Class 11 Biology Chapter 1 Notes in Hindi जीव जगत

यहाँ हमने Class 11 Biology Chapter 1 Notes in Hindi दिये है। Class 11 Biology Chapter 1 Notes in Hindi आपको अध्याय को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेंगे और आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे।

Class 11 Biology Chapter 1 Notes in Hindi जीव जगत

जीव विज्ञान (Biology): विज्ञान की वह शाखा जिसके अंदर जीवों का अध्ययन किया जाता है।

  • Bio : Living (जीवित जीव)
  • logy: logos (To study)

जीव विज्ञान की दो शाखाएं होती हैं:-

  1. वनस्पति विज्ञान (Botany): जीव विज्ञान की वह शाखा जिसके अन्दर पेड़-पौधो का अध्ययन किया जाता है। वनस्पति विज्ञान कहलाता है। थियोफ्रेस्टस को वनस्पति विज्ञान का जनक कहते है।
  2. जन्तु विज्ञान (Zoology): जीव – विज्ञान की वह शाखा जिसके अंदर हम जंतुओ का अध्ययन करते हैं। जन्तु विज्ञान कहलाता है। जन्तु – विज्ञान के जनक अरस्तु है।

जीव (organism): जीव एक या एक से अधिक कोशिकाओं का बना वह संगठन है, जिसमें बाहरी और आंतरिक वृद्धि होती है, विकास होता है और अपने जैसा प्रतिरूप बनाने की क्षमता होती है। वह जीव कहलाता है।

सजीव (living) और निर्जीव (Non- living)

पृथ्वी पर पाये जाने वाले समस्त चीजों को हम अध्ययन की सुविधा के लिये दो भागो में बांटते है। सजीव और निर्जीव।

सजीव (Living)

पृथ्वी पर पाये जाने वाले वे समस्त जीव जिनमे जीवन पाया जाता है। जिनमे जीवन उपयोगी सभी महत्वपूर्ण क्रियाएं जैसे – पोषण, प्रजनन वृद्धि आदि क्रियाएं होती है। सजीव कहलाते है। इनमे सभी प्रकार के पेड़ -पौधे, जीव-जन्तु, पशु-पक्षी, सूक्ष्मजीव तथा मनुष्य भी शामिल है।

सजीवो के प्रमुख लक्षण

1) भोजन (Food): सभी सजीवो को कार्य करने की ऊर्जा भोजन से ही प्राप्त होती है। भोजन सजीवो में पाया जाने वाला एक विशेष गुण है।

पौधे अपना भोजन स्वयं (प्रकाश – संश्लेषण द्वारा) बना लेते है। जबकि अन्य जीव भोजन के लिये पौधो या दूसरे जन्तुओ पर निर्भर होते हैं।

2) श्वसन (Respiration): सभी सजीवो को जीवित रहने लिये ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। जो हमे वायुमंडल से प्राप्त होती है। ऑक्सीजन को ग्रहण करना तथा C02 छोड़ने की प्रक्रिया श्वसन कहलाती है।

3) चलन (Move): पेड़-पौधों को छोड़ सभी सजीवों मे चलन की प्रक्रिया पाई जाती है। सजीवों में चलन का मुख्य कारण भोजन की खोज है। और पेड़- पौधे अपना भोजन स्वयं बना लेते है।

4) वृद्धि (Growth): सभी सजीवों में वृद्धि होती है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनका शारीरिक और मानसिक विकास होता है। जबकि निर्जीवो में ऐसा कुछ नहीं होता वो हमेशा एक जैसे ही रहते है।

5) प्रजनन (Reproduction): सभी सजीवों में प्रजनन का गुण पाया जाता है। उनमे अपने समान नये जीत उत्पन्न करने की क्षमता पाई जाती है। जिससे वे अपने ही जैसे और जीव पैदा करते है।

6) संवेदनशीलता (Feel):- सभी सजीवो में संवेदनशीलता का गुण पाया जाता है। वे अपने आस -पास तथा मौसम में होने वाले परिवर्तनो को महसूस कर सकते हैं। मनुष्य मे 5 सवेंदी अंग पाये जाते है। जबकि पेड़-पौधों में कोई विशेष संवेदी अंग नही पाये जाते लेकिन वे भी सर्दी, गर्मी तथा सूर्य का प्रकाश को महसूस करते हैं। सूरजमुखी का पौधा इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। छुईमुई के पौधे की पत्तियों को छूने पर वो बंद हो जाती है। संवेदनशील अंग : आँखा, नाक, कान, जीभ, त्वचा।

