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Vedic kal in Hindi । वैदिक काल नोट्स
वैदिक संस्कृति ( 1500 ई.पू. से 600 ई.प्र )
- सिंधु सभ्यता के पतन के घाट जो संस्कृति प्रकाश में आयी उसके बारे में संपूर्ण जानकारी हमे वेदों से मिलती है। इसलिए इस काल को हम वैदिक काल के नाम से जानते हैं। इसे वैदिक अथवा आर्य सभ्यता भी कहा जाता है।
- वैदिक संस्कृति वा काल को हम दो भागों में बाँटते हैं।
- ऋग्वैदिक काल/पूर्व वैदिक काल
- उत्तर वैदिक काल
ऋग्वैदिक काल
- इस काल में ऋग्वेद की रचना हुई थी। इसका कार्यकाल 1500 ई.पू से 1000 ई.पू तक माना जाता है।
- उत्तरवैदिक काल में अन्य तीन वेदों – यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद की रचना काल 1000 ई. पु. से 600 ई. पु. तक मानी जाती है।
वैदिक काल का प्रारम्भ :-
- भारत पर आर्यों के आक्रमण के साथ ही वैदिक काल की शुरुआत हुई थी।
- आर्य शब्द का अर्थ श्रेष्ठ, कुलीन, उच्च वर्ग वाला होता है।
- आयौ के आगमन का कोई ठोस पुरातात्विक प्रमाण नहीं मिलता है ऐसा माना जाता है कि इनका आगमन 1500 ई. के लगभग में हुआ होगा।
- आयौ के मूल निवास को लेकर विभिन्न इतिहासकारों का अलग-अलग मत है।
- प्रो. मैक्समूलर के अनुसार आये मध्य एशिया के बैक्ट्रिया प्रांत से आये थे।
- बाल गंगाधर तिलक ने अपनी पुस्तक “The Aretic Home of the Arians में आर्यों को उत्तरी ध्रुव का निवासी बतलाए है।
- दयानंद सरस्वती के अनुसार “आर्य तिब्बत के मूल निवासी थे
- अधिकांश विद्वान प्रो. मैक्समूलर के विचारों से सहमत है कि आर्य मध्य एशिया के निवासी थे।
भौगोलिक विस्तार—
- आर्यों के आरम्भिक इतिहास की जानकारी हमे ऋग्वेद से मिलती है। वैदिक काल की सबसे महत्वपूर्ण नदी सिंधु नदी थी तथा दूसरी सर्वाधिक पवित्र नदी सरस्वती थी। ऋग्वेद में सरस्वती को नदितिमा (नदियों में प्रमुख) कहा गया है।
- ऋग्वेद मे गंगा का एक बार जिक्र है तथा यमुना का तीन बार है।
- ऋग्वेद में नदियों की संख्या लगभग 25 बताई गयी है।
- ऋग्वेद में आर्य निवास स्थान के लिए सप्त- सैंधव शब्द का प्रयोग करते थे।
- ऋग्वैदिक काल की नदियों के प्राचीन नाम:-
नदी | प्राचीन नाम |
---|---|
सतलज | शतुद्री |
रावी | परूषणी |
चेनाब | असकनी |
झेलम | वितस्ता |
व्यास | विपासा |
गोमल | गोमती |
काबुल | कुंभा |
गंडक | सादनीरा |
उक्त नदियों के वर्णन से यह मान लिया गया कि वैदिक भूगोल के वर्तमान पाकिस्तान हरियाणा, उत्तर-पूर्व राजस्थान पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सम्मिलित हैं।
राजनीतिक व्यवस्था
- वैदिक समाज पितृसतात्मक थी।
- आर्यों के पांच कबीले में घंटे होने के कारण उन्हें पंचजन्य भी कहा गया है।
- पांच कबीले निम्न है- अनु , दुहर्स, पुरु, तुवर्स, यदु
- ग्राम कई परिवारों के समूह को कहते थे तथा ग्राम के प्रधान को ग्रामनी कहा जाता था।
- विश कई गांवों के समूह को कहा जाता था, जिसके प्रधान को विशपति कहा जाता था।
- जन कई विश के समूह को जन कहते थे तथा इसके प्रमुख को जनपति या राजा या गोप कहा जाता था।
- ऋग्वेद में “जन” शब्द का प्रयोग 275 बार मिलता है।
- यद्यपि ऋग्वैदिक काल में राजा का पद वंशानुगत हो चुका था फिर भी राजा को जनता के द्वारा ही चुना जाता था।
- ऋग्वेद में सभा समिति, विदथ जैसे अनेक परिषदों का उल्लेख मिलता है।
