यहाँ हमने Class 11 Biology Chapter 10 Notes in Hindi दिये है। Class 11 Biology Chapter 10 Notes in Hindi आपको अध्याय को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेंगे और आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे।
Class 11 Biology Chapter 10 Notes in Hindi कोशिका चक्र और कोशिका विभाजन
कोशिका चक्र (cell cycle) : कोशिका विभाजन सभी जीवों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। कोशिका विभाजन से पहले कोशिका वृद्धि और DNA प्रतिकृत होता है। ये तीनों प्रक्रियाएँ : कोशिका विभाजन, कोशिका वृद्धि एवं DNA प्रतिकृति एक अत्यन्त व्यवस्थित एवं क्रमिक प्रक्रियाएँ हैं। जो आनुवंशिक नियन्त्रण के अन्तर्गत होती है।
जिनमें कोशिका अपने जीनोम या DNA का प्रतिकृति करती हैं, आवश्यक पदार्थो का संश्लेषण करती है, और अंततः दो संतति कोशिकाओं में बट जाती है जो सम्मिलित रूप से कोशिका चक्र कहते हैं।
कोशिका चक्र की प्रावस्थाएं (Phases of cell cycle)
सन् 1953 में हॉवर्ड तथा पेले में कोशिका चक्र में घटित होने वाली विभिन्न प्रावस्थाओं की खोज की थी। ये दो प्रकार की होती हैं।
- अन्तरावस्था (Interphase)
- एम-प्रावस्था (m-phase)
1) अन्तरावस्था
यह कोशिका चक्र की सबसे लम्बी प्रावस्था है। इसे विश्राम प्रावस्था भी कहते हैं, यह वह प्रास्था हैं, जिसमें कोशिका कोशिका विभाजन के लिए तैयार होती है। अन्तरावस्था को निम्नलिखित तीन उपावस्थाओं में विभाजित किया गया है।
(i) G1- उपावस्था या पश्च सूत्री विभाजन उपावस्था : इस प्रावस्था में DNA के लिए आवश्यक न्यूक्लियोटाइड, RNA प्रोटीन्स एवं आवश्यक विकरों आदि का संश्लेषण एवं संचय होता है। इस अवस्था मे DNA प्रतिकृति नहीं करता ।
(ii) S – उपावस्था या संश्लेषण उपावस्था : S- उपावस्था या संश्लेषण उपावस्था के दौरान DNA का निर्माण एवम इसकी प्रतिकृति होती है, अत: हिस्टोन प्रोटीन का संश्लेषण होता है। इस दौरान DNA की मात्रा दोगुनी हो जाती है।
एम- प्रावस्था
एम-प्रावस्था उस अवस्था को व्यक्त करता है, जिसमें वास्तव में कोशिका विभाजन या सूत्री विभाजन होता हैं। एम- प्रावस्था’ का आरम्भ केन्द्रक के विभाजन (Karyokinesis) से होता है और इनका अन्त कोशिका द्रवय विभाजन के साथ होता है।
कोशिका विभाजन के प्रकार
यह तीन प्रकार का होता है।
- A. असूत्री विभाजन (Amitosis)
- B. सूत्री या समसूत्री विभाजन (mitosis)
- C. अर्धसूत्री विभाजन (meiosis)
A) असूत्री विभाजन :
इस प्रकार का विभाजन सरल रचना वाले जीवों, जैसे- जीवाणु, कवक, माइकोप्लाज्मा तथा उच्च वर्ग के पौधों की पुरानी तथा नष्ट हो रही कोशिकाओं में होता में होता है। इस विभाजन को सीधा विभाजन भी कहते हैं।
B) सूत्री विभाजन
इस प्रकार का कोशिका विभाजन सभी कायिक कोशिकाओं (Somatic cells) तथा जनन कोशिकाओं में पाया जाता हैं। सूत्री विभाजन को अन्य नामों जैसे- समसूत्री विभाजन या कायिक विभाजन के नामों से भी जाना जाता है। फ्लेमिंग ने 1881 में सर्वप्रथम इसका पता लगाया। सूत्री विभाजन के निम्नलिखित दो प्रमुख भाग हैं।