7) उत्सर्जन (Excretion):- जीवधारियों में विभिन्न क्रियाओ के फलस्वरूप हानिकारक व अनावश्यक पदार्थ बनते है। जिनको वे अपने शरीर से निष्काषित करते रहते है। यह क्रिया जीवो मे निरन्तर व जीवन – पर्यन्त चलती रहती है।

निर्जीव (Non-living)

पृथ्वी पर पाई जाने वाली वे सभी चीजे जिनमे जीवन नहीं पाया जाता । जिनमें जीवन उपयोगी आवश्यक क्रियाएं जैसे श्वसन, प्रजनन, भोजन, वृद्धि नहीं होती है वे सभी निर्जीव है।

निर्जीव को हम दो भागो मे बाँट सकते हैं।

1) प्राकृतिक (Natural):- इसके अन्दर वे सारी निर्जीव चीजे आती है। जो प्रकृति द्वारा निर्मित है। जैसे, पर्वत, आकाश, तारे ग्रह, सूर्य, हवा, आग, पत्थर पानी, आदि।

2) मानव निर्मित या कृत्रिम (Artificial):- इसके अन्दर वे सभी वस्तुये आती है। जिनका निर्माण मानव द्वारा किया जाता। जैसे : टेबल, कुर्सी, कम्प्यूटर, मोबाइल, कार रोबोट आदि।

जीवो मे विविधता (Diversity in the living Beings)

जीव जगत मे असख्य प्रकार के जीवों की उपस्थिति को जैव विविधता (Biodiversity) कहते है।

  • वैज्ञानिको न अब तक 17-18 लाख जीवो का पता लगाकर उनका नामकरण किया है।
  • इनमे से लगभग 12 लाख जातीय जन्तुओ की तथा 5 लाख जातीय पादपो की है।
  • इनमें कीटो की संख्या जन्तुओं व पादपो को मिलाकर भी उनसे अधिक है।

जीवधारियों का वर्गीकरण (Biological classification)

विश्व मे मिलने वाले जीवो की संख्या ही नहीं, आकृति, आकार, भार आदि सभी मे इतनी अधिक विविधता मिलती है, कि सामान्य रूप से उनको याद रखाना सम्भव नही। इसलिये अध्ययन की सुविधा के लिये कुछ लक्षणों पर आधारित सवंर्गो व समूहो, मे जीवो को वगीकृत करते है।

इन सवंर्गो को टैक्सा (taxa) कहते है।

पौधो, जन्तुओ, बैक्टीरिया आदि को अलग – अलग Categories (सवंर्गो) या टैक्सा मे रखा गया है।

“नये जीवो को पहचानना सही वैज्ञानिक नाम देना तथा समानताओं और असमानताओं के आधार पर उन्हें विभिन्न समूह या वर्गों में रखने को वर्गीकरण कहते है।”

जीवों के नामकरण व वर्गीकरण तथा इनके मूल सिद्धान्तो के अध्ययन को वर्गीकरण विज्ञान (taxonomy) या वर्गिकी (Systematics) कहते है।

वर्गीकरण का महत्व (Importance of classification)

  1. किसी वर्ग के एक जन्तु का अध्ययन करके उस वर्ग के अन्य सभी जन्तुओं के सामान्य गुणों का पता लग जाता है। जैसे frog का अध्ययन करने से एम्फीबिया वर्ग के जन्तुओं के सामान्य लक्षणो का ज्ञान होता है।
  2. विभिन्न वर्गों को जटिलता के आधार पर विकास क्रम मे रखा जा सकता है।
  3. कुछ ऐसे जन्तु भी है। जिनमे दो वर्गों के कुछ लक्षण पाये गये। ऐसे जन्तुओ को ‘संयोजी कड़ी’ कहते है। इनके अध्ययन से जन्तु समूहों के विकास क्रम का पता चलता है।
    • उदाहरण: पेरीपेटस मे एनिलिडा व आर्थ्रोपोडा राघों के आर्कियोप्टेसिस के जीवाराम मे उदाहरण. तथा सरीसृप व पक्षी वर्ग के लक्षण पाये जाते है।
  4. वर्गीकरण के आधार पर विभिन्न संघो व वर्गो की उत्पत्ति के मूल स्त्रोत का पता लगाया जा सकता है।
    • जैसे: पक्षी व स्तनयी वर्गों का विकास सरीस्रिप वर्ग से हुआ है। तथा आर्थ्रोपोडा संघ का विकास एनिलिंडा से हुआ है।
  5. वर्गीकरण से विभिन्न आवास में रहने वाले जीवों में पायी जाने वाली आकारिक समानताओ और भिन्नताओं के कारण का भी पता चलता है। जैसे : व्हेलू स्तनधारी है। परन्तु जल मे रहने के कारण मछलियो जैसी दिखती है।
    • व्हेल, चमगादंड, शेर एक ही संघ के प्राणी है। पर अलग- अलग वातावरण मे रहने के कारण बिल्कुल अलग नजर आते है।

