब, नदी, समुद्र इत्यादि की सतह पर स्वतंत्र रूप से तैरते रहते हैं को प्लावक (Plankton) कहते हैं।
  • ओजोन परत पृथ्वी की सुरक्षा, पराबैंगनी विकिरण से करती है।
  • वन्य सम्पदा की सुरक्षा के लिए वृक्षों को काटना बन्द कर देना चाहिए, नये पेड़ लगाने चाहिए एवं जंगलों का कुशल प्रबन्धन होना चाहिए ।
  • पर्वतीय क्षेत्रों में पेड़ों को काटने से बचाने के लिए महिलाओं द्वारा वृक्षों से चिपक कर वृक्ष बचाने के प्रयास को 1970 ई० में चिपको आन्दोलन नाम दिया गया।
  • कोयला एवं पेट्रोलियम के भण्डार सीमित हैं। ये क्षय योग्य प्राकृतिक संसाधन हैं। अतः इनका संरक्षण एवं प्रबन्धन आवश्यक है।
  • अवांछित जैविक एवं अजैविक पदार्थ या विकिरण जिससे मनुष्य, जीव, पौधे, प्राकृतिक सम्पदाएँ, राष्ट्रीय एवं ऐतिहासिक धरोहर प्रभावित हों को प्रदूषण कहते हैं।
  • प्लास्टिक, कागज, काँच, धातु की वस्तुएँ आदि का नये उत्पादों के निर्माण के लिए प्रयोग करना पुनः चक्रण कहलाता है।
  • पुनः उपयोग का मतलब किसी प्रयोग में लाई जा चुकी वस्तु का बार-बार प्रयोग करना है।
  • कम विद्युत खर्च हेतु घरों, कार्यालय एवं कारखानों में CFL एवं Diod बल्ब का प्रयोग करना चाहिए।
  • संसाधनों के संरक्षण के लिए तीन Rs हैं— Recycle, Reduce तथा Reuse.
  • भारत की वर्षा मॉनसून पर निर्भर है।
  • वनों के पुनः पूरण के लिए वन महोत्सव कार्यक्रम द्वारा वृक्षारोपण की उपयोगिता बताई जा सकती है।

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