Class 11 Physics Chapter 3 Notes in Hindi समतल मे गति

यहाँ हमने Class 11 Physics Chapter 3 Notes in Hindi दिये है। Class 11 Physics Chapter 3 Notes in Hindi आपको अध्याय को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेंगे और आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे।

Class 11 Physics Chapter 3 Notes in Hindi समतल मे गति

समतल मे गति 

1. एक समान सदिश :- ऐसे सदिश जिनकें परिमाण तथा दिशा समान होते है एक समान या समतुल्य सदिश कहलाते है। 

 उदाहरण  :  A = B

2. असमान सदिश :- ऐसे सदिश जिनकी दिशा तो समान व परिमाण अलग- अलग होते है। असमान सदिश कहलाते है।        

उदाहरण : A ≠ B परंतु  A = B और |A| = |B|

शून्य सदिश :- ऐसें सदिश जिनका परिमाण शून्य होता है। शून्य सदिश कहलाते है।

1. किसी सदिश मे शून्य सदिश की गुणा करने पर शून्य ही प्राप्त होता है।

  उदाहरण :  A . 0 = 0

2. यदि किसी सदिश मे शून्य सदिश जोड़ने पर सदिश राशि

अपरिवर्तित रहती है।

             उदाहरण : A + 0 = A

3. यदि दो विपरित सदिशो को आपस मे जोड़ा जाए तो शून्य सदिश ही प्राप्त होता है।

           उदा० : A = -B

                  A + B =0

                -B + B =0

4.यदि किसी शून्य सदिश में किसी संख्या की गुणा कर दें तो शून्य सदिश ही प्राप्त होता है।

उदा० : n . 0 =  0 { जहाँ n = 1,2,3,4,5,6,7———-}

विपरित सदिश :- ऐसें सदिश जिनकें परिमाण तो समान व दिशा विपरित सदिश कहलाते है।

                 उदा० : A = – B

एकांक सदिश :- ऐसा सदिश जिनका परिमाण एक या एकांक हो। एकांक सदिश कहलाता है। 

एकांक सदिश को अंग्रेजी वर्णमाला के छोटे अक्षर के उपर केप लगाकर व्यक्त करते है। 

किसी सदस्यर को उसको परिमाण से भाग देने पर एकांक सदिश प्राप्त होता है।

माना किसी सदिश r का परिमाण = r या r है 

तो एकांक सदिश r = rr

एकांक सदिश की दिशा सदिश राशि के समानांतर होती है।

स्थिति सदिश :-

AD 4nXemgUWodNdlPaCLIEMq6 g3IPAITeUpsfNSprw7ZH36EEj1GaUfD42iLDJehSN72cumOHmHZP4bUeSu7Zt99

मूल बिन्दु से किसी कण की स्थिति को स्थिति सदिश की सहायता से व्यक्त करते है। 

जैसे चित्र के मूल बिन्दू 0 से किसी कण P की स्थिति को स्थिति सदिश OP = r  से निरूपित किया।

विस्थापन सदिश :-

AD 4nXci4X1ywuOCkAEUu6pcIaSqhLCdKB KvTxtqLRMkabFjYXHDe4Pv 2M8uwNaWfkKBu9u1DhC6s PucFxZzuQw7ZJ8 kOefow pLFygTQVeuJmBm6bihfau1AxrP1E0AtzYgJ9Z

यदि किसी क्षण t पर कण P की मूल बिन्दु 0 से स्थिति r1 है। तथा क्षण t1 पर कण की स्थिति r2 हो जाती है। कणो की स्थिति का अन्तर विस्थापन सदिश कहलाता है। इसे Δr से व्यक्त करते है।

              r1 + Δr = r2

              Δr = r2 – r1

सदिश राशियों का संकलन (जोड़ना): गणितीय तिथि

AD 4nXcZvPkG0EvZPHFBo9DMfmSd3F 6I5AKi1vh0zZum2QWW2rAJYTS41 eUHyEbRLdMyHer6r

माना दो सदिश A व B को सीधे क्रम मे जोड़ा गया है। त्रिभुज के नियमानुसार इन सदिशो को विपरित क्रम में जोड़ने वाली भुजा सदिशो के परिमाण को व्यक्त करती है। सदिशो का परिणामी भी सदिश होता है। रेखा PQ को आगे बढ़ाते है तथा बिन्दु M से उसके ऊपर एक लम्ब डालते है। समकोण ΔPMS में

पाइथागोरस प्रमेय से,

                (कर्ण)2 = (लम्ब)2 + (आधार)2

इसलिए PS =  PQ + QS ……(1)

PM2= (PQ + QS)2 +(MS)2  {समीकरण 1 से}

इसलिए (a+b)2 = a2 + b2 + 2ab

PM2 = PQ2 + QS2 + 2PQ . QS + MS2 ……(2)

ΔQMS मे 

               Sin =लम्बकर्ण 

               Sin =MSQM 

               MS = QM . Sin

              MS = B   Sin

             Cos = आधारकर्ण

             Cos = QSQM

               QS = QM . Cos

               QS = B  Cos

समीकरण 2 में PQ, QS तथा MS के मान रखने पर

R2 = A2 + ( B Cos)2 + 2A.B Cos + (B Sin)2

R2 = A2 + 2A B Cos + (B Cos)2 + (B Sin)2

R2= A2 + B2 ( Cos2 + Sin2 ) + 2A B Cos

R2 = A2 + B2 ( Cos2θ + Sin2θ ) + 2A B Cosθ

R2 = A2 + B2 + (1) + 2A B Cosθ

R = A2 + B2 +2A B Cosθ

विशेष स्थितियाँ →

1.यदि θ= 0°

         R = A2 + B2+2ABCosθ

         R = A2 + B2+2ABCos0

         R = A2 + B2+2AB (1)

         R = A2 + B2+2AB

    इसलिए (A+B)2 = A2 + B2 + 2AB

                  R = (A+B)2

             Rmax = (A+B)

यदि दोनों सदिश समान दिशा मे होगें तो उनका परिणामी अधिकतम होगा।

2. यदि = 90°

        R = A2 + B2+ 2AB Cosθ

       R = A2 + B2+ 2AB Cos90.

       R = A2 + B2+ 2AB (0)

       R = A2 + B2

 3. यदि = 180° 

       R = A2+ B2+2AB Cosθ

       R = A2 + B2+ 2AB Cos180.

       R = A2 + B2+ 2AB (-1)

       R = A2 + B2- 2AB

इसलिए (A-B )2 = A2 – B2 – 2AB

             R = (A – B)2

             Rmin = (A – B)

प्रक्षेप्य गति :- यदि किसी वस्तु को आकाश मे निश्चित वेग से फेफा जाए तथा वस्तु पृथ्वी के गुरुत्वीय क्षेत्र के भीतर गति करे तो फेकी गयी वस्तु प्रक्षेप्य तथा वस्तु की गति कहलाती है।

उदा :-  हवा में फेफी गयी गेंद की गति

फुटबॉल की गति आदि वस्तु की प्रक्षेप्य गति का सर्वप्रथम उल्लेख वैज्ञानिक गैलिलियों ने किया था। इन्होंनें अपने लेख मे प्रक्षेप्य गति के क्षैतिज एवं उर्ध्वाधर घटकों की स्वतंत्र प्रकृति का उल्लेख किया था।

प्रक्षेप्य गति का अध्ययन सरलतापूर्वक करने के लिए निम्न दो अभिधारणाए दी गयी:-

  1. गुरुत्वीय त्वरण का नाम नियत व दिशा उर्ध्वाधर नीचें की ओर होनी चाहिए।
  2. वायु कें प्रतिरोध को नगण्य मानना चाहिए।

प्रक्षेप पथ :- uy = u Sin

             ux = u Cos

माना कोई प्रक्षेप्य कोण पर u वेग से उर्ध्वाधर दिशा मे फेंका गया है।

AD 4nXeZ2UwAWdP1E1 TojpPIsb4doEo TfS2K9a6Ba4dL7ASpjO4P3he6AyOm325QhfoEdw2qbGBbyubf7GLPGhbLlrOcksnMGBKQp55gL6TzoImNHqAb7rR6I9s16fIDgEgWMd0B

फेफी गयी वस्तु में गुरुत्व के कारण लगने वाले त्वरण की दिशा सदैव नीचें की ओर होता है।

वस्तु फें प्रारम्भिक वेग के निम्न घटक होंगें 

1. क्षेतिज घटक ux = u cos …….(1)

2.उर्ध्वाधर घटक uy = u sin …….(2)

वस्तु मे उत्पन्न त्वरण के घटक निम्न प्रकार होगें-

1. क्षेतिज घटक ux = 0

2.उर्ध्वाधर घटक uy = g

गति के प्रथम समीकरण सें

       v = u + at

क्षैतिज तल मे गति के लिए

     दुरी = चाल × समय

     Sx (x)= ux t (इसलिए ux = u Cos)

     Sx (x)= u cos t ……(3)

    या t = s(x)u Cosθ …..……(4)

उर्ध्वाधर गति के लिए-

Sy (y)= uy t – 12g t2 ……(5)  (इसलिए ay = -g)

गति के प्रथम समीकरण से 

V = u + at

Vy = uy – gt

Vy = u Sin – gt

प्रक्षेप्य द्वारा प्राप्त अधिकतम ऊँचाई →

माना प्रक्षेप्य को अधिकतम ऊँचाई प्राप्त करने में t1 समय लगता है।

VY = uy + ay . t {इसलिए VY = 0 }

दिया है,    uy = uSin

           ay = -g

            t = t1

तब  0 = usin – gt1

gt1 = usinQ

t1 = usinθg …….……(i)

{ s = ut + 12 at2 }

Hmax = uyt1 – 12gt12   …….……(ii)

समीकरण (ii) में समीकरण (i) सें t का मान रखने पर

Hmax = usin.usinθg – 12g (usinθg)2

Hmax = u2 Sin2.( 1g – 12g.1g2)

Hmax = u2 Sin2 . (1g – 12g)

Hmax = u2sin2θ2g

स्थिति-1 यदि = 90° हो तों

Hmax = u2 (sin90 x sin902g)

Hmax = v22g {क्योकि Sin90° = 1}

प्रक्षेप्य काल या उडियन काल :- चूँकि वस्तु गुरुत्व के अधिन गति कर रही है। अत: वस्तु को जितना समय ऊपर जाने में लगता है, ठीक उतना ही समय नीचे आने मे लगेगा।

तब उडियन काल :-

       T = t1 + t1

      T = 2t1 (चूँकि t1 = usinθg)

      T = 2usinθg

प्रक्षेप्य की परास :- किसी प्रक्षेप्य को जिस समतल से फेंका जाता है वापस उसी समतल मे आने मे प्रक्षेप्य द्वारा क्षैतिज तल में तय की गयी दूरी परास कहलाती हैं।

दूरी = चाल × समय 

R = ux × T  ……. (1)

(चूँकि  T= 2usinθg)

{चूँकि ux = u cos}

      R = u cos.2usinθg

      R = 2u2 cosθ sinθg

      R = u2 2sinθ cosθg

{चूँकि Sin2 = 2SinCos}

         R = u2 Sin2θg

स्थिति 1 – यदि = 45°

        R = u2 sinθ (45 x 2)g

        R = u2 sinθ (90)g        (चूँकि Sin(90) = 1)              

        Rmax = u2g

अर्थात किसी प्रक्षेप्य को अधिकतम दूरी तक प्रेक्षित करने के लिए उसे 45° के कोण पर प्रेक्षित करना चाहिए।

अधिकतम ऊँचाई एवं अधिकतम परास में सम्बंध 

हम जानते है

             Hmax = u22g

        या  Hmax = 12 x (u2g)

      चूँकि Rmax =u2g

           Hmax = 12 × Rmax

किसी समतल मे गति :- इस भाग मे हम सदिशों की सहायता से दो या तीन विमा में होने वाली गति का अध्ययन करेगें।

1.स्थिति सदिश :- किसी समतल मे स्थिति कण P का स्थिति सदिश  r है। स्थिति सदिश को निम्न समीकरण की सहायता से व्यक्त कर सकतें है।

 r = x i + y j

2. विस्थापन सदिश :- किसी वस्तु की अंतिम स्थिति तथा प्रारम्भिक स्थिति के अंतर को विस्थापन कहते है। 

माना कोई कण किसी क्षण t1 पर बिन्दु P पर स्थित है। तथा क्षण t2 पर वह बिन्दु Q पर पहुंच जाता है।

 सदिश योग की त्रिभुण विधि से 

ΔOQP में  

          OQ = OP + PQ

          r2 = r1 + Δr

          Δr = r2 – r1

(चूँकि r = x i + Y j)

  अतः r1 = x1 i + Y1

  अत: r2= x2 i + Y2 j

 समीकरण 1 में r1 व r2 के मान रखने पर 

Δr = x2 i + Y2 j – (x1 i + Y1 j)

Δr = x2 i + Y2 j – x1 i – Y1 j

Δr = i (x2 – x1) + j (Y2 – Y1)

चूँकि x2 – x1 = Δx

चूँकि Y2 – Y1 = Δy

अतः Δr = (Δx) i + (Δy) ĵ

3. वेग :- वस्तु के विज्ञापन और उसके संगत समयांतराल के अनुपात को वेग कहते है।

वेग =विस्थापनसमय 

  V = ΔrΔt 

∵ Δr = (Δx) i +  (ΔY) j

   V =Δx i + Δy jΔt 

V = ΔxΔt i + Δy jΔt

V = Vx i + Vy j

त्रिभुज OQP में ,

पाइथागोरस  प्रमेय सें 

(कर्ण)2 = (लम्ब)2 + (आधार)2

V2 = (vx)2 + (vy)2

V2 = (vx)2 + (vy)2

tan = लम्बआधार = QPOP

tan = Vy Vx         

    = tan-1(Vy Vx )

4. त्वरण :- किसी वस्तु के वेग मे परिवर्तन की दर को त्वरण कहते है। समतल तल मे गतिमान किसी वस्तु का औसत त्वरण वेग में परिवर्तन की दर के बराबर होता है।

avg = वेग मे परिवर्तनसमयान्तराल 

avg = ΔVΔt

इसलिए V = VX i + VY j

avg =Δ (Vx i + Vy j) Δt 

avg = Δ Vx  i + ΔVy j Δt

avg = Δ VxΔt i ΔVy Δt j

avg = ax i + ay j

5.तात्क्षणिक वेग :- किसी क्षण विशेष पर वस्तु का वेग तात्क्षणिक वेग कहलाता है।

V = drdt 

इसलिए r = x i + y j

         v = d (x i + y j)dt 

         v = d (x i)dt + d (y j)dt 

         v = i dxdt + j dydt

तात्क्षणिक त्वरण :- किसी क्षण पर वस्तु मे उत्पन्न त्वरण तात्क्षणिक त्वरण कहलाता है।

        a = dvdt

इसलिए v = vX i + vY j

a = ddt (vX i + vY j)

a = d (Vx) idt + d (vy) jdt

a = i dvxdt + j dvydt

किसी समतल में आपेक्षिक वेग :- सरल रेखा के अनुदिश आपेक्षिक वेग की अभिधारणा से हम भली- भाति परिचित है। इस आपेक्षिक वेग को किसी समतल (द्विविमीय) या त्रिविमिय गति के लिए सरलता से विस्तृत कर सकते है। माना दो वस्तुएं A तथा B जिनके वेग क्रमश: VA तथा VB है।

तब वस्तु A के सापेक्ष B का वेग →

VBA = VB – VA 

वस्तु B के सापेक्ष A का वेग → 

VAB = VA – VB 

एक समान वृतिय गति :- यदि कोई वस्तु एकसमान चाल से वृताकार प्रथ पर गति करे तो वस्तु की गति एकसमान वृतिय गति कहलाती है। 

जब कोई वस्तु वृताकार पथ पर गति करती है तो वस्तु के वेग की दिशा लगातार परिवर्तित होती है। जिस कारण वस्तु का वेग परिवर्तित होता है।

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