यहाँ हमने Class 11 Biology Chapter 13 Notes in Hindi दिये है। Class 11 Biology Chapter 13 Notes in Hindi आपको अध्याय को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेंगे और आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे।
उच्च पादपों में प्रकाश संश्लेषण : पत्तियों में मीसोफिल कोशिकाएँ होती हैं जिनमें क्लोरोप्लास्ट पाए जाते हैं। इनमें एक झिल्ली तन्त्र होता है जो प्रकाश ऊर्जा को ग्रहण करता है और ATP व NADPH का संश्लेषण करता है जिसे प्रकाश – रासायनिक अभिक्रिया कहते हैं।
स्ट्रोमा में एंजाइमैटिक प्रतिक्रिया होती है यह CO2 से शर्करा का संश्लेषण करती है व बाद में स्टार्च में बदल जाती है। यह अंधेरे में संपन्न होती है अत: इसे रासायनिक प्रकाशहीन अभिक्रिया कहते हैं।
प्रकाश की प्रकृति :
- सूर्य की प्रकाश ऊर्जा सौर ऊर्जा कहलाती है। सूर्य के प्रकाश में कई तरंग दैर्ध्य का प्रकाश पाया जाता है।
- सूर्य के प्रकाश को किसी काँच के प्रिज्म से होकर गुजारने पर आंखों पर जो रंगो का पुंज दिखता है उसे दृश्य स्पेक्ट्रम कहते हैं।
- इसमें सात रंग होते है जिसमें लाल रंग की तरग दैर्ध्य सबसे अधिक होती है और बैंगनी रंग की तरंगदैर्ध्य सबसे कम होती है।
प्रकाश संश्लेषी वर्णक
वे अणु जो प्रकाश को अवशोषित करते हैं प्रकाश संश्लेषी वर्णक कहलाते हैं। जैसे – पर्णहरिम a , पर्णहरिम b आदि।
- ये वर्णक हरित लवक के ग्रेना के झिल्लियों पर पाए जाते हैं।
- हरे रंग की प्रकाश किरणों को परावर्तित करने के कारण पत्तियां हरे रंग की दिखाई देती है।
- सभी वर्णक भिन्न-भिन्न तरंगदैर्ध्य वाली किरणों का अवशोषण करते है जैसे पर्णहरिम व, नीले, बैगनी व लाल प्रकाश का तथा पर्णहरिम मुख्य रूप से नीले प्रकाश का अवशोषण करते हैं।
प्रकाश संश्लेषण की क्रियाविधि:
इस प्रक्रिया में जल का आकॅसीकरण होने से ऑक्सीजन मुक्त होती है और कार्बन डाई ऑक्साइड के अपचयन से कार्बोहाइड्रेट बनता है। अतः प्रकाश संश्लेषण एक ऑक्सीकरण, अपचयन क्रिया है जो दो प्रावस्था में पूरी होती है।
- प्रकाश रासायनिक प्रावस्था
- रासायनिक प्रकाशहीन अभिक्रिया या जैव संश्लेषित अवस्था या ब्लैकमैन अभिक्रिया।
1- प्रकाश रासायनिक प्रावस्था : यह सिर्फ प्रकाश की उपस्थिति में होती है। इसमें वर्णक दो प्रकाश रसायन लाइट हार्वेस्टिंग काम्प्लेक्स (LHC) जिन्हें फोटोसिस्टम तथा फोटोसिस्टम II कहते है में गठित होता है।
- LHC का निर्माण प्रोटीन के हजारों वर्णक अणुओं से होता है।
- कई एन्टीना अणु प्रकाश को अवशोषित करके उसे अभिक्रिया केन्द्र में स्थानान्तरित करते हैं जो प्रकाश संश्लेषण को दक्ष बनाते है।
वर्णक तंत्र (PS-I): इसमें पर्णहरिम 9700 अभिक्रिया केंद्र का कार्य करता है और यह 700nm तरंगदैर्ध्य वाली प्रकाश किरण का अवशोषण करता है इसलिए इसे P700 या Chl.a700 से प्रदर्शित करते हैं।
वर्णक तन्त्र II : यह 680 nm तरंगदैर्ध्य वाली प्रकाश किरण का अवशोषण करता है । इसलिए इसे P680 या ChI.9680 से प्रदर्शित करते हैं।
प्रकाश कर्म I एवं प्रकाश कर्म II की कार्यविधि :
PS–II में उपस्थित क्लोरोफिल 9680 nm वाले लाल प्रकाश को अवशोषित करता है और इलेक्ट्रान उत्सर्जित करता है वह उत्सर्जित इलेक्ट्रान नाभिक से दूर चला जाता है और इसे एक इलेक्ट्रॉन ग्राही द्वारा ले लिया जाता है और साइटोक्रोम के पास पहुंचा दिया जाता है। परिवहन तन्त्र से इलेक्ट्रॉन के गुजरने पर उसे फोटोसिस्टम I के वर्णको को दिया जाता है।