सभा – यह उच्च वर्ग की संस्था थी जिसकी तुलना आज के राज्यसभा से की जाती है।
समिति – यह आम जनता का संगठन था। इसी संस्था के द्वारा राजा का चुनाव होता था। इसकी तुलना आज के लोकसभा से की जाती है। समिति के सभापति को ईशान कहा जाता था।
विदथ – यह वैदिक काल की सबसे प्राचीनतम संस्था मानी जाती है। यह संगठन धार्मिक तथा सैन्य कार्य करती थी।
- सभा एवं विदय में महिलाएं भी भाग लेती थी।
- राजा भूमि का स्वामी नहीं बल्कि युद्ध का स्वामी था।
- शर्प, व्रात, एवं गण सेना की इकाइयां थी।
- इंद्र को पुरंदर कहा गया है।
- राजा का प्रशासनिक सहयोग 12 रत्न करते थे ये राज्याभिषेक के समय भी उपस्थित होते थे ये निम्न ये-
- पुरोहित – राजा का प्रमुख परामर्शदाता
- सेनानी – सेना का प्रमुख
- महिषी- राजा की पत्नी
- ग्रामीण – ग्राम का सैनिक पदाधिकारी
- सूत – राजा का सारथी
- क्षत्री – प्रतिहार
- संग्रहित – कोषाध्यक्ष
- भागदूध – कर जमा करने वाला अधिकारी
- अक्षवाप – लेखाधिकारी
- गोविकृत – वैन का अधिकारी
- पलागत- राजा का मित्र
- राजा
- गुप्तचर को स्पर्श कहा जाता था
- न्यायाधीशी को प्रश्नविनाशक कहा जाता था।
दाशराज युद्ध:-
- यह रावी (परुनी) नदी के तट पर लड़ा गया था। विश्वामित्र, राजा सुदास के पुरोहित थे परन्तु सुदास ने उनको पद से हटाकर ऋषि वशिष्ठ को पुरोहित बना दिया। इस बात से दुखी होकर विश्वामित्र ने 5 आर्य (अनु , द्रुहर यदु, पुरु, लुयर्स) और 5 अनार्य राजाओं को मिलाकर एक संगठन बनाया तथा 10 राजाओं एवं सुदास के बीच दाशराज युद्ध रावी नदी के तट पर लड़ा गया जिसमे सुदास विजयी रहे।
- इसी भरत जन के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा।
- राजा की कोई नियमित सेना नहीं थी। युद्ध के समय संगठित की गयी सेना को नागरिक सेना कहते थे।
- अथर्ववेद में सभा एवं समिति को प्रजापति की दो पुत्रियों के समान माना गया है।
समाजिक व्यवस्था
- परिवार समाज की आधारभूत इकाई थी। परिवार के प्रधान को कुलप या गृहपति कहा जाता था। स
- समाज पितृसतात्मक था। परन्तु नारी को काफी सम्मान प्राप्त था। पुत्र ही पैतृक सम्पति का उत्तराधिकारी होता या पुत्री को कोई हिस्सा नहीं मिलता था।
- पत्नी पति के साथ धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेती थी।
- ऋग्वैदिक काल में संयुक्त परिवार की प्रथा थी। परिवार की सम्पन्नता का मापदंड परिवार की बृहदता थी।
- ऋग्वेद के दशवें मंडल में वर्णित पुरुष सूक्त में पहली बार वर्ण व्यवस्था का वर्णन मिलता है। जिसमे ब्रह्मा के मुख से ब्राह्म की, भुजाओं से क्षत्रिय जांध से वैश्य एवं पैर के तलवे से सुदर को जन्म होना बतलाया गया है।
- ऋग्वेद के प्रथम मंडल के 50 सूत कण्य वंश के ऋषियों द्वारा निर्मित है।
- ऋग्वेद का आठ मंडल एवं आंगिरस वंश को समर्पित है।
- ऋग्वेद का पहला और आठयां मंडल सबसे अंत में जोड़ा गया।
- समाज में बाल विवाह वर्जित ये परंतु अंतरजातीय विवाह होते थे।
- अधिक समय तक एवं आजीवन अविवाहित रहने वाली कन्याओं को अमाजू कहा जाता था।
- समाज में नियोग प्रयापुत्र प्राप्त के लिए देवर के साथ संबंध बनाना प्रचलित पर्दा प्रथा का कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता है।
- पुनर्विवाह प्रचलित थी विधवा की अपने देवर या अन्य पुरुष से विवाह कर सकती थी।
- शतपय ब्राह्मण में पत्नी को अर्धांगिनी कहा गया है।