- 1) केरियोकाइनेसिस (Karyokinesis)
- 2) साइटोकाइनेसिस (Cytokinesis)
1) केरियोकाइनेसिस
इस क्रिया में केंद्रक विभाजित होता हैं। यह क्रिया निम्नलिखित चार पदों में संपन्न होती हैं।
i) पूर्वावस्था (Prophase) : S व G2 उपावस्था में डीएनए के नए सूत्र बन तो जाते हैं, लेकिन आपस में गुथे होने के कारण ये स्पष्ट नहीं होते। गुणसूत्रीय पदार्थों के संघनन का प्रारम्भ ही पूर्वावस्था की पहचान है।
पूर्वावस्था के स्मरणीय घटनाए:
- a) गुणसूत्रीय धागे संघनित होकर ठोस गुणसूत्र बन जाते हैं। गुणसूत्र दो अर्द्धगुणसूत्रों से बना होता है, जो आपस में सेंट्रोमीयर से जुड़े रहते है।
- b) पूर्वावस्था के अंत में गाल्जीकाय, अन्त: प्रदशी जालिका केन्द्रिका व केंद्रक आवरण दिखाई नहीं देता हैं।
ii) मध्यावस्था (Metaphase) : मध्यावस्था में सभी गुणसूत्र मध्यरेखा पर आकर स्थित रहते हैं। प्रत्येक गुणसूत्र का एक अर्धगुणसूत्र एक ध्रुव से तर्कुतंतु द्वारा अपने काइनेटोकोर से जुड़ जाता है, वही इसका संतति अर्धगुणसूत्र तर्कुतंतु द्वारा अपने काइनेटोकोर से विपरीत ध्रुव से जुड़ा होता है, मध्यावस्था मे जिस तल पर गुणसूत्र पंक्तिबद्ध हो जाते हैं, उसे मध्यावस्था पट्टिका कहते हैं।
मध्यावस्था की स्मरणीय घटनाएं:
- a) तर्कतंतु गुणसूत्र के काइनेटोकोर से जुड़े रहते हैं।
- b) गुणसूत्र मध्यरेखा की ओर जाकर मध्यावस्था पट्टिका पर पंक्तिबद्ध होकर ध्रुवों से तुर्कतंतु से जुड़ जाते हैं।
(iii) पश्चावस्था (Anaphase) : यह अत्यंत सक्रिय तथा कम समय में पूर्ण होने वाली अवस्था हैं। इस अवस्था में प्रत्येक गुणसूत्र के दोनों अर्धगुणसूत्र, जो कि गुणसूत्र बिन्दु पर जुड़े होते है, अब एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं।
पश्चावस्था की निम्नलिखित विशेषताएं है:-
- a) गुणसूत्र बिन्दु दो भागों में विभाजित होकर दोनों अर्धगुणसूत्रों को अलग- अलग कर देता है।
- b) अर्धगुणसूत्र विपरीत ध्रुवों की ओर जाने लगते हैं।
2) साइटोकाइनेसिस
केंद्रक विभाजन के पश्चात् कोशिका द्रव्य का विभाजन होता है, जिसे साइटोकाइनेसिस या कोशिका द्रव्य विभाजन कहते हैं। कुछ जीवों में केन्द्रक विभाजन के साथ कोशिका द्रव्य का विभाजन नहीं हो पाता है।
सूत्री विभाजन का महत्व:
- सूत्री विभाजन से जीव के अंगो में वृद्धि तथा विकास होता है।
- यह घावों के भरने में सहायक होता हैं।
- इस क्रिया द्वारा कोशिका में DNA तथा RNA की मात्रा में संतुलन बना रहता है
- निम्न वर्ग के जीवों में अलैंगिक जनन मुख्यत: सूत्री विभाजन के द्वारा होता हैं।
C) अर्धसूत्री विभाजन
यह विशिष्ट प्रकार का कोशिका विभाजन जिसमें द्विगुणित (diploid, 2n) कोशिका से बनने वाली दोनो संतति कोशिकाओं में गुणसूत्रो की संख्या मात्र कोशिका से आधी रह जाती है, अर्धसूत्री विभाजन कहलाता हैं।