- इसी के साथ PS-I में उपस्थित इलेक्ट्रॉन 700nm तरगदैर्ध्य को अवशोषित करता है और उत्तेजित होकर किसी दूसरे ग्राही अणु में स्थानान्तरित होता है। ये इलेक्ट्रॉन NADP+ को अपचयित कर NADPH+ H+ को बनाते है।
- यह सारी प्रक्रिया Z के आकार की होती है अत: इसे Z- स्कीम कहते हैं।
- Z- स्कीम का वर्णन रोबिन हिल और फे बेंडल ने किया।
चक्रीय और अचक्रीय फोटो फोस्फोरिलेशन
कोशिकाओं के द्वारा ATP के संश्लेषण की प्रक्रिया फास्फोरिलेशन कहलाती और प्रकाश की उपस्थिति में ADP तथा अकार्बनिक फॉस्फेट से ATP का संश्लेषण होना फोटो – फास्फोरिलेशन कहलाता है।
अचक्रिय फोटो फोस्फोरिलेशन
दो फोटोसिस्टम का क्रमिक रूप से कार्य करना जिसमें PS-II पहले व PS-I दूसरे क्रम में कार्य करे तो इस घटना को अचक्रिय फोटो फोस्फोरिलेशन कहते हैं।
- इस क्रिया में प्रकाश की उपस्थिति में जल के अणुओं का H+ तथा OH- में विघटन होता है। इसे जल का प्रकाशीय विघटन कहते हैं।
4H2O —–> 4H+ + OH-
4 OH- —–> 4(OH) + 4e-
4 (OH) ——> 2H2O + O2(gas)
- मुक्त हाइड्रोजन परमाणु H+ NADP+ को NADPH2 में अपचयित करता है।
- अचक्रिय फोटोफोस्फोरिलेशन मे Cy+.b6-f जटिल पर मुक्त ऊर्जा का उपयोग ADP से ATP के निर्माण में होता है।
चक्रीय फोटो फोस्फोरिलेशन
चक्रीय फोटो फोस्फोरिलेशन में PS-I (P700) से मुक्त अधिक ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉन fes से क्रमश: fd, cy+ b6f जटिल तथा पुन: PS-I को चले जाते हैं। H20 का विघटन नहीं होता।
- इसमें ऑक्सीजन मुक्त नहीं होती है और NADPH2 जो अपचयित हुआ उसका भी निर्माण नहीं होता। सिर्फ fd एवं Cyt. b6f जटिल के बीच इलेक्ट्रॉन स्थानान्तरण के दौरान ADP व IP से ATP का निर्माण होता है।
रासायनिक प्रकाशहीन अभिक्रिया या ब्लैकमैन अभिक्रिया (PCR चक्र)
ATP और NADPH का उपयोग प्रकाश संश्लेषण की अप्रकाशीय अभिक्रिया में होता है तथा O2 क्लोरोप्लास्ट के बाहर विसरित होता है। यह अभिक्रिया प्रकाश पर निर्भर करती है और प्रकाश की अनुपस्थिति में यह हरितलवक के स्ट्रोमा भाग में सम्पन्न होती है।
- मैल्विन केल्विन ने इसकी खोज की और इसे केल्विन चक्र नाम से जाना गया I
- इन्होंने पता लगाया कि CO2 योगिकीकरण में पहला उत्पाद एक 3 कार्बन वाला कार्बनिक अम्ल (PGA) था |
प्रकाशहीन अभिक्रिया में पौधे में कार्बन योगिकीकरण निम्न तीन प्रकार से होता है :
- केल्विन चक्र या केल्विन- बेन्सन चक्र
- टैच स्लैक चक्र या C4 पथ
- कैम चक्र
1- केल्विन चक्र या केल्विन बेन्सन चक्र
एम० केल्विन, ए० बेन्सन तथा इनके सहकर्मियों ने एक कोशिकीय हरे शैवाल जिसका नाम कलोरेला था प्रयोग किया और लगाया कि यह एक चक्रीय क्रम में संचालित होता है इसमें RuBP पुनः उत्पादित होता है। वे पौधे जो प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करते हैं उनमें केल्विन चक्र पाया जाता है चाहे उनका पथ C3 हो या C4 । यह प्रक्रिया तीन चरणों में होती है –
- कार्बोक्सिलिकरण
- रिडक्सन
- रिजेनेरेशन
1- कार्बोक्सिलिकरण: इस चरण में RuBP कार्बोक्सिलेज द्वारा उत्प्रेरित होती है और 3PGA के दो अणु बनते हैं। RuBP को रूबिस्को या RuBP कार्बोक्सिलेस- ऑक्सीजिनेस कहते हैं।
2- रिडेक्सन: इनमें ग्लूकोज बनता है। CO2 के 6 अणु के यौगिकीकरण से ग्लूकोज का एक अणु बनता है।
- 3 फास्फोग्लिसरिक अम्ल (12 मोल)+12ATP → 1,3 आईफास्फोग्लिसरिक अम्ल + 12ATP (12 मोल)
- 3 – 1,3 डाईफास्फोग्लिसरिक अम्ल + NADPH2 → 3 फास्फोग्लिस एल्डीहाइड + 12NADP+ 12H3PO4
- 4- 3 फास्फोग्लिसरेल्डिहाइड + 3 डाईहाइड्रोक्स्यासिटोन फास्फोट → फ्रक्टोज 1,6 डाईफास्फेट ।