जीवो को नामकरण (Nomenclature of Qrganism)

नये खोजे गये जीवो को द्विनाम – नामकरण पद्धति द्वारा वैज्ञानिक नाम देने को नामकरण कहते है।कैशेलस लिनियस नामक वैज्ञानिक ने जीवो को वैज्ञानिक नाम दिया और इसलिये द्विनाम – नामकरण
पद्धति की खोज की।

द्विनाम पद्धति (Binomial Nomenclature)

स्वीडन के वैज्ञानिक ‘लिनियस’ द्वारा जन्तुओं के वैज्ञानिक रूप से नामकरण पद्धति को ‘द्विनाम पद्धति’ कहते है। इसके अनुसार प्रत्येक प्राणी के दो नाम होते है।

प्रथम जेनेरिक नाम (generic name) कहलाता है। जो प्राणी के वंश को प्रदर्शित करता है, दूसरा उसकी जाति को। यह उसका स्पेसिफिक नाम (Specific name) कहलाता है। उदा : बिल्ली का वैज्ञानिक नाम – फैलिस डोमेस्टिकस (Felis domesticus)। इसमें Felis वंश का तथा domesticus जाति का नाम है।

जन्तु का नामवंश का नामजाति का नाम
मेंढकराना (Rana)टिग्रिना (trigina)
बिल्लीफेलिस (Felis)डोमेस्टिकस (domestics)
चूहारैट्स (rattus)रैट्स (rattus)
शेरफेलिस (Felis)लियो (leo)
चीताफेलिस (Felis)टिग्रिस (tigris)
मनुष्यहोमो (homo)सेपियंस (sapeins)

द्विनाम पद्धति के अन्तर्राष्ट्रीय नियम

  1. सभी जन्तुओ का नाम दो शब्दो का होता है।
  2. नाम का पहला शब्द वंश तथा दूसरा शब्द जाति को बताता है।
  3. सभी नाम अंग्रेज़ी में होते हैं।
  4. वंश के नाम का पहला अक्षर बड़ा (capital) तथा जाति का नाम छोटे अक्षर (small letter) से शुरू होता है।
  5. जन्तुओ का वैज्ञानिक नाम सदैव तिरछे अक्षर (italics) मे छपा होता है और तिरछी लाइन खींच दी जाती है।

जीवो का वर्गीकरण (classification of Organism)

वर्गीकरण के जन्मदाता स्वीडन के प्रसिद्ध वैज्ञानिक कैरोलस लिनियस” है। इन्होने अपनी पुस्तक ‘सिस्टेमा नेचुरी’ (Systema Naturai) में जीवों के वैज्ञानिक तथा आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली की व्याख्या की।

‘कैरोलस लीनियस’ को ‘वर्गीकरण विज्ञान का संस्थापक या पिता’ माना जाता है।

वर्गीकरण की ईकाइया (Unit of classification)

कैरोलस लीनियस ने जाति (species), जीनस (genus), कुल (Family), गण (Order), वर्ग (class), संघ (phylum) नामक 6 ईकाइ बनायी।

उन्होने समान दिखने वाली जंतुओं को जाति में रखा तथा समान गुणों वाले सभी जातियों को एक जीनस में। सम्बन्धित जीनस को मिलाकर कुल तथा समानता प्रदर्शित करने वाले सभी कुलो को एक गण में और गणो को मिलाकर वर्ग में तथा वर्गों को संघ में।

जीवो के वर्गीकरण की द्विजगत प्रणाली (Two kingdom System of classification)

अरस्तू द्वारा समस्त जीवो को दो समूहो, जन्तु जगत व पादप जगत में बांटा गया।

जन्तु जगत में बहुकोशिकीय जन्तुओ व एककोशिकीय प्रोटोजोओ को रखा गया है। ये भोजन ग्रहण करते है। तथा इनमे गमन के लिये किसी न किसी प्रकार के अंग अवश्य ही होते है। अन्य सभी जीवो को जैसे हरे, पादप, मांस तथा बहुकोशिकीय समुद्री घास-पात, मशरूम, लाइकेन, कवक तथा बैक्टीरिया आदि को पादप जगत मे रखा गया है।