- शिक्षा के द्वारा स्त्रियों के लिए खुले थे परन्तु स्त्रियां राजनीति में भाग नहीं लेती थी।
- पुत्री का उपनयन संस्कार किया जाता था।
- ऋग्वेद में लोपा, मुद्रा ,घोषा, सिकता, अपाला एवं विस्वरा जैसी विदुषी वियों का उल्लेख मिलता है जिन्हें ऋषि कहा जाता था।
- शिक्षा मैखिक दी जाती थी।
- प्रथा का प्रचलन नहीं था।
- दास प्रथा का प्रचलन था।
- लोग मांशहारी एवं शाकाहारी दोनी थे।
- इनका मुख्य पेय पदार्थ सोमरस” था, जो गंधार को प्रदेश के मुज्वन्त पर्वत पर मिलता था।
- लोग तीन प्रकार के वस्त्र धारण करते थे (1) अधोवस्त्र/निधी (2) उत्तरीय वस्त्र / वासस (3) अधिवास
- वस्त्र मुख्यतः सूती ऊन एवं मृगचर्म के बनते थे।
- कुल 16 प्रकार के संस्कार थे।
- ब्राह्मण ग्रन्थों में सबसे प्राचीन ग्रंथ शतपथ ब्राह्मण था।
- भोजन को मीठा बनाने के लिए मधु का प्रयोग होता था।
- ने को वप्ता कहा गया है।
आर्थिक जीवन:-
- इस काल के लोगों के जीवन का मूलभूत आधार कृषि एवं पशुपालन था
- कृषि योग्य भूमि को क्षेत्र या उर्वरा कहा जाता था।
- चारागाह को गण्य या गणपति कहा जाता था।
- आर्यो की आर्थिक स्थिति का मूलाधार गाय थी।
- भूमि किसी की निजी सम्पत्ति नहीं होती थी सबका सामूहिक अधिकार होता था।
- व्यापार वस्तु विनिमय प्रणाली द्वारा होता था।
- ऋग्वेद में कर को बलि कहा जाता था।
- सूदखोरो को बेकनाट कहा जाता था।
- ऋग्वेद में कृषि संबंधित उल्लेख चतुर्थ मंडल में मिलता है।
धार्मिक जीवन
- ऋग्वैदिक लोग एकेश्वरवादी थे परन्तु ऋग्वेद में अनेक देवताओं का उल्लेख मिलता है इससे यह स्पष्ट होता है कि ये एकेश्वरवादी होते हुए बहुलवादी हो गए थे।
- वैदिक देवताओं में देवियों का स्थान नहीं है। सभी देवता प्राकृतिक शक्तियों के प्रतीक है।
- प्रकृति के प्रतिनिधि के रूप में आर्यों के देवताओं की तीन श्रेणियों थो
- आकाश देवता
- अग्नि देवता
- पृथ्वी के देवता
- ऋग्वेद के सबसे महत्वपूर्ण देवता इंद्र है जिन्हें पुरन्दर भी कहा गया है। ऋग्वेद में इंद्र की स्तुति के 250 मूल है।
- दूसरे महत्वपूर्ण देवता अग्नि है।
- ऋग्वेद में अग्नि की स्तुति में 200 सूक्त मिलते हैं।
- तीसरा प्रमुख देवता वरुण थे जो जल के देवता माने जाते थे। वरुण को असुर भी कहते थे।
- सोम को पेय पदार्थ का देवता माना जाता था इनकी स्तुति का विवरण ऋग्वेद के नौवें मंडल में मिलता है।
- सरस्वती नदी देवी थी जो बाद में विद्या की देवी बनी।
- देवताओं की उपासना की मुख्य रीति स्तुति पाठ एवं यज्ञ बलि अर्पित करना था। स्तुति पाठ पर अधिक जोर दिया जाता था।
- ऋग्वैदिक काल में जंगल की देवी को अरण्यानी कहते थे।
- पशुओं के देवताओं को पूषन कहा जाता था।
- मरुत – ये आंधी तूफान के देवता थे।
- ऊषा – सूर्योदय की देवी थी।
- पुषन को उत्तरवैदिक काल में ही का देवता बना दिया गया।
ऋग्वेद
- ऋग्वेद सभी वेदों में सबसे प्राचीनतम वेद है।
- ऋग्वेद में कुल दस मण्डल तथा 1028 सूक्त है।
- संकलनकर्ता :- महर्षि वेद व्यास
- ऋग्वेद को पढ़ने वाले को होत्री कहा जाता था।
- तीसरा मंडल विश्वामित्र ऋषि से सम्बंधित है ।
- चौथा मंडल :- वामदेव
- पांचवा मंडल :- अत्रि
- छठा मंडल :- भारद्वाज
- सातवां मंडल :- वशिष्ठ
- आठवां मंडल – कण्व
- दूसरे मंडल से लेकर सातवें मंडल तक ऋग्वेद के सबसे प्राचीन मंडल है।
- ऋगवेद का नौवां मंडल सोम देवता को समर्पित है।