अर्धसूत्री विभाजन की मुख्य विशेषताएं निम्नवत है-
- जीन कोशिकाओं में इस प्रकार का विभाजन संपन्न होता है उन्हें मीओसाइटस कहते हैं। नर जंतुओं में इन्हें स्पर्मेटोसाइट तथा मादा जंतुओं में ऊसाइट (aocyte) कहते हैं।
- अर्धसूत्री विभाजन आरंभ होने से पूर्व अंतरावस्था अवस्था आती है, जो कि सूत्री विभाजन के समान ही होती हैं।
- अर्धसूत्री-l विभाजन में मजात गुणसूत्रों का युगलन व पुनर्योजन होता हैं।
- अर्धसूत्री-II के अंत में चार अगुणित कोशिकाएं बनती है, जिनमें से प्रत्येक में गुणसूत्र की संख्या अपनी मात्र कोशिका की ठीक आधी होती हैं।
अर्धसूत्री विभाजन-I (Meiosis-1)
इसमें एक मात्र कोशिका से दो संतति कोशिकाओं का निर्माण होता है, जो कि अगुणित होती हैं। इसी कारण अर्धसूत्री विभाजन – I को न्यूनकारी विभाजन या विषम- विभाजन के नाम से भी जाना जाता है। इसे निम्नलिखित उप- अवस्थाओ में विभाजित किया जा सकता है।
- पूर्वावस्था – I (prophase-I)
- मध्यावस्था – I (metaphase I)
- पश्चावस्था – I (Anaphase -I)
- अंत्यावस्था – I (Telophan-I)
1) पूर्वावस्था – I
अर्थसूत्री विभाजन की यह सबसे लम्बी व जटिल प्रवस्था है। गुणसूत्र के व्यवहार के आधार पर इसे पांच उप – प्रवस्थाओ में बांटा गया है।
- (i) तनुसूत्र (Leptotene)
- (ii) युग्मसूत्र (Zygotene)
- (iii) स्थूलसूत्र (Pachytene)
- (iv) द्विपटट (Diplotene)
- (v) पारगतिक्रम (Diakinesis)
(i) तनुसूत्र : इस उपावस्था की मुख्य घटनाएँ निम्न है।
- (a) इस उपावस्था के दौरान गुणसूत्र धीरे-धीरे स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं। गुणसूत्र का संघनन जारी रहता हैं। इस प्रावस्था के अंत में प्रत्येक गुणसूत्र में दो अर्धगुणसूत्र दिखाई देते हैं।
- b) कुछ जातियों में गुणसूत्रों की पूरी लम्बाई में माला के मोतियों की तरह की संरचनाएं दिखाई देती है, जिन्हें क्रोमोमीपर्स कहते है।
(ii) युग्मसूत्र : इस उपावस्था की मुख्य घटनाएँ निम्न हैं-
(a) इस उपावस्था के दौरान समजात गुणसूत्र एक दूसरे के समीप आकार जोड़े बनाते हैं। इस प्रकार की सम्बद्धता को सूत्रयुग्मन कहते है।
(iii) स्थूलसूत्र : इस अवस्था की मुख्य घटनाएं निम्न हैं:
(a) समजात गुणसूत्रों के बीच पुनर्योजन के बीच या जीनी रिकाम्बिनेज स्थूलसूत्र प्रावस्थ के अंत तक पूर्ण हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप विनिमय स्थल पर गुणसूत्र जुड़े हुए दिखाई गुणसूत्र है।
2) मध्यावस्था – I : युगली गुणसूत्र (bivalent chromosome) कोशिका की मध्यरेखा पटिका पर व्यवस्थित हो जाते हैं। विपरीत ध्रुवों के तर्कुतंतु की सूक्ष्म नलिकाएं समजात गुणसूत्र जोड़ों के सेंट्रोमीयर से अलग – अलग चिपक जाती हैं।
(3) पश्चावस्था-I : समजात गुणसूत्र एक दूसरे से पूर्ण रूप से पृथक हो जाते हैं, जबकि संतति अर्धगुणसूत्र बिन्दु से जुड़े रहते हैं।