द्विजगत वर्गीकरण की कमियां

  1. इस वर्गीकरण मे एककोशीय और बहुकोशीय जीवो को एक साथ रखा गया है।
  2. इस वर्गीकरण मे प्रोकेरेरियोटिक व यूकैरिपोटिक कोशिका वाले जीवो को एक साथ रखा गया है।
  3. इस वर्गीकरण में प्रकाशसश्लेषी व अप्रकाशसंश्लेषी जीवो को एक साथ रखा गया है।
  4. हरे पादपो व कवको को एक साथ रखा गया है।

जीवो का पाँच जगत वाला वर्गीकरण (1969) (Five Kingdom classification of organism)

दो जगत वाले वर्गीकरण की कमियो को दूर करने के लिये जीवो का पाँच जगत वाला वर्गीकरण शुरू किया गया।

आर० एच० व्हीटेकर ने कोशिका संरचना, कोशिका संगठन व पोषण आदि लक्षणो के आधार पर जीवो को निम्न पाँच जगत् मे विभाजित किया है।

  1. मोनेरा (Monera)
  2. प्रोटिस्टा (protista)
  3. पादप या प्लान्टी (plantae)
  4. कवक (Fungi)
  5. जन्तु या एनिमेलिया (Animalia)

कोशिका (cell): यह जीवों की संगरचनात्मक और क्रियात्मक इकाई है

Discovery: रोबर्ट हुक (Robert Hooke) को कोशिका विज्ञान का पिता कहा जाता है I

Types of cell: केन्द्रक की संरचना के आधार पर सेल दो प्रकार की होती है I

(1) Prokaryotic : Pro (Before ), Karyotic (Nucles) (2) Eukaryotic : Eu (True), Karyotic (Nucleus)

प्रौकेरियोटिक कोशिकायूकैरियोटिक कोशिका
1) एककोशिकीय(unicellular)1) एककोशिकीय और बहुकोशिकीय (unicellular and multicellular)
2) इसमें बैक्टीरिया, आक्रिबैक्टीरिया, व मोनोरा जगत शामिल है।2) इनमें कवक, पादप व जंतु जगत शामिल है I
3) इसमें केंद्रक के स्थान पर नग्न DNA पाया जाता है। जिसे हम जिनोमिक DNA भी कहते हैं।3) इसमें सुविकसित केंद्रक पाया जाता है।
4) Single DNA4) Double DNA
5) IOS राइबोसोम पाया जाता है।5) 70s और 80s दोनों प्रकार के राइबोसोम पाए जाते हैं। राइबोसोम में प्रोटीन का synthesis होता है। इसलिए इसे प्रोटीन की फैक्ट्री भी कहते हैंI
6) श्वसन की क्रिया मिसोसोम में होती हैI6) श्वसन की क्रिया माइट्रोकांड्रिया में होती है। माइटोकांड्रिया को कोशिका का ऊर्जा गृह भी कहते हैं।
7) प्रकाश संश्लेषण की क्रिया क्रोमेटोफोर में होती है I7) प्रकाश संश्लेषण की क्रिया पादप कोशिका के हरित लवक (chloroplast) में होती है।
8) Golgi body, Endoplasmic, Reticulum लवक तथा माइटोकांड्रिया अनुपस्थित होते हैं।8) Golgi body, Endoplasmic Reticulum, लवक व माइटोकांड्रिया होते हैं। इसमें Lysosome present होते हैं।

Lysosome: ये हमारे शरीर के अंदर जो हानिकारक जीवाणु होते हैं, उनको डाइजेस्ट कर लेते हैं। Lysosome के अंदर चौबीस तरह के डाइजेस्टिव एंजाइम पाए जाते हैं।

Endoplasmic Reticulum 2 type की होती है I

1 ) Smooth ER 2 ) Rough ER

Chapter 3: वनस्पति जगत

प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis)

सूर्य के प्रकाश में पौधे के हरे भागों में उपस्थित chlorophyll की सहायता से CO2 व H2O के संयोग से carbohydrate बनने की क्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं।

6CO2+12H2O ——- C6H12O6+6H2O+6O2

पेड़ पौधों में भोजन बनने की क्रिया ही प्रकाश संश्लेषण कहलाती है।

निम्न शब्दो की परिभाषा

1. संघ (phylum): ऐसे गण जो आपस में समानता रखते हैं। उन्हें एक संघ में रखा जाता है।
उदाहरण- कशेरुकी एक ऐसा संघ है, जिसमें उभयचर, मत्स्य और सरीसृप आते है ।

2. वर्ग (class): समान गुण वाले गणो को एक ही वर्ग मे रखा जाता है। उदाहरण – स्तनधारियो मे शेर, बिल्ली आदि को बन्दर व गोरिल्ला के साथ ही रखा जाता है।