- 5- फ्रक्टोज 6 फॉस्फेट → फ्रक्टोज 1 फॉस्फेट → ग्लूकोज 1 फॉस्फेट
- 6- फ्रक्टोज 6 फॉस्फेट + ग्लूकोज-1 फॉस्फेट → सुक्रोज +ip
सुक्रोज से कई प्रकार के कार्बोहाइड्रेट जैसे सेल्यूलोज, स्टार्च का निर्माण होता है।
3- रिजेनेरेशन : 3 फास्फोग्लिसरेल्डिहाइड एवं डाइहाइड्रोक्सिटोन सक्रिय रूप से क्रिया करते हैं व राइढयूलोज 1-5, डाइफॉस्फेट का पुनः निर्माण करते हैं। यह एक जटिल प्रक्रिया है।
- केल्विन चक्र में CO2 के प्रवेश के लिए ATP के 3 अणु व NADPK के 2 अणुओं की जरूरत पड़ती है।
ब्लैकमैन द्वारा प्रतिपादित प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारक
ब्लैकमैन के अनुसार यदि प्रकाश की तीव्रता को 1 यूनिट बढ़ा दिया जाए तो प्रकाश संश्लेषण की दर बढ़ जाती है।
- अतः प्रकाश संश्लेषण की दर सबसे कम मात्रा या सान्द्रता में उपस्थित कारक पर निर्भर करती है। सबसे कम मात्रा वाले कारक को सीमाबद्ध कारक कहते हैं और इसे ही ब्लैकमैन का सीमाबद्ध कारक नियम कहते हैं।
प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारक –
1- प्रकाश
यह प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक है इसके अन्तर्गत निम्न बिन्दुओं को समझने की आवश्यकता होती है-
(a) प्रकाश की तीव्रता: प्रातः काल प्रकाश की तीव्रता कम होती है। इस स्थिति में आपतित प्रकाश तथा CO2 के यौगिकीकरण की दर के बीच एक रेखीय सम्बन्ध होता है। प्रकाश की तव्रिता उच्च होने पर दर में कोई वृद्धि नही होती।
(b) प्रकाश की गुणवत्ता: दृश्य स्पेक्ट्रम में ही प्रकाश की क्रिया होती है। हरे रंग का तरंगदैर्ध्य सबसे कम होता है। लाल तरंगदैर्ध्य में अधिकांश पौधे अधिक प्रकाश संश्लेषण करते हैं।
(c) प्रकाश की अवधि: पौधों को प्रकाश संश्लेषण के लिए 10-12 घंटे के प्रकाश की आवश्यकता होती है।
2- कार्बन-डाई-ऑक्साइड की सान्द्रता
CO2 की सान्द्रता वायुमण्डल में बहुत कम है। 0.05% वृद्धि हो जाने के कारण CO2 के यौगिकीकरण दर में वृद्धि हो सकती है। परन्तु इससे अधिक मात्रा में हानिकारक सिद्ध हो सकती है।
3- ताप
प्रकाश संश्लेषण के लिए कई पौधों के इष्टतम ताप उनके अनुकूलतम आवास पर निर्भर करता है । उष्णकटिबन्धीय पौधों के लिए यह ताप उच्च होता है। वे पौधे जो समशीतोष्ण जलवायु में उगते हैं, उन्हें कम ताप की जरूरत होती है।
4- पत्ती की आन्तरिक संरचना
पत्ती पर पाए जाने वाले पर्णहरिम की संख्या एवं पत्नी पर रूध्रों की संख्या व रूध्रों के खुलने एवं बन्द होने की क्रियाविधि का प्रकाश संश्लेषण की दर पर प्रभाव पड़ता है।
5- पर्णहरिम
पत्ती पर उपस्थित पर्णहरिम की मात्रा प्रकाश – संश्लेषण पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालती है।
प्रकाश संश्लेषण का महत्व
1- भोजन सामग्री का उत्पादन : प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा केवल पौधे ही कार्बोहाइड्रेट बनाते हैं। इसी से वसा एवम प्रोटीन का निर्माण होता है। अत: भोजन सामग्री के उत्पादन में इसका अत्यधिक महत्व है।
2- वायुमण्डलीय नियन्त्रण एवं शुद्धिकरण : कार्बन डाईऑक्साइड गैस का वायुमण्डल में एकत्रित होने से मनुष्य व अन्य जीवों की मृत्यु हो जाएगी लेकिन प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में पौधों द्वारा CO2 गैस लगातार प्रयोग में आती है। इसी के साथ हरे पौधों द्वारा ऑक्सीजन का उत्पादन होता है। जो लगातार वायुमंडल में मिलती रहती है। अत: प्रकाश संश्लेषण द्वारा लगातार वायु का शुद्धिकरण होता रहता है।
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