(4) अत्यावस्था -I : अपने- अपने ध्रुवों की ओर गति करते हुए समजात गुणसूत्र ध्रुवों पर पहुंचकर एक समूह के रूप में एकत्रित हो जाते है। प्रत्येक समूह में केन्द्रक आवरण व केंद्रिक पुनः स्पष्ट होने लगता है। इस प्रकार से एक केन्द्र्को में बंट जाते हैं।
इन्टरकाइनेसिस: अर्धसूत्री विभाजन-I व II के मध्य का अंतराल इन्टरकाइनेसिस कहलाता है। इसमें कोशिका की तैयारी सूत्री विभाजन के अन्तरावस्था जैसे ही होती हैं।
(1) पूर्वावस्था – II (prophase-II)
(2) मध्यावस्था – II (metaphase -II)
(3) पश्चावस्था – II (Anaphase – II)
(4) अंत्यावस्था – II (Telophase-II)
Class 11 Biology Chapter 1 Notes in Hindi जीव जगत
(1) पूर्वावस्था – II : अर्धसूत्री विभाजन – II गुणसूत्र के पूर्ण लम्बा होने से पहले व कोशिकाद्रव्य विभाजन के तत्काल बाद प्रारंभ हो जाता है। पूर्वावस्था – II के अंत तक केंद्रक आवरण तथा केंद्रिक अदृश्य हो जाता है एवम गुणसूत्र पुन: संघनित हो जाते हैं।
(2) मध्यावस्था-II : इस अवस्था में गुणसूत्र कोशिका की मध्यरेखा पर पंक्तिबद्ध हो जाते हैं और विपरीत ध्रुवों की तर्कुतंतु की सूक्ष्म नलिकाएं, इसके संतति अर्थगुणसूत्र के काइनेटोकोर से चिपक जाती हैं।
(3) पश्चावस्था-III : इस अवस्था में प्रत्येक गुणसूत्र के अर्ध-गुणसूत्र, गुणसूत्र बिन्दु से अलग हो जाते हैं, और विपरीत ध्रुवों की ओर चले जाते हैं। इस समय प्रत्येक गुणसूत्र केवल एक अर्धमुसूत्र का बना होता है।
अर्धसूत्री विभाजन का महत्व
लैंगिक जनन करने वाले सभी जीवों में अर्धसूत्री विभाजन एक अत्यंत आवश्यक प्रक्रिया हैं, क्योंकि इस विभाजन द्वारा एक द्विगुणित कोशिका से चार अगुणित कोशिकाओं का निर्माण होता हैं, जिन्हें नर या मादा युग्मक कहते हैं। नर एवं मादा युग्मक के संयुग्मन से द्विगुणित युग्मनज
बनता है।
अर्धसूत्री विभाजन महत्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है:-
- इसके फलस्वरूप बनी संतति कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या द्विगुणित कायिक कोशिकाओं की संख्या की आधी रह जाती हैं। यह लैंगिक जनन के लिए अत्यंत आवश्यक है क्योंकि प्रजन्न में एक मादा युग्मक और एक नर युग्मक के संयुग्मन से युग्मनज बनता है। इसमें गुणसूत्रों की संख्या फिर द्विगुणित(2n) हो जाती है। युग्मनज नए शरीर की रचना करता है, इस प्रकार प्रत्येक जाति में गुणसूत्रों की संख्या निश्चित बनी रहती है।
- प्रथम अर्धसूत्री विभाजन की स्थूलसूत्र अवस्था में विनिमय (Crossing over) होता है, जिसके कारण चारों पुत्री कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या तो आधी रहती हैं, परंतु इनकी आनुवंशिक संरचना में अन्तर आ जाता है और इसके फलस्वरूप नए संयोग का निर्माण होता है, जिनसे प्रजातियों में विभिन्नताऍं आती हैं जो कि विकास का आधार है।
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