3. कुल (Family): एक ऐसा समूह जहाँ सभी समान गुणो वाले वंशो को रखा जाता है। उदाहरण- आलू, टमाटर व बैगन मे कई गुण समान होते हैं। इन्हें एक ही कुल सोलेनेसी में रखा जाता है

4. गण (order): ऐसे कुलो का समूह जिनमे कई गुण समान होते है। उदाहरण: मांसभक्षी गण मे कुत्ते, बिल्ली, और शेर रखे जाते हैं। जबकि शेर व बिल्ली फिलैडी तथा कुत्ते कैनीडी कुल के हैं।

5. वंश (Genus): ऐसी जातियो का समूह जिनमे समान गुण हो तथा इसका वर्गीकरण मे बहुत महत्व है। द्वि-नाम पद्धति मे बिना वंश के जाति को नाम नही दिया जा सकता है। उदाहरण : मानव का वंश ‘होमो’ है।

हरबेरियम (Herbarium)

पादप प्रदेशो का ऐसा संग्रह जिसमे पादपो को सुखाकर भली-भाँति दबाकर कागज की शीट पर अवलोकन योग्य रूप में परिरक्षित करके व्यवस्थित क्रम में संरक्षित किया जाता है। हरबेरियम कहलाता है।

हरबेरियम की शीट पर एक लेबल लगा दिया जाता है। इस लेबल पर –

  1. पौधों को एकत्र करने की तिथि
  2. पौधे का स्थानीय नाम
  3. पौधे का वैज्ञानिक नाम
  4. पौधे का कुल
  5. संग्रह कर्ता का नाम
  6. स्थान का नाम जहाँ से पौधा लिया गया
  7. विशेष बिन्दु

कुछ प्रमुख Herberium (Botanical Garden)

प्रसिद्ध Botanical garden Kew (England), Indian Botanical garden Howrah (India), National Botanical Research Institute Lucknow (India) में है। सभी महाविद्यालयो व विश्वविद्यालयों में भी हरबेरियम स्थित होते हो।

Herbarium technique

1) नमूनो को एकत्र करना (collection of Specimens): विभिन्न ऋतुओ मे विभिन्न क्षेत्रों से सम्पूर्ण पादप, विशेष रूप से पुष्प सहित को एकत्र करना।

2) पादपो को दबाना व सुखाना(pressing & Drying of plants): अखबार के कागजों को फैलाकर, और नियमित रूप से अखबार बदलकर पादपो को दबाकर रखना।

3) पादप का हरबेरियम शीट पर आरोपण (Mounting of plant specimen on Herbarium sheet): हरबेरियम शीट पर पादपों को टेप, गोंद या सुई धागे से आरोपित किया जाता है, पादपों को कवक व कीट से बचाने के लिये उनको मरक्यूरिक क्लोराइड विलयन डाला जाता है।

4) नामांकन (Labelling)

Herbarium sheet पर पादप के आरोपण के बाद शीट के निचले कोने पर एक Label लगाया जाता है। जिस पर पादप सम्बन्धी जानकारी होती है।

5) हरबेरियम शीट्स का संग्रह ( Storage of Herbarium sheets): Herbarium sheet को किसी लकडी या स्टील की अलमारी मे सुरक्षित रूप से रखा जाता है।

कुंजी अथवा चाबी (Key)

इसका प्रयोग समानताओं तथा असमानताओं पर आधारित होकर पौधों तथा प्राणियों की पहचान मे किया जाता है। (जैसे कोई जीव है। तो हम सबसे पहले उसका शरीर देखेगे कि इसका शरीर dry है, या wet अगर dry skin नहीं है, तो हम मान सकते है कि वो Sqlameuder है। लेकिन अगर Skin dry है, तो हम दूसरी विशेषता देखेंगे कि शरीर पर बाल है,या नहीं। अगर बाल नहीं है, तो हम कहेंगे lizard है। लेकिन अगर बाल है तो, हम दूसरी विशेषता देखेंगे।

तो इसका मतलब कुंजी दो विपरीत विकल्पों को चुनने को दिखाती है।

विस्तृत वर्णन को लिखने के लिए नियम – पुस्तिका मैन्युअल (वह पुस्तक जिसमे किसी भी organism के बारे मे detail मे जानकारी होती है)। मोनोग्राफ (वह पुस्तक जिसमे एक विषय पर ही जानकारी हो)। तथा सूत्रीपत्र (कैटलॉग) अन्य माध्यम है।

फ्लोरा: यह एक ऐसा साधन है, जिसमें हम किसी पौधे का आवास, उसके लक्षणों को हम जान सकते है। फ्लोरा में सभी पौधों का विस्तृत वर्णन होता है।

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