- दसवां मंडल पुरुषशुक्त से सम्बंधित है पुरुषशुक्त में पहली बार चार वर्णों का वर्णन किया गया है जो है ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य, शुद्र।
- ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद है।
यजुर्वेद :- यजुर्वेद में यज्ञ की विधियां और यज्ञों में गाए किए जाने वाले मंत्र हैं। यह वेद गद्य में लिखा गया है। यजुर्वेद का उपवेद धनुर्वेद है। इस वेद को दो शाखाएं में विभाजित किया गया हैं- शुक्ल और कृष्ण। यजुर्वेद को पढ़ने वाले को अध्वर्यु कहा जाता था।
सामवेद :- साम का अर्थ संगीत होता है। इस वेद को संगीत का जन्मदाता माना जाता है। सामवेद का उपवेद तथा इसे गाने वाले साधु को उद्गाता कहते थे।
अथर्वदेव :- इस वेद में तंत्र विद्या, जड़ी बूटियों, चमत्कार और आयुर्वेद आदि के बारे में बताया गया है। शिल्पवेद और इस वेद को पढ़ने वाले को ब्रह्मा कहते थे।
ऋग्वेद, यजुवर्वेद तथा सामवेद को तीनो को संयुक्त रूप से वेदत्रियी कहा जाता है।
उत्तरवैदिक काल
- भारतीय इतिहास का वह काल जिसमे सामवेद, यजुर्वेद , अथर्वेद, ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यको एवं उपनिषदों की रचना हुई उतरवैदिक काल कहलाता है।
- इस युग की सभ्यता का पंजाब से बढ़कर से कुरुक्षेत्र (दिल्ली और गंगा-यमुना दोआब ) क्षेत्र का उत्तरी आगा में आ गया था।
- पुरु एवं भरत मिलकर कुरू और तूवर्श एवं क्रिवि मिलकर पांचाल कहलाये।
- उत्तरपैदिक कालीन ग्रन्थों में त्रिककूद नामक एक पर्वत श्रृंखला का उल्लेख मिलता है।
- शतपथ ब्राह्मण में उत्तरवैदिक कालीन रेवा और सदानीरा नदियों का उल्लेख मिलता है।
- अथर्वेद में मगध के लोगों को व्रात्य कहा गया है।
राजनीतिक व्यवस्था
- इस काल मे कबीला का स्थान जनपद अर्थात राज्यों में ले लिया।
- राष्ट्र शब्द पहली बार इसी काल में प्रकट हुआ।
- राजा का पद शक्तिशाली एवं वंशानुगत हो गया।
- उत्तरवैदिक काल में राजतंत्र ही शासन का आधार था।
- राजा मंत्रियों की सहायता से शासन चलते जिन्हें जीन कहा जाता था। जो राजपरिषद के सदस्य भी होते थे।
- सीमांत प्रदेश के शासक को स्थपति तथा 100 ग्रामों के समूह के अधिकारी को
- सभा और समिति इस काल में भी राजा की निरंकुरता पर रोक लगते थे।
- सभा श्रेष्ठ जनों की संस्था थी तथा समिति राज्य की केंद्रीय संस्था थी। समिति की अध्यक्षता राजा स्वयं करता था।
प्रमुख यज्ञ :-
राजसूय यज्ञ :– यह राजा के राज्याभिषेक के लिए होता था। प्रजा को यह विश्वास होता था कि इस यज्ञ के द्वारा राजा को दिव्य शक्ति प्राप्त होती है। इस अनुष्ठान में सोमपान किया जाता था।
अथमेय यज्ञ- यह राजकीय यज्ञों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण यह था इस यज्ञ में राजा के द्वारा एक घोड़ा छोड़ा जाता था जिसके पीछे सैनिक होते थे। घोड़ा जिस भी क्षेत्र से होकर गुजरता था यह क्षेत्र राजा के अधिन माना जाता था और जो राज्य उस घोड़े को रोकता था उसे राजा के साथ युद्ध करना पड़ता था।
वाजपेय यज्ञ :– इस यज्ञ के प्रयोजन में घोड़ों की दौड़ से होती थी, और जिस राजा का घोड़ा जीतता उसे ही शक्तिशाली माना जाता था।
समाजिक जीवन
- उतरवैदिक काल में समाज 4 वर्गों में विभक्त था ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
- इस काल में यज्ञ अनुष्ठान बहुत बढ़ गया है जिसके कारण ब्राह्मणों की स्थिति बहुत मजबूत हो गयी थी।
- इस काल मे वर्ण व्यवस्था का आधार कर्म न होकर जाति हो गया तथा वर्णों में कठोरता आने लगी थी।
- इस काल में केवल वैश्य ही कर चुका थे।
- ब्राह्मण क्षत्रिय तथा वैश्य इन तीनों को द्विज कहा जाता था इनका उपनयन संस्कार होता था।
- शुद्र का उपनयन संस्कार नहीं होता था। यहीं से शूद्रों के प्रति हुआ-छूत की भावना पनपने लगी।
- चारो आश्रमों का विवरण सर्वप्रथम जाबालोपनिषद में मिलता है।
- उत्तरवैदिक काल में स्त्री की स्थिति में गिरावट आई।
- शिक्षा गुरुकुल के माध्यम से होती थी।
- मनुस्मृति में विवाह के दस प्रकारों का उल्लेख मिलता है। जिसमें प्रथम चार विवाह अच्छे विवाह एवं अंतिम चार दिया बुरे विवाह के रूप में उल्लेखित है।
आर्थिक जीवन
- ऋग्वैदिक काल में अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार पशुपालन या परन्तु उत्तरवैदिक काल में पशुपालन और कृषि दोनों हो गया। इसका उल्लेख शतपथ ब्राह्मण में मिलता है।
- कत्थक संहिता में 24 बैलों द्वारा खिंचे जाने वाले हल का मिलता है।
- भारतीय इतिहास में सबसे पहली बार लोहा से मनुष्य इसी काल में परिचित हुआ था।
- लोहे का प्रथम साक्ष्य उत्तरप्रदेश के अंतरंजी खेड़ा नामक स्थान से प्राप्त हुए हैं।
- ऋग्वैदिक काल का मुख्य फसल जौ था परन्तु उत्तरपैदिक काल में मुख्य फसल धान और गेहूँ हो गया था।
- लोहे को कृष्ण अयस्क या श्याम अयस्क कहा जाता था।
- इस काल के लोग चार प्रकार के बर्तनों से परिचित थे (1) काले व लाल भांड (2) चित्रित धूसर मृतभाड (3) काले रंग के भांड (4) लाल रंग के भांड
- कृषि के अलावा शिल्पों का भी उदय इस काल में हुआ था।
- सूदखोर को कुसौदीन कहा जाता था।
- इस काल में मुद्रा का चलन हो चुका था, परन्तु छोटे-मोटे लेन देन के लिए वस्तु-विनिमय प्रणाली का ही प्रयोग किया जाता था
- सोना और लोहा के अतिरिक्त इस युग के लोग टिन, तांबा, चांदी, सीसा से भी परिचित थे।
- निष्क ,स्तमान, पाद ,कृष्णल आदि माप की इकाई थी।
- ऋग्वैदिक काल में निष्क आभूषण को कहा जाता था परन्तु उत्तर वैदिक काल में यह मुद्रा बन गयी थी।
- बाट की मूल इकाई कृष्णल था।
- बाट की सबसे छोटी इकाई को रतिका कहा जाता था।
- स्तमान चांदी की मुद्रा थी। इसका प्रयोग मुख्यतः ब्राह्मणों को दक्षिणा देने में किया जाता था।
धार्मिक जीवन
- यज्ञ इस संस्कृति का मूल आधार था।
- ऋग्वैदिक काल के मुख्य देवता इंद्र और अग्नि का महत्व इस काल में कम हो गयी थी। इनके जगह पर प्रजापति जो देवकुल में सृष्टि के निर्माता माने जाते थे सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर लिया।
- पशुओं के देवता रुद्र इस काल में महत्वपूर्ण देवता शिव के रूप में पूजे जाने लगे।
- पुषण शूद्रों के देवता के रूप में प्रचलित हुए।
- प्रत्येक द्विज को जीवन के चारों आश्रमी से होकर गुजरना पड़ता था।
- यम और नचिकेता एवं उनके बीच तीन वर प्राप्त करने की कहानी कठोपनिषद में उल्लेखित है।
- निष्काम कार्म का सिद्धान्त का प्रथम प्रतिपादन ईशोपनिषद में हुआ है।
नोट:- वेदांग
छंद | वेद के पाद |
कल्प | वेद के हाथ |
ज्योतिष | वेद के आंखें |
निरुक्त | वेद के कान |
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व्याकरण | वेद के मुख